पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

शादी के 10 साल बाद राहुल का जन्म हुआ था नितिन और सागरिका के यहाँ । दोनों फूले न समाए थे । दादी-दादा,नानी-नाना सबकी आँखों का तारा था राहुल । उसकी हर इच्छा कहते  ही पूरी कर दी जाती थी । राहुल के जन्म के दो साल बाद उसकी बहन नेहा भी आ गई थी ।

नितिन और सागरिका ख़ुद को संसार का सबसे बड़ा खुशनसीब समझते थे ।अतिशय लाड़-प्यार ने राहुल को बिगाड़ दिया था । बचपन से ही अपनी ज़िद्द पूरा करवाना उसने सीख लिया था । अपने सामने वह किसी को कुछ नहीं समझता था । छोटी बहन को भी मारता,तंग करता ।

सागरिका और नितिन कितना भी ख़र्च करने को देते उसे हमेशा कम ही लगते थे । पढ़ाई-लिखाई में भी उसका मन नहीं लगता था । मोहल्ले-पड़ोस के लड़कों से उसकी दोस्ती थी और सारे यार-दोस्त मौज-मस्ती में समय गुज़ारते थे । राहुल ऐसे ही 25 साल का हो गया । गिर पढ़ कर केवल इंटर पास कर पाया

और आवारगर्दी में ही समय गुज़ारता । आज उसका 25 वाँ जन्मदिन था और सागरिका सारे पकवान बना कर उसका इंतज़ार करती रही और राहुल रात के एक बजे नशे में लड़खड़ाता हुआ घर आया । सागरिका और नितिन अपने टूटे हुए दिल के साथ मन मसोस कर रह गए । नेहा उससे दो साल ही छोटी थी और सब समझती थी ।

वह मेहनत से पढ़ाई करती और माता पिता, दादा-दादी सबका ख़याल रखती । राहुल इससे भी चिड़ता और हमेशा नेहा को नीचा दिखाता । वास्तव में तो 25 साल की उम्र तक राहुल समझ गया था कि वह ज़िंदगी की दौड़ में पिछड़ गया है ।

उसके साथ के मेहनती और काबिल लड़के अपनी शिक्षा पूरी कर नोकरियों पर भी लग गए थे । वे राहुल से दूर भागते थे और राहुल के साथ के लिए बस आवारा,निठल्ले लड़के ही थे जो चाहते थे कि राहुल अपने घर से पैसे लाकर बस उन्हें ऐश-मौज़ कराता रहे । कुंठा का मारा राहुल सुधरने की बज़ाय और बिगड़ता ही गया ।

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“तुम सबने ही मेरी ज़िंदगी बर्बाद की है ।” अपनी असफलताओं का दोष भी वह अपने परिवारवालों पर मड़ता । साल बीतते गए । सागरिका और नितिन उम्रदराज़ हो गए थे । दादा-दादी भी इस दुनिया से विदा हो गए । नाना-नानी भी बुढ़ापे में उसकी तरफ़ से निराश ही थे ।

  राहुल 25 से 35 साल का हो गया था । नेहा ने मम्मी-पापा की देखभाल और ज़िम्मेदारी के कारण शादी भी नहीं की थी । उसने दिनरात एक करके बैंक प्रोबेशनरी ऑफ़िसर की परीक्षा पास की और बैंक में पीओ हो गई थी । वह अब भी चाहती थी कि राहुल सुधर जाए और कुछ छोटा मोटा काम धंधा कर सैटल हो जाय लेकिन राहुल पर कोई असर नहीं था । 

एक दिन लड़कों के गैंग वार में राहुल के और दूसरे गुट में जमकर लड़ाई हुई । लाठी-डंडे, तमंचे चले जिसमें विरोधी गुट हावी रहा । वे लोग राहुल को पीटकर लहुलुहान अवस्था में मुहल्ले में सड़क पर फेंक गए । किसी पड़ोसी और दोस्त ने उसे हस्पताल नहीं पहुँचाया

और देख कर भी अनदेखा कर दिया । नेहा को जैसे ही ख़बर लगी उसने राहुल को हॉस्पिटल पहुँचाया । सागरिका और नितिन का भी बेटे की हालत देख कर बुरा हाल था । राहुल के हाथ पैर टूट गए थे और हॉस्पिटल से घर लाने के बाद भी लंबे इलाज़ के बाद उसकी हालत में सुधार हुआ । नितिन-सागरिका और नेहा ने उसकी देखभाल में कोई कसर न छोड़ी । 

आज राहुल सही हो गया है और वह जान गया है कि पड़ोसियों और परिवार में क्या अंतर होता है । नेहा ने उसके लिए दुकान खुलवा दी है और राहुल मेहनत से दुकान चलाता है ।

आज रक्षाबन्धन है और नेहा राहुल को राखी बाँध रही थी । भावुक राहुल कह रहा था कि “बहन तूने मेरे लिए इतना किया है अब मैं अपनी ज़िम्मेदारी निभाऊँगा और मम्मी पापा का ख़याल रखूँगा ।” नेहा, नितिन और सागरिका तीनों की आँखों में आँसू थे ।

“अच्छा बताओ भैया मुझे रक्षाबन्धन पर क्या दे रहे हो?” नेहा ने हँसकर कहा ।

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“सबसे पहले तेरे हाथ पीले कर तुझे विदा करूँगा और अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाऊँगा ।” राहुल ने कहा ।

“और फ़िर मैं अपने लिए एक अच्छी सी भाभी लाऊँगी ।”नेहा ने हँसकर कहा ।

आज सारा परिवार साथ-साथ ख़ुश और संतुष्ट था । एक सुनहरा भविष्य उनके सामने था ।

 

          गीता यादवेन्दु 

 

    #पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा

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