पड़ोसी या परिवार? – एम. पी. सिंह : Moral Stories in Hindi

सुमित ओर उसकी बीवी डिफेंस कॉलोनी में रहते थे ओर दोनो काफी मिलनसार थे।कहने को तो उनका पूरा परिवार था, 2 भाई, 1 बहन और उनके बच्चे। उनका बेटा अतुल, उनकी बहू ओर उनकी बेटी। सुमित के दोनो भाई नोकरी करने दूसरे शहर चले गऐ ओर वही सैटल हो गए। बहन भी शादी दूसरे शहर में हुई और वो भी चली गई।

मॉ बाबूजी अब दुनिया में नहीं रहे। बेटा पढ़ लिखकर बेंगलुरु मे नोकरी करने लगा ओर वही सेटल हो गया। बस सुमित ओर उनकी पत्नी रिटायर्ड जिंदगी अकेले जी रहे थे। सुमित के पड़ोस में रि.कर्नल भाटिया अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते थे। सुमित ओर कर्नल साब की खूब पटती थीं। पटती भी क्यों न,

जब दोनों की होबिज़ एक जैसी थीं, मॉर्निंग वॉक, गार्डनिंग, एक्सरसाइज ओर गार्डन में बैठकर चाय कॉफी की चुस्की लेना। समय बडे आराम से कट जाता था। कभी कभी सुमित जी बच्चों के पास घूमने चले जाते थे, पर दिल नही लगता था इसलिये जल्दी ही लौट आते थे। एक बार सुमित जी बेंगलुरु गए थे

और आदतन शाम को घूमने निकले ओर लौटते समय लिफ्ट में उनके पड़ोसी मि. गुप्ता मिल गए ओर लिफ्ट से बाहर निकल कर काफी देर तक बातें करते रहे। फिर तो ये सिलसिला लगभग रोज का हो गया। कुछ ही दिन में फ्लोर के अधिकांश लोगो से जान पहचान कर ली। ऐसे ही एक दिन शाम को घूमकर आये तो गुप्ता जी मिल गए

और अपने साथ घर बुला लिया, चाय पीने। चाय पीते ओर बातें करते काफी देर हो गई, समय का पता ही नहीं चला और अतुल आफिस से आ गया। अतुल हैलो बोलकर अंदर चला गया और कुछ देर बाद गुप्ता जी अपने घर। 

गुप्ता जी के जाने के बाद अतुल ने पूछा, “पापा, ये आदमी कौन था” ? सुमित बोला, ये गुप्ता जी थे। कौन गुप्ता जी ? फिर सुमित ने पूछा, तू गुप्ता जी को नही जानता, तुम्हारी ही बिल्डिंग में रहते हैं? रहते होंगे पापा, आप 2 चार दिन के लिये आते हो, आराम से रहो ओर ज्यादा रिस्तेदारी बनाने की जरूरत नही।

यहाँ रोज़ नये नये  लोग आते जाते रहते है, किस किससे पहचान करे। फिर सुमित ने पूछा, तुम इस फ्लैट मैं कब से रह रहे हो? पिछले 8 साल से, अतुल का जवाब था। ओर गुप्ता जी 7 साल से, तुम इन्हें पहचानते भी नहीं? सुमित ने पूछा।अतुल का अगला सवाल था, कौन से फ्लोर पर? सुमित बोला, बेटा, ये तेरे ही फ्लोर पर,

साथ वाले फ्लैट में रहता है। बेटा याद रखना, अगर कभी कोई मुसीबत आन पड़े, तो माँ बाप, रिस्तेदार बाद में आएंगे, सबसे पहले पड़ोसी ही मदद करने आयगे। पापा, ये सब बेकार की बातें हैं, ये महानगर है, आपका गाँव नही।

कुछ दिन बाद सुमित ओर उनकी पत्नी वापस आ गए और कर्नल साब के साथ अपने पुराने रूटीन मैं आ गए। यहां आने के बाद भी मि गुप्ता से फ़ोन पर बाते होती रहती। एक दिन खेलते खेलने सुमित की बेटी गिर गई और टेबल के कोने से सिर टकरा गया। सिर से खून निकला ओर वो बेहोश हो गई। ये देखकर सुमित की पत्नी घबरा गई

और सुमित को फोन किया, जो ऑफिस के काम से चंडीगढ़ गया हुवा था, पर फ़ोन नही लगा शायद वापसी फ्लाइट में था। फिर उसने अपने ससुर को फ़ोन किया और सब बताया। सुमित बोला, घबराने की जरुरत नहीं है, मैं इंतज़ाम करता हु। फिर सुमित ने गुप्ता जी को फोन किया ओर हेल्प  मांगी।

गुप्ता जी अपने बेटे को साथ लेकर अतुल की पत्नी और बेटी को अपनी कार से हॉस्पिटल लेकर गए। सब चेकअप ओर ड्रेसिंग करने के बाद  डिस्चार्ज कर दिया। डॉ. बोला, बच्ची शायद खून देखकर घबरा गई, चिंता की कोई बात नहीं है। गुप्ता जी ने सुमित जी को सारा अपडेट दे दिया, कोई चिंता नहीं करने को बोला ओर बहु व नाती से भी बात करा दी।

रात को जब अतुल का प्लेन लैंड किया तो मिसकाल देख घर फोन किया तो सब समाचार मिल। लगभग 1 घण्टे बाद अतुल घर पहुंचा तो गुप्ता जी और उनका बेटा जा चुके थे।

अतुल ने गुप्ता जी के घर जाकर पेर्सनली धन्यवाद बोला फिर पापा को फोन किया, ओर बोला, पापा, आप सही थे और मैं गलत। सुमित बोला, “पड़ोसियो ओर परिवार में यही तो अन्तर होता है बेटा” । गावँ हो या शहर, परोसी से हमेशा मधुर संबन्ध होने चाहिए क्योकि रिस्तेदार दूर रहते हैं ओर उनसे पहले पड़ोसी हेल्प के लिये पहुंच जाते हैं।

एम. पी. सिंह

(Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित

20 Jan.25

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