“अरे मनोज भैया, आप पहले कहते तो कमल के साथ-साथ आपको भी सेहरा बांध, आपकी दुल्हनिया भी साथ ही ले आते।” रिश्ते की भाभियां कमल और उसकी नई नवेली दुल्हन सपना को कंगना खिलाते हुए अपने देवर मनोज से मजाक करती हैं, जो शादी की सारी रस्मों के दौरान अपने चचेरे भाई कमल के साथ चिपका हुआ है।
“अरी बहुओं, तुम मजाक ही करती रहोगी या मेरे मनोज के लिए बढ़िया सा रिश्ता भी बताओगी!” मनोज और दिनेश की मां और कमल की ताई विमला जी बोलीं।
“मनोज भैया, कैसी लड़की चाहिए आपको?”
“कहीं पहले से ही टांका फिट कर रखा है क्या?”
बहुओं की ऐसी बातें सुनते ही, पूरी बिरादरी में सबसे वरिष्ठ और सबसे रौबदार विमला जी सबको लगभग डपटते हुए कहती हैं, “ऐसे कैसे टांका फिट हो जाएगा? विवाह केवल हमारी बिरादरी की परंपरा के अनुसार, हमारी तरह धनाढ्य और रईस घराने की कन्या से होगा। मेरे बड़े बेटे दिनेश की पत्नी प्रीति के मायके वाले कितना बढ़िया लेन-देन करते हैं। और अभी मेरी देवरानी की बहू सपना भी उच्च घराने से आई है। तुम सब ने देखा नहीं कि बारात की कितनी बढ़िया खातिरदारी हुई दोनों के विवाह में।”
अपनी मां की बातें सुनकर मनोज के मुंह में शादी के लड्डू फ़ूटने लगते हैं। मेहमानों से भरे घर में, बैठा तो वह अभी भी कमल और सपना के पास है मगर उसका दिल सपना की फुफेरी बहन गौरिका के पास पहुंच जाता है।
जयमाला के समय जब वह स्टेज पर दूल्हे कमल के साथ खड़ा था तो सबकी नजरें वरमाला लेकर आती हुई दुल्हन बनी सपना को निहार रही थीं। लेकिन मनोज की दृष्टि उसके साथ आती गौरिका पर ठहर गई थी। अपने नाम के अनुरूप गौरवर्णी, बेहद सुंदर गौरिका को पहली नजर में ही दिल दे बैठा मनोज।
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सपना की बुआ की बेटी है गौरिका और उसके लिए भी वर खोजा जा रहा है।” इतना तो पता लगा लिया था मनोज ने उन संतोष काकी से, जिन्होंने कमल का रिश्ता करवाया था। आज अपनी मां की बातें सुनकर मनोज गदगद हो गया कि बस रस्में पूरी हो जाएं तो फिर हक से सपना भाभी से बात चलाएगा कि गौरिका से उसकी शादी करवाकर भाभी होने का फर्ज अदा करें।
पगफेरे की रस्म के दौरान गौरिका को दोबारा देखकर तो मनोज की उसे पाने की इच्छा और भी बलवती हो गई। पूरी देर वह अपनी छवि को लेकर सजग रहा ताकि गौरिका पर अच्छा प्रभाव डाल सके।
इधर सपना की मां और गौरिका की मामी ने पगफेरे में आए मेहमानों के आवभगत की काफी जिम्मेदारी अपनी चहेती और गुणवती भांजी गौरिका को दे रखी थी। इसलिए आज गौरिका भी जान गई थी कि दिखने में आकर्षक और बातचीत में निपुण मनोज उसके कमल जीजू के ताऊजी का बेटा है।
कमल जीजू ने तो मनोज का परिचय गौरिका से करवाते हुए कह भी दिया था, “मनोज हम भाईयों में सबसे अधिक होशियार है और हमारे व्यवसाय की डोर भी इसी के हाथ में है। साल साहिबा, आप कहें तो आप दोनों के रिश्ते की बात चलाएं।”
गौरिका ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “आप बहुत मजाकिया हैं, जीजू।” और अपने काम में लग गई। गौरिका जानती थी कि सपने उतने ही देखने चाहिएं जो अपनी पहुंच में हों।
गौरिका ने मन में सोचा, “हमारा परिवार मामा-मामी की तरह रईस नहीं है। सपना की शाही शादी की है मामा-मामी ने। न तो मेरे पापा के पास सपना की तरह का दान-दहेज देने के लिए पैसे हैं और न ही मैं ऐसा चाहती हूं। मैं तो बस इतना चाहती हूं कि मेरे लिए कब से योग्य वर खोज रहे मेरे पापा के जूते और न घिसें। हे ईश्वर! किसी दहेज विरोधी लड़के से मेरे पापा की भेंट कराकर उन्हें चिंतामुक्त कर दो।”
