परिवार में चालाकियाँ बर्बाद कर देती हैं – शनाया अहम : Moral Stories in Hindi

माँ , बस करो , ये सब जो तुम कर रही हो ये परिवार में सही नहीं है।  अपना वर्चस्व क़ायम रखने के लिए तुम अपने ही परिवार में *फूट डालो राजनीती करो* की धारणा पर चल रही हो लेकिन आगे चलकर तुम्हारी ये चालाकियां तुम्हें कही का नहीं छोड़ेंगी

” अंजलि ने दुखी मन और ग़ुस्से से अपनी माँ को समझाते और आगाह करते हुए कहा। 

तुझे ज़्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं है , तू पराये घर की है , तूने आज नहीं तो कल अपने घर चले जाना है। इस घर में क्या कैसे होगा ये मेरे हाथ में है और रहेगा। 

अंजलि की माँ शोभा देवी घमंड से बोली। 

माँ की बात सुनकर अंजलि दुःख से भर उठी और बोली लेकिन क्या कभी कोई अपने परिवार में कलह करवाकर , परिवार के सदस्यों को आपस में भिड़वाकर और ख़ुद भला बनकर राज करने की सोचकर खुश रह पाया है जो तुम रह पाओगी। 

आज नहीं तो कल तुम्हें समझ आएगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी, संभलना है तो अभी संभल जाओ माँ। 

शोभा देवी ने अंजलि को हिदायत देते हुए डांट दिया , इसके बाद से अंजलि ने भी कुछ कहना सुनना बंद कर दिया वो अपनी पढ़ाई पर ही फोकस करने लगी लेकिन घर के माहौल को देखकर उसे अक्सर दुःख होता पर वो चाह कर भी कुछ न कर पाती।

शोभा देवी की शादी विनीत जी से हुई थी जो करियाने की दुकान चलाते थे, शोभा देवी ने आते ही पहले तो ससुराल वालों से अपने पति को अलग कर अलग मकान मे रहने लगी, क्योंकि वो अपने घर पर सिर्फ अपना राज चाहती थी, शोभा देवी की मां ने शोभा देवी को कुछ इसी तरह की कूटनीति सिखाई थी

कुछ सालों में शोभा देवी तीन बेटों और एक बेटी की माँ बन गई।।। 

तीनों बेटों को बड़ा होते देखकर अक्सर शोभा देवी सोचती कि जब बेटे बड़े होकर शादी करेंगे तो कहीं इस घर से उनका राज ख़त्म न हो जाए, ऐसा होते शोभा देवी नहीं देख सकती थी

उन्होंने अपना राज ताउम्र क़ायम रखने के लिए एक योजना बनाई, उन्होंने बेटों के सामने ख़ुद को एक अबला बहु और एक अबला पत्नी दिखाना शुरू कर दिया। 

वो बेटों से अक्सर पिता की बुराई करते हुए कहती कि तुम्हारे पिता ने मेरा सम्मान नहीं किया, वो मुझे खर्च नहीं देते, ना ही मेरी वैल्यू समझते हैं।। 

मैं तुम तीनों पर ही आश्रित हूँ।।। मैंने ये घर अपनी मेहनत और सूझबुझ् से संभाला हुआ है।

दूसरी तरफ़ वो अपने पति से कहती कि बेटे उनकी सुनते नहीं हैं, हर काम अपनी मर्ज़ी से करने लगे हैं, आप उनके सामने कभी मुझे पैसे मत देना, उन्हें मुझसे पैसे मांगने की आदत पड़ जायेगी।। 

इस तरह शोभा देवी अपने ही परिवार में *फूट डालो राजनिति करो* की कूटनीति अपनाती जा रही थी। वो पति और बेटों को अपनी क़सम देकर कुछ कहने सुनने से रोक देती थी ताकि उनकी पोल न खुले। 

उन्हें लगता था कि इस तरह वो दोनों तरफ़ भली भी बनी रहेंगी और उनका राज ताउम्र रहेगा।।। बेटों के दिल में उन्होंने ये बात बैठा दी थी कि उनकी माँ के साथ पिता और ससुराल वालों ने ग़लत किया है। शोभा देवी सोचती थी

कि अब बेटे उनकी मुठ्ठी में हैं, वो कल को शादी के बाद भी माँ के ही पल्लू से बंधे रहेंगे। 

शोभा देवी की बेटी अंजलि मां को ऐसा करने से रोकती लेकिन हर बार शोभा देवी उसे डाँट कर चुप करा देती।।।  

