अंश तुम मेरा कल ट्रेन का टिकट करवा दो सुना तुमने, मैं शाजापुर अपने घर जाना चाह रही हूं यह कहकर राधिका जल्दी-जल्दी अपना सामान पैक करने लगी अंश बोला मां आप अकेली क्या करोगी , नहीं बेटा मैं अब अपना अपमान नहीं सह सकती तुम्हारी बहू सुष्मिता मुझे बात-बात पर ताने मारती है
मुझसे अच्छा व्यवहार नहीं करती मेरा अपमान करती है अगर मैं तुमसे कहूं तो बेटा तुम नौकरी भी नहीं कर पाओगे और इन्हीं घरेलू समस्याओं में उलझे रहोगे जब भी मैंने तुमसे कहा और तुमने बहू को समझाना भी चाहा सुष्मिता बहू तुमसे ही लड़ने लगी और घर में बहुत क्लेश हो गया ,छोटा सा मेरा पोता है उसके ऊपर अच्छा असर नहीं पड़ेगा बेटा मैंने निर्णय कर लिया है , मैं कल जा रही हूं ,बेटा अंश भरे गले से बोला ठीक-क है मां।
सुबह उठकर राधिका जल्दी-जल्दी तैयार हो गई और अपने बेटे से बोली बेटा जल्दी से चलो ट्रेन का टाइम हो गया अपने पोते को प्यार किया 2 साल का पोता क्या समझे, बेटा अंश मां से बोला हां मां में तैयार हूं, अपनी पत्नी सुष्मिता से जोर से चिल्लाया तुमने कुछ मां के लिए रास्ते मैं खाने को बनाकर रखा क्या???
सुष्मिता भी गुस्से में बोली हां चिल्ला क्यों रहे हो, मैंने पहले ही बना कर मेज पर रख दिया यह कहकर मुंह फेर कर खड़ी हो गई जैसे मां के जाने का इंतजार कर रही हो? मां राधिका ने सोचा कि अगर बहू ने टिफिन बनाया था तो मेरे हाथ में नहीं दे सकती थी क्या? लेकिन चुप रह गई, जाते समय भी “अपमान” सहन कर लिया क्या किस्मत है।
मां बेटे के संग जैसे ही स्टेशन पर आईं बेटे की आंखें भर आईं, ऐसा लग रहा था जैसे वह बहुत कुछ कहना चाह रहा है ,लेकिन कह नहीं पा रहा था पर मन-ही-मन उसको पछतावा हो रहा था , कि गृहक्लेश के मारे अपनी पत्नी से कुछ कह भी नहीं पा रहा हूं ,और उसके “पछतावे के आंसू” एकदम वह निकले,
मां अपने बेटे के दुख को अच्छी तरह समझती थी, पर मां भी अपने बेटे से कुछ भी नहीं कह पा रही थी इतने में स्टेशन पर ट्रेन आ गई और भारी मन से अंश बेटे ने मां को ट्रेन में बैठा दिया और मां का सामान रख दिया मां के पैर छूकर जैसे ही ट्रेन से नीचे उतरा खिड़की के पास आकर मां से बोल “मां” चिंता नहीं करना जल्दी वापस आ जाना
इस कहानी को भी पढ़ें:
पछतावे के आंसू – सुनीता मुखर्जी “श्रुति” : Moral Stories in Hindi
या मैं आपको लेने आ जाऊंगा अ-अ-अ कहते हुए उसका गला भर आया ,इतने में ट्रेन स्टेशन से रैंगने लगी और धीरे-धीरे ट्रेन की गति तेज हो गई मां ने अपना हाथ ऊपर कर बेटे से विदाई ली और उधर से बेटा अपना हाथ दिखाकर देखता रह गया जब तक निगाह गई तब तक —-ट्रेन बहुत तेज हो चुकी थी सब कुछ धुंधला – धुंधला सा दिखाई दे रहा था।
ट्रेन काफी दूर निकल चुकी थी राधिका अपने ख्यालों में खो जाती है कितने अरमान थे अपने बेटे की शादी के लिए उसे याद है वह सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थी और उसके पति विराट इंश्योरेंस कंपनी में ब्रांच मैनेजर थे राधिका के रिटायरमेंट के पांच साल पहले ही विराट की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई थी, बेटे की नई नई नौकरी लगी थी वह एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर हो गया था मां को अकेला देख बेटे ने यही निर्णय लिया था
