पापी चुड़ैल (भाग – 13)- शशिकान्त कुमार : Moral stories in hindi

चंद्रिका अपने अब तक के सबसे भयंकर रूप लेकर आ जाती है

लंबे लंबे बालों को जगह केंचुए ले रखे थे हाथों में बड़े बड़े नाखून और हाथ कई जगह से मुड़े पड़े थे आंख लाल रोशनी सी चमक रही थी चेहरा जला हुआ था लेकिन रंग उजला जिसमे से उसके लंबे लंबे दांत बाहर दिख रहे थे पैर दोनो पीछे की तरफ मुड़े हुए थे और वो आंगन में हवा में झूल रही थी…

एक बार उसने उमा और गौरीशंकर को तिरछी निगाहों से देखा और पूरे दांत को दिखाकर मुस्कुराई जिसे देखकर उमा ने अपनी आंखे बंद कर ली और गौरीशंकर कांप रहा था… और चंद्रिका उसी निगाह से देखते हुए बोली…

इन दो रहनुमाओं के भरोसे मुझसे अपने बच्चों को छुड़ाने चले थे गौरीशंकर के बच्चे …

अब छुड़ा ले अपने बच्चे…

तभी महाराज जी और अहिधर दोनो मिलकर अपने अपने हाथों अपने अपने दोनो बड़े कुंड में मंत्र पढ़कर कुछ फेंकते है और दोनो कुंड में से एक बिजली चमकती हुई निकल एक दूसरे से मिलते हुए चंद्रिका के चारो ओर से लपेट लेती है और इस तरह से चंद्रिका अब महाराज जी और अहिधर के कब्जे में थी…..

धोखा …

धोखा किया है तुम दोनो ने मिलकर मेरे साथ, मुझे यहां से बाहर निकालो

(चंद्रिका चीखती है चिल्लाती है मगर उस कैद से अपने आपको छुड़ाने में असमर्थ हो जाती है)

क्यों किया तुम दोनो ने मेरे साथ ऐसा?

मैने तुम दोनो का क्या बिगाड़ा है?

मेरा तुम कुछ बिगाड़ भी नही सकती थी चंद्रिका …..( अहिधर बोला)

हां … चंद्रिका तुम हमारा कुछ नहीं कर सकती थी लेकिन अकेले हम भी तुम्हारा कुछ कर पाने में असमर्थ हो जा रहे थे इसलिए हम दोनो ने साथ मिलकर ये चक्रव्यूह तुम्हारे लिए रचा था…

लेकिन मैं तो तुम्हारी हर बातों को ध्यान से हर वक्त सुन रही थी परंतु ये मैं क्यूं नही सुन पाई?

क्योंकि …

जिस समय यह चक्रव्यूह हमने रचा था वो पूरे दिन की सबसे पवित्र बेला होती है और उस समय नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव पूरी तरह से खत्म हो जाता है …..( महाराज जी ने कहा)

तुझे क्या लगा था चंद्रिका की हमे ये नही पता है की तुम हमपर ध्यान रख रही हो…..

हुंह…

इसलिए हमने दो कुंडो के मध्य एक छोटा तीसरा कुंड बनवाया था जो हमारे हवन का हिस्सा ही नही था बल्कि वो बिल्कुल बेकार था हमारे लिए लेकिन उसका इस्तेमाल हमने जाल के रूप में किया ……( अहिधर बोला)

हां चंद्रिका …

और इसलिए हमने हम दोनो के बीच लड़ाई वाली प्रक्रिया को सुबह जब केवल सकारात्मक शक्तियों का वास होता है तब इस व्यूह को रचा था जिससे तुझे लगे की हम दोनो लड़कर कमजोर हो गए और तुम आसानी से पकड़ में आ सको….

हम दोनो ने पूरा हवन पूर्ण कर लिया था लेकिन अंतिम स्वाहा जो तुम्हे जकड़ रखा है उसको प्रकट करने के लिए तुम्हारे आने के बाद का करने के लिए तय किया था ताकि वो तुम्हे अपने में जकड़ सके……( महाराज जी बोले)

नही नही नही…..( चंद्रिका अपने आपको छुड़ाने की चेष्टा करते हुए चिल्ला रही थी)

अब बहुत हुआ चंद्रिका , तुम्हारा खेल यही समाप्त होता है… अब तुम अपना राज खोलो और हमे बताओ की तुम कहां से आई हो और तुमने गौरीशंकर के परिवार को तंग करना क्यों शुरू किया……( अहिधर बोला)

नही बताऊंगी…….( चंद्रिका बोली )

ठीक है मत बताओ लेकिन तुम गौरीशंकर के बच्चों को वापस कर दो…( महाराज जी बोले)

तुम ऐसे नही मानोगी…( अहिधर ने कुंड से भभूत निकालकर एक मंत्र पढ़ा और चंद्रिका के चेहरे पर दे मारा)

चंद्रिका कांप उठी और बोली …..

लौटा दूंगी

लौटा दूंगी मैं गौरीशंकर के बच्चों को…..

मुझे इस जकड़न से बाहर  निकालो पहले…( चंद्रिका बोली)

ऐ चुड़ैल ..

नादान समझी है हमे ? ( अहिधर बोला)

चल ऐसे ही अपने बच्चों को आवाज दो ..