अंजली घर में रहती थी तो माँ की चालाकियों की गवाह थी। आज भी माँ बेटी की बहस हो रही थी लेकिन शोभा देवी ने आज भी अंजलि को डाँट कर चुप करा दिया। 

कुछ वक़्त बाद अंजलि की शादी हो गई और वो अपने ससुराल चली गई।।। वक़्त पर तीनों बेटों की शादी भी शोभा देवी ने कर दी। 

बेटों की शादी के बाद उनमें आते बदलाव ने शोभा देवी की रात की नींदें और दिन का चैन उड़ा दिया था।  तीनों बेटे हमेशा अपनी अपनी पत्नियों के आगे पीछे घूमते रहते और उनकी हर जायज़ नाजायज़ बातें हंस हंस कर पूरी करते रहते।

  शोभा देवी अगर रोका टोकी करने की कोशिश करती तो बेटे और बहुएं उन्हें चुप करा देते। 

बेटो ने अपनी अपनी तनख़्वाह भी पत्नियों को देनी शुरू कर दी। अब तो तीनों बहूओं का पुरे घर पर राज चलने लगा , ये देखकर शोभा देवी अक्सर अपने पति से शिकायत करते हुए कहती कि “तीनों बेटे और बहुएं अपनी मनमर्ज़ी कर रहे हैं , कोई कुछ करने से पहले मुझसे पूछता तक नहीं “

अरे !अब इसमें हम क्या कर सकते हैं , मैं अब घर में लड़ाई झगड़ा नहीं चाहता , जो जैसा चल रहा है , चलने दो ,अपनी इज़्ज़त अपने हाथ होती है , शोभा देवी को समझाते हुए उनके पति विनीत जी कहते। 

तुम चुप रहो जी, ये घर मेरा है , यहां सिर्फ मेरी हुक़ूमत चलेगी।  ये कहकर अगले दिन से शोभा जी ने बहुओं को रसोई में न आने का हुक़ुम सुना डाला और कहा कि मैं इस घर की मालकिन हूँ और यहां सिर्फ मेरा कहा सुना और माना जायेगा , तुम तीनों सिर्फ घर के बाक़ी काम करो , रसोई और भंडार घर मैं ही देखूंगी। 

इस पर तीनों बेटे अपनी माँ की बात सुनकर एक साथ बोल उठे कि “माँ , आप इस घर में रहिये मालकिन बनकर लेकिन हम अपनी पत्नियों को यहां आपके हुकुम बजाने वाली नौकरानी बना कर नहीं रख सकते , “

ये क्या कह रहे हो तुम तीनों , मैंने कब तुम्हारी पत्नियों को नौकरानी कह रही हूँ। 

लेकिन माँ , आप ने ही हमें बचपन से बताया है कि आपकी सास आपको नौकरानी बनाके रखती थी और रसोई ख़ुद संभाल के आपसे बाक़ी काम नौकरानी की तरह ही करवाती थी तो क्या अब आप हमारी पत्नियों से भी वही सब करवाना चाहती हैं। 

बड़े बेटे अजय के मुंह से ये बात सुनकर शोभा देवी सन्न रह गई क्योंकि उन्होंने ही ख़ुद को एक अबला बहु साबित करने के लिए अपनी सास के बारे में बचपन से बच्चो से झूठ बोला था और आज यही झूट उनके सामने आकर खड़ा हो गया। 

वो कुछ सम्भलते हुए बोली कि तुम लोग इतना कैसे बदल सकते हो , अपनी माँ के पक्ष में नहीं बल्कि अपनी पत्नियों के पक्ष में सामने आ खड़े हुए हो ???

इस बार दूसरे बेटे सोमेश ने माँ को जवाब दिया , आप क्या चाहती हैं कि हम तीनों भी वो ही ग़लती करें जो पापा ने की थी , पापा ने कभी आपका साथ नहीं दिया और आप के लिए खड़े नहीं हुए , ये आपने ही हमें आज तक बताया है न तो आप को तो खुश होना चाहिए कि आपके तीनों बेटे पापा जैसे नहीं निकले और अपनी पत्नियों के हक़ के लिए खड़े हुए हैं। 

