पैसे का गुरुर – डाॅ संजु झा  : Moral Stories in Hindi

रीना को दफ्तर में   खाली बैठे -बैठे  काफी समय हो चुका था।काम तो कब का खत्म हो चुका था, परन्तु घर जाने की इच्छा नहीं होती।घर का भांय-भांय करता सन्नाटा और खालीपन उसे डराता।काफी समय हो जाने पर उसका ड्राइवर आकर कहता है “मैम!अब घर चलें?”

रीना हाॅं कहकर थके हुए कदमों से गाड़ी की ओर बढ़ती है। अचानक से बगल से जाते हुए एक व्यक्ति को देखकर उसके मस्तिष्क में पहचान की एक क्षीण -सी रेखा उभरती है। ध्यान से देखने पर उसे एहसास हो जाता है कि कमल (उसका पूर्व पति) गाड़ी पार्क कर अपनी पत्नी और दो बच्चों (बेटा-बेटी) के साथ बाजार की ओर जा रहा था।उसे गौर से उसकी ओर देखते हुए देखकर ड्राइवर ने कहा -“मैम!सुना है ये सर पहले इसी दफ्तर में काम करते थे।अब किसी बड़ी कंपनी में जोनल मैनेजर (क्षेत्रीय प्रबंधक) हैं।

रीना-“अच्छा!  तुम्हें  कैसे पता है? “

ड्राइवर -” मैम!बस किसी से सुना है!”

रीना -“अच्छा!अब घर चलो।”

गाड़ी में बैठकर कमल का आत्मविश्वास भरा दर्पयुक्त चेहरा बार-बार उसकी ऑंखों के सामने घूम रहा था।हो भी क्यों न?आखिर आज  कमल के पास पद-पैसा और परिवार सभी कुछ है।वहीं अपने पद और पैसे के गुरुर के कारण अकेली रह गई है।उसका मन हो रहा था कि चीख-चीखकर लोगों को बताऍं कि अपनी खुशियों में उसने ही आग लगाई है।कमल तो शुरू से ही सरल और  निर्दोष था।

घर पहुॅंचकर मायूस-सी रीना अपने कमरे में बिस्तर पर लेट जाती है।मन का खालीपन भले ही अकेलापन बढ़ाता है, परन्तु किसी को याद करने में मददगार की तरह भी होता है।लेटे-लेटे बंद ऑंखों से वह ज़िन्दगी की किताब के पन्ने पलटने लगी। उम्र के चालीसवें वसंत में आकर उसने क्या खोया,क्या पाया?इसका मंथन उसके मस्तिष्क में अनवरत जारी है।कभी जिस कमल की आवाज की सनसनाहट उसके दिल के तारों में जलतरंग छेड़ जाती थी,आज उसकी तटस्थता देखकर उसका हृदय विदीर्ण हो उठा।ग़लती तो उसने खुद की थी।उसी ने पैसों के गुरुर में कमल के प्यार को ठुकराया था। फिर अब उससे नाराजगी कैसी?

घर में सहायक के खाना लगाने की आवाज से रीना एकाएक स्मृतियों के कारागार से वर्त्तमान की कठोर धरातल पर आ गिरी।बेमन से खाना खाकर कुछ देर तक टेलीविजन के सामने बैठी रही, फिर बिस्तर पर आकर सोने का उपक्रम करने लगी।रात गहराने के साथ-साथ वह यादों के भॅंवर में फिर से हिचकोले खाने लगी।

एक ही दफ्तर में काम करने के कारण कमल की तरफ उसका झुकाव होने लगा था।कमल की बड़ी -बड़ी ऑंखें, सलोना मुखड़ा, धीर-गंभीर स्वभाव उसे अपनी ओर आकर्षित करता।उसे शुरू से ही तेज-तर्रार और ज्यादा बोलनेवाले लड़के पसन्द नहीं थे।कमल भी उसे पसंद करने लगा था। धीरे-धीरे उनमें अंतरंगता बढ़ती जा रही थी।उसे कमल इतना पसंद आ गया कि उसने झट से शादी का फैसला कर लिया।

रीना के माता-पिता डॉक्टर थे।घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण बचपन से ही जिद्दी स्वभाव की हो गई थी। माता -पिता के पद और प्रतिष्ठा के कारण धीरे-धीरे उसमें गुरुर आता जा रहा था।माता-पिता से विद्रोह कर उसने अपना कैरियर मेडिकल न चुनकर इंजिनियरिंग में अपनाया।

