अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो –  नीतिका गुप्ता

नमिता के आंसू छलक आए… मन की पीड़ा आंखों से बह रही थी और दिल बस एक ही दुआ मांग रहा था “हे भगवान मुझे अगले जन्म में मेरे पापा का बेटा बनाना बेटी नहीं….” आखिर कौन है यह नमिता जो अपने स्त्री रूप को त्याग कर पुरुष होने की कामना कर रही है। स्त्री … Read more

वो एक पल – के कामेश्वरी

बीस साल अध्यापिका की नौकरी करने के बाद मैं घर में बैठी थी क्योंकि पिछले महीने ही मेरा रिटायरमेंट हुआ था । हमेशा सोचती हूँ कि एक शिक्षक रिटायर होकर घर में कैसे बैठ सकता है । उसकी पूरी दुनिया बच्चों के आसपास ही होती है । मुझे बच्चों की शरारतें उन्हें डाँटना फटकारना फिर … Read more

जीवन का एक सफहा – अंजू निगम

आज भी जब ऊँची-नीची सड़कों को नापती हूँ और दूर, ऊबड़-खाबड़ हो गये ठीकरों में बने पुराने बरैक्स देखती हूँ तो जिदंगी के कई पन्नें खुद-ब- खुद खुलते जाते है, अपना अतीत दोहराने। मुझे कभी ये दोहराव बुरा नहीं लगा। कभी कभी मन बेलौस सा मचल उठता , उसी किशोर वय में पहुँच, हिरनी सी … Read more

श्राद्ध की परिभाषा – अनुज सारस्वत

  “बेटा चलो जल्दी नहा धोकर तैयार हो जाओ पंडित जी आने वाले होंगे आज दादा जी के श्राद्ध है ना” अमित ने अपनी 7 वर्षीय बेटी श्रुति को  बोला , पूरा परिवार नहा धोकर तैयारी में लग गया, अमित पंडित जी के द्वारा बताई गई सामग्री के साथ तर्पण की व्यवस्था करने में जुट … Read more

डायरी के पन्ने – नीतिका गुप्ता 

रणदीप काफी देर से मंगला की फोटो को एकटक  देख रहा था….. जैसे कि उसे शिकायत कर रहा हो कि क्यों जीवन के सफर में उसे इतनी जल्दी अकेला छोड़ कर चली गई ….?? रणदीप के हाथ में मंगला की लिखी हुई डायरी थी जो वह अपनी बेटी रुही के जन्म के बाद से लिखती … Read more

 किन्नर का अपमान – Moral Story In Hindi

” मैं किन्नर हूं, हां सुनो सब मैं किन्नर हूं, किन्नर” शीला आज रो-रोकर बेहाल हो रही थी, उसकी गोद में एक लगभग बारह साल की बच्ची की लाश पड़ी है, जो खून से लथपथ है,  जो भी  पास आता उसे झटक कर धकेल देती बहुत दूर, बस यही बोले जा रही थी। ” मैं … Read more

बीबी जी गरीब हूँ पर चोर नही – किरन विश्वकर्मा

सुमित्रा के पति का देहांत हो गया और कमाने का कोई जरिया नहीं दिख रहा था….पति के रहते हुए तो उन्हे कोई समस्या का सामना नही करना पड़ा था पर अब घर सम्भालने के साथ साथ घर को चलाने की भी समस्या आ रही थी…..दो बच्चे थे उन्हें पढ़ाना भी था, घर भी चलाना था। … Read more

दामाद अपना बेटी पराई – स्मिता सिंह चौहान

“दामादजी को  वक़्त नहीं मिल पा रहा है तो तुम चली जाओ। इतने वक़्त तक अपना घर छोड़ना ठीक नहीं है। दामादजी का फ़ोन आया था ना  कल तुम्हारे पास क्या कह रहे थे?” ममता जी ने अपनी बेटी सीमा के हाथ से सुबह की चाय के कप लेते हुए कहा। “क्या माँ आप भी … Read more

“संतोष ” – गोमती सिंह

अप्रैल का महीना था शाम का समय घुप ढल चुका था । आँगन में लगे तखत पर नंदिनी बड़ी माँ विस्मित चेहरे से बैठी हुई थी । और सोंच रही थी –कभी इस घर आँगन के कोने कोने में खुशियाँ बिखरी रहती थी , जो जानें कैसे रूठ गई । आज घर के कोने कोने … Read more

भिंडी के फूल – मंजू तिवारी

बात काफी पुरानी है। जब अमिता और नमिता एक मांटेसरी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा करती थी उनका स्कूल फर्स्ट फ्लोर पर लगता था सारे बच्चे घर से टिफिन लेकर आया  करते थे लेकिन उसमें अधिकतर टिफिन के साथ पानी वाली बोतल नहीं लाते थे छात्र  छात्राओं की पानी पीने की व्यवस्था स्कूल के नीचे लगे … Read more

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