“पैसे का गुरुर’ – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

 पैसे का इतना भी क्या गुरुर करना आदमी को आदमी समझते ही नहीं है अरे बड़े होंगे अपने घर के कौन सा किसी को कुछ दे रहे हैं, जो करता है अपने लिए ही करता है अगर हम गरीब हैं तो कुछ उनसे मांगने तो जा नहीं रहे हैं, लेकिन हर जगह पैसा काम नहीं आता उन्होंने तो हर रिश्ता ताक पर रख दिया था

  उस समय तो भाई साहब को ना छोटे भाई की जरूरत थी और ना अपने मां-बाप की। पापा के जाने के बाद कितनी अकेली हो गई थी , मम्मीजी कभी खबर भी ली उनकी । एक दो बार आए तो भी ससुराल में ही समय बिताया था मां के पास बैठकर कहां दो घड़ी भी बात की थी उन्होंने? चलो भाभी जी ही बहू थी लेकिन भाई साहब तो उनके बेटे थे, क्या कभी ख्याल नहीं आया क्या बीती होगी उस मां पर जो उनके लिए तड़पती ही रहती है? कितने फोन किए थे मां के बीमार होने के बाद उन्हें की एक बार चले आओ

मां तुम्हें याद कर रही है लेकिन कहां फुरसत थी उन्हें? बस कुछ पैसे भेज कर उनका फर्ज पूरा हो गया मां के लिए। अगली बार आए भी तो मां दुनिया से ही जा चुकी थी। बस अपने हाथों से अंतिम क्रिया कर दी हो गया बडे बेटे का फर्ज पूरा। अब क्यों फोन पर फोन करके बुलाए जा रहे हैं आपको क्या कहना चाहते हैं आखिर आपसे? जब तो हमारे ऊपर से छत भी छीनलेना चाहते थे। अब तुम चुप भी हो जाओ सुनैना क्यों बोले जा रही हो अब बुलाया है तो जाना तो पड़ेगा ही? मैं इतना निर्मोही नहीं हो सकता आखिर परिवार के नाम पर भैया ही तो हैं।

बड़ा भाई फिर भी बड़ा भाई होता है। सुमित जानता था सुनैना सही कह रही है उसकी हर बात में सच्चाई थी। पैसे के पीछे भागते भागते उन्होंने अपना सारा परिवार भुला दिया था। एक अमीर घराने की बेटी, शिवानी से लव मैरिज हुई थी उनकीऔर फिर पैसा क्या आया उन्हें अपना ही परिवार अपने स्टैंडर्ड से छोटा लगने लगा था? अपने बचपन से लेकर अब तक का समय जैसे उसकी आंखों के आगे चलने लगा था। पापा का साधारण सा एक जनरल स्टोर्स था जिससे उनका घर का खर्च चलता था।

सुमित का बड़ा भाई अमित बचपन से ही पढ़ने में होशियार था। उसके पिता ने बीटेक के प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में उसे यही कहकर दाखिला दिलवाया था कि मैं अपनी जमा पूंजी तुम्हारी पढ़ाई पर लगा दूंगा लेकिन अपने छोटे भाई के लिए तुम्हें भी पैसों में सहायता करनी पड़ेगी, अमित ने कहा था हां पापा मेरा फर्ज है अपने छोटे भाई को पढ़ाना इसकी जिम्मेदारी मैं उठाऊंगा मुझेसे 4 साल छोटा है।

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 बीटेक के फोर्थ ईयर में ही बहुत अच्छी कंपनी में अच्छे पैकेज पर उसकी नौकरी लग गई थी। लेकिन जब सुमित के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन की बारी आई, तो उसने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि मेरे अपने खर्चे हैं बाहर फ्लैट लेकर रहना आसान बात नहीं है। सुमित जानता था पापा के पास इतने पैसे नहीं है कि वह उसका बाहर का खर्च उठा सके इसीलिए उसने अपने शहर मैं रहकर ही पढ़ाई की

