आज फिर सुबह से ही पड़ोस वाले घर से नई बहू के चीखने चिल्लाने की आवाज आ रही थीं,, कुछ ही देर में आवाज तेज होती गईं… अब बहू के चीखने के साथ-साथ सामान फेंकने की आवाजें भी आ रही थीं।
सपना समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर माजरा क्या है..?? पड़ोस वाली चाची जी को सालों से जानती है… लगभग साल भर पहले की ही तो बात है कितनी खुशी खुशी वो सपना के घर मिठाई लेकर आईं थीं….
सपना ,, ले मिठाई खा…
किस बात की मिठाई बांट रही हो चाची,, विनोद की नौकरी पक्की हो गई क्या..
अरे क्या जरूरत है उसे नौकरी करने की…?? शादी तय हो गई उसकी,, बहुत अमीर खानदान है,, दहेज में तो पूरा घर भर देंगे हमारा,, दो ही लड़कियां हैं,, बाप का बहुत बड़ा बिजनेस है,, सब बेटियों का और दामाद का ही होगा… मैंने तो विनोद को अभी से समझा दिया है “थोड़ा पापा जी पापा जी” कहकर अपनी तरफ बनाए रखना,,, बाद में अपने लिए कोई बिजनेस शुरू करवा लेना।
लेकिन चाची यह तो गलत है ना… विनोद कोई काम नहीं करता,, दोस्तों में ही रहता है,, घूमना फिरना,, रात में लेट आना… ऐसे में उसकी शादी कराना क्या ठीक होगा..??
देखो सपना ,, तुम पड़ोसी हो तो पड़ोसी बन के रहो…. मेरे बेटे में खामखां की कोई कमी ना निकालो,, अरे लड़कों के तो शौक होते हैं घूमना फिरना, दोस्ती यारी करना.. शादी के बाद सब के नाक में नकेल पड़ जाती है। तुम जब मेरी बहू को देखोगी ना तो देखती रह जाओगी,,, इतनी खूबसूरत है ना कि विनोद तो उस पर लट्टू हो गया है।
चाची जी सपना को मिठाई देकर दूसरे घर चली गईं लेकिन सपना वहीं खड़ी खड़ी सोचती रही कि जो लड़का सुबह से लेकर रात तक घर से बाहर रहता है,, खाना पीना क्या करता है किसी को नहीं पता.. चाची जी को बहला-फुसलाकर पैसे लेता रहता है,, एक तरह से कहा जाए सिर्फ आवारा है… ऐसे में इतने अच्छे परिवार की लड़की मिल गई,, क्या लड़की के परिवार वालों ने कोई जांच पड़ताल नहीं की है..!!
कुछ ही पलों में अपने सारे खयालों को झटक सपना अपने घर के कामों में व्यस्त हो गई।
चाची जी से बातचीत करने पर मालूम हुआ कि यह शादी उनकी एक रिश्तेदार जो लड़की की बुआ लगती हैं उन्होंने ही अपने भरोसे पर तय कराई है। कुछ ही दिनों में चट मंगनी और पट ब्याह हो गया।
चाची जी के कहे अनुसार उनकी बहू वास्तव में चांद का टुकड़ा थी… इतनी शांत इतनी प्यारी सी लड़की देख कर सपना का दिल भर आया और ईश्वर से बस एक ही प्रार्थना निकली कि हे ईश्वर,, इसे खुश रखना…
शादी के कुछ महीनों तक सपना ने विनोद में वास्तव में सुधार देखा,, विनोद ने अपने ससुर जी की मदद से एक मेगा स्टोर भी खोल लिया… सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था,, नई बहू के पैर भारी हुए और उसने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया।
चाची जी कुछ नाखुश थीं कि पहला बच्चा तो बेटा होना चाहिए लेकिन बिटिया के शुभ कदमों ने मन से नकारात्मक विचारों को निकाल बाहर किया और सारा परिवार हंसते मुस्कुराते जीने लगा।
कुछ ही महीने की हुई थी बिटिया कि 1 दिन चाची के घर से लड़ाई झगड़े की आवाजें आईं।
लेकिन यह आवाजें अब रोज की ही होने लगीं… एक दिन चाची जी से हिम्मत करके पूछ ही लिया..
क्या बताएं बेटा.. इन आजकल की लड़कियों के नखरे ही खत्म नहीं होते.. महारानी जी को घर में कामवाली बाई चाहिए… उसकी लड़की को मैं संभाल लेती हूं फिर भी उसे खाना बनाने में तकलीफ है।
चाचीजी,, अभी वह नई नई मां बनी है इसलिए थोड़ी मदद चाहती होगी.. झाड़ू पोछा बर्तन के लिए रख लीजिए एक बाई उसका काम आसान हो जाएगा… पहले तो आपके घर पर होती थी आपने हटा क्यों दी..??
अरे जब बहू आ गई तो बाई का क्या काम..?? मुझ बढ़िया से घर के काम संभलते नहीं थे इसलिए लगाई थी..!!
चाचीजी का जवाब सपना को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर भी उन्हें समझाने के लिए…
चाचीजी,, अब तो विनोद भी अच्छा काम आता है फिर बाई लगाने में क्या दिक्कत है..??
अरे कहां बेटा… उसका स्टोर तो बंद होने की हालत में है।
सपना को झटका सा लगा… वो खुद एक दो बार विनोद के स्टोर पर जाकर आई है बहुत अच्छा चलता था.. फिर चाची ऐसा क्यों कह रही हैं??