माता-पिता के अरमानों पर तुषारापात करते हुए वह इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने लगी। माता-पिता बेटी की इच्छा सर्वोपरि मानकर उसके उज्ज्वल भविष्य निर्माण में सहयोग करने लगें।रूप और पैसे के गुरुर के कारण काॅलेज में उसके गिने-चुने ही दोस्त थे। नौकरी के दौरान कमल पर उसका दिल आ गया।कमल एक साधारण परिवार से था। उसके पिता नहीं थे।माॅं और छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारी उस पर थी।इस कारण कमल रीना से शादी की बात करने से हिचकता था।

एक दिन पहल करते हुए रीना ने कहा -“कमल! मैं तुमसे प्यार करने लगी हूॅं। तुमसे शादी करना चाहती हूॅं।”

कमल ने भी अपने दिल की बात रखते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा -“रीना! मैं भी तुमसे बेइंतहा प्यार करने लगा हूॅं, परन्तु शादी से पहले एक बार तुम इस रिश्ते के लिए गंभीरता से सोच लो।”

रीना मुस्कराते हुए -” सोचना क्या है? मैंने तुमसे शादी करने का फैसला कर लिया है!”

रीना ने घर में माता-पिता को कमल से शादी करने की इच्छा बताई।रीना के स्वभाव को  जानते हुए उसकी माॅं  ने उसे समझाते हुए कहा -” बेटी ज़िन्दगी के फैसले सोच-समझकर लिए जाते हैं। तुम्हारे और कमल के स्वभाव  और पारिवारिक पृष्ठभूमि में जमीन-आसमान का अंतर है। कहीं अपने फैसले के कारण तुम्हें पछताना न पड़े।”

जब व्यक्ति प्यार में पड़ जाता है तो उसे किसी बात की परवाह नहीं होती है।कमल के प्यार के मद में मदमस्त रीना ने कहा -“माॅं! मैं कमल से प्यार करने लगी हूॅं।उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं खुद अच्छा-खासा कमाती हूॅं।”

रीना के माता-पिता समझ चुके थे कि बेटी जिस बात को सोच लेती है, उसे पूरा कर ही मानती है।बेटी की भावनाओं का  सम्मान करते हुए धूम-धाम से उसकी शादी कर दी। शादी के कुछ समय तक रीना की शादी-शुदा ज़िन्दगी खुशहाल बीत रही थी, परन्तु धीरे-धीरे रीना को अपने ससुराल वालों से चिढ़ होने लगी।कमल प्रत्येक महीने परिवार के लिए मोटी रकम भेजता था तथा हमेशा फोन पर उनसे सम्पर्क में रहता था। शादी से पहले कमल के जो गुण उसे गुदगुदा जाता,वही अब उसके चिढ़ का कारण बनता जा रहा था।

रीना जब-तब छोटी-छोटी बातों से कमल से झगड़ा करने लगती।कमल भी उसके उग्र स्वभाव और झगड़े के  डर से बहुत सारी बातें रीना से छुपा जाता।रीना  हर बात में कमल से बहुत उम्मीदें रखती।उसे लगता कि उसके पास इतना पैसा है ,तो कमल उसे हथेली पर लेकर सदैव घूमता रहे। छोटी-छोटी बातों से उसके अहं को ठेस लगी जाती थी और उसका मुॅंह फूल जाता था।नाराज़ होकर वह खुद भी दुखी होती और कमल को भी दुखी करती।हरेक बार उसे कमल ही मनाता।अपनी जीत और कमल की हार में उसे गर्व महसूस होता। उसके अहं को संतुष्टि मिलती।कुछ दिन सामान्य रहने पर फिर वही स्थिति उत्पन्न हो जाती और रीना रूठकर माता-पिता के पास चली जाती।

मायके में माॅं उसे समझाते हुए कहती -“बेटी!रिश्ते तो प्यार से बनते हैं, लेकिन निभाऍं जाते हैं समझौते से ही।कमल बुरा आदमी नहीं है,उसे कुछ समय दो।”

रीना -“माॅं! मैं क्यों समझौता करूॅं? मैं हर मामले में उससे बीस ही हूॅं,उन्नीस नहीं, फिर मैं क्यों समझौता करूॅं?”

माॅं-” तुमने बचपन से देखा है कि हम दोनों डॉक्टर हैं, फिर भी कुछ बातों में तुम्हारे पिता अपने मन की ही करते हैं। ज़िन्दगी तो समझौते की पटरी पर ही सुकून से दौड़ा करती है!”

