” भाभी…आप इन लोगों को इतना सिर पर मत चढ़ाइये..कहीं ऐसा न हो कि जब आपको ज़रूरत पड़े तब ये मना कर दे और आप#टका-सा मुँह लेकर रह जाएँ…।” ननद नंदा की बात सुनकर निधि कुछ नहीं बोली, बस मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर अपना हाथ रख दी।
निधि का पति सुमेश सरकारी नौकरी करता था।पति की सीमित आय में भी निधि अपने घर और परिवार को बड़े ही सुचारु रूप से चलाती थी।साथ ही,वो ज़रूरतमंदों को कपड़े-खाना और पैसे देकर मदद भी करती थी जो उसकी ननद नंदा को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।नंदा जब भी उसके पास आती और उसे कामवाली के बच्चों को कुछ देते देखती
तो कहती कि आप तो मेरे भाई का पैसा लुटा रहीं हैं।तब उसका ननदोई श्रीधर कहते,” नंदा..गरीबों की मदद करना बर्बादी नहीं बल्कि पैसे का सदुपयोग करना होता है।उनकी दुआओं से ही तो भईया-भाभी का परिवार खुश रहता है और..।”
” हाँ-हाँ..आप तो भाभी की ही साइड लेंगे..।” कहते हुए वो तुनक जाती और निधि उसे मना लेती।आज भी निधि जब कामवाली को पैसे देकर बोली कि बेटे के फ़ीस भर देना और किताबें खरीद लेना, तब फिर से नंदा ने उसे ताना मारा और वो हमेशा की तरह मुस्कुरा दी।
एक दिन ऑफ़िस से आते हुए एक बच्चे को बचाने में सुमेश की मोटरसाइकिल अनियंत्रित हो गई और वो गिर पड़ा जिससे उसके दाहिने पैर में फ़्रैक्चर हो गया।दो-तीन दिनों तक निधि सुमेश के साथ अस्पताल में ही रही।
तीन दिनों बाद जब निधि सुमेश को लेकर घर आई, तब नंदा और श्रीधर आयें।आते ही नंदा बोलने लगी,” भाभी..मैं तो उसी वक्त आ जाती लेकिन एक काम में फँस गई।आप अकेले सब कैसे मैनेज़ की होंगी….अस्पताल-घर..भईया की दवा-बच्चों का खाना..।” तभी निधि की दस वर्षीय बेटी ईशा बोली,” बुआ…चंदा आंटी(कामवाली) थी ना हमारे साथ..।वो ही खाना बनाती..हमें खिलाती और स्कूल भेजतीं।चंदा आंटी के अंकल(चंदा का पति) पापा की मेडिसिन लाते..हमारे लिये चाॅकलेट लाते।”
” हाँ बुआ…देखिये..मम्मी तो पापा के पास बैठी हैं और आंटी आपके लिये चाय बना रहीं हैं।” निधि का बेटा मनु किचन की ओर इशारा करते हुए नंदा को बोला तो वो चकित रह गई।तब श्रीधर बोले,” देखा नंदा..तुम हमेशा भाभी को कहती थी कि गरीब लोग मतलबी होते हैं लेकिन आज ज़रूरत पड़ने पर वो लोग ही भाभी के साथ खड़े रहें..उनकी तकलीफ़ को अपना दर्द समझा।तुम ने तो हाथ झाड़ लिया था..।” कहते हुए उन्होंने पत्नी की तरफ़ देखा तो नंदा #टका-सा मुँह लेकर रह गई।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# टका-सा मुँह लेकर रह जाना