सरला अग्रवाल के तीन बेटे थे दो बेटों की शादी हो चुकी थी उनकी पत्नियां कम पढ़ी लिखी थी किंतु तीसरे बेटे की बहू सविता पढ़ी लिखी थी
बस यही चिंता घर की दोनों जेठानियों को और सास को सता रही थी
सरला ने अपनी दोनों बड़ी बहुओ को अपने पास बुलाया और कहा
मैंने तो अपने सबसे छोटे बेटे हर्ष को शहर पढ़ने के लिए भेजा था मुझे नहीं मालूम था वह वहां पर किसी पढ़ी-लिखी लड़की से शादी कर लेगा
हमारी मर्जी के बिना ही उसने कोर्ट मैरिज कर ली मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है अब मैं क्या करूं आज शाम को ही हर्ष अपनी बहू सविता को लेकर आने वाला है
सरला की बड़ी बहू ने कहा शहर की पढ़ी लिखी बहुएं आधे कपड़े पहनती है और उसका यह फैशन इस घर में भी चलेगा
उसे तो इंग्लिश बोलनी भी आती है वह हम सबको लट्टू की तरह नचाएगी
यही सब बातें होते-होते शाम हो चुकी थी
सूरज अभी डूबा नहीं था कुछ किरणें अभी भी धरती पर बाकी थी
एक कार दरवाजे के सामने रुकी उसमें से हर्ष और उसकी पत्नी सविता बाहर निकली
हर्ष ने कहा देखो हमारा घर आ गया ,,
हर्ष ने दरवाजे की बेल बजाई तो दरवाजा खुल गया ,,
सरला अपनी दोनों बहूओ के साथ खड़ी थी हर्ष के साथ
एक सुंदर सी दुल्हन के जोड़े में खड़ी लड़की नजर आई जिसने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी सर पर पल्ला डाल रखा था हाथों में चूड़ियां
माथे पर सिंदूर ,, सविता ने तुरंत झुक कर अपनी सासू मां के चरण स्पर्श किए फिर अपनी दोनों जेठानियों के चरण छुए
घर के सभी लोगों को यकीन ही नहीं था कि शहर की लड़की इतनी सभ्यता वाली समाज के सारे दस्तूर और रीति रिवाज को जानने वाली
उन्हें यकीन ही नहीं था कि हर्ष की पत्नी साड़ी पहन कर भी आ सकती है उन्होंने सोचा था की जींस शर्ट पहन कर आएगी जैसे फिल्मों में दिखाया जाता है और इंग्लिश में बातें करेगी लेकिन उसने तो
संस्कृत में सरस्वती का पूरा श्लोक पढ़ दिया ,,
हर्ष की पत्नी ने पहले दिन से ही रसोई संभाल ली और अपनी दोनों जेठानियों से कहा आप लोगों ने मम्मी जी की बहुत सेवा कर ली अब मैं सबकी सेवा करूंगी
सविता ने रसोई घर में चार प्रकार की सब्जियां बनाई और गरमा गरम पूरी और हलवा बनाकर जब टेबल पर परोसा तो सब उंगलियां चाटने लगे ,,
दोनों जेठानियों ने पूछा अरे वाह तुम्हें तो बहुत बढ़िया खाना बनाना भी आता है कहां से सीखा तब सविता ने बताया बात ऐसी है दीदी ,,
हमारे मम्मी पापा सत्संगी विचारों के हैं मांस इत्यादि को तो छूते भी नहीं
हमारे मम्मी पापा कहते हैं हम कितने भी पढ़ लिखे जाएं लेकिन हमें अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए बड़ों का आदर और सम्मान करने से कभी भी कतराना नहीं चाहिए
पिता के साथ बेटी बनकर रहना चाहिए पति के साथ पत्नी बनकर और सासू मां के सामने बहू बनकर
रही बात खाने बनाने की तो पढ़ाई के साथ-साथ हमें हर तरह के व्यंजन बनाने की भी तालीम दी गई है
परिवार के सभी लोगों ने कहा हमें हर्ष की पसंद ,, अच्छी लगी
हम तो डर रहे थे पढ़ी-लिखी बहू आएगी और घर में आफत मचाएगी
मगर यहां ऐसा कुछ भी नहीं हुआ पहले हम कतरा रहे थे लेकिन अब इस घर में पढ़ी-लिखी बहू का स्वागत है
लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना