कल फिर रात में बहू-बेटे के कमरे से आती झगड़ने की ऊंची आवाजों से वृद्ध सास-ससुर बुरी तरह से आहत थे। बार-बार समझाने के बावजूद बेटा कल देर रात फिर शराब पीकर घर आया था और ऊंची आवाज में अपनी पत्नी के साथ गाली-गलौज कर रहा था। ऐसी स्थिति में हमेशा ही नशे में धुत्त
अपने बेटे के अनियंत्रित हो जाने वाले क्रोध के कारण वे बेचारे बीच बचाव नहीं कर पाते थे और आत्मग्लानि से युक्त अपने आप को सर्वथा असहाय महसूस करने लगते थे। हमेशा की तरह कल रात भी अपनी बहू को मानसिक संबल न दे पाने की विवशता में वे दोनों सिर्फ खून के आंसू पीकर रह गए थे।
अतः रात का नशा उतर जाने पर आज सुबह बेटे को अपने कमरे से बाहर आते देखकर जब उसकी मां ने एक बार फिर उसे समझाने की कोशिश की तो बेटा अपने पुरुषवादी अहं की ढीठता से सराबोर बोला, ‘मां ! तुम अपनी बहू की तरफदारी मत करो। वह दूध की धुली नहीं है। उसे अपने क्रोध पर जरा भी नियंत्रण नहीं है।
बंद कमरे में मेरे साथ उसके व्यवहार का तो तुम अनुमान भी नहीं लगा सकतीं। वहां मेरे साथ बात करते समय हमेशा तू- तड़ाक पर उतर आती है। ऐसे में मेरा गुस्सा बढ़ना स्वाभाविक ही है। जब वह अच्छी तरह जानती है कि पीना मेरी आदत है और पीने के पश्चात् मुझे अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रहता,तो हर बार मेरे साथ क्यों उलझती है ? चुपचाप सहन क्यों नहीं कर लेती ?’
बेटे के जवाब पर मां मायूसी भरी शांति से बोली, ‘बेटा ! यह तो वही बात हुई न कि ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ जब तुम्हें ही खुद पर नियंत्रण नहीं है, न अपने शराब पीने पर, न अपने शब्दों पर और न ही अपने क्रोध पर, तो तुम बहू को किसी भी प्रकार के नियंत्रण का उपदेश किस मुंह से दे सकते हो ? तुम शराब पीना छोड़ दो, उसका तुमसे दुर्व्यवहार स्वयं ही छूट जाएगा।’
मां की दलील सुनकर बेटा निःशब्द रह गया और टका सा मुंह लेकर सहसा अपनी मां के चरणों में झुक गया।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।