Moral stories in hindi : दादाजी सूरज अस्त होने वाला है घर चलो , पार्क में खेलते खेलते पोते रजत ने दादाजी विशंभर जी से कहा !!
रजत की आवाज सुनकर एकदम से विशंभर जी की तंद्रा टूटी और वे बोले हां चलो !!
घर जाने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा था विशंभर जी का फिर भी उन्हें घर के लिए रवाना होना पड़ा !!
विशंभर जी पार्क में बैठे-बैठे भी यही सोच रहे थे जब से उनकी पत्नी शांति जी का स्वर्गवास हुआ है ,घर में विशंभर जी का बिल्कुल मन नहीं लगता !!
शांती जी तो विशंभर जी की परछाई थी , जहां वे चलते पीछे- पीछे शांती जी साए की तरह चलती !!
घर में पोता रजत है तो जैसे- तैसे दिन निकल जाता था विशंभर जी का वरना तो बेटे बहु से ज्यादा बात करने तक का मन नहीं करता था विशंभर जी का ……
जबसे शांति जी का स्वर्गवास हुआ था बेटा संजय और बहू रीमा सब कुछ अपने अनुरूप ही करते हालांकि कभी बेटे बहू ने विशंभर जी से कुछ नहीं कहा था मगर घर के सारे रीति रिवाज आधुनिकता के नाम पर बदल दिए गए थे जो कि विशंभर जी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता !!
उनका मानना था कि जैसे घर में अब तक पुराने रीति रिवाज चले आ रहे हैं वैसे ही चलने चाहिए …….
पहले तो विशंभर जी की आवाज से ही बहु रीमा का घुंघट और लंबा हो जाता मगर अब बहू रीमा अपनी सुविधा अनुसार ही कपड़े पहनने लगी थी जिससे विशंभर जी को लगता कि घर में बड़े बूढ़ों की कोई इज्जत ही नहीं रह गई है !!
घर की बहू सब कुछ अपने अनुरूप ही करने लगी है ……
संजय भी तो रीमा को कुछ नहीं कहता था वह भी रीमा के रंग में रंगने लगा था !!
विशंभर जी और पोता रजत पार्क से घर पहुंचे तो रीमा ने उन दोनों को खाना परोस दिया और रोज की तरह फोन पर बातों में लग गई !!
विशंभर जी रोज रजत के साथ ही खाना खा लिया करते थे क्योंकि बेटा संजय ऑफिस से लेट आता था !!
विशंभर जी रजत से दिनभर की बातें करते और रोज रात को रजत को कहानी सुना कर सुला देते !!
यही विशंभर जी की नित्य दिनचर्या हो चुकी थी !!
रजत की वजह से कहीं ना कहीं उनका मन लगा रहता वैसे भी सूत से प्यारा व्याज होता हैं !!
विशंभर जी को रजत से बहुत लगाव था !!
बहु रीमा ने घर के वातावरण में काफी बदलाव ला दिए थे मगर अब विशंभर जी ने भी सोच लिया था कि जब तक वे जिंदा है घर के रीति-रिवाजों को यूं आसानी से बदलने नहीं देंगे !!
पत्नी शांति देवी की पुण्यतिथि का दिन आने वाला था , विशंभर जी बोले बहु तुम्हारी सास की पुण्यतिथि का दिन आने वाला है तो तुम पूजा की सारी तैयारी कर लेना मैं पंडितों को घर बुला लूंगा !!
हर बार शांति जी की पुण्यतिथि पर घर में यही होता आ रहा था , लगभग ग्यारह पंडितों को बुलाया जाता , घर में बड़ी सी पुजा रखी जाती !! पंडितों को भोजन करवाकर दान – दक्षिणा दी जाती ,इस बार रीमा बोली पापा जी मैंने अनाथ आश्रम में बात कर रखी है इस बार हम पूजा के बदले अनाथ आश्रम चलेंगे और मम्मी जी के नाम पर दान पुण्य करेंगे !! रीमा का यूं विशंभर जी को पूछे बिना अनाथ आश्रम में बात कर आना विशंभर जी को बिलकुल हजम नहीं हुआ वे कड़कती आवाज में बोले और कितना बदलाव करोगी घर में ??
वैसे भी तो सब कुछ अपने अनुसार ही कर रही हो !!
कम से कम मेरी पत्नी की पुण्यतिथि पर तो मैं जो चाहता हूं वह करने दो …..
