परम संतोष – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

   राधा चाची रसोई में काम करने के साथ-साथ बड़बड़ाती जा रही थीं , ‘ऐसे अनाड़ी के पल्ले से बांधी गई हूँ कि सेहत ठीक हो या न हो, रसोई मेें तो हमें ही खटना पड़ेगा।हमारे साथ की सारी सहेलियों के पति और दूर क्यों जाएं रिश्ते- नातों में ही देख लो, आजकल सब आदमी रसोई में पूरा काम करवाते हैं।

पड़ोस की निम्मो भाभी तो रमन भैैया के आसरे सारी रसोई छोड़ कर सारा दिन मायके में बिता आती हैं। एक हम ही अभागी हैं,जो चार दिन कहीं जाने का नाम लें तो सबसे पहले रसोई ही आड़े आती है। चाहे जितना कह लो जनाब को, रसोई में रत्ती भर मदद नहीं करेंगे।’

     ‘अरे क्या हुआ ? क्यों खुदबखुद बड़बड़ाए जा रही हो ? कम से कम यह तो देख लिया करो कि सामने कोई सुनने वाला भी है या नहीं।’ चाचा के मजाक ने गुस्से से जली-भुनी राधा चाची के जले पर नमक छिड़का , 

    ‘यहां कौन है हमारे दुखड़े सुनने वाला ? मां-बाप ने ब्याह दिया कि जाओ बिटिया, जितना लाड़ हम लड़ा सकते थे लड़ा लिया।अब पति के संग रसो- बसो । पर वे यह न जानते थे कि पति के संग तो उनकी किताबें रसी-बसी हैं या यूं कहूँ कि वे खुद ही किताबों में रसे-बसे हैं। किताबों के पन्नों से रूखे- सूखे वे क्या मेरी जिंदगी में रस भरेंगे । हां ! बच्चों के खातिर जिंदगी थोड़ी-बहुत रस से भरी थी, लेकिन बच्चों को आजकल कौन ताउम्र अपने संग बांध पाया है।’

      हमेशा स्वयं को परिस्थितियों से बचाते हुए  निकल जाने वाले चाचा ने इस समय भी कन्नी काट कर निकलने में ही अपनी भलाई समझी और अपने कमरे का रुख कर लिया।

आंसू बन गए मोती – राजेश इसरानी : Moral Stories in Hindi

    राधा चाची ने आधे-पौने घंटे में अपना सारा काम निपटाया और धीरे-धीरे कमर सहलाती हुई अपने कमरे में आ कर लेट गईं। आज सुबह सो कर उठते ही उन्हें बदन टूटता सा लगा था। कल थोड़ी हिम्मत करके उन्होंने अपनी गृह सहायिका के साथ मिलकर स्टोर को व्यवस्थित करने की छोटी सी जो गलती कर ली थी ,उसने अपना असर दिखा दिया था, ‘अब घर-गृहस्थी के काम कोई कब तक टालता रहे। इन्हें तो घर-गृहस्थी का कुछ दिखता ही नहीं।

कोई देखना चाहे तो घर के हर कोने में काम होता है, लेकिन अगर कोई खुद ही ‘अपने कमरे’ के नाम पर घर का एक कोना पकड़ कर बैठ जाए तो उसे बाकी का घर कैसे दिखे ? न कमरे से बाहर निकलो, न घर का काम दिखे,न बाहर का । दिखे भी तब न जब जनाब किताबों से कभी बाहर निकलें । फिर मेरे  बताने पर भी तो चेहरे पर  न जाने कैसे-कैसे भाव आ जाते हैं । गुस्सा, चिड़चिड़ाहट, हड़बड़ाहट , अनमनापन सब कुछ एक साथ।’ 

    अपनी असमर्थता और पति के असहयोग को  कोसती राधा चाची की आंखों में यकायक विवशता के आंसू आ गए और इन आंसुओं संग ही न जाने कब उनकी आंख लग गई । लगभग एक घंटे के बाद पति महोदय की आवाज से वे चौंक कर उठीं , 

