परिवार – एम पी सिंह : Moral Stories in Hindi

पंडित रमाकांत के दो बेटे थे, रामलाल और मोहन लाल। पढ़ने में राम ठीक ठाक था ओर आज्ञाकारी था ओर मोहन पढ़ने में तेज पर नटखट ओर कामचोर था, पर दोनों भाईओ में खूब पटती थी। मां हमेशा मोहन को ही डांटती रहती और राम जैसा बनने के लिये कहती। मॉ हमेशा कहती कि मैं अपने राम के साथ ही रहूंगी। कई बार मोहल्ले की ओरते मजाख करती की मोहन तेरा सौतेला है क्या?

राम के बारवीं व मोहन के दसवीं के एग्जाम होने वाले थे कि एक हादसे में उनके पिताजी गुज़र गए। जैसे तैसे परीक्षा दी और दोनों भाई पास हो गए। अब आगे बढ़ने के लिये आर्थिक संकट मंडराने लगा। फिर एक दिन मां ने दोनों बेटों के साथ मिलकर विचार किया और एक दूसरे पर विश्वास जताया ओर निष्कर्ष निकाला कि राम पढ़ाई जारी रखेगा ओर मोहन मॉ के साथ मिलकर काम धन्धा करेगा। पढ़ाई करने के बाद राम छोटे भाई मोहन ओर उसके पूरे परिवार को अपना परिवार मानकर उसकी देखभाल करेगा।

मोहन ने घर पर ही ढाबा खोल लिया, मॉ खाना बनाती ओर मोहन बाकी सब काम संभलता। गुजारे लायक कमाई होने लगी और समय बीतता गया। राम की भी पढ़ाई पूरी होते ही मुम्बई में नोकरी भी मिल गई। राम ने ऑफिस के पास भाडे का  कमरा ले लिया। नोकरी लगने के बाद राम ने मॉ ओर भाई को अपने पास बुलाने की बहुत कोशिश की पर मॉ गांव नही छोड़ना चाहती थी।समय बीतता गया, काम करते करते राम को अपने ही ऑफिस की एक लडकी ईशा से प्यार हो गया और दोनो परिवार वालो की सहमति से शादी हो गई।

शादी से पहले राम कभी कभी गावँ आता था पर शादी के बाद गावँ जाना बंद कर दिया और बस फोन पर ही बात करता था। धीरे धीरे फ़ोन करना और रिसीव करना भी बंद कर दिया । मॉ,  राम बेटे से न मिल पाने के गम में बीमार रहने लगी। हालत ज्यादा खराब होने पर मोहन राम को बुलाने शहर गया

पर राम ने बेज्जती करके वापस भेज दिया। गांव आकर मोहन ने मां को बोल दिया कि भैया अगले कुछ दिन में आएंगे। पर मां समझ गई और चुपचाप गम सह गई। मॉ की तबीयत में सुधार न होते देख, मोहन ने शहर जाने का मन बना किया। गाँव का सब कुछ बेचकर शहर आ गया। मां का इलाज अच्छे डॉ से शुरू करा दिया।

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धीरे धीरे मॉ की तबीयत में सुधार होने लगा। वहाँ उसने शहर से दूर एक ढाबा खोल लिया और जल्दी ही काम चल पड़ा। अब मोहन की जिंदगी फिर से पटरी पर आ गई। कुछ समय बाद शहर में एक रेस्टोरेंट खोल लिया।

राम जो गांव का सीधा साधा छोरा था, मुम्बई की चकाचौंध में खो गया। बार, पब अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन गए थे। वो अब नोकरी पर भी बराबर नही जाता था, इस वजह से उसे नोकरी से भी हाथ धोना पड़ा।  उसकी हरकतों के चलते मिया बीबी के रिश्ते भी बिगड़ने लग गए। आखिर एक दिन ईशा घर  छोड़कर अपने मायके चली गई। इतना सब हो जाने के बाद राम को आटे दाल का भाव समझ आया और

तब उसे अपनी मॉ / भाई की याद आई। उसने फोन किया तो माँ ने फोन उठाया। बात करते हुए मॉ बेटा दोनो की ही आंखों से आंसू बह रहे थे, मां के खुशी में ओर बेटे के पश्चाताप में। मां ने राम को अपना पता दिया ओर अपने पास बुला लिया। घर पहुच कर राम मॉ की चरणों मे गिरकर माफी मांगने लगा और कसम खाई की आगे से कोई गलत काम नही करेगा। मोहन से भी अपने किये की माफी मांगी और गले लगा लिया।

मां का दिल तो बड़ा होता ही है, मोहन ने भी दिल बड़ा करते हुए माफ ही नही किया बल्कि अपने रेस्टोरेंट में अपने साथ लगा लिया।

जल्दी ही राम को दूसरी नोकरी मिल गई। फिर एक दिन दोनो भाई अपनी माँ के साथ मिलकर ईशा के घर गए। राम ने अपनी पत्नी से अपने किये की माफी मांगी और आगे से कोई गलत काम न करने की कसम खाई। राम की पत्नी ने भी बड़ा दिल दिखाते हुए राम को माफ कर दिया और सबके साथ अपनी ससुराल में आकर खुशी खुशी रहने लगी।

किसी को माफ करने के लिये ही नहीं बल्कि माफी मांगने के लिए भी दिल बडा करना पड़ता हैं।

 

लेखक

एम पी सिंह

(Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित, मौलिक

17 Jan.25 

बड़ा दिल

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