पराए रिश्ते की गहरी छाप – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

नताशा के यहां खुशी का माहौल था। आखिर उसके देवर की शादी जो तय हो गयी थी। वह लिस्ट बना रही थी कि किस- किस को आमंत्रण पत्र भेजना है। फिर वह पुरानी यादों में खो गयी। उसे शादी के दस साल पहले की घटना याद आ गयी। नताशा की परीक्षा ही पूरी हुई थी, कि भैया भाभी अपनी जिम्मेदारी से हाथ खड़ा करना चाहते थे। क्योंकि नताशा के बाबा तो पहले ही गुजर चुके थे। उन्होंने बड़े ही चाव बच्चों को पढ़ाया लिखाया कि बच्चों को कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने की जरूरत न पड़े। उन्होंने बड़ा सा घर लेकर दोनों लड़को को उनके पैर पर खड़ा कर दिया। ताकि कभी कमजोर न पडे़।

 बड़े भैया की शादी अच्छे मालदार परिवार से कर दी। उसकी बड़ी भाभी ससुराल आई तो अपने आगे किसी को कुछ समझती न थी। छोटे भैया विदेश में गया तो लौट कर ही ना आया। वह वही गोरी मैम के साथ सैटल हो गया। अब तो मां को एक- एक पल बहुत भारी लगते थे। दिन रात के कलह

को झेल नहीं पा रही थी। वही नताशा की पढ़ाई भी पिताजी के गुजरने बंद करा दी गयी। और भैया ने कहा- मां नताशा की शादी हो जाए तो ज्यादा अच्छा, फिर मां से सहमति जता दी। च बड़े भैया ने हड़बड़ी में ही नताशा की शादी भी तय कर दी। और परिवार उनके जैसा पैसे में बराबरी में न था, नताशा की राय भी न ली गयी, मां ने कहा बेटा नताशा से तो वो खुश है इस रिश्ते से, तब वो कहता क्या करना उससे पूछकर हमें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी है।बाकी उसकी किस्मत…..इतना सुनकर आशा देवी के आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया। तब वह बोली क्यों रे नवीन तेरे बाबा ने यही सोच कर पढा़या लिखाया। कि तू अपनी बहन को बोझ समझे।

 तब भाभी अर्चना कहने लगी। मां जी जो जिम्मेदारी है वो तो पूरी करनी होगी हमसे ज्यादा की उम्मीद मत रखना। कि हम कुछ ज्यादा खर्च करेंगे। हमें भी अपनी गृहस्थी देखनी है। मां की वही स्थिति न कुछ बोलते बनता, ना ही मना करते बनता। खैर वे बहुत सीधी थी। और वे बेटे बहू की बात का कोई विरोध नहीं कर पाई।

 पर मोहल्ले पड़ोस वाले सब उस पर जान छिड़कते थे। उन्होंने खूब बढ़िया से बढ़िया उपहार दिए। एक मेघना भाभी ही थी, जो उसे बहुत समझती थी। वह कहती थी कि तुम कभी हार मत मानना, कैसी भी परिस्थिति हो मुझे फोन करते रहना। मुझे अपना समझना, तुम्हारे भैया भाभी तुम्हारी जल्दबाजी में

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शादी कर रहे हैं। यदि कोई जरूरत हो तो खबर करना,तुम खुद को कमजोर मत समझना, नताशा को सिलाई आती थी।तो उन्होंने उसे सिलाई मशीन दी। सब हंस रहे थे। बल्कि उसके बड़े भैया ने कहा कि भाभी कुछ देना है तो कुछ अच्छा इलैक्ट्रिक आइटम देती तब वह बोली देखो नवीन तुम तो अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा रहे हो ,कल के दिन इसकी मुसीबत में साथ खड़े नहीं रहे तो सिलाई करके आत्मनिर्भर तो बनेगी। 

इस तरह मेघना भाभी का मजाक भी बना कि आजकल कौन सिलाई करता है। खैर…. बात आई गयी हो गयी। नताशा की शादी के बाद उसकी पति की पोस्ट में प्रमोशन हो गया।वह मजे से रहने लगी। 

उसके भैया ने पिता का मकान बेच दिया,, कभी उसका हालचाल तक न जानने की कोशिश करता,,छोटे भैया ने पिताजी के समय ही सबसे नाता तोड़ लिया था, उसकी तो कुछ पूछो ही नहीं,और मां गुजर गयी। उसके मायके के नाम पर कुछ बचा ही नहीं था। उसका तो मेघना भाभी पड़ोस वाली थी। सोचा सगे वालों ने तो नहीं पूछा । वह मेघना भाभी के यहां आमंत्रण पत्र लेकर जाती है।

 उसे मायके की गलियों में सब कुछ बदला हुआ नजर आता है। मेघना भाभी के घर का रिनोवेशन होने से सामने का पोर्च भी काफी बदला सा लगा। इस दस साल में वो पहली बार आई थी,घर बिकने से उसका कभी आना न हो पाया। इस बार जब पहुंची तो उसे मायके की खुशबू का एहसास हो रहा था। उसके घर का लुक भी बदल चुका था। जिसने खरीदा उसने भी घर पर बदलाव किए, जिससे पहचान ही नहीं आ रहा था। वो तो मेघना भाभी की नेमप्लेट को पढ़ कर उसने बैल बजाई। 