रीना झल्लाते हुए कहती‌ -“माॅं!आप मुझे अपना उदाहरण मत दो। मैं आपकी तरह नहीं बनना चाहती।”

माता-पिता के  समझाने पर भी रीना पर कोई असर नहीं होता।इस बार झगड़े के बाद रीना दो माह से मायके से ही दफ्तर जा रही थी। दफ्तर में भी कमल से कोई बात नहीं करती।कमल बात करने की कोशिश भी करता,तो सबके सामने उसकी अवहेलना कर आगे बढ़ जाती।कुछ दिनों बाद रीना का प्रमोशन हो गया, परन्तु कमल का नहीं। इससे रीना का गुरूर और बढ़ गया।प्रमोशन के उपलक्ष्य में रीना ने दफ्तर में शानदार पार्टी रखी। पार्टी खत्म हो जाने के बाद कमल ने उसे एकांत में कहा -” रीना! बधाई हो।अब घर वापस लौट आओ।अब मुझसे अकेलापन बर्दाश्त नहीं होता है!”

रीना ने दफ्तर में ही सबके सामने जलील करते हुए कहा -“कमल! मैं तुम्हारे अकेलेपन दूर करने की वस्तु नहीं हूॅं।आज मेरा प्रमोशन हो गया है,तो तुझमें स्वार्थ हावी हो गया है।तुम मेरे पैसों की लालच में मुझसे प्यार का नाटक करते हो।असल प्यार तो तुम अपनी माॅं और अपने भाई -बहन से करते हो। मैं अपना स्वतंत्र जीवन जीना चाहती हूॅं और भविष्य में आगे बढ़ना चाहती हूॅं।”

कमल -“रीना! दफ्तर में नाटक मत करो। तुम्हें आगे बढ़ने से कौन रोकता है।कुछ ही दिनों की बात है। जल्द ही मेरी जिममेदारियाॅं पूरी हो जाऐंगी। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। प्लीज़ लौट आओ।

रीना कमल की बातों को अनसुनी कर

 झटके से दफ्तर से बाहर निकल गई।

रीना अब माता-पिता के पास ही रहने लगीं।उसका दफ्तर भी बदल चुका था।अब उसे कमल से कभी-कभार ही भेंट होती,जिसे वह अवहेलना कर आगे बढ़ जाती।एक दिन उसके पिता ने उसे समझाते हुए कहा था -” बेटी! ज़िन्दगी में कभी-कभी दोराहों का सामना करना पड़ता है, जिनमें से किसी एक रास्ते को चुनना बड़ा कठिन लगता है, परन्तु निर्णय तो लेना ही पड़ता है। उन्मुक्त जीवन या वैवाहिक जीवन में से तुम्हें एक तो चुनना ही होगा।”

रीना -“पापा! मैं वैवाहिक बंधन में बॅंधकर नहीं रह सकती।मुझे इस रिश्ते में घुटन हो रही है। मैं कमल से तलाक लूॅंगी।”

उसके माता-पिता मन-ही-मन खुद को कोसते हुए सोचते हैं कि  बेटी के प्रति  उनका प्यार कब संस्कारों की  मजबूत चौखट लाॅंघकर  अभिमान और गुरूर में बदल गया,पता ही नहीं चला!

आखिर अपने घमंड और पैसों के गुरूर में रीना ने कमल से तलाक ले ही लिया और  मनमर्जी की जिंदगी बिताने लगी। तलाक के कुछ समय बाद उसे एहसास होने लगा कि जो दोस्त उसका हितैषी बनकर उसे कमल से तलाक लेने के लिए उकसाते थे, वहीं उससे अब कन्नी काटने लगे थे।उसकी महिला मित्र भी अब छुट्टी के दिन बच्चों का बहाना कर उससे अपने पति को दूर रखना चाहतीं थीं।

अब रीना धीरे-धीरे मायूस रहने लगीं। माता-पिता उसके दुखी मन पर प्यार और स्नेह की लेप लगाकर उसे खुश रखने का प्रयास करते।एक दिन नियति ने भी उसके साथ क्रूर मजाक किया। उसके माता-पिता की कार दुर्घटना में दुखद मौत हो गई। माता-पिता उसकी रेगिस्तान -सी सूखी जिंदगी में बरसात की जीवनदायिनी फुहार थे। उनके गुजरने के बाद अकेलेपन और उदासी की चुभन व पीड़ा और परेशान करने लगी।

जिन पैसों का उसे गुरूर था,उन पैसों से वह ज़िन्दगी की चन्द खुशियाॅं आज नहीं खरीद सकती है।अपनी गल्तियों के कारण उसकी जिंदगी उन बंद दराजों की तरह हो गई है, जहाॅं कोई झाॅंकने भी नहीं आता है।एक विराट् शून्य के सिवा उसके हाथ कुछ नहीं आया। ज़िन्दगी की रेतीली जमीन पर अपने कर्मों का हिसाब देने को विवश थीं। सोचते -सोचते उसकी ऑंखों से पश्चाताप के ऑंसू ढ़ुलक पड़े।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा स्वरचित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!