गौरिका गुणों की खान है सिवाय एक चीज के। उसे रसोई के कामकाज में कम ही रुचि है। उसकी दादी अक्सर कहतीं, “तुझे नौकरों-चाकरों वाले घर में ब्याहने की हैसियत नहीं है हमारी। बिटिया जरा खाना बनाना अच्छे से सीख ले।” लेकिन गौरिका प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त रहती है, ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सके।
गौरिका ने घर वालों को किसी तरह मनाकर, पार्ट टाइम नौकरी कर अपनी फीस स्वयं भरकर स्नातक तक पढ़ाई की है। ऐसा करने वाली उनके खानदान की वह पहली लड़की है। घर के बड़े तो कब से उसके लिए दुल्हा खोजने में लगे हैं।
खैर, पगफेरे की रस्म खत्म होते ही मनोज ने सपना भाभी को अपने दिल का हाल बता दिया। विमला ताई की बातें सुन चुकी सपना ने मनोज को अपने बुआ-फूफा की आर्थिक स्थिति और गौरिका की महत्वाकांक्षा के बारे में स्पष्ट रूप से बता दिया। मनोज और कमल तो इस भ्रम में थे कि गौरिका सपना की कजिन है तो वे भी रईस ही होंगे। मनोज तो धड़ाम से जमीन पर गिरा।
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मनोज कहने लगा, “कमल भाई, सपना भाभी, सब मिलकर कुछ करते हैं। कोई तरकीब निकालते हैं। मुझे रूपये-पैसे, दान-दहेज का कोई लालच नहीं है। गौरिका के सामने सब कुछ फीका है। बाकी सब तो मिन्नत करने से मान जाएंगे। पर मां को कैसे समझाएंगे।”
दिनेश, कमल और मनोज ने मिलकर योजना बनाई। उन्होंने दांव-पेंच खेलकर सब बड़ों को मना लिया। सबको गौरिका के घर वालों की आर्थिक स्थिति के बारे में भी बता दिया। बस विमला जी से यह सोचकर यह बात छिपा ली गई कि एक बार शादी हो जाए तो बाद में स्वयं ही मान जाएंगी।
संतोष काकी को फिर से मध्यस्थ बनाया गया। गौरिका के घर वालों की खुशी का तो यह जानकर ठिकाना ही नहीं रहा कि लड़के वालों की कोई मांग नहीं है। वे उनकी बेटी के रूप-गुण से बहुत प्रभावित हैं। मनोज के आश्वासन पर सपना ने भी उन्हें कह दिया कि गौरिका चाहे तो आगे भी पढ़-लिख सकती है। सबके साथ-साथ गौरिका भी खुश होकर अपनी किस्मत पर नाज करने लगी।
सपना की शादी के दौरान सब एक-दूसरे को देख तो चुके ही थे। अब बस औपचारिकता पूरी करनी थी। सगाई का दिन तय कर लिया गया। सब प्रबंध मनोज की ओर से ही किया गया।
सगाई की रस्म के लिए इतना भव्य और शानदार प्रबंध देखकर गौरिका और उसके परिवार वाले अचंभित रह गए। वे बार-बार ईश्वर को धन्यवाद देने लगे। उनकी तरफ के मेहमानों को तो गौरिका के भाग्य से ईर्ष्या होने लगी।
दूसरी तरफ, विमला जी की पारखी नजरों से कुछ छिपा न रहा। गौरिका के परिवार वालों की वेश-भूषा, तौर-तरीके, हॉल में एक ओर अपनी बेटी के ससुराल वालों को देने के लिए उनकी तरफ से रखे गए साधारण मिठाई के डिब्बे और विमला जी के दृष्टिकोण के हिसाब से दूर से ही दिखाई देते निम्न स्तर के उपहार उनकी कम हैसियत की कहानी स्वयं कह रहे थे।
तो फिर इतना भव्य आयोजन कैसे? यह खयाल आते ही, सारी सच्चाई का पता लगाने में अनुभवी विमला जी को अधिक समय नहीं लगा। चीजें उनसे छिपाकर फकीरों से रिश्ता जोड़ने की बात पर उनके तन-बदन में आग लग गई। उन्हें अपने पैसे का बहुत गुरुर था। अपने से कम हैसियत वाले रिश्ते से अपनी सखी सहेलियों के समक्ष अपना रुतबा घटवाना उन्हें मंजूर नहीं था।
विमला जी ने अपने पति तथा अपने बेटों दिनेश और मनोज को एक कमरे में बुलाया और कहा, “मुझे ये रिश्ता मंजूर नहीं है। मेरे बेटे के लिए मुंह मांगा दहेज देने वाले रिश्तों की कमी नहीं है। इन फकीरों से संबंध जोड़कर मुझे समाज में नाक नहीं कटवानी। बहू की पढ़ाई-लिखाई से मुझे कोई लेना-देना नहीं है। और मनोज, तूने कैसे सोच लिया कि तेरी पत्नी बैठ कर पढ़ाई करेगी और हम इतने पैसे वाले होकर भी इस गरीब लड़की की चाकरी करेंगे।”
