तुमको भी लेना है तो भाई तीन सौ की कोई साड़ी ले सकती हो अंजलि मैं पैसा दे दूंगी। भई हम तो इतनी सस्ती साड़ी पहनते नहीं है तुम तो ऐसी ही साड़ी पहनती हो ।हम तो पांच हजार से नीचे की साड़ी पहनते नहीं है नीलम बोली अपनी देवरानी अंजलि से । नहीं भाभी मुझे नहीं लेना साड़ी अभी मेरे पास बहुत है रहने दीजिए।जैसी तुम्हारी मर्जी नीलम बोली वो तो हम ले रहे थे सोचा तुम्हारा भी मन कर रहा होगा लेने का इसलिए कह दिया आगे तुम्हारी मर्जी।
नीलम अपने पैसे के गुरूर में हर वक्त अंजलि को बेइज्जत करती रहती थी।
नरेन्द्र और महेन्द्र दो भाई थे । नरेन्द्र का ट्रकों का बिजनेस चलता था । जिससे उनके पास काफी पैसा था।और महेन्द्र छोटा भाई किसी फैक्ट्री में काम करता था । दोनों पहले इकट्ठा रहते थे और मां भी थी साथ में। कुछ समय पहले मां का देहांत हो गया तो दोनों भाई अलग-अलग रहने लगे। मां थी तब बड़े बेटे नरेंद्र से कहती थी कि अपने छोटे भाई को भी अपने साथ काम पर लगा लो लेकिन बड़ी बहू नीलम नहीं चाहती थी कि देवर को अपने साथ काम पर लगाया जाए ।
कई बार मां के कहने पर बड़े भाई बोले कि साथ काम करना है तो तनख्वाह पर करना होगा हिस्सेदारी में नहीं । दरअसल घर में नीलम की ही चलती थी बड़े बेटे बड़े बेटे नरेंद्र की कुछ चलती न थी घर में ।वो बोलती ये काम सिर्फ मेरा और मेरे पति का है और कोई हिस्से दारी करें ये मैं होने न दूंगी। महेंद्र ने कहा जब तनख्वाह पर ही काम करना है तो बाहर ही किया जाए घर में ही क्यों ।आपस में घर में मन-मुटाव होने से अच्छा है बाहर कहीं काम करो जिससे रिश्ते बने रहे ।क्या फायदा आपस में भाई भाभी से रिश्ते खराब हो । महेंद्र अपने भाभी के स्वभाव को अच्छी तरह जानता था ।
धीरे धीरे नरेंद्र का काम काफी फैल गया था और वो अच्छा पैसा कमाने लगा था जिससे नरेंद्र की पत्नी नीलम का दिमाग और खराब हो गया। अलग-अलग काम होने से कम से कम रिश्ते बने रहे और बोलचाल भी दोनों भाइयों और देवरानी जेठानी में था और एक दूसरे के घर भी आना जाना था।
कभी कभी नीलम और अंजलि बाजार वगैरह भी साथ साथ चली जाती थी। लेकिन नीलम का पैसे का गुरूर बढ़ता जा रहा था।आज रिश्ते दारी में कहीं शादी थी तो अंजलि ने पूछा फोन पर कि भाभी वहां शादी है उनके घर लेडीज संगीत है आप चलेगी क्या तो नीलम बोली नहीं भई तुम्हारे भईया देर से आएंगे तो मैं कैसे जाऊंगी तो आप हमारे साथ चलिए अंजलि बोली।अरे नहीं तुम तो आटो रिक्शा से जाओगी और मैं बिना कार के कहीं जाती नहीं हूं इसलिए अंजलि तुम चली जाओ मैं तो नहीं जाऊंगी।हर जगह अपने कार की धौंस जमाती रहती
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नीलम अरे भई हम तो सब जगह कार से जाते हैं कार के बिना तो मैं कहीं पैर भी नहीं रखती ।और यदि कहीं अंजलि को अपने साथ कार में ले जाती तो सबके सामने बोलती कि अंजलि तो मेरे साथ कार में आई है उसके पास तो कार है नहीं बेचारी आटो रिक्शा से धक्के खाती रहती है तो मैं ही ले आई अपने साथ। अंजलि को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी जेठानी।
आज अंजलि की शादी की सालगिरह थी तो उसने घर पर सत्यनारायण जी की कथा रखी थी घर पर सबको बुलाया जेठानी को भी बुलाया। पूजा के दौरान लाइट चली गई तो जेठानी थी सबके बीच में ही कहने लगी भाई पता नहीं कैसे अंजलि बिना लाइट के रह लेती है मैं तो एक मिनट भी नहीं रहती लाइट के बिना जनरेटर है न हमारे यहां , क्योंकि एसी बिना मुझे नींद भी नहीं आती ।एक बात के साथ उन्होंने दोनों बातें बता दी कि जनरेटर भी है और एसी में ही सोते हैं ।
