अरे गुड्डन की मां जरा देखो तो मैं क्या लेकर आया हूं अपनी गुड्डन के लिए? घर में घुसते ही देवेंद्र जी ने अपनी पत्नी सुनैना को आवाज़ लगाई। सुनैना अभी आई कहकर रसोई में से अपने आंचल से अपने हाथ पहुंचती हुई आई तो देखा। देवेंद्र जी अपने हाथ में एक सोने की चेन लिए हुए बैठे हैं।
सुनैना ने चैन का डब्बा उनके हाथ से ले लिया और चैन अलटपलटकर देखने लगी। और अपने पति से कहने लगी चैन तो अच्छी है जी लेकिन आपने इतने पैसों का इंतजाम कहां से किया, अरे वो जो ससुराल से हमारी सगाई में एक अंगूठी मिली थी उसे मैंने बेच दिया। बिटिया के लिए तो एक सोने का सेट हो गया है
अब दामाद जी के लिए एक चैन तो चाहिए ना। गुड्डन के सिवा हमारा है ही कौन? कौन सा बहु आनी है हमारे घर में जिसके लिए कुछ जोड़ कर रखा जाए, ससुराल वाले भले लोग हैं किसी चीज की डिमांड नहीं है उनकी, वह तो एक साड़ी में अपनी बिटिया को ले जाना चाहते हैं। पर मैं अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोडूंगा
उसकी शादी में देख लेना। मन तो मेरा भी न जाने क्या-क्या करता है अपनी लाडो को देने के लिए?हमने अपना पेट काट काट कर अपनी बेटी को काबिल बना दिया है यही बड़ी बात है वह आत्म सम्मान से जी तो सकेगी। मेरा कहने का मतलब है कि कुछ जमा पूंजी अपने लिए भी बचा कर रखना। हमारी कौन सी पेंशन आएगी?
आपकी तबीयत ठीक रहती है ना मेरी पता नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए फिर शादी के बाद का लेना देना भी बहुत रहता है। अभी दोनों बात कर ही रहे थे कि उनकी बेटी गुड्डन जो एक प्राइवेट स्कूल में पढाती है, आ गई, देवेंद्र जी एक इंजीनियरिंग कॉलेज मे चौकीदार का काम करते हैं।गुड्डन उर्फ सलोनी उनकी इकलौती लड़की है
जिसे उन्होंने बहुत अच्छी शिक्षा दिलवाई है उसने एमएससी B.Ed किया हुआ है यहां तक की टैट और सुपर टैट भी उसके क्लियर हो चुके है। उसे और उसके पिता को पूरी उम्मीद है जब भी वैकेंसी निकलेगी वह एक गवर्नमेंट टीचर जरूर बन जाएगी।
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सुरेंद्र जी के दोस्त ने उनकी बेटी के लिए एक कॉलेज में पढ़ाने वाले मैथ के प्रोफेसर मयंक का रिश्ता बताया था। जो अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। मयंक को और उसके परिवार को भी सलोनी देखते ही पसंद आ गई थी , सलोनी अभी शादी नहीं करना चाहती थी लेकिन अपने माता-पिता की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा।
देख बिटिया तेरे पापा अपने होने वाले दामाद के लिए चैन खरीद कर रहे है बता कैसी लग रही है। लेकिन गुड्डन गुस्सा होते हुए बोली- पापा इतना खर्च करने की क्या जरूरत है, आपने पढ़ा लिखा कर मुझे काबिल बनाया यही बहुत है आप अपने बुढ़ापे के लिए भी तो कुछ बचा कर रखो।
मां के घुटनों में दर्द रहता है उनका ऑपरेशन भी कराना पड़ेगा। इतनी जल्दी क्या थी आपको मेरी शादी करने की, आप तो मुझे अपना बेटा कहते हो फिर मुझे भी तो अपने कुछ फर्ज निभाने दीजिए। देख बिटिया अच्छा घर और अच्छा लड़का बहुत मुश्किल से मिलते हैं और फिर शादी समय पर ही हो जाए वही अच्छा है।
हमें तो अकेले ही रहना है, बस तू जहां रहे वहां खुश रहे यही ईश्वर से प्रार्थना है। उस परिवार को भी अपना परिवार समझना। देख कभी हमारी नाक नीची मत होने देना। सुरेंद्र जी अपनी बेटी के सर पर अपना हाथ फेरते हुए बोले। गुड्डन भी अपने पापा की गोद में अपना सर रखकर रोते हुए कहने लगी, पापा मैं छोटी से बड़ी हो गई क्यों? मुझे नहीं जाना अभी ससुराल।
मुझे आपके बुढ़ापे का सहारा बनना है। अरे कोई कितना भी बड़ा साहूकार क्यों ना हो?आज तक बेटी को क्या कोई घर में रख पाया है? और कौन सा तू दूर जा रही है इसी शहर में तो है तेरी ससुराल? जब चाहे आ जाना। सुनैना जी ने अपनी बेटी को ये कहकर गले लगा लिया।
शादी की सभी तैयारियां हो गई थी देखते-देखते वह दिन भी आ पहुंचा जब गुड्डन को विदा होकर ससुराल जाना था, विदा होते समय।मयंक के मम्मी पापा ने अपने समधि और समधन को तसल्ली देते हुए कहा, समधी जी देखिए , अब बेटी के साथ-साथ आपको बेटा भी मिल गया है। आप दोनों की जिम्मेदारी भी मयंक इस तरह निभाएगा जिस तरह हमारी। मेरा वादा है आपसे,,हमें अपनी परवरिश पर नाज है।
और सच में हुआ भी वैसा ही, सुरेंद्र जी को दामाद के रूप में जैसे बेटा ही मिल गया है, गुड्डन भी अब सरकारी स्कूल में नौकरी करने लगी है। सुनैना जी के घुटनों का ऑपरेशन हो चुका है और वो बिल्कुल ठीक है।
कौन कहता है बेटियां बेटों से कम होती हैं?
मां की जान होती हैं पिता की शान होती हैं।
यह बेटियां तो दो दो घरों का अभिमान होती हैं।
पूजा शर्मा स्वरचित।
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