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विमला जी के पति ने उन्हें समझाते हुए कहा, “विमला, ऐसी नासमझी वाली बातें क्यों कर रही हो? समान हैसियत वाली बहू बराबरी के अधिकार जताती है। गौरिका हम सब से दब कर रहेगी। समाज को दिखाने के लिए शादी का शानदार प्रबंध हम स्वयं कर लेंगे। हमारे धन के प्रभाव में उसके मायके वाले भी हमेशा हमारे पैरों में गिरे रहेंगे।”
अपने पिता की हां में हां मिलाते हुए बड़ा बेटा दिनेश बोला, “हां मां, धन दूसरों को नियंत्रण में रखने के लिए होता है। आपने दहेज के चक्कर में मेरी शादी उस प्रीति से करवा दी जिसका न रंग है न रूप। और दो घूंट क्या पी लेता हूं, वह तभी जुबान चलाने लगती है। कम से कम मनोज को तो ऐसी पत्नी मिले जिस पर ये अपनी मनमर्जी चला सके।”
साथ वाले कमरे में मौजूद गौरिका और सपना ये सारी बातें सुन लेती हैं। दरअसल, सगाई की अंगूठी के आदान-प्रदान की रस्म से पहले हंसी-मजाक करते हुए सपना अपनी फुफेरी बहन गौरिका को यह कहकर एक खाली कमरे में ले आई थी, “लाखों में एक तो तुम हो ही! मैं तुम्हें थोड़ा और तैयार कर दूं तो मनोज की नजर तुमसे हटेगी ही नहीं।”
कैसे लोगों से उसका संबंध जुड़ने जा रहा है, जानकर गौरिका के पांवों के नीचे की जमीन खिसकने लगी। हजारों भाव एक साथ उसके दिल-दिमाग में उमड़ने लगे। उसका होने वाला पति तो ऐसा नहीं होगा, वह स्वयं को ऐसा समझाने का प्रयास करने लगी।
लेकिन तभी उसे मनोज की आवाज सुनाई दी, “हां मां, पिता जी और भैया ठीक कह रहे हैं। प्लीज मेरे लिए मान जाइए न। मुझे सुंदर सी पत्नी मिल जाएगी और आपको आगे-पीछे घूमने वाली बहू। आप उसकी चाकरी नहीं करेंगी। आप मेरे किए झूठे वादे को सच मत मानिए। एक बार शादी हो जाए तो मैं उसकी पढ़ाई-लिखाई सब छुड़वाकर उसे आपकी सेवा में लगा दूंगा। कहां से इतनी रूपवती बहू खोजकर लाई हो, आपको सब ऐसा कहेंगे मां। हमारे पैसे से सब संभव है। अपने पैसों का सामान खरीदकर लोगों को दिखा देना, आपका रूतबा और भी बढ़ जाएगा।”
कुछ कुछ बातें विमला जी की समझ में आ गई। या यूं कहें कि अपने पति और बेटों की एक राय देखकर और मनोज की खुशी के लिए उन्होंने इस संबंध के लिए सहमति दे दी।
दूसरी तरफ, मनोज की बातें सुनकर गौरिका का हृदय व्यथा से मानो टुकड़ों में विभाजित हो गया और आँखें अश्रुओं से भर गई। पर जल्द ही स्वाभिमानी गौरिका ने खुद को संभाल लिया।
सगाई की रस्म के लिए दोनों तरफ के सब लोग तैयार बैठे थे। बस गौरिका की प्रतीक्षा थी। सपना के साथ वहां पहुंचते ही गौरिका ने पूरे आत्मविश्वास से इस रिश्ते के लिए इंकार कर दिया, “मेरा स्वाभिमान और मेरे संस्कार मुझे ऐसे घर की बहू बनने की स्वीकृति नहीं देते, जहां हर किसी पर पैसे का गुरुर सिर चढ़कर बोलता है। पैसे के नशे में हर कोई अपने तरीके से अहम की तुष्टि चाहता है। समय रहते ही मुझे सचेत करने के लिए मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं।”
मनोज और उसके पक्ष के लोगों द्वारा क्षमायाचना करने पर भी गौरिका अपने निर्णय पर दृढ़ रही। सारी वस्तुस्थिति जानने पर गौरिका के माता-पिता को भी उस पर गर्व हुआ। गौरिका के स्वाभिमान और संस्कारों की मजबूती के समक्ष पैसों का गुरुर धराशाई हो गया।
इस घटना का प्रभाव यह हुआ कि हमेशा गौरिका की शादी को लेकर चिंतित रहने वाले उसके माता-पिता और दादी उसके सपनों को पूरा करने में उसका सहयोग देने लगे। गौरिका भी दोगुने आत्मविश्वास और समर्पण से तैयारी में जुट गई। वह प्रतियोगी परीक्षा पास कर सरकारी बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर नियुक्त हो गई। इसके दो वर्ष बाद उसके समकक्ष और समान विचारों वाले सुशील से, दोनों के माता-पिता के आशीर्वाद से सादे समारोह में उसका विवाह संपन्न हुआ।
-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)
साप्ताहिक विषय: #पैसे का गुरुर