प्रकृति का जादू ” –  रणजीत सिंह भाटिया

 प्राचीन समय की बात है एक राज महल में सुमेर सिंह नाम का एक माली काम करता था l राज महल का बड़ा सा बाग सदा हरा-भरा  और फूलों से खिला रहता था तथा तरह-तरह के पंछी  चाहचहाते रहते थे l सुमेर सिंह उस बाग की देखभाल अपनी औलाद के सामान करता था l

पर जब कोई फूलों को तोड़ता  तो उसे बहुत दुख होता था सूखे पत्तों को और आसपास गिरे कचरे को खाद बनाकर उन पौधों में ही डाल देता था l पंछियों के लिए उसने जगह जगह पर पानी के टब बना दिए थे तथा बचा खुचा खाना और दाना भी उनके लिए रख देता था

सुबह जब वह काम पर आता तो पंछी उड़ उड़ कर उसके आसपास चहचहाते जैसे उसका स्वागत कर रहे हो l कई बार तो  पंछी उसके कंधों पर भी आकर बैठ जाते थे l वह अपने काम से बहुत खुश था l

                सुमेर सिंह ने अपने घर के आंगन में भी बहुत सुंदर सुंदर पौधे लगा रखे थे l एक बार जब वह घर लौट रहा था तो रास्ते में नदी के किनारे एक बहुत ही विचित्र पौधा नजर आया जो चट्टान के पास आधा उखड़ा सा लग रहा था तब सुमेर सिंह ने उसे थोड़ी मिट्टी के समेद उखाड़ लिया

और ले जाकर अपने घर के आंगन में लगा दिया और अन्य पौधों की तरह उसे भी प्यार से खाद पानी देने लगा वह पौधा बहुत तेजी से बढ़ रहा था और कुछ ही समय के बाद  वह बहुत बड़ा पेड़ बन गया बहुत ही घना और सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे फूलों से भरा उसके फूलों की खुशबू दूर-दूर तक फैली रहती और आसपास के लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती

जो भी उस पेड़ को देखता हैरान रह जाता, ऐसा पेड़ किसी ने कभी नहीं देखा था ना ही सुना था l उसके फूल अब फलों में परिवर्तित होने लगे थे l

पंछी उन फलों को बड़े चाव से खाते थे कई पंछियों ने अपना घर वहीं बना लिया पर कोई भी इंसान उन फलों को खाने से डरता था क्योंकि वह फल कभी किसी ने नहीं देखे थे सुमेर सिंह ने उस पेड़ के चारों ओर एक गोल सा ओटला बना दिया था और एक बहुत पुरानी मूर्ति जो उसके आंगन में पता नहीं कब से पड़ी थी उस पेड़ के मोटे से तने के पास रख दी जिससे वहां की सुंदरता और बढ़ गई l


                  वक्त गुजरता गया और सुमेर सिंह बहुत बुड्ढा हो गया बाल झड़, गए दांत भी साथ छोड़ गए कमर झुक, गई अब काम पर भी नहीं जा पाता था l घर वालों से जितनी सेवा होती थी कर देते थे पर बुढ़ापा तो उसे खुद ही काटना थाl पत्नी रत्ना भी बूढ़ी हो चुकी थी फिर भी जितना कर पाती थी करती थी सुमेर सिंह जैसे तैसे उठकर अपने आंगन के पेड़ पौधों की देखभाल करता और आंगन में खाट पर पड़े पड़े उस पेड़ की ओर निहारता रहता और बहुत खुश होता l

                  एक दिन वह घर पर अकेला ही थाl खाट पर लेटा लेटा  उस पेड़ की ओर देखे जा रहा था l अचानक उसने देखा कि पेड़ के नीचे रखी वह मूर्ति एकदम घूम गई और उस पेड़ के तने में से एक दरवाजा सा खुला जिसमें बहुत ही तेज रोशनी आ रही थी तथा हल्का सा सुगंधित धुआ निकल रहा था

सुमेर सिंह अवाक रह गया वह खाट से उठा और धीरे-धीरे उठकर उस ओर  चल दिया उसने दरवाजे में पैर रखा तो देखा वहां बहुत ही सीढियां थी वह धीरे-धीरे सीढ़ियां उतरने लगा तो पीछे मुड़ कर देखा वह दरवाजा बंद हो गया l