 समय के साथ-साथ अमित तरक्की करता चला गया सुमित एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता था और अपने पापा के साथ दुकान की संभालता था। उसकी पत्नी सुनैना भी एक साधारण परिवार की पढ़ी लिखी लड़की थी थोड़े ही दिनों में उसने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी और अपने सास ससुर की चहेती बन गई थी। जल्दी ही दो प्यारे-प्यारे बच्चे भी हो गए थे।।सुमित के पापा को बहुत अफसोस होता था। कि मैंने अपना सारा पैसा अपने बड़े बेटे की पढ़ाई में ही खर्च कर दिया छोटे के लिए कुछ कर ही नहीं पाया। सुमित के लाख समझाने के बाद भी उनके पिता को यही लगता था कि वह अपनी जिम्मेदारी उसके प्रति सही से नहीं निभा पाए दूराहत हुई है उसके साथ

 असमय ही उन्हें दिल का दौरा पड़ गया और उनकी मृत्यु हो गई थी। अमित और शिवानी आए थे और

 अपनी उपस्थिति मात्र दर्ज कराकर फिर लौट गए।

 हां मां के हाथ में कुछ पैसे जरूर रख दिए थे जिन्हें माँ ने ये कहकर वापस लौटा दिया था, मुझे क्या करना है पैसों का अब तुम्हारे पापा नहीं रहे? मेरे लिए सब बेकार है। तुम कुछ दिन मेरे पास रुक जाते तो अच्छा था। लेकिन अमित ने की कह दिया था कि मेरे बच्चों को बिना ए सी के नींद नहीं आती।

घर बहुत छोटा है हम लोग कैसे एडजस्ट हो पाएंगे 8 दिन तक? मां आप हमारे साथ चलिए लेकिन मां ने जाने को मना कर दिया था। बीच में एक बार जरूर मां उनके साथ उनके घर रहने के लिए गई थी। लेकिन मन नहीं लगा ता उन्होंने अपने छोटे बेटे को फोन करके खुद लेने के लिए बुला लिया था। क्योंकि उनके बड़े से घर में ऐसो आराम के साधन तो थे लेकिन अपनी ही माँ के लिए किसी के पास वक्त नहीं था? उस बीच में बहुत गुमसुम रहने लगी थी।माँ, 

 उनके स्टेटस से मैच नहीं खाती थी मां की सोच,

 बहू और बच्चे तो उनके पासफटकते ही नहीं थे लेकिन उनके खुद के बेटे को उनसे बात किए हुए भी कितने दिन हो जाते थे? मां कुछ कहती तो यही बोल देता था माँ आपने देखा ही क्या है उस छोटे से घर में तुम्हें यहां सारी सुविधाएं दे रखी हैं अलग कमरा सारा ऐशोराम और क्या चाहिए? एक दिन तो हद ही हो गई

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 उन्होंने अपने बेटे बहु को बात करते सुना , आप मम्मी जी से बात क्यों नहीं करते? आखिर उस घर में भी हमारा हिस्सा है अगर वह मकान हमारे नाम कर देती हैं तो हम उन्हें अपने साथ रख लेंगे और सुमित को थोड़े से पैसे दे देंगे। मकान की लोकेशन अच्छी होने की वजह से कीमत भी अच्छी मिल जाएगीहै वोतो कहीं छोटी-मोटी जगह भी मकान खरीद सकता है। स्टैंडर्ड ही क्या है उन लोगों का? मां ने सारी बात सुन ली थी।

और सुमित को फोन करके बुला लिया था उसके साथ वापस चली भी गई थी खूब सुनाया था उन्होंने अपने बहू बेटे को, इतना पैसा होने के बावजूद भी तुम उसे मकान पर नीयत रख रहे हो। वह मकान हमारे खून पसीने की कमाई है। अपने छोटे भाई के सर से छत भी खींच लेना चाहते हो तुम ,कान, खोल कर सुन लो तुम मैं तुम्हें फूटी कौड़ी नहीं दूंगी ,तुमने अपना कौन सा फर्ज निभाया है अपने पापा और छोटे भाई के प्रति? तुम्हारे पापा ने अपनी सारी कमाई तुम्हारी पढ़ाई पर लगा दी और तुमने थोड़े से पैसे भी अपने भाई की पढ़ाई पर लगाना उचित नहीं समझा खुदगर्ज हो तुम।

