क्या हुआ माला..? इतना क्या सोच रही हो..? अरुण जी ने अपनी पत्नी माला से कहा..
माला जी एक लंबी आह लेकर कहती है… ऐसे पूछ रहे हैं, जैसे कि कुछ जानते ही नहीं..?
अरुण जी: देखो माला..! हमारी उम्र में तुम जैसा सोच रही हो, यह स्वाभाविक है… पर अगर कभी शांत मन से सोचोगी, तो तुम्हें पता चल जाएगा कि, इन सब में सारी गलती बच्चों की ही नहीं है… हमारी भी है…
माला जी: हां सही कहा आपने… हमें बच्चों से इतनी भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी और ना ही उन पर आश्रित हीं रहना चाहिए था… बस इसी बात का पछतावा होता है…
अरुण जी: यह गलती नहीं है हमारी… यह तो हर मां-बाप करते हैं… बच्चों से उम्मीद नहीं करेंगे तो किससे करेंगे..? मुझे तो पछतावा किसी और ही बात का है…
माला जी: किसी और बात का..? वह क्या है जी..?
अरुण जी: आज हम उदास है, क्योंकि बच्चे हमसे दूर चले गए हैं.. हमारी सुध नहीं लेते और ना ही हम से सीधे मुंह बात करते हैं… पर अगर अतीत को टटोलोगी, तो तुम्हें पता चल जाएगा कि, हमारी गलती कहां है..?
माला जी: पहेलियां मत बुझाइए, साफ-साफ बताइए…
अरुण जी: मेरी बात का मतलब समझने के लिए, पहले इस बात का मतलब समझो… ट्रेन और कार में फर्क क्या है…?
माला जी: यह क्या ट्रेन और कार बीच में ले आए…. हम यहां अपने बच्चों की बात कर रहे हैं…
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अरुण जी: बस यही समझाने के लिए तो तुम्हें इसका उदाहरण दे रहा हूं… मेरी बात को अच्छी तरह सुन लो…
ट्रेन के सामने आकर, अगर किसी की मृत्यु हो जाए, तो लोग मृत व्यक्ति की ही गलती बताते हैं… पर अगर कार के सामने आकर किसी की मृत्यु हो जाए तो, गलती कार चालक की हो जाती है… आखिर दोनों के चालाक इंसान ही है… पर दोष एक ही को क्यों..?
माला जी गौर से अरुण जी की बातें सुन रही थी… फिर अरुण जी कहते हैं… देखो माला..! हम बच्चों को जब बड़ा कर रहे होते हैं, तो उन्हें कैसे बड़ा बनना है.. यह सिखाते हैं… मतलब पैसों से कैसे बड़ा बनना है, हमेशा इसकी ही तालीम देते हैं… इंसानी रूप से कैसे बड़ा बनना है..? यह तो हम सिखाते ही नहीं और यही वजह है वह पैसों की ज्यादा कदर करना सीख जाते हैं…
जिस तरह ट्रेन चालक इसलिए दोषी नहीं होता, क्योंकि वह ट्रेन चला रहा होता है…. ट्रेन चलाते वक्त, उसे बस अपने में सवार यात्रियों का ही ध्यान रखना होता है… सामने और किसी का भी नहीं… वो सिर्फ अपना ही नहीं, ना जाने कितने ही यात्रियों का जिम्मा लेकर चलता है…. और वहीं एक कार चालक अपने पैसों का दंभ भरता, अकड़ता हुआ सिर्फ अपने में सिमटा, बिना किसी जिम्मेदारी के सड़क पर कार दौड़ाता है और इसलिए दुर्घटना होने पर वह दोषी बन जाता है…
हमें भी अपने बच्चों को जिम्मेदार बनकर चलना सिखाना चाहिए, इससे वह अपने जिम्मेदारियों के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करेंगे…, जिम्मेदारियों को पीछे छोड़, बेपरवाह एक कार चालक की तरह नहीं…. तो कहो गलती किसकी है.,.?
माला जी: सच ही तो है और हम अपनी गलती को याद भी नहीं रखते… और इसलिए आज मेरे दोनों बेटे बस महंगे सपनों के पीछे गुम होकर, बेपरवाह कार ही दौड़ाए चले जा रहे हैं… पर जो बात आज आपने मुझे कहीं… वही कभी बेटों को भी कही होती, तो आज शायद हममें से किसी को भी कोई पछतावा नहीं होता… अब देखिए ना… आज हमारी शादी की 50 वीं वर्षगांठ है और इत्तेफाक की बात तो यह हैं, आज हम दोनों वैसे ही अकेले हैं… जैसे 50 साल पहले थे…
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इतने में दोनों बेटे एक बड़े से केक के साथ घर के अंदर आते हैं और जोरो से चिल्लाते हैं… आप दोनों को शादी की गोल्डन जुबली मुबारक हो… और चलिए आप दोनों यह पहन कर जल्दी से तैयार हो जाइए.. आज तो शानदार पार्टी होगी…
माला जी, अरुण जी का चेहरा चौकते हुए देख रही थी…
माला जी: यह क्या जी..? हम तो अपने बच्चों को कार चालक समझ रहे थे, पर यह तो ट्रेन चालक ही निकले..
अरुण जी: हां.. क्योंकि कभी-कभी कार की ट्रेनिंग देते देते.. ट्रेन की भी ट्रेनिंग दे देता था…और शायद वही अभी दिख रहा होगा… तो चलो.. चलो.. अब जो भी हो… जल्दी से गाड़ी में चढ़ जाओ… कहीं इस चक्कर में हमारी गाड़ी ही ना छूट जाए…
फिर दोनों हंस पड़ते हैं…
धन्यवाद
मालिक/स्वरचित/अप्रकाशित
#पछतावा
रोनिता कुंडू