रीमा ससुर जी की कड़कती आवाज से डर गई और बोली पापा जी मैं तो बस जमाने अनुसार चल रही हूं और चाहती हूं कि आप भी अपनी सोच में परिवर्तन लाएं !!
विशंभर जी फिर से कड़कड़ाती आवाज में बोले घर में सलवार कमीज पहन कर घूमती हो , किट्टी पार्टी में जाती हो ,अपनी उम्र की अपनी सहेलियों के साथ बाहर घूमने जाती हो सब कुछ देख रहा हूं बहू और सहन कर रहा हूं !!
तुम्हारे यह बदलाव तुम्हें ही मुबारक हो …..
रीमा बोली पापा जी मैंने कभी आपको तो कोई तकलीफ नहीं होने दी या कभी आपके खाने पीने में तो कोई कमी नहीं रखी
फिर भी आप मुझ पर इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो ??
विशंभर जी बोले मैं नहीं चाहता मेरे घर में यह सब बदलाव लाए जाएं , मैं पुरानी संस्कृति से जुड़ा आदमी हूं मुझे बदलाव पसंद नहीं !!
आज शांती जिंदा होती तो घर में ऐसा सब कभी ना होता !!
रीमा से भी चुप ना रहा गया और वह बोल पड़ी पापा जी एक औरत को हमेशा अपने सामने झुकाकर या अपनी बातें मनवाने के बाद आप सिर्फ अपने पौरुषत्व को संतुष्ट करते हैं !! मम्मी जी की पीड़ा मैंने देखी ही नहीं महसूस भी की हैं कि वह कितनी बार अपनी ख्वाहिशों का गला सिर्फ इसलिए घोंट देती क्यूंकि वे जानती थी कि आपको यह सब पसंद नहीं आएगा !!
मम्मी जी के इतने पढ़े- लिखे होने के बावजूद भी जब उन्होने टीचर बनने की इच्छा जताई तब भी आपने उन्हें टीचर की जॉब नहीं करने दी और घर – गृहस्थी की बेडियों में फंसाकर रख दिया !!
ऐसी अनगिनत इच्छाएँ जो सिर्फ उन्होने मुझे बताई थी पापा जी !!
विशंभर जी बोले तुम यह सब बोल कर मुझे नीचा दिखाना चाहती हो , अपनी नजरों में गिराना चाहती हो बहु मगर मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला !!
मैं कल भी सही था और आज भी सही हूं !!
इंसान तो अपनी नजर में सही होना चाहिए तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो उसकी मुझे रत्ती भर परवाह नहीं !!
रीमा तो बस पापा जी को उनकी गलती का एहसास दिलाना चाहती थी जो उन्होंने सासु मां के जिंदा होने पर की थी मगर विशंभर जी के कानों पर तो जैसे जूं ना रेंगी !!
रीमा ने भी ठान लिया था बदलाव प्रकृति का नियम है और नई सोच को अपनाने में कोई बुराई नहीं !!
हां जब तक उस संस्कृति से हमारे घर के बुजुर्गों के मान – सम्मान में कोई कमी नहीं आए !!
उस दिन रीमा रात को यही सोचती रही की सलवार कमीज पहनने से कौन सी पापा जी की इज्जत कम हो गई ??
घर में दिन भर काम करने के बाद अगर मैं थोड़ी देर कीट्टी में अपनी सहेलियों के साथ चली जाती हूं तो मेरा भी मन बहल जाता है !!
हां कभी मैंने पापा जी के खाने पीने में तो कोई कमी नहीं रखी फिर पापा जी आज इतना गुस्सा क्यों कर रहे थे ??रीमा ने जब संजय को सारी बात बताई तो संजय बोला हो सकता है रीमा पापा को तुम्हारे यह सब बदलाव पसंद नहीं आए हो , वे पुराने रीति-रिवाजों से जुड़े आदमी हैं !!
यह सब अपनाने में उन्हें समय लगेगा !!
रीमा ने भी सोच रखा था कि वह पापा जी की सोच में परिवर्तन लाकर ही दम लेगी !!
रीमा उस रात बिल्कुल सो नहीं पाई उसे याद आ गए वह दिन जब उसकी सास शांती जी जिंदा थी !!
शांती ओ शांती कहां हो तुम ?? कहते हुए विशंभर जी ने घर में प्रवेश किया !!
