रमा जी के लिए यह दिन विशेष रूप से कठिन था। उनके पति रात में घर में अचानक गिर पड़े थे, और डॉक्टर ने बताया कि उनकी पैर की हड्डी में फ्रेक्चर है। उम्र के इस पड़ाव पर एक छोटी सी चोट भी बड़ी मुश्किल बन जाती है, और वे अकेले अपने पति की देखभाल कर पाने में असमर्थ महसूस कर रही थीं। उनका एक ही सहारा था—उनका बेटा बिट्टू। लेकिन बिट्टू अब अपने काम, अपने घर-परिवार और अपनी जिम्मेदारियों में इतना व्यस्त था कि मां-बाप के लिए कुछ समय निकालना उसके लिए मुश्किल हो गया था।
रमा जी को अपने बेटे बिट्टू का बचपन याद आने लगा। कैसे बिट्टू छोटी-छोटी बातों में मां के साथ खेला करता था, हर समय मां का हाथ थामे रखना चाहता था। वह याद करती हैं कि बिट्टू ने कई बार बचपन में यह कहा था, “मां, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तो आपका हमेशा ध्यान रखूंगा, आपको कभी काम नहीं करने दूंगा।” बचपन की ये बातें अब उनके दिल को चीरती हैं। वह सोचती हैं कि कैसे वक्त के साथ सब कुछ बदल गया है।
बिट्टू के लिए अब ऑफिस और काम की जिम्मेदारियाँ प्राथमिकता बन गई थीं। रमा जी समझती थीं कि नौकरी करना जरूरी है और परिवार की देखभाल करना भी। पर उन्हें इस बात का दर्द होता कि बिट्टू अब पहले जैसा नहीं रहा। एक समय था, जब वह उनसे हर बात शेयर करता था, उनके हर दुःख-सुख का साथी था। लेकिन अब वह हर फोन कॉल को एक बोझ मानने लगा है, जैसे वे उसकी जिंदगी में अब मात्र एक जिम्मेदारी बन गई हैं।
जब रमा जी ने आज ऑफिस में फोन किया, तो उन्हें आशा थी कि बिट्टू उनके पास आने का वादा करेगा और अपने पिता की देखभाल में मदद करेगा। लेकिन बिट्टू ने उल्टा उन पर ही नाराजगी जताई, “मम्मी, यह क्या है! एक दिन फोन नहीं किया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा! मेरा खुद का कितना व्यस्त कार्यक्रम है—ऑफिस, बीवी-बच्चे और उनके लिए चीजें खरीदनी हैं, सास-ससुर आए हुए हैं, सबके लिए भी समय निकालना है। आपको क्यों नहीं समझ में आता कि मैं बहुत व्यस्त हूँ।”
बिट्टू की ये बातें सुनकर रमा जी को बहुत दुःख हुआ। वे बिट्टू की आवाज़ में एक अजीब सी बेगानगी महसूस कर रही थीं। बिट्टू ने उनकी पूरी बात भी नहीं सुनी और फोन रख दिया। आंखों में आँसू लिए, उन्होंने सोचा कि जब उसे उनके लिए फुर्सत नहीं है, तो उनकी मदद कौन करेगा।
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रमा जी को अपने पति की तबियत की चिंता तो थी ही, पर साथ ही इस बात का दर्द भी महसूस हो रहा था कि उनका अपना बेटा उनसे इतना दूर हो गया है। वे सोचने लगीं कि कैसे समय के साथ उनका रिश्ता बदल गया। जब बिट्टू छोटा था, तब वे उसकी हर जरूरत का ख्याल रखती थीं, उसके हर सवाल का जवाब देने के लिए हर समय तैयार रहती थीं। पर अब, बेटे के पास उनके किसी सवाल का जवाब नहीं था। उनका दिल भारी हो गया।
वे सोचने लगीं, “आज मेरे बेटे के पास हमारे लिए फुर्सत नहीं है। कल अगर हम नहीं रहेंगे, तब शायद उसे अहसास होगा कि माता-पिता की जरूरत क्या होती है।”
वह दिन-रात बेटे की इंतजार में रहतीं, कि शायद वह फोन करे, उनका हाल पूछे, या कम से कम एक बार उनसे मिलने आ जाए। पर बिट्टू के पास समय नहीं था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, रमा जी का स्वास्थ्य भी धीरे-धीरे गिरता चला गया। वे हर दिन अपने पति की देखभाल में जुटी रहतीं, पर मन के अंदर एक गहरा अकेलापन बस गया था। वह हर समय बेटे की बातों में खोई रहतीं और सोचतीं कि क्या कभी बिट्टू अपने माता-पिता के इस अकेलेपन को समझ पाएगा।
कुछ दिनों बाद बिट्टू के पास अचानक फोन आया कि उसके पिता की तबियत बहुत खराब है। वह फौरन घर पहुँचा। उसे देखकर रमा जी की आँखों में आंसू भर आए। बिट्टू का दिल भर आया जब उसने देखा कि उसकी माँ ने अकेले ही अपने बीमार पति की देखभाल की है। उस दिन उसने अपनी माँ के हाथ पकड़कर कहा, “माँ, मुझे माफ कर दो। मैंने आपकी तकलीफें नहीं समझी। मुझे आप लोगों का साथ देना चाहिए था, पर मैं अपने ही कामों में उलझा रहा।”
रमा जी ने उसे समझाया, “बेटा, हमें किसी चीज की जरूरत नहीं है। बस, तुम्हारे थोड़े से समय की, तुम्हारी देखभाल की जरूरत थी। बेटा, समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसका अहसास तब होता है, जब यह हाथ से निकल जाता है।”
दोस्तों माता-पिता सिर्फ यह चाहते हैं कि उनके बच्चे उनसे जुड़े रहें, उनके हालचाल पूछते रहें। जीवन की आपाधापी में हम अपने परिवार को कभी न भूलें, क्योंकि वे ही हमारे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी हैं।
मौलिक रचना
कुमुद मोहन