ए री छुटकी..
यहां कैसे,,तू बाहर गेट पर खड़ी है…
दुपट्टा नहीं ले सकती ..
जा अंदर जा..
साँझ हो गई …
ऐसे ही चली आती है गेट पर..
बड़े भईया छुटकी से बोले…
अगले दिन छुटकी अपनी मां से बाल बनवा रही थी …
यह कैसे बैठी है…
ठीक से कपड़े करके नहीं बैठ सकती है …
अभी भी बिल्कुल शऊर नहीं आया इसे..
सामने खाट पर बैठी मेथी का साग काटती हुई अम्मा बोली….
छुटकी दुखी हो गई…
टीवी देखते हुए छुटकी बहुत जोर से हंस रही थी…
इतनी जोर से क्यों हंस रही है ….
तमीज भी नहीं है तुझे …
दूसरे घर जाना है …
बच्चों जैसी हरकत करती है …
मां बोली …
अब यह फ्रॉक वराक मत पहना कर …
अच्छी नहीं लगती…
टांगे चमकती है तेरी …
इसे पहनना बंद कर दे …
सरला ताई बोली छुटकी से….
क्यों इतना खा रही है …
मोटी हो जाएगी….
ब्याह भी नहीं होगा फिर तेरा…
समझी…
छोटा भाई राघव बोला…
क्या मां ,,क्या अम्मा. . .
सुबह से लेकर शाम तक सब मुझे कहते ही रहते हैं …
कि ऐसा मत कर ..
गेट पर मत खड़ी हो…
दुपट्टा ले ले …
ऐसे मत बैठ…
वहां मत जा…
जोर से मत हंस….
फ्रॉक मत पहन …
सूट पहना कर …
ऐसा क्या हो गया मां…??
बोलो ना…
पहले तो मुझे कोई कुछ नहीं कहता था…
अभी मैं बस 16 साल की ही तो हुई हूं …
भईया को तो आप नहीं कहती …
कि वह क्यों जोर से हंस रहे हैं ….
उन्हें तो बाहर जाने से नहीं रोकती …
अब तो पहले से भी ज्यादा बाहर जाते हैं….
वह भी तो गेट पर खड़े होते हैं …
बाहर बैट बॉल खेलते हैं…
तो मैं बाहर जाकर क्यों नहीं खेल सकती….??
भैया भी तो हाफ नेकर, शर्ट में घूमते हैं …
तो मैं क्यों नहीं पहन सकती …
मुझे बताओ ना मां…
मां के पास छुटकी के सवालों का जवाब नहीं था…
ना ही कोई भाई जवाब दे पा रहे थे ….
अम्मा भी बैठी बस इतना ही बोली….
सयानी हो गई है तू …
अभी तक कुछ ना आया तुझे….
पूछ रही है…
क्यों नहीं पहन सकती ….
तू बड़ी हो गई है…
समझी..
अम्मा की बातों से छुटकी की आंखों में आंसू आ गए…
तभी सामने से आए पिता वीरेंद्र जी बोले…
इधर आ छुटकी…
क्यों रो रही है मेरी लाडो…??
इसकी आंखों में आंसू कैसे…
पापा सब लोग मुझे हर चीज के लिए क्यों रोकते टोकते हैं…
आप तो मुझे कभी नहीं रोकते …
ना ही मना करते हैं…
भईया ,अम्मा ताई ,,और मां भी…
सब लोग मुझे कहते….
मैं बड़ी हो गई हूं….
तो पापा आप बताओ भईया भी तो बड़े हो गए हैं…
उन्हें क्यों नहीं रोकते आप लोग….
पिता विरेन्द्र जी बोले…
छुटकी बेटा …
ये समाज है ना …
बहुत गंदा हैं…
एक लड़की पर बहुत जल्दी दाग लगा देता है…
यह बात लड़कों पर भी लागू होती है…
मैं यह नहीं कहता …
लेकिन एक लड़की कांच की तरह होती है…
तू मेरी लाडो है …
तू बड़ी हो गई हैं…
मैं कब तक तेरे साथ रहूंगा…
बस यही चाहते हैं सब तू अच्छे से ,अपने घर में ,,अच्छे संस्कार लेकर अच्छी बातें सीख कर ,,दूसरे घर जाए…
वो भी तेरी तारीफ करें ….
बस इसलिए ही तुझे सब समझाते हैं…..
तो पापा…
ये लोग मुझे खाना भी नहीं ठीक से खाने देते…
कि मैं मोटी हो जाऊंगी …
पापा मैं छोटी से बड़ी क्यों हो गई …??
छुटकी ,, जोर से रोने लगी …
अब सब लोग चुप करो …
मेरी छुटकी बड़ी नहीं हुई है…
तेरा जो मन करे…
वह खाया कर …
जो मन करे वह पहना कर…
जहां जाना हो ,,वहां जाया कर….
मुझे पता है मेरी छुटकी अपनी मर्यादा कभी नहीं पार करेगी….
अभी मेरे घर है..
तो इसे जी लेने दो …
आज के बाद मेरी छुटकी को कोई कुछ नहीं कहेगा …
पिता वीरेंद्र की बात सुनकर छुटकी उनके गले से लग गई…
पापा….
एक आप ही हो ,,जो मेरी हर बात मान जाते हो …
आई लव यू पापा …
सच में एक बाप से ज्यादा अपनी बिटिया को कोई प्यार नहीं करता.. . ..
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा