परिवर्तन – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच,शारदा देवी को मंच पर बुलाया गया और उन्हें बेस्ट समाज सेविका की पदवी

से सुशोभित किया गया। पिछतर वर्ष की आयु में भी वो कितने सुचारू रूप से समाज कल्याण में व्यस्त

थीं,गरीब लड़कियों की सामूहिक शादी कराना,छोटे बच्चों को निशुल्क शिक्षा दिलाना उनके प्रमुख काम थे।

कार्यक्रम के दौरान,रिफ्रेशमेंट के वक्त,एकांत पाते ही वहां आई एक युवा पत्रकार रूही ने उनसे पूछा,

मैम!इस उम्र में इतनी सक्रियता कैसे बना लेती हैं,आपके बच्चे भी तो होंगे,कुछ उनके बारे में बताएं कभी?

गहरी नजर से रूही को देखते हुए वो बोलीं,कभी पक्षियों को देखा है,कैसे वो अपने बच्चों को तभी तक पालते

हैं जब तक वो उन पर आश्रित होते हैं,जब उनके पर मजबूत हो जाते हैं तो वो उन्हें खुले आकाश में छोड़ देते हैं

स्वच्छंद उड़ान के लिए।

यानि आपने उन्हें मुक्त कर दिया है या उन्होंने…रूही हकला गई।

एक ही बात है…वो मुस्कराई,खरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजे पर, कटना तो खरबूजा ही है। कहते हुए

उनकी आंखें डबडबा आईं।

रूही ने फिर से उनसे प्रार्थना की, मैम!आप हमारी आदर्श हैं,आपकी कहानी जानकर उससे कुछ सीखना

चाहते हैं,प्लीज….।

शारदा देवी की आंखें कुछ सोचने की मुद्रा में सिकुड़ने लगी थीं,शायद उनका मन अतीत के गलियारों में

पहुंचने को बेताब था।

बहुत प्यार करते थे मेरे दोनो बच्चे मुझे,एक हंसता खेलता परिवार था हमारा,बेटी नताशा यू के में सॉफ्टवेयर

इंजीनियर थी और बेटा शरद यू एस के बहुत बड़ी कंपनी का डायरेक्टर,दोनो शादी करके वहां सैटल थे अपने

परिवार साथ और मै और मेरे हसबैंड यहां दिल्ली में खुश थे।जिंदगी कब अचानक करवट बदल लेती है,कौन

जानता है,मेरी शांत जिंदगी में भूचाल आ गया जब अचानक मेरे पति का हृदयाघात से इंतकाल हो गया।मेरी

 

दिनो बाजू मेरे दोनो बच्चे तुरंत भागे इंडिया आए, मै दुखी थी पर हताश नहीं,जीवन और मृत्यु पर किसका वश

चला है आजतक,ये सोचकर धैर्य रखे थी।

तेरहवीं के अगले ही दिन, सुबह मेरा भ्रम कि मेरे बच्चे हीरा हैं,उनके होते मैं कभी अकेली नहीं हूं, ताश के पत्तों

के ढेर जैसा ढह गया जब मैंने उन्हें बहस करते सुना।

मां को मै अपने संग ले जाऊंगा नताशा,शरद की आवाज आई।

क्यों?तुम क्यों ले जाओगे उन्हें,वो तो मेरे साथ जाएंगी…नताशा बोली।

मुझे गर्व हो आया अपनी किस्मत पर,आज भी इन दोनो का बचपना नहीं गया,कौन मेरे पास सोएगा,बचपन

में इसपर लड़ते थे,आज कौन साथ ले जाएगा मुझे,इस पर लड़ रहे हैं।

तभी उनकी बहस लड़ाई में बदल गई।

तुम और तुम्हारी बीबी दोनो जॉब करते हो,वहां नौकर नहीं मिलते इसलिए ले जा रहे हो मां को,सब जानती हूं

मैं,नताशा चीखी।

तुम्हीं कौन सा उन्हें सेवा करने ले जा रही हो,तुम्हारा बेबी छोटा है,उसकी नैनी ही बनाओगी मां को…क्या मै नहीं

जानता? शरद बोला।

चलो!मां से ही पूछ लेते हैं,वो किसके साथ जाएंगी?दोनो ने आवाज लगाई।

मां!मां!इधर आओ।

सकते में थीं दोनो की बात सुनकर…बाहर आते ही बोली,

”तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे,सपने में भी नहीं सोचा था मैंने ऐसा…”

मां!आप हमें गलत न समझे,शरद बोला, रोजी तो कब से आपको लाने के लिए कह रही थी,आप ही तैयार न

थीं आने को।

 

तभी नताशा बोली,आपका नाती आर्यन आपको कितना मिस करता है मां,आप जानती हैं,क्या आप उसके

पैशन चलोगी?

कठोर स्वर में बोली थीं वो,अपना सामान बांधों और चले जाओ दोनो यहां से,मुझे किसी के साथ नहीं जाना।

“आप यहां अकेले रहोगी?”दोनो आश्चर्य से बोले।

क्यों ?नहीं रह सकती??तुम्हारे पिता ने मुझे सब कुछ सिखा दिया है, मै इतनी सक्षम हूं कि उनकी यादों के

सहारे बचा जीवन काट सकूं।शारदा जो दृढ़ता से बोलीं।

पर आज आप स्वस्थ हैं,कल को कोई बीमारी हो गई तब कौन ध्यान रखेगा आपका?शरद बोला।

ये सारा मोहल्ला,पड़ोस,समाज सभी मेरे अपने हैं, जब मै इनके लिए करूंगी तो कल मुसीबत में ये मुझे देख ही

लेंगे,ये भारत है बेटा!यहां इतनी मानवता नहीं मरी है अभी लोगों में,फिर मैं खुद अपना ध्यान रखूंगी।

पर…!!वो हकलाए।

शारदा देवी वर्तमान में आ चुकी थीं और एक बार फिर तालियों ने उनका स्वागत किया।

वो मुस्कराते हुए कह रही थीं,हमें अपनी आखिरी सांस तक क्रियाशील रहने का प्रयास करना चाहिए,खुद का

ध्यान रखिए,स्वस्थ रहिए,दूसरों की सहायता कीजिए फिर सब आपके हैं और आप सबके।मेरे दो ही बच्चे

नहीं आज हजारों की संख्या में बच्चे हैं जिन्हें मैंने पढ़ाया,भरसक सहायता की।गलती मेरे बच्चों की भी नहीं है

इतनी,जब मैंने उनकी परवरिश ऐसे की,वो विदेशों में बस गए,दोनो मियां बीबी कमाएंगे तो मां बाप की जगह

कहां हो पाएगी घर में? उस समय मैं उनकी उपलब्धियों पर खुश थी,तब नहीं सोचा कि वो बाद में क्या कर

सकते हैं?

तो अब वो आपसे नहीं मिलते कभी?रूही ने पूछा।

मिलते हैं न…पर वो जानते हैं कि उनकी मां बहुत खुद्दार है,जब तक उसके हाथ पांव चलेंगे,वो कहीं नहीं

जाएगी।ये परिवर्तन की लहर उन्हें ही नहीं,उनकी मां को भी प्रभावित कर चुकी है अब।

 

समाप्त

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

#मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे,कभी सपने में नहीं सोचा था

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