फिर एक दिन नीलम अंजलि के घर आईं तो अंजलि का हाथ बार बार देख रही थी तो अंजलि ने पूछा लिया क्या हो गया भाभी आप मेरा भाई इतने ध्यान से क्यों देख रही है । अरे देख रही थी कि तुम कोई सोने की चूड़ी नहीं पहने हैं तुम कैसे सिर्फ कांच की चूड़ियां पहनकर रह लेती हो भी मुझे तो नहीं अच्छा लगता बिना सोने की चूड़ी के।और ये देखो दो अंगुठी कैसी लग रही है मैंने कल ही खरीदा है।अच्छी है भाभी अंजलि मन मसोसकर रह जाती थी ।अब रोज रोज जवाब तलब करके रिश्ते तो नहीं खराब किए जा सकते हो अंजलि चुप रह जाती।
अंजलि आज पति महेंद्र से कह रही थी नीलम भाभी को बड़ा पैसे का गुरूर हो गया है ।हर समय अपने पैसे की धमक दिखाती रहती है और मुझे अपमानित भी करती रहती है ।तो तुम बोल दिया करों न कि भाभी तुम्हारे पास है तो ठीक है पहनो ढेर सारा सोना । मेरे पास नहीं है तो चोरी करके थोडी ही लाऊंगी ,अरे यार अब क्या कहूं मैं।
ऐसी लग्जरी लाइफ जीने से भाभी का शरीर भारी होता जा रहा था चलने फिरने में असर्मथ हो रही थी दिनभर नौकरों चाकरों से घिरी रहती थी ।एक दिन बैंक के लाकर से खूब सारा जेवर निकलवा कर ला रही थी फिर रास्ते में कहीं पर्स ही गिरा दिया ।सारा जेवर चला गया । फिर बड़े बेटे की शादी आज गई तो उनसे कुछ काम तो हो नहीं रहा था। कितने ही नौकर चाकर लगा लो लेकिन बहुत कुछ आपको भी देखना पड़ता है। फिर अंजलि ने आगे बढ़कर सबकुछ संभाला। इतना पैसा था तो ये न हुआ कि अंजलि को भी एक अच्छी सी साड़ी दे देती
या अपने साथ जाकर दिलवा देती , नहीं डेढ़ सौ रूपए की साड़ी दे दी ।नीलम भाभी के ही पड़ोस में एक व्यक्ति सस्ती साड़ियां लाकर घर घर में जाकर बेचता था उसी से ले ली और वही अंजलि को दे दी कि तुम तो ऐसी ही पहनती हो । पहनती क्या हो कोई जानबूझ कर तो ऐसा नहीं करता अच्छी साड़ी हो तो क्यों नहीं पहनेगा कुछ मजबूरियां होती है इंसान की । अंजलि को बहुत दुख हुआ मेरी कीमत ऐसी आंकी भाभी ने। महेंद्र जी तो बोले वापस कर दो साड़ी भाभी को लेकिन अंजलि ने कहा ठीक है रिश्ते खराब करने से क्या फायदा कोई इसी एक साड़ी से तो मेरा पूरा नहीं होगा न।
इसी तरह पैसों के गुरूर में अपने शरीर का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा और मोटापा बढ़ता गया हाई वीपी और हाई शूगर ने शरीर पर कब्जा कर लिया डाक्टरों ने कुछ योगासन और पैदल चलने को कहा लेकिन पैदल चलने की आदत नहीं थी ,कार से नीचे पैर नहीं रखना । अंजलि बोलती कि भाभी सामने घर के पार्क है थोड़ी देर टहला करो वहां तो, बोलती भी
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मेरी तो पैदल चलने की आदत है नहीं मैं तो कार से ही चलती हूं।और फिर एक दिन वीपी और हाई शुगर ने झटका मारा और ब्रेन हैमरेज हो गया ।आधे शरीर में लकवा मार गया। बेहोश पड़ी है पंद्रह दिन बाद थोड़ा थोड़ा होश आया तो देखा अपने आपको अस्पताल के बिस्तर पर। अंजलि को देखकर आंसू निकल पड़े। फिर महीने भर बाद घर लाया गया दो दो सहायिका रखी गई देखभाल को तन पर एक भी जेवर न था और एक मैक्सी में डली थी । पांच पांच दस दस हजार की साड़ियां मुंह चिढ़ा रही थी।
अब कोई उनसे पूछे कि बिना जेवर के कैसी लग रही है ।जब थोड़ा बोलने की स्थिति में हुई तो अंजलि से कहने लगी अंजलि साड़ियां बहुत रखी है तुम्हारे पास तो इतनी महंगी साड़ियां होगी नहीं उनमें से ले जाओ पता नहीं अब मैं पहन पाऊंगी कि नहीं। अंजलि सोचने लगी अभी भी इनका गुरूर कम नहीं हुआ अभी भी अपमानित कर रही है कि तुम तो खरीद नहीं सकती मंहगी साड़ियां। अंजलि ने कहा नहीं भाभी रखी रहने दो साड़ियां आप ठीक हो जाओगी तब पहनना।मैं इतनी महंगी साडी नहीं पहनती।
दोस्तों जब इंसान गुरूर में होता है तो उसका गुरूर कभी नहीं जाता चाहे वो जिस भी स्थिति में पहुंच जाए। गुरूर इंसान को कभी का नहीं छोड़ता ।और फिर इसी बीमारी के चलते नीलम भाभी आठ महीने बाद दुनिया से चली गई ।सारा जेवर और महंगी साड़ियां छोड़कर ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
17 फरवरी