चाचीजी,, अगर कोई और परेशानी हो तो मुझसे कहो शायद मैं कुछ मदद कर पाऊं..??
नहीं नहीं बेटा सब ठीक है… कहकर चाचीजी वहां से चली गईं,, शायद वह बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थीं।
सपना का दिमाग वहीं अटक गया.. शाम को जब सपना के पति दुकान से घर वापस आए तो सपना ने विनोद का जिक्र छेड़ा। विनोद और उसके स्टोर के बारे में जो मालूम हुआ उसको सुनकर सपना के होश उड़ गए और लड़ाई झगड़े का सारा माजरा समझ आ गया।
असल में विनोद कभी सुधरा ही नहीं था… कुछ दिन वह स्टोर पर बैठा,, उसके बाद नौकरों के भरोसे छोड़ कर वही अपनी दोस्ती यारी में लग गया। क्योंकि स्टोर का मालिक बन गया था,, अमीर लड़की से शादी हुई थी तो दोस्तों के बीच रुपए पैसे, खिलाने पिलाने का दिखावा भी जरूरी था… बस स्टोर बहुत ज्यादा घाटे में चल रहा है और उड़ती उड़ती खबर यह भी है विनोद के ससुर जी ने उसे बंद करने की हिदायत भी दे दी है।
सपना एक दिन चाची के घर पर ना होने पर उनकी बहू से जाकर मिली तो मालूम हुआ कि विनोद शराब पीकर उस पर हाथ उठाता है और कई बार बेटी को गोद में लिए लिए बाहर चला गया और कहीं भूल कर वापस आ गया।
कभी कोई दुकान वाला, कभी कोई पड़ोसी उसकी बेटी को वापस घर पहुंचा कर जाता है..!!
जब सपना ने पूछा कि “तुम अपने मम्मी पापा के पास वापस क्यों नहीं चली जाती हो..??”
बहू का जवाब था.. “भाभी मेरी बहन की शादी की बात चल रही है ऐसे में अगर मैं ससुराल छोड़कर मायके में जाकर बैठ जाऊंगी तो मेरे साथ साथ मेरी बहन पर भी लांछन लगेंगे और उसकी जिंदगी खराब हो जाएगी। जब शादी के पहले विनोद फोन पर बात करता था तभी मुझे उसका लाइफस्टाइल अच्छा नहीं लगता था। मैंने पापा से कई बार यह बात कही लेकिन पापा ने कहा कि एक शरीफ खानदान का अच्छा लड़का है और थोड़े बहुत ऐब तो जवानी में सभी लड़कों में होते हैं। आज पापा बहुत पछता रहे हैं,, बहुत दुखी हैं लेकिन अब क्या कर सकते हैं बहन की शादी होने के बाद भी अगर कुछ ठीक नहीं हुआ फिर सोचूंगी क्या करना है..?? अभी तो अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा कुछ नहीं कर सकती..!!”
सपना अपने घर वापस जाते हुए यह सोच रही थी कि आखिर धोखा किसने किसको दिया..?? लड़के वालों ने यह जानते समझते हुए कि उनका लड़का जिम्मेदारी उठाने के काबिल नहीं है एक लड़की की जिंदगी खराब कर दी। लड़की वालों ने बस खानदान परिवार का नाम सुनकर लड़के की जांच पड़ताल ठीक से नहीं की और दहेज जैसी कुप्रथा को बढ़ावा दिया।
यहां तो कुछ सुधरना था नहीं और लड़की के माता-पिता को भी अपनी गलती का एहसास हो चुका था,, जल्दी ही वह अपनी बेटी और नातिन को वहां से ले गए। सपना अभी भी टच में है और उसको अपने पैरों पर खड़ा होकर अपनी नई जिंदगी शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। दूसरी तरफ दोनों तरफ के खानदान वाले इसी प्रयास में कार्यरत हैं कि आपस में बैठकर समझा-बुझाकर लड़का और लड़की को साथ ला सकें।
क्या यह सही होगा..?? अगर आज फिर से वह लड़की वापस ससुराल आ जाती है तो क्या गारंटी है कि उसका जीवन और पति सुधर जाएंगे..??
दोस्तों,, आज के समय में बहुत आम बात हो गई है यह कहना कि बहू ससुराल वालों के साथ रहना नहीं चाहती और बहुत से परिवार दहेज देकर या दामाद को बिजनेस में मदद करके अपनी बेटी के लिए खुशियां खरीदना चाहते हैं जोकि पूरी तरह से गलत है। कहते हैं आजकल के रिश्ते बड़े कच्चे हैं बड़ी जल्दी टूट जाते हैं.. रिश्तों के पक्के होने के लिए हमेशा से औरतें ही खुद की कुर्बानी देती आईं हैं। आज की पीढ़ी अपनी कुर्बानी देना नहीं चाहती एक रिश्ते में घुट घुट कर जीने से अच्छा वह अलग होकर स्वतंत्र जीना चाहती है।
आपकी राय क्या है पहले की तरह पक्के रिश्ते होने चाहिए या आज की तरह अपने बारे में सोचने वाली स्त्रियां बेहतर हैं।
आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी..
स्वरचित एवं मौलिक रचना
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
नीतिका गुप्ता