      ‘आज खाना-वाना नहीं मिलेगा क्या ? उठो भई ! यह कौन सा वक्त है सोने का ? सारी रात पड़ी है सोने के लिए।’ 

    चाची चौंक कर उठती हुई मन ही मन फिर भुनभुनाईं , ‘न जाने किस हाड़-मांस के बने हैं ? बताया भी था कि आज तबियत ठीक नहीं है।बस अपने कमरे में घुसते ही सब भूल-भाल गए होंगे। पेट में कूदते चूहों ने कमरे से बाहर निकाला वरना, मेरी तो किसे परवाह है ।’

“अपनापन” – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

   वे उठ कर रसोई की ओर चलीं तो महाशय भी साथ हो लिए। जब रसोई की शैल्फ पर सब्जी का एक ही डोंगा दिखा तो खोलकर देखते हुए डरते- डरते पूछा कि आज सिर्फ करेले ही बनाए हैं, ग्रेवी वाली सब्जी नहीं बनाई ? 

     चाची फ्रिज में से काले चने निकाल कर बोलीं कि सुबह जल्दी ही बना लिए थे और अधिक गर्मी में खराब होने के भय से फ्रिज में रख दिए थे।

       चाचा के चेहरे पर एक संतोष नजर आया। उन्होंने चाची के चपाती बनाते तक फटाफट इधर-उधर गिराते-बिखेरते कटोरियों में सब्जियां डालीं, सलाद के लिए खीरा काटा ,

तेजी से जाकर मेज पर खाना खाते समय बिछाई जाने वाली चटाई बिछाई और झटपट सारा खाना उठा कर कमरे में ले गए। इस समय चाचा का चेहरा चाची की मदद करने के गर्वीले भाव से चमक रहा था, हालांकि हड़बड़ाहट में किचन की शैल्फ पर छूटे खीरे के छिलके और पानी के गिलास चाची को मुंह चिढ़ा रहे थे। 

   भूख से बेहाल हो कर उन्होंने चटपट खाना शुरू किया। छिलकों को समेटने के बाद पानी के गिलास लेकर चाची जब अंदर आईं तो पति को खाना खाते देखकर उन्हें उनके चेहरे पर अब परम संतोष नजर आया। वे भी पास में खाने के लिए बैठ गईं , किंतु अपना खाना खाते समय वे चोरी से बार-बार उस परम संतोष को देखती जा रही थीं और सोच रही थीं, 

बाबूजी की हिम्मत को सलाम – नेकराम : Moral Stories in Hindi

     ‘कैसे रोटी-सब्जी के एक-एक कौर में इन्हें इतनी तृप्ति मिल रही है । लाख किताबों में डूबे रहें, लेकिन खाने के वक्त तो मेरे पास ही आएंगे। बाहर भूखे रह कर सारा दिन बिता लेंगे,

पर खाना घर आ कर ही खाएंगे। बाजार से अपनी मनपसंद अनेकों किताबें खरीद लाएंगे पर भूख-भूख करते घर ही लौटेंगे ।अभी मैं तो फिर कहीं अपनी सखी-सहेलियों के संग खा-पी लूं पर ये कहां खाएंगे जब किताबों के अलावा कोई दोस्त-सखा ही नहीं।’

   चाची के चेहरे पर भी एक ‘परम संतोष’ था और कुछ ही समय पूर्व क्रोध भरी विवशता से उपजे आंसू अब भारतीय स्त्रियों के त्याग एवं समर्पण के मोतियों के रूप में चमकने लगे थे। वे अनुभव कर रही थीं कि हमारी पीढ़ी की नारियां संभवतः पति-पत्नी के इसी ‘परम संतोष’ के कारण अपने संबंधों को आजीवन निबाहती आई हैं।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब 

#साप्ताहिक विषय: आंसू बन गए मोती

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