“पक्की सहेली” – नीरजा नामदेव

गाथा ने 6वी जब नए स्कूल में प्रवेश लिया तो यहां उसे एक नई सहेली मिली जिसका नाम था कथा। दोनों एक दूसरे का नाम सुनकर मुस्कुराने लगी क्योंकि दोनों के नाम का अर्थ एक ही था। धीरे-धीरे दोनों पक्की सहेलियां बन गई। कथा ने एक दिन गाथा से कहा” कल तुम घर में पूछ कर आना कि क्या तुम मेरे घर जा सकती हो। हमारे यहां सावन की तीज मनाई जाती है। कल सब मेहंदी लगाएंगे तो मैं तुम्हें भी अपने घर लेकर जाऊंगी।” गाथा ने अपनी मम्मी से पूछा तो उन्होंने कहा” हां चली जाना”। दूसरे दिन स्कूल के बाद गाथा कथा के साथ उसके घर गई। उसके घर में खूब भीड़भाड़ थी। उसकी दीदियां ससुराल से आई हुई थीं। उसकी भाभी भी थी जो किसी कारण अपने मायके नहीं जा पाई थी। सब मिलजुल कर मेहंदी लगा रही थीं। उन्होंने गाथा को देखा तो बहुत ही खुश हो गई और बहुत ही सुंदर मेहंदी उसके हाथों में  लगा दी ।मेहंदी सूखने के बाद कथा के भैया गाथा को घर पहुंचाने आए।सबने उसे दूसरे दिन भी आने के लिए कहा था। उसने आकर मम्मी को सारी बातें बताई।  मम्मी ने कहा “ठीक है कल स्कूल से आकर अच्छे से तैयार हो जाना  फिर पापा तुम तुम्हें वहां पहुंचा देंगे ।”गाथा खुश हो गयी।

दूसरे दिन स्कूल के बाद गाथा घर आई। उसने खाना खाया। फिर मम्मी ने उसे बहुत ही सुंदर लहंगा चुन्नी पहना दी ।मोतियों की माला भी पहनाई। हाथ में सुंदर-सुंदर चूड़ियां पहने गाथा प्यारी लग रही थी।उसके पापा भी लंच टाइम में घर आए तो उन्होंने गाथा को कथा के यहां पहुंचा दिया।

गाथा के वहां देखा की कथा की सभी दीदियां और भाभी बहुत सुंदर दिख रही थी।वे सब एक से एक लहंगा चुन्नी पहने हुए सोलह सिंगार किए हुए पूजा कर रही थी।

    पूजा करने के बाद पास ही वन विभाग का बहुत ही बड़ा अहाता था जिसमें बड़े-बड़े पेड़ लगे हुए थे वहां सभी गए। वहां 8-10 पेड़ों में झूले बंधे हुए थे ।बहुत सारी अन्य महिलाएं भी वहां आई थी ।सब एक दूसरे से मिल के तीज की बधाई



दे रहे थे। गाथा पहली बार सावन की तीज मनाते देख रही थी क्योंकि उनके यहां यह नहीं मनाया जाता था ।कथा उसे सभी चीजों के बारे में विस्तार से बता रही थी। वहां मधुर स्वर में सब तीज का गीत गा रही थीं

“सावन का महीना, झुलावे चित चोर, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर,

मनवा घबराये मोरा बहे पूरवैया, झूला डाला है नीचे कदम्ब की छैयां…

कारी अंधियारी घटा है घनघोर, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर,

सखियां करे क्या जाने हमको इशारा, मन्द मन्द बहे जल यमुना की धारा…”

उसने देखा कि एक एक करके सभी झूला झूलती थी। झूले को बहुत तेज कर दिया जाता था और झूला झूलने वाली को कहती थी” अपने बींद(पति) का नाम बताओ।” जब तक अपने पति का नाम नहीं बताती थी तब तक उन्हें झूले से नहीं उतारते थे। यह रस्म भी बहुत अच्छी थी। कोई कविता के रूप में ,कोई छन्द के रूप में  लजाते हुए अपने अपने पति का नाम बता रही थीं। एक झूला थोड़ा नीचे लगाया गया था जिसमें लड़कियां झूला झूल रही थी। गाथा झूले में बैठ गई बैठ गई और कथा उसके पीछे  खड़ी हो गई और दोनों लहरा लहरा के झूला झूलने लगी । पेड़ की डालियां उनके पैरों से टकराती तो उन्हें बड़ा मजा आता था। गाथा को झूला झूलना बहुत पसंद था इसलिए उसे तो झूले से उतरने का मन ही नहीं कर रहा था। लेकिन बहुत सारी लड़कियां प्रतीक्षा कर रही थी ।इसलिए गाथा और कथा झूले से उतर गई ।फिर वह दूसरों को झूला झूलाने लगी।  झूला झूलते गात गाते शाम हो गई। सब  कथा के घर आए वहां तरह-तरह के व्यंजन बनाए गए थे। दोनों सहेलियों ने व्यंजनों का खूब मजा लिया गाथा को घेवर बहुत पसंद आया। थोड़ी देर बाद गाथा के पापा उसे लेने आ गए।

गाथा को आज का दिन  बहुत ही अच्छा लगा। उसने कथा को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया कि उसने इतने अच्छे त्यौहार में उसे शामिल किया। गाथा और कथा हर साल इसी तरह से तीज मनाते थे

उनकी शादी के बाद भी वे पुराने दिनों को याद करतीं साथ ही हर साल  एक साथ मनाएं तीज को याद करती थी।

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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