पारिजात – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

आज सुदर्शना की मां का फिर फोन आया”,सुन बेटा,तू जितनी जल्दी हो सके,आ जा।तेरे भाई की तबीयत बहुत खराब है। हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ेगा।मुझे साथ रहना पड़ेगा।तू रहेगी तो दोनों छोटी बहनों को सहूलियत हो जाएगी।”सुदर्शना असमंजस में पड़ गई।कल से तो कुशल और पीहू की अर्धवार्षिक परीक्षा भी शुरू होने वाली है।स्कूल से छुट्टी लेना ठीक नहीं होगा।सुधीर आए तो पूछूंगी ,क्या करना है?

चेहरे पर चिंता की रेखाएं सुदर्शना की सासू मां से छिप नहीं पातीं थीं कभी।इस बार भी झट पकड़ लिया”क्या बात है बहू?कुछ हुआ है क्या मायके में?”

सुदर्शना ने मां के फोन करने की बात बताई,तो उन्होंने बड़े अधिकार से कहा”इसमें सोचने की क्या बात है? तुम्हारे मायके में तुम्हारी जरूरत है,तो जाना ही चाहिए।तुम सुधीर के साथ निकल जाओ आज ही।मैं हूं,तुम्हारे बाबूजी हैं,छोटी बहू है। सब संभाल लेंगें कुशल और पीहू को। चाची पढ़ा देगी,मैं अपने पास सुला लूंगी।तुम निश्चिन्त होकर जाओ।”

“ओह!!!कितना बड़ा बोझ उतार दिया आपने मेरे मन से।थैंक यू मां।”सुदर्शना दिल से कृतज्ञ थी,अपनी सास की समझदारी देखकर।वैसे यह पहली बार नहीं‌ था कि,मां ने कभी बुलाया हो और सासू मां ने भेजा हो।शाम को सुधीर के आते ही ,सासू मां ने उसे जाने के लिए कह दिया। सुदर्शना को कुछ भी नहीं करना पड़ा।हां‌ सुधीर ने मां से धीरे से कहा था”कुछ दिन बाद चली जाती मां।अभी बच्चों के पेपर शुरू होने वालें हैं।

बाबूजी की तबीयत ठीक नहीं रहती।”तब बेटे की बात बीच में ही काटकर कहा था उन्होंने “जैसे तुझे अपने बच्चों, भाई-बहन और हमारी परवाह रहती है ना,ठीक वैसे ही बहू को भी तो अपने मां, भाई-बहन की चिंता रहती है।अपना सारा समय तो वह हमारी देखभाल में लगाती ही है,

पर अब उसके घर वालों को उसकी जरूरत है।पापा हैं नहीं उसके।तू ही इकलौता दामाद है फिलहाल।तेरी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है।”सासू मां की बात दरवाजे पर खड़ी सुदर्शना ने सुन ली थी।अपने भाग्य पर ईश्वर को प्रणाम किया उसने।ऐसी सास भी होती हैं जगत में,ये कोई विश्वास ही नहीं कर पाएगा।

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अगले ही दिन सुदर्शना और सुधीर पंहुच गए,सुदर्शना के मायके।मां के साथ तीन दिनों तक हॉस्पिटल में रुके सुधीर।भाई को डिस्चार्ज करवाकर ही वापस आए।अगले दिन सुधीर बाजार घूमने गए,तो सुदर्शना ने मां से कहा”अब हम कल चले जाएंगे मम्मी। बच्चों के पेपर शुरू हो गएं हैं।वहां मां परेशान हो रहीं होंगी।देवरानी के ऊपर भी अलग से जिम्मेदारी आ गई है।अब गर्मी की छुट्टियों में आऊंगी ,तब ज्यादा दिन रहूंगी।”

मम्मी ने भड़कते हुए कहा”अभी दो दिन बाद ही तो मंझली बहन का जन्मदिन है।कम से कम दो दिन तो और रुक सकती है ना?मैं दामाद जी से कहूंगी,तो वे मना नहीं करेंगे।तू बस अपनी जिम्मेदारियों का बहाना बनाती रहती है हमेशा।ससुराल में सबकी सेवा करते-करते आया बन गई है।ना खुद की परवाह है ना हमारी।”सुदर्शना को अपनी मम्मी की यही बात बहुत खलती थी।मन की अच्छी थीं,पर बहुत कड़वा बोलती थीं।

खासकर सासू मां के बारे में।वह चुप ही रही ,तभी सुधीर आ गए।ढेर सारी सब्जियां,बासमती चांवल,मिठाई आदि लाए थे। मम्मी अपने दामाद का गुणगान करते हुए बोलीं”मैंने पिछले जन्म में जरूर कोई पुण्य किए होंगें,तभी आपके जैसा दामाद मिला।वरना तो खुद की बेटी को ही मां की चिंता नहीं।सुनिए ना दामाद जी ,दो दिन बाद चले जाइयेगा तो कुछ बुरा होगा क्या?आपकी साली का जन्मदिन है।बेटी तो रुकने को तैयार ही नहीं।”