तब अंदर से चश्मा लगाते हुए मेघना भाभी ने दरवाजा खोला, तब तो नताशा को देखकर बोली -“अरे नताशा तेरी शादी क्या हुई तू तो हमें भूल ही गयी। पहले कहां एक दिन बिना मिले चलता न था, लगता हैअब तो तू त ईद का चांद हो गई।” तब वह मेघना भाभी के गले लगकर बोली-” कैसी बातें कर रही हो भाभी,

आपको कैसे भूल सकती हूं। आपके जैसे कौन है मेरा! और वह उसे अंदर ले आई,,बडे़ प्यार से चाय नाश्ता कराने के बाद मेघना भाभी ने हालचाल जानना चाहा, ,नताशा ने बताया भाभी मेरे देवर की शादी है, मेरे मायके से तो मन का रिश्ता जुड़ नहीं पाया। बड़े भैया और भाभी कैसे है, आप तो जानती हो मां के गुजरने के बाद बड़ेे भैया भाभी ने कभी खोज खबर नहीं ली। अब यहां तो काफी बदल चुका है। हमारा घर भी मैं पहचान नहीं पाई, आपके घर की नेमप्लेट न देखती तो मैं लौट जाती। पर मेरा आपके साथ मन का रिश्ता था तो मिलना हो ही गया। 

इतने में भाभी की बेटी आर्ची आती है वह पहचान नहीं पाती है ,और वह मम्मी से पूछती है तब भाभी कहती बेटू ये नताशा बुआ है,तुम जब छोटी थी। इनके साथ इनकी गोद में खूब खेलती थी। बुआ जब भी कालेज से लौटती थी ,तो तुम्हें जरूर चाकलेट देती थी।।हम लोग कितना भी मना करे पर बुआ नहीं मानती थी। कभी ज्यादा काम हो तो मैं बुआ के पास ही तुम्हें दे आती थी। और तो और एक बार जब तुम बहुत छोटी थी तब मुझे डाक्टर के यहां जाना। तो मैं बुआ के पास छोड़कर चली गयी।

तब तक तुम्हारी बुआ ने तुम्हें दूध में बिस्कुट डुबो कर खिला दी ताकि तुम रो ना। और मैं जल्दी- जल्दी लौट कर आई तो मैनें देखा तुम मजे से खेल रही हो।यही सब बातें नताशा के लिए भी ताजा हो गयी। और आर्ची को गले लगाकर बोली बेटू इस बार हमें मिलने में ज्यादा ही दिन लग गए। और वह तभी चाकलेट निकाल कर देती है। और बताती- भाभी आपकी दी हुई सिलाई मशीन मेरे बहुत काम आई, कोरोना के समय मेरे पति की नौकरी छूटी तो सिलाई करने लगी थी। इससे काफी राहत मिली

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और अब मेरा सिलाई सेंटर बुटीक में बदल गया है। पहले पहले तो शौक से सिलाई सिखाया करती थी। पर अब सब ठीक है, इनकी नौकरी भी बाद में लग गयी। और देवर भी बड़ा हो गया उसकी भी नौकरी लग गयी। मैंने सोचा आपको भी आमंत्रण पत्र दे आऊं। 

तब भाभी बोली -बहुत समय बाद मिलकर बहुत खुशी हो रही है। अब तो मिलना होता रहेगा। तुम भी आती जाती रहा करो। इसे ही अपना मायका समझो। 

तब वह बोली भाभी आप सब शादी में जरूर आना। फिर उसने आमंत्रण पत्र और मिठाई का डिब्बे को देकर कहा अब मैं चलती हूं। 

ऐसे में वह कहती है मेरी ननद रानी ऐसे कैसे खाली हाथ जाओगी। उन्होंने एक साड़ी और शगुन का लिफाफे को दिया। और पैर छू लिए। तब नताशा ने कहा -भाभी ये सब छोड़ो और गले लगो। हमारा मन का रिश्ता है। तभी मैं आपके पास खिची चली आई। आज समझ आया खून के रिश्ते से

ज्यादा मन के रिश्ते गहरे होते हैं। और मेघना भाभी ने कहा-” बिलकुल सही कहा, मन के रिश्ते कभी नहीं टूटते, कितना भी समय हो जाए ,मन के रिश्ते में कभी दरार नहीं पड़ती।न स्वार्थ होता, न ही कोई उम्मीद होती है, बस होता है वो प्रेम का रिश्ता…. निस्वार्थ भावना….. इतनी बात सुनकर उसकी आंखे भर आई। वो बोली भाभी आप से जो अपनापन मिला वो मेरी सगी भाभी से भी नहीं मिला। तब उसका हाथ थामते हुए हम तो है ना…. वो सब अब छोडो़ और ज्यादा मत सोचो। “नताशा खुश होकर चली गई। 

इस तरह नताशा का मायका फिर से पनप उठा। क्योंकि उनका दिल का रिश्ता जो मजबूत डोर से बंधा था। आजकल खून के रिश्ते होकर भी न होने के बराबर रह गए । स्वार्थ की अति और अपनत्व की कमी से अपनत्व खो गया। वही मन के रिश्ते गहरे हो गये।

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया ]

मन के रिश्ते

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