कि मां मेरी तो बाहर बड़े शहर में नौकरी लग गई आप अकेली कैसे रहोगी ! नौकरी छोड़ दो ,लेकिन मां ने बहुत सोच समझकर बेटे से कहा नहीं बेटा मैं हिम्मत करूंगी तुम्हारी अभी नई नौकरी है और तुम्हारी शादी भी करनी है, ऐक साल बाद ही मां ने अपने बेटे की पसंद की लड़की से शादी करवादी और अपने काम में व्यस्त हो गईं, कभी-कभी बेटा बहू उसके पास आ जाते थे कभी वह हिम्मत करके उनके पास जाती थी बहुत अच्छा समय निकल रहा था।
घर में एक पोता भी आ गया उसका नाम रखा गया अधीश ,अब तो राधिका का समय बहुत अच्छा निकलने लगा जब भी छुट्टी मिलती अपने पोते से मिलने पहुंच जाती सभी का हंसी खुशी समय निकलने लगा और उसका रिटायरमेंट का टाइम आ गया राधिका को अच्छी तरह याद है जब उसका रिटायरमेंट था और बहू बेटे दोनों उसके पोते अधीश को लेकर आ गए थे , राधिका के बहू बेटे ने फैसला कर लिया
कि मां को अपने साथ ही ले चलेंगे ताकि अधीश भी खुश रहेगा और उसकी अच्छी देखभाल भी होगी अच्छे-अच्छे संस्कार मिलेंगे मां ने तो बहुत मना किया बेटा हम अकेले रह लेंगे वह नहीं माने और राधिका दो-तीन दिन बाद उनके साथ चली गई और बहुत अच्छे से समय बीतने लगा राधिका बहुत खुश थी कि पता नहीं इस खुशी को भी नजर लग गई।
अपने बेटे अंश और बहू सुष्मिता के पास रहते हुए एक ही साल निकला था कि पता नहीं बहु को ऐसा लगने लगा की मां तो अब हमारे पास ही रहेंगी खर्चा भी बढ़ रहा है और बहू का व्यवहार खराब होने लगा उसने बोलना बंद कर दिया, और बेटे से भी शिकायत करती यह देखकर बेटा चुप रह जाता
इस कहानी को भी पढ़ें:
औकात मां-बाप से होती है – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi
उसे सब पता था की मां का रहना सुष्मिता को अच्छा नहीं लग रहा, और कभी तबीयत खराब हो जाए तो सुष्मिता देखती भी नहीं थी ना तबीयत पूछती थी इतना बड़ा “अपमान”राधिका सहन नहीं कर पाई और उसने अपना निर्णय अपनी बहू, बेटे को सुना दिया शायद वहां से निकलना ही ठीक था क्योंकि राधिका अपनी जिंदगी में स्वाभिमान से रही थी ।
यह सोचते सोचते राधिका का पूरा रास्ता निकल गया इतने में ट्रेन की सीटी बजी और ट्रेन अचानक प्लेटफार्म पर रुक गई राधिका की तंद्रा टूटी और वे अपने ख्यालों से बाहर आ गई हां उसका शाजापुर आ गया था जहां वह शुरू से रही और सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल रही बहुत सारे स्टूडेंटों की जिंदगी बनादी स्कूल में अच्छे-अच्छे प्रोग्राम भी करवाये
और शिक्षाप्रद नाटक भी करवाये स्टूडेंट को आगे बढ़ाने का काफी प्रयास भी किया सभी उनको बहुत चाहने लगे उनके स्कूल के सारे स्टूडेंट और उनके पैरेंट्स प्रिंसिपल राधिका की बहुत तारीफ करते थे कि आज हमारे बच्चों को स्कूल में अच्छे संस्कार मिल रहे हैं।