                   परिवार के लोग जब लौटकर आए तो सुमेर सिंह को गायब देखकर घबरा गए सब जगह ढूंढा पर नहीं मिला l इस तरह बहुत समय गुजर गया वह नहीं मिला दो साल बाद रात को सुमेर सिंह के घर कोई दरवाजा खटखटा रहा था l सब उठ कर आए तो देखा एक बहुत ही हष्ट पुष्ट खूबसूरत नौजवान खड़ा था

जिसके बदन से एक अनोखी सुगंध आ रही थी उन्होंने पूछा “” तुम कौन हो तब,,, वह हंसा मोतियों जैसे दांत चमक उठे उसने कहा “”अरे “”मैं हूं सुमेर सिंह “”पर किसी ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया मगर उसकी पत्नी ने उसे पहचान लिया उसने पूछा कि यह चमत्कार कैसे हो गया तब सुमेर सिंह ने पेड़ के अंदर जाने की कहानी बताई और कहा

“”जब मैं नीचे पहुंचा तो वहां सिहासन पर राजा की तरह एक व्यक्ति बैठा था मुझसे कहने लगा “””आओ सुमेर सिंह तुमने मेरी बहुत सेवा की एक पिता की तरह.. अगर उस दिन तुम मुझे ना लाए होते शायद में टूट कर मुरझा कर मर गया होता l यहां इस वृक्ष के नीचे एक अलग ही दुनिया है मेरा नाम “” कल्प”” है

यह जो सारे लोग तुम देख रहे हो कभी बूढ़े नहीं होते, तुम्हें यहां कुछ समय रहना होगा तुम्हारी भी काया बदल जाएगी यहां का भोजन सिर्फ इन जड़ों से टपकता यह रस है l जिसमे तुम्हारे द्वारा सींचा गया प्रेम का अमृत्तुल्य जल भी है “” रत्ना ने पूछ   “वह लोग कैसे दिखते थे.. ? तब सुमेर सिंह ने   बताया   “” वह हम इंसानों की तरह ही थे, पर बहुत ही सुंदर और तंदुरुस्त.. थे हां उनके सिर के बाल बहुत सुनहरे और आंखें नीली थी सब कुछ एक  ” जादुई दुनिया “के समान लग रहा था…! और 


“कल्प ”  ने कहा था “” यहां से जाने के बाद तुम इस वृक्ष की जड़ो,पत्तों, फूल और फलों को लोगों की भलाई में लगा सकते हो और इससे सभी तरह के रोग दूर कर सकते हो l पर इसकी कोई कीमत नहीं ले सकते “” l

                   “”” इसका प्रयोग सबसे पहले मेरे ऊपर करो ” “”””..रत्ना ने कहा सुमेर सिंह ने ऐसा ही किया और कुछ ही सालों में उसकी पत्नी भी एक सुंदर युवती बन गई l  अब बात सारे राज्य में फैल गई लोग दूर-दूर से आते सुमेर सिंह के घर लोगों का तांता लगा रहता और  वो और वह मुफ्त में लोगों का इलाज करता l 

राजा तक यह बात पहुंची तो राजा ने कहा “” ऐसे वृक्ष जगह जगह ढूंढ के लगवा दो ” पर सुमेर सिंह ने बताया कि ऐसे पेड़ कभी-कभी सर्दियों में पाए जाते हैं और उनके बीज भी नहीं उगते तब राजा ने खुश होकर सुमेर सिंह के लिए एक महल बनवा दिया राज्य में कोई भी रोगी और बूढ़ा नहीं रहा l

पर सुमेर सिंह उसकी कोई कीमत नहीं लेता था पर राजा ने उसे राज वेद का पद दिया  पर सुमेर सिंह ने राजा से कहा  “””  जिस मालिक की कुदरत ने मुझे इतना बड़ा उपहार दिया मैं उसी की सेवा करते रहना चाहता हूं मैं अपने पेड़ पौधों से खुद को जुदा नहीं कर सकता””” उसकी यह बात सुनकर राजा बहुत ही ज्यादा खुश हुआ और उसने कहा  “””तुम चाहे जितने पेड़ पौधे लगाओ बड़े भाग लगाओ  पूरा राज्य तुम्हारे साथ है l”””

                     

                         “” समाप्त “”

 

“” काश यह कल्पना साकार हो जाए और सारी दुनिया में किसी भी प्रकार की कोई बीमारी का नामोनिशान ना रहे “”

 

मौलिक एवं स्वरचित

 

रणजीत सिंह भाटिया 

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