शांती जी और उनकी बहू रीमा रसोई में खाना बना रही थी !! शांती एक हफ्ता हो गया , सरला कह रही थी तुमने उसे एक भी फोन नहीं किया !!
शांती जी बोली जी मैं करने ही वाली थी , आज कर दुंगी !!
रीमा बोली पापा जी हमेशा मम्मी जी ही फोन करती हैं सरला बुआ को , कभी सरला बुआ सामने से मम्मी जी को एक फोन नहीं करती और अगर मम्मी जी को थोड़े भी दिन उपर हो गए फोन करने में तो सरला बुआ आपसे मम्मी जी की शिकायत करती हैं !!
आखिर हर बार भला मम्मी जी क्यूं झुके !!
विशंभर जी कड़कती आवाज में बोले बहू ,सरला एकलौती बहन हैं हमारी और यह इस घर के नियम हैं कि हमेशा घर की बहुएँ अपनी ननद को सामने से फोन करती हैं इसलिए तुम अपनी सास को भड़काने की कोशिश मत करो !!
शांती जी हमेशा इस घर के कायदे कानून अनुसार ही चली हैं ! कहकर विशंभर जी अपने कमरे में चले गए !!
शांती जी बोली रीमा तुम्हारे पापाजी बहुत कड़क मिजाज के और पुराने ख्यालात वाले हैं , इन्हें बदलना बहुत मुश्किल हैं इसलिए मैं इनकी हर बात में हां में हां मिला लेती हुं , तु भी इनकी हां में हां मिला लिया कर !!
रीमा बोली मम्मी जी मुझसे गलत बातें सहन नही होती और मुझे लगता है एक वक्त के बाद हमें भी जमाने के अनुसार चलना शुरू कर देना चाहिए !!
शांती जी विशंभर जी से बहुत डरती थी और हमेशा उनके कहे अनुसार ही चलती इसलिए उनकी काफी इच्छाएँ मन में ही दबी रह गई थी !!
शांती जी और रीमा में खुब पटती थी क्यूंकि रीमा शांती जी की अंतर वेदना को अच्छे से जानती थी !!
विशंभर जी शांती जी को बिना बात भी डांट देते क्यूंकि उनका पुरुषत्व उनके लिए बहुत मायने रखता था !!
एक बार भी विशंभर जी शांती जी को बिना वजह डांट रहे थे तब रीमा बीच में आकर बोली पापा जी मम्मी जी की कोई गलती नहीं हैं आप बार – बार मम्मी जी को क्यूं डांटते हैं ??
वे आपकी पत्नी हैं गुलाम नहीं !!
विशंभर जी बोले बहु अगर तुम्हें इस घर में रहना हैं तो कान खोलकर सुन लो तुम्हारी सास भी इस घर के हिसाब से ढलती आई है और तुम्हें भी इसी तरह यहां ढलना होगा !!
शांती जी हमेशा रीमा को अकेले में कहती रीमा तुम ज्यादा मत बोला करो , वरना तुम्हें भी तुम्हारे पापा जी का कड़क मिजाज सहना पड़ेगा !!
रीमा भी अपनी सास की वजह से चुप रह जाती मगर विशंभर जी का अपनी पत्नी के प्रति यह बर्ताव उसे अंदर तक झकझोर देता और वह भगवान का शुक्र मनाती कि अच्छा हुआ उसके पति संजय बिल्कुल भी उसके पिता की तरह नहीं हैं , वे अपनी मां पर गए हैं क्यूंकि एसे पति के साथ तो शायद वह कभी नहीं रह पाती !!
रीमा ने अपनी सास की वजह से ही साड़ी में घूंघट लेना शुरू किया था क्योंकि शांति जी कहती थी इस घर के पहले से ऐसे ही रीति-रिवाज बने हुए हैं और खुद शांती जी भी घर में इसी तरह रहा करती थी !!
आज शांति जी की मौत को एक अरसा बीत चुका था और अब रीमा अपने हिसाब से रहने लगी थी !!
ऐसा नहीं था कि उसे साड़ी पहनने में कोई दिक्कत थी बल्कि साड़ी तो हमारा भारतीय परिधान है मगर घर का सारा काम और बाहर का सारा काम भी उसे ही करना पड़ता था और ऐसे में साड़ी पहनकर पूरे दिन काम करना उसके लिए असहज हो जाता !!