 उस छोटे से घर में सुकून बसता है तुम्हारे इस आलीशान घर से ज्यादा।। बच्चे दादी दादी करके जब मुझसे चिपक कर सोते हैं मैं अपना बुढ़ापा भूल जाती हूं। सुनैना एक सगी बेटी से भी ज्यादा मेरा ध्यान रखती है। मां को इस बात का गहरा सदमा लगा था इसीलिए फिर बिस्तर से ना उठी। और एक दिन चल बसी। बस तब से अमित ने अपने छोटे भाई की तरफ मुड़ के भी नहीं देखा था। क्योंकि मां ने सारा घर उसके नाम कर दिया था? तब से उनके आपस में कोई संबंध नहीं रहे थे।

यहां तक की खबरे दोनों बेटों की शादी मैं भी उन्हें नहीं बुलाया था। सुमित के दोनों बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं।आज अचानक 12 साल बाद उनका फोन आया वह उन्हें बुला रहे थे। अगले दिन ना चाहते हुए भी सुनैना सुमित के साथ चंडीगढ़ से गुड़गांव उनके घर की ओर रवाना हो गई। अमित को फर्स्ट स्टेज का।लीवर कैंसर था दोनों बेटे अमेरिका में सेटल हो चुके थे और शिवानी भी पैरालिसिस की शिकार हो चुकी थी जिससे उसका आधा शरीर का हिस्सा खराब हो गया था।

अपने माता-पिता की बीमारी की खबर सुनकर भी बच्चे उन्हें देखने तक नहीं आए। पिछली सारी बातों को भूलकर सुनैना और सुमित् रो पड़े थे उनकी यह हालत देखकर उनके पैसे का गुरूर सारा मिट चुका था क्योंकि जब इंसान बिस्तर पर होता है उसे दुनिया की दौलत शोहरत सब बेकार लगने लगती है। उस वक्त अपने ही याद आते हैं। सुनैना जानती थी सुमित अपने भाई को अपने साथ ले जाना चाहता है और उसकी वजह से कुछ बोल नहीं पा रहा है। अपने पति की इच्छा का मान रखते हुए जबरदस्ती उन दोनों को अपने साथ ले आए। इलाज कराने के लिए पैसे की तो कोई कमी नहीं थी। जल्दी पता चल जाने की वजह से

 अच्छा इलाज मिलने पर और सुमित और सुनैना की सेवा करने से अपनों के बीच में रहकर उनकी तबीयत में सुधार होने लगा था। समय तो बहुत लगा लेकिन शिवानी भी फिजियोथेरेपी से थोड़ी-थोड़ी ठीक होने लगी थी। टूटे हुए रिश्ते फिर जुड़ने लगे थे, शिवानी और अमित ने गुड़गांव जाने की बहुत जिद की लेकिन उन्होंने अच्छी तरह ठीक होने तक जाने नही दिया वक्त की मार क्या पड़ी अमित को समझ में आ ही गया था अपने फिर भी अपने होते हैं? पैसा बहुत कुछ हो सकता है लेकिन सब कुछ नहीं होता। अगर थोड़ा सा स्वार्थ से ऊपर उठकर देखें तो अपने अपने बने रह सकते हैं।

 काहे पैसे पे इतना गुरुर करे है

 यही पैसा तो अपने से दूर करें है।

 इंसा इंसा है पैसा पैसा है।

 नशा पैसे का जब सर चढ़ता है।

 इंसान खुद को खुदा समझता है।

 यही पैसा तो रिश्तों में दूरी लाता है।

 पूजा शर्मा स्वरचित।

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