पैसों की खनक (भाग 1)- डॉ.पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : दिव्या के मायके से बार बार फोन आ रहे थे। वैसे तो उसकी शादी के बाद जबसे पापा के रिटायरमेंट हुआ है और भाईयों की अपनी गृहस्थी हुई है तबसे उसको बुलाने के लिए कभी इतने फोन नहीं आए फिर ये पिछले दो दिन से क्यों आ रहे हैं वो समझ नहीं पा रही थी। उसे आज बहुत कुछ याद आ रहा था।

उसे अपने मायके से जुड़े वो पल भी याद आ गए जिनको शायद कोई भी लड़की याद नहीं करना चाहेगी पर कहते हैं कि कुछ यादें हमेशा के लिए अपना घर बना लेती हैं। ऐसा ही कुछ उसके साथ था। वो अपने अतीत के उस दौर में पहुंच गई जब वो अपनी सखी सहेलियों से सुनती रहती थी कि जब उनके बच्चों की छुट्टियां पड़ेंगी तो वो इतने दिन के लिए मायके जायेंगी। पर उसके लिए तो ये सब बातें बेमानी हो गई थी।

वो अक्सर सुनती थी कि लड़की का मायका जब तक माता-पिता हैं तब तक ज़िंदा रहता है बाद में बस औपचारिकता रह जाती है पर उसके साथ तो माता-पिता के सामने ही ये सब हो रहा था। उसे याद आया कि कैसे उसने और उसके पति ने जमापूंजी लगाकर घर खरीदा था। दोनों ने अपनी मेहनत की कमाई से घर लिया था जैसा कि आजकल होता है लोग किस्तों पर घर लेते हैं ऐसे ही उन्होंने भी किया था। क़िस्त पर सब मिल तो जाता है पर हर महीने वो कई बार मुश्किल भी पड़ता है क्योंकि ब्याज भी देना पड़ता है।

 यही सोचकर दिव्या और उसके पति को लगा कि एक बार हम दोनों अपने-अपने घर बात कर लेते हैं अगर कुछ पैसा उधार मिल जाएगा तो आसानी हो जायेगी क्योंकि घर में एक तो ब्याज नहीं देना पड़ेगा और लोन की किस्त भी कम समय की बनेंगी बाकी अपनी जमा पूंजी तो है। बस यही सोचकर दिव्या ने अपने पापा से बात की क्योंकि कुछ राशि ससुराल से मिल गई थी तो अब मायके से भी ज्यादा राशि की आवश्यकता नहीं थी।

दिव्या को पूरा यकीन था कि पापा उसकी मदद अवश्य करेंगे क्योंकि वो सिर्फ कुछ समय के उधार पर पैसा ले रही है। दिव्या के पापा ने उसकी बात सुनने के बाद एकदम से ये कहा कि बेटा मैंने तुम्हारी शादी तो कर ही दी है पर मैं अब कोई मदद नहीं कर पाऊंगा। मैं अगर तुम्हारी मदद करूंगा तो अपने बेटों मतलब तुम्हारे भाइयों को क्या कहूंगा? दिव्या पापा के शब्दों से हैरान थी क्योंकि वो तो सिर्फ थोड़े समय के लिए पैसे उधार चाहती थी।

वैसे भी अगर उसके पापा के पास पैसे नहीं होते या पापा ये ही कह देते कि उनके पास अभी कोई धनराशि उपलब्ध नहीं है तो शायद उसको दुख ना होता पर पापा ने उसके और भाइयों के बीच में उसको पराया मान लिया था। उसने तो हमेशा यही सुना था कि माता-पिता के लिए सभी बच्चे बराबर होते हैं पर उस दिन होने वाली इस घटना ने उसके दिल को पूरी तरह झकझोर दिया था।

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पैसों की खनक (भाग 2)

पैसों की खनक (भाग 1)- डॉ.पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

डॉ.पारुल अग्रवाल,

नोएडा

#वाक्य आधारित कहानी प्रतियोगिता

#ना मुझे आपके पैसे चाहिए ना संपत्ति

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