रमेश और दीपक बचपन से गहरे दोस्त थे। दोनों पढाई करके कुछ बन न पाए। तो उन्होंने सोचा क्यों न साथ काम शुरू किया जाए। उन्होंने बहुत से बिजनेस के बारे मोबाइल में, कभी आपसी व्यवहार के लोगों से संपर्क के बाद सोचा क्यों न कपड़े का व्यापार शुरू किया जाए। इसमें डबल कमाई होती है।
रमेश ने सोचा कपड़े के व्यापार में काफी मुनाफा है। दोनों ने आपसी सहमति के बाद निश्चय किया कि मुंबई से कपड़ा लाएगें। दोनों ने अपना बजट देखा तो पता चला कि कम से कम पांच से दस लाख का खर्च है। रमेश आर्थिक रूप संपन्न परिवार से न था। उसके यहां खेती किसानी होती है उसके पिता ने उसके लिए वही जमीन छोड़ी थी वह उसने बेच दी।
उसे नये व्यापार में लगाना था , जबकि दीपक एक साधारण सी किराए की दुकान करता था ,उससे न गुजारा हो पाता था न ही किराए चुका पाता था।
उससे उसे चिढ़ सी मच गई थी। इस कारण वह उसके बदले में कुछ और करना चाहता था। इस तरह दीपक ने बताया यार दुकान का माल थोक में बेचने के बाद ज्यादा से ज्यादा तीस चालीस हजार का ही बिकेगा। उसने किराने की दुकान पर ताला लगा दिया।
तब दोनों तय करते हैं , देख दीपक मेरे पास जमीन है , तो मैं बेच दूंगा और तेरे पास नकद कैश कहीं से आने की उम्मीद नहीं है तो अपने नाम से बैंक से लोन लेगा। इस तरह रमेश की जमीन बिक जाती है, और दीपक बैंक से लोन लेता है। दोनों पार्टनरशिप का एग्रीमेंट भी करते हैं। जिसमें लिखा होता है कि बिजनेस का लाभ दोनों बराबर बराबर लेंगे।
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इस तरह दोनों इस एग्रीमेंट से संतुष्ट थे। अब माल लेने मुंबई जाना था। दोनों ने बराबर पैसा लगाकर मशीन लगवाई। जींस बनवाने की फैक्ट्री के लिए कपड़ा लाया गया ।फिर जींस अलग -अलग साइज में बनने के बाद कलर वाशिंग में डाला गया, उसके स्टीम प्रेस के बाद पैकिंग होने लगी। इसके लिए दोनों को बाजार में सैलिंग के लिए जद्दोजहद भी करनी पड़ी। जैसे जैसे पैसा लग रहा था ,उसमें से उतनी इनकम नहीं हो रही थी। दोनों में आपसी मनमुटाव बढ़ने लगा।
फिर धीरे -धीरे अविश्वास भी बढ़ रहा था। अब दीपक को लोन भी चुकाना पड़ रहा था। तो वो कहता मैं बाजार से लेन देन का काम देखूंगा और रमेश तुम फैक्ट्री संभालो।
धीरे धीरे मनमुटाव की स्थिति इतनी बढ़ गई। कि दोनों ही मेहनत नहीं करना चाहते। फैक्ट्री में रहने वाला कपड़े की गोदाम से आधा कपड़ा दूसरे व्यापारी को बेचने लगा। तब दीपक को लगा कि कपडे़ का रोल बहुत जल्दी ही खत्म हो रहा है, इसी कारण दीपक जींस की गिनती करवाता है।तब उसे कारीगर द्वारा पता चलता है कि रमेश भैया तो दूसरे व्यापारी इसी रोल से कपड़ा काटकर दे रहे हैं।और दीपक तम तमा जाता है।
दोनों में कहा सुनी होती है। रमेश कहता तुम भी तो पूरा खुला हिसाब नही रखते। पूरा -पूरा हिसाब सही रखो तो मैं जानूं। तब दीपक कहता – कोई पैसा चुकाए तब तो गल्ले भरूँ। और रजिस्टर में एंट्री करू। इतना ही है तो तुम बाजार का लेन देन करके देख लो। चार छह माह में घाटा लगने लगा। दोनों को एहसास था।
पर दीपक को लोन चुकाना पड़ रहा था। और खेती की जमीन बिकने के कारण रमेश को भी अपनी रकम खडी़ करने की जल्दी थी।
अब क्या….दोनों ने जो विपत्ति से बचने के लिए पार्टनर- शिप रिश्ता बनाया था वह खत्म हो रहा था। अब उनके बीच दोस्ती का रिश्ता भी खत्म होने की कगार पर खड़ा हो रहा था। दोनों के बीच पैसों का मोह इतना बढ़ गया।एग्रीमेंट के आधार केस करने की धमकी देने लगे।
दीपक को लोन चुकाने का पैसा न मिल पाने के कारण झुंझलाहट बढ़ रही थी,इस कारण उसने रमेश पर केस फाइल किया। इस तरह कोर्ट में मामला पहुँच गया।
दीपक और रमेश ने अपनी- अपनी दलीलें पेश की। बहुत से व्यापारियों की गवाही हुई और रजिस्टर के माल की खरीदी बहीखाते के आधार पर फैसला होना था।
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इस तरह निर्णय यह हुआ कि फैक्ट्री बंद की जाए जो फैक्ट्री का माल का पैसा है दीपक को दिया जाए क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं है, हर माह लोन चुका सके। और मशीन को बेचने का पैसा और उधारी का पैसा रमेश वसूल करे।
इस तरह दोनों की खींच तान की वजह से फैक्ट्री बंद हुई। दोनों की दोस्ती हमेशा -हमेशा के लिए टूट गई। जो व्यापारी उनसे मिलते तो यही कहते तुम लोगों के आपसी झगड़े के कारण तीसरे ने फायदा उठाया। दूसरे को सस्ता माल बेचना पड़ा वो अलग। परिवार और रिश्तेदार भी यही कहते कि ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे। तुम लोग की तो बचपन की दोस्ती तक टूट गई। तुम लोगो के पैसों के मोह में आपसी दोस्ती तक तोड़ दी।
इस तरह रमेश ने अपना अलग जींस को रंगने का काम चालू रखा।
और दीपक जींस के कपड़े को बेचने की दुकान खोली।
अतः दोनों के आपसी अविश्वास के कारण और अधिक पैसों के मोह के कारण आपसी रिश्ते बिगाड़ लिए। जो विपत्ति के समय दूर करने एक हुए वही संपत्ति के कारण टूटकर बिखर गये।
स्वरचित रचना
अमिता कुचया
जो रिश्ता विपत्ति के लिए बनाया जाता है वह खुद संपत्ति बाटने के चक्कर में बंट जाता है।