सोसाइटी की औरतों ने मिलकर जब किट्टी ग्रुप बनाया और उससे भी निवेदन किया कि वह इस ग्रुप को ज्वाइन करें तो उसका भी मन किया कि वह भी थोड़ा बाहर निकले और लोगो से हंसे बोले !!
जैसे हर एक बहू अपनी ख्वाहिशें पूरी करना चाहती है वैसे रीमा भी चाहती थी मगर उसके ससुर जी के हिसाब से रीमा यह सब गलत कर रही थी !!
रीमा ने भी सोच लिया कि पापा जी मम्मी जी के राज में तो नहीं बदल पाए मगर मैं उनमें बदलाव जरूर लाऊंगी !!
अब तो मानो जैसे रीमा विशंभर जी के कड़क मिजाज की परीक्षा ही ले रही हो , वह बदलाव पर बदलाव लाती रही और विशंभर जी सहन करते रहे !!
विशंभर जी भी सोचने लगे थे ना जाने जिंदगी के कितने दिन शेष बचे हैं वैसे भी अगर मैं यह बदलाव नहीं करने दूंगा तो भी मेरे मरने के बाद यह सारे बदलाव घर में आएंगे तो मेरे जीते जी ही आ जाए !!
एक दिन रीमा किटी पार्टी से आकर संजय से बोली संजय मेरी किट्टी पार्टी की सारी फ्रेंड्स को कार चलाना आता है सिर्फ मुझे ही नहीं आता तो कल से मैं भी कार चलाना सीखना चाहती हूं !!
संजय बोला रीमा मुझे कोई आपत्ति नहीं मगर पापा नहीं मानेंगे !!
दूसरे दिन वही हुआ जिसका डर था , विशंभर जी ने रीमा को इस बात की अनुमति नहीं दी और वे बोले हमारे घर की बहूएं कार नहीं चलाती , फिर तो मानो रीमा ने पूरा घर सर पर उठा लिया और उसकी जिद के आगे विशंभर जी को घुटने टेकने पड़े !!
अब रोज रिमा कार चलाने सीखने जाने लगी और थोड़े ही दिन में वह कार चलाने में निपुण हो गई !!
एक रोज रीमा मार्केट से घर आई तो उसने देखा कि विशंभर जी निढाल होकर घर में पड़े हैं , संजय भी ऑफिस के काम से बाहर गए हुए थे और बेटा रजत स्कूल में था !!
उसने ना आव देखा ना ताव जल्दी से अपनी कार निकाली और विशंभर जी को कार में सुलाकर तुरंत हॉस्पिटल लेकर पहुंची !!
हॉस्पिटल जाकर पता चला विशंभर जी को साइलेंट अटैक आया था !!
लगभग छः घंटे बाद विशंभर जी को होश आया तब डॉक्टर उनसे बोला दादा जी कैसा लग रहा है अब ??
विशंभर जी ने आंखें खोल कर सभी को देखा !!
डॉक्टर बोले आपकी बेटी को तो मानना पड़ेगा , अगर यह आपको सही समय पर हॉस्पिटल नहीं लाती तो शायद आज आप हमारे बीच ना होते !!
विशंभर जी ने रीमा की तरफ देखा और रीमा को अपने पास बुलाया !!
रीमा के सर पर हाथ रखकर विशंभर जी बोले डॉक्टर साहब यह मेरी बेटी नहीं बहू है और आज मुझे अपनी बहू पर फक्र महसूस हो रहा है !!
डॉक्टर साहब रीमा से बोले तुम जैसी बहू सबको मिले !!
विशंभर जी की आंखों में आज पछतावा साफ झलक रहा था
वे बोले बहू मुझे माफ कर दो , मैंने तुम्हें हमेशा टोका – टोकी की , तुम्हारी नई सोच पर हमेशा प्रश्न उठाए मगर आज तुम्हारी इसी आधुनिक सोच की वजह से मैं जिंदा हूं !!
रीमा की आंखें भी छलक उठी !!
दोस्तों नई सोच को अपनाना कोई गलत बात नहीं बशर्ते वह हमारे घर के बुजुर्गों के मान सम्मान में कोई कमी ना आने दे !!
आधुनिकता रखने में कोई बुराई नहीं बस वह किसी की मान मर्यादा को छलनी ना करें !!
मेरा पुरानी पीढ़ी से भी यह निवेदन हैं कि परिवर्तन संसार का नियम हैं इसलिए परिवर्तन अपनाने में संकोच ना करें !!
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आपकी सखी
स्वाति जैन
#ससुराल