नहीं…नही…

नहीं मेरे बच्चों ने तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ा है उसे कुछ मत करना…..( चंद्रिका आज पहली बार गिड़गिड़ा उठी)

क्यों?

तेरे बच्चे को बारी आई तो गिड़गिड़ाने लगी और तुमने जो एक मां बाप से दो दो बच्चों को पिछले  आधे महीने से दूर कर रखी है उसका दर्द तुमने सोचा है…

उसमे मेरी कोई गलती नही है….( चंद्रिका बोली)

तो किसकी गलती है? ( महाराज जी बोले)

इसमें स्वयं उन दोनो बच्चों की गलती थी जो उस दिन बेर चुनते चुनते मेरे कपड़ो के ऊपर पैर रख दिया था इस कारण मैं उनके पीछे लग गई….

लेकिन तुम हो कौन और ऐसे क्यों भटक रही हो?……( महाराज जी ने पुनः पूछा )

ये मत पूछो …….

मैं नहीं बताऊंगी……( चंद्रिका बोली)

तुझे बताना पड़ेगा …. ( अहिधर तेज आवाज में पूछा)

अहिधर तुम बचोगे नही मुझसे ………

तुम एक तांत्रिक होकर मुझसे मेरी दुनिया में बनाए हुए नियम को तोड़ने की बात कर रहे हो…..( चंद्रिका)

तो तुम भी तो मेरी दुनिया में आकर एक निर्दोष व्यक्ति को सता रही हो और मेरी दुनिया में तुम जैसे आत्माओं से बचने का यही तरीका है..( कहकर अहिधर ने फिर से भभूत उठाकर इसबार हवा में फेंका और देखते ही देखते चुड़ैल के दोनो बच्चे आकर दोनो हवनकुंड में गिर पड़े…..

नही ..नही

निकालो मेरे बच्चों को हवनकुंड से

मैं सब बताती हूं

कुछ भी नही छुपाऊंगी….( चंद्रिका कराह कर बोली)

अहिधर ने दोनो बच्चों को हवनकुंड से बाहर कर दिया और एक मंत्र के माध्यम से उन दोनो को भी वहीं पास में कैद कर लिया….

महाराज जी मेरे बच्चे भी बुला दो………..( उमा रोते हुए बोली)

चंद्रिका देखो जैसे तुम अपने बच्चे के लिए तड़प उठी उसी तरह यहां भी एक मां अपने बच्चो के लिए तड़प रही है इसलिए उनके बच्चो को जहां भी छुपा कर रखी हो तुरंत उसे यहां लाकर उपस्थित करो………( महाराज जी बोले)

उसके लिए आपको मुझे इस बंधन से मुक्त करना होगा….

जरूर करूंगा मुक्त ….

लेकिन उससे पहले तुम्हारे दोनो बच्चों को कैद करूंगा इसमे…( अहिधर ने कहा)

नही…. मेरे बच्चे इस दर्द को सह नहीं पायेंगे अहिधर……..( चंद्रिका बोली)

अब सुबह का समय भी हो रहा है इसलिए हमारी शक्तियां भी कम हो रही है इसलिए इन बच्चों को वैसे ही रखो मैं कुछ हीं देर में विष्णु और अपूर्वा को यहां उपस्थित कर देती हूं…..

महाराज और अहिधर ने आंखो ही आंखो में बात किया और दोनो ने मिलकर अपने अपने मंत्रों का उच्चारण कर एक साथ ही दोनो ने अपने अपने हाथ चंद्रिका की ओर लहराए और चंद्रिका अपने ही रूप से एक दूसरे रूप में बाहर निकल आई…

(अब चंद्रिका का आधा अंश कैद था और आधा मुक्त )

जाओ चंद्रिका अब गौरीशंकर के दोनो बच्चों को यहां उपस्थित करो…… ( अहिधर बोला )

इतना सुनते ही चंद्रिका का मुक्त रूप वहां से गायब हुआ और दोनो महाराज उसका इंतजार करने लगे ….

और कुछ हीं देर में चंद्रिका उन दोनो बच्चों विष्णु और अपूर्वा को वापस उसके घर के आंगन में लाकर रख देती है जिसे दोनो महाराज एक साथ उन दोनो बच्चों को देखने लग जाते है…….

तभी

हु हा हा हा हा हा हा..…….( चंद्रिका अट्टहास करने लगी क्योंकि उसने महाबलेश्वर जी की हवन कुंड में हड्डियां फेंक दी जिससे उनके हवन से उपजी शक्तियां एकाएक खतम हो गई..और उधर कैद वाले चंद्रिका का कैद छूट गया और वो अपने दोनो बच्चों को उठाकर वहां से भागने लगी….

अहिधर ने अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग कर अपने दोनो हाथों को हवा में ऊपर की ओर लहरा दिया और अपनी मुठ्ठी को भींच कर मंत्र का उच्चारण करने लगे

महाबलेश्वर जी स्थिति को भांपते हुए उन्होंने अपनी शक्तियों को जागृत करना शुरू कर दिया….

उधर अहिधर के कुंड से एक तेज रोशनी के साथ जोरदार आवाज आई और अहिधर वहीं आंगन में गिर पड़े……

शशिकान्त कुमार

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