राधिका और उसके पति विराट दोनों ने मिलकर अपना घर भी शाजापुर में बना लिया था, राधिका और विराट दोनों ही बहुत मिलनसार नेचर के थे, व्यवहारिक थे इसीलिए सभी लोग उन्हें चाहते थे और वह बहुत मान सम्मान से अपनी जिंदगी जी रहे थे यही सोचते हुए एक नई सोच के साथ राधिका ट्रेन से उतरी सामने ही राधिका की बचपन की सहेली का बेटा अमर खड़ा था
बचपन से ही राधिका को मौसी कहता था बड़े प्यार से अपनी मौसी को गले लगाया और पैर छुए और बोला मौसी आप हमेशा से अपने घर की एक चाबी मम्मी को देकर जाती थीं इसलिए आपका घर पूरा साफ करके रखा है मैंने और मां ने , आपका स्वागत है।
राधिका की बचपन की सहेली सरला बगल के ही मकान में रहती थी दोनों में बहुत प्यार था, लेकिन सरला का बेटा अमर भी बाहर ही रहता था कभी-कभी आ जाता था उस समय अमर आया हुआ था और अपनी मौसी को लेने स्टेशन पहुंच गया राधिका अमर को देखकर बहुत खुश हुई और अपने “अपमान” को भूलकर मान सम्मान की जिंदगी जीने का निर्णय लिया।
मां को शाजापुर आए 15 दिन ही हुए थे,कि उनकी बहू सुष्मिता को बहुत अकेलापन लगने लगा और बार-बार पश्चाताप होने लगा कि मैंने मां का अपमान किया है अपने पति अंश से बोली चलो अपन मां को वापस मना कर ले आते हैं अपने बेटे को अच्छे संस्कार मिल रहे थे मेरी ही गल्ती थी मैंने मां को मां नहीं समझा और उसकी आंखों से “पछतावे के आंसू” बहने लगे अंश ने सोचा चलो अच्छा ही हुआ, “देर आये दुरुस्त आए” देर से ही सही सुष्मिता ने अपनी गल्ती का पश्चात तो किया।
अंश ने बोला सुष्मिता सोच लो तुम मां के साथ अच्छा व्यवहार करो तभी मां को लेने चलेंगे सुष्मिता ने वादा किया मैं मां को मान सम्मान से रखूंगी उनका आदर करूंगी उनकी परवाह करूंगी फिर क्या था एक दिन अचानक 15 दिन बाद अंश सुष्मिता अपने बेटे अधीश को लेकर मां के पास आ गए मां उन्हें अचानक आया देखकर चौंक गईं ,अरे आने की कोई सूचना नहीं दी ! चलो अच्छा है ,घर में अच्छा लगेगा नहीं मां हम तो— आपको फिर से लेने आए हैं ,अब हमको अपने किए का पश्चाताप हो रहा है दोनों मां से बोले और सुष्मिता ने राधिका मां से हाथ जोड़कर माफी भी मांगी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
सुष्मिता बोलने लगी मेरी गलती थी जो मैंने आपको अपनी मां नहीं समझा मैं अपने घर में भी अपनी मां की कदर करती थी आज आप भी तो मेरी मां ही हैं उसकी यह सोच को देखकर राधिका ने अपने बच्चों को माफ कर दिया और अपने पोते को बड़े प्यार से देखा की हां हम दादी पोते बहुत आराम से रहेंगे और मां ने अपने बच्चों के संग वापस जाने का निर्णय फिर से ले लिया राधिका ने अपने अपमान को भूलकर सम्मान की तरफ ध्यान दिया, “आज मां के सम्मान की जीत हुई थी”।
तो दोस्तों मेरी कहानी कैसी लगी इसकी प्रतिक्रिया अवश्य दें, मेरी कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि अगर बच्चों को अपनी गलती चाहे “देर से ही सही” समझ में आ जाए और उसका “पश्चाताप” हो और वह अपनी गल्ती का “प्रायश्चित” करें ,तो उनको बड़े होने के नाते एक बार तो माफ कर देना चाहिए।
सुनीता माथुर
मौलिक रचना
अप्रकाशित रचना
पुणे महाराष्ट्र
#पछतावे के आंसू