ये एक और झूट का थप्पड़ शोभा देवी के दिल पर पड़ा जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।  वो तो सोचती थी कि ख़ुद को अबला बहु अबला पत्नी बता बता कर वो सारी ज़िंदगी बेटों और घर पर राज करेगी , बेटों की सहानुभूति के लिए वो आज तक *फूट डालो राज करो की नीति* पर चलती आई थी। 

शोभा देवी अभी संभल पाती इतने में तीसरे बेटे विकास ने भी अपने शब्दों से उनके कानों में गरम खोलता सीसा उड़ेलने वाली बात कह दी “माँ, आप ही तो कहती थी कि पापा आपको कभी तनख़्वाह का एक रुपया नहीं देते थे ,

सारे ख़र्च खुद गिन गिन करते थे और आपने हमें बहुत मुश्किल से पाला है तो माँ , अब आप ही बताइये कि क्या हम भी पापा की तरह ही अपनी पत्नियों को एक एक पैसे से तरसाये , जैसे आप परेशान रहती थी वैसे ही हमारी पत्नियों को परेशान और तंगहाल रखें , नहीं माँ , हम पापा जैसे नहीं बन सकते। 

शोभा देवी सुन सुन कर सुनने लायक ही नहीं बची , इससे पहले वो कुछ कहती तीनों बेटे अपनी अपनी पत्नियों को लेकर अपने कमरों में चले गए। 

शोभा , मैंने कब तुम्हें तनख़्वाह नहीं दी, कब तुम्हारा सम्मान नहीं किया , कब तुमने बच्चों को मुश्किलों में अकेले पाला , काफी देर से बीवी और बेटों की बात सुनते हुए विनीत जी शोभा देवी के पास आये और उनसे सवाल करने लगे।  

शोभा तुमने अपना राज क़ायम रखने के लिए हम बाप बेटों के बीच ही दीवार खड़ी कर दी और आज उसका नतीजा देख लो , तुम्हारी *फूट डालो राज करो* की नीति ने सिर्फ परिवार में फूट डलवाई है।  

शोभा देवी आंसुओं को बहाती कमरे में चले गई। 

अगले दिन शोभा देवी की बेटी अंजलि घर आई तो देखा माँ को तेज़ बुख़ार है , पिता ने कल रात की सारी बात अंजलि से बताई तो अंजलि ने भी माँ से कहा कि “माँ , मैंने हमेशा आपको समझाया था , कि परिवार को जोड़े रखना ही स्त्री धर्म है

लेकिन आपने नानी के नक़्शे क़दम में चलते हुए अपने ही परिवार के बीच दीवार खड़ी कर दी , अब पछताने से क्या होगा माँ। 

शोभा देवी आज बहुत शर्मिंदा थी लेकिन वो कुछ न बोली , इतने में तीनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ कमरे में आए और बोले कि “माँ, हम तीनों आज अलग घरों में जा रहे हैं क्योंकि हम नहीं चाहते कि जैसी ज़िंदगी आपने इस घर में जी है,

आपको कुछ नहीं मिला वैसे ही हमारे बीवी बच्चे जियें , इसलिए ऐसे माहौल से हमारा जाना ही ठीक है।  इतना कहकर तीनों चले गए, उन्होंने शोभा देवी के जवाब का भी इंतज़ार नहीं किया। 

आज अपने झूट के पुलिंदों और *फूट डालो राज करो की नीति* को याद करके शोभा देवी ज़ार ज़ार रोये जा रही थी , आज उन्हें अहसास हो रहा था कि वो तो सोचती थी कि अपनी झूटी कहानियां सुना सुन कर बेटों के दिल में जगह बना लेंगी और ज़िंदगी भर राज करेंगी लेकिन यहां तो बेटे बीवियों के लिए खड़े हो गए और उन्हें छोड़ गए। 

शोभा देवी ने जितने झूट बोले उसके बाद अब वो अपने बेटों से सच भी नहीं बता सकती थी। सच बताकर वो अपने बेटों बहुओं की नज़रों में और गिर जाती।  

शोभा देवी ने आज ये जान लिया था कि परिवार में न चालाकियां चलती हैं न कोई कूटनीति , परिवार में सिर्फ प्यार , समर्पण ,त्याग चलता है और शोभा देवी के पास ये तीनों ही नहीं थे , जिसका नतीजा आज सामने था। 

शोभा देवी अब बस रोये जा रही थी , अंजलि और उसके पिता सिर्फ शोभा देवी को देखे जा रहे थे ,क्योंकि अब किसी के हाथ में कुछ नहीं रह गया था।

शनाया अहम

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