सुधीर भी आवेग में‌ बोल दिए”ठीक है दो दिन‌ बाद ही चले जाएंगे।अभी पेपर में भी गैप मिला है।ज्यादा दिक्कत नहीं‌ होगी।”

सुधीर की बात खतम होते ही सुदर्शना ने कहा”आपको रूकना है तो शौक से रुकिए।मैं भाई की बीमारी के लिए आई थी।मांजी पर कितना अतिरिक्त काम का बोझ पड़ रहा‌ होगा, बच्चों को संभालने में।मुझे कल ही जाना‌ है।”

सुधीर ने समझाया”अरे, सुदर्शना!दो दिनों की ही बात है। मम्मी कितने प्यार से कह रही हैं,रुक जाओ ना।”

“नहीं सुधीर,यहां जन्म दिन के लिए रुकना मांजी को बेवकूफ बनाना होगा।आप जो यहां आ पाएं हैं ,उन्हीं के कारण।आना ही कहां‌ चाहते थे आप।”

मम्मी चिढ़कर बोलीं”हां -हां तुझे तो बस अपनी सास की ही चिंता रहती है।हमारा क्या हो रहा है,तुझे क्या?कभी ससुर की बीमारी,कभी देवर -ननद का बच्चा,कभी अपने बच्चों की परीक्षा।शादी के दस सालों में कभी भी शांति से महीने भर के लिए रहने आई है तू?बड़ी मौसी ने कितनी बार बुलाया है,

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गई है कभी।अरे मेरे साथ ही चली चलती।तेरी सास की टोका -टाकी।तू तो अपने घर में भी शाम के बाद नहीं निकलती।मैंने तभी मना किया था कि यहां मत कर शादी।इतना बड़ा संयुक्त परिवार है।सबकी देखभाल करने में ही ज़िंदगी निकल जाएगी।ना कहीं तीर्थ जाना,ना नाते-रिश्तेदारों के यहां जाना।होटलों में खा नहीं सकती।बाप रे बाप।घर है कि मेला।”

सुधीर नहाने गए थे,अच्छा हुआ उन्होंने कुछ सुना नहीं। सुदर्शना ने मौका देखकर मम्मी को सही जवाब दिया”मम्मी,ये जो तुम्हारे दामाद तुम्हें दुनिया के बेस्ट दामाद लगतें हैं ना,ये इनकी मां की परवरिश और सीख का परिणाम है।हर त्योहार में‌ जब वहां‌ कपड़े खरीदे जातें हैं,मांजी यहां के लिए बिना कहे लेतीं हैं।

संयुक्त परिवार को सुचारू रूप से चलाने के लिए वे अपने हिस्से का काम तक कर लेती हैं बिना नागा। उन्होंने कभी मुझे और सुधीर को बाहर जाने से नहीं रोका।तुम हमेशा उनकी बुराई ही देखती हो।वे तो हमेशा तुम्हारी बड़ाई ही करतीं हैं।तुमसे बहुत अलग हैं वो”

बेटी के मुंह से सास की तारीफ,नरक यंत्रणा के समान लगती थी उन्हें।

सुदर्शना रात को सोने गई तो,सुधीर ने छेड़ते हुए पूछा”ये तुम दोनों का वाक्युद्ध कभी खत्म होगा या नहीं।मुझसे तो कितने अच्छे से व्यवहार करतीं हैं मम्मी,तुमसे पता नहीं क्यों नहीं कर पातीं?”

पति का जले में नमक छिड़कना समझ रही थी वह।नींद अभी आई नहीं थी कि ,कुशल का फोन आया”मम्मी,पीहू खेलते-खेलते गिर गई मैदान में।चेहरे पर पत्थर लग गए।स्टिच करवाया तब खून बंद हुआ।तुम कब आ रही हो”

कुशल की बात सुनकर, सुदर्शना अब भावुक हो गईं। रोते-रोते कहने लगी”सुधीर ,हमारी पीहू को  इंजेक्शन से बहुत डर लगता है।मैं भी नहीं हूं वहां।चलिए ना जल्दी चलिए।”,

पहली बस में बैठकर निकल आए दोनों अपने घर।पीहू अपने दादा-दादी के साथ सो रही थी।कुशल‌ को चाची कुछ रिवीजन करवा रहा था।चाचा जी खाना बना रहे थे।मजेदार बात तो यह देखी कि ससुर जी,अपने नाती -पोतों के स्कूल के जूते पॉलिश कर रहे थे।सभी ने माता-पिता की अनुपस्थिति में दोनों बच्चों को उनकी कमी नहीं खलने दी थी।

सुदर्शना को अपने संयुक्त परिवार पर आज अभिमान हो रहा था।अगले दिन मां ने फोन पर पीहू की कुशलता पूछते हुए कहा “कैसी है पीहू अब?तेरे परिवार वाले एक छोटी सी बच्ची को भी नहीं संभाल पाए?सास का सारा समय तो तुझे रोक -टोक करने में ही निकल जाता है।दिन के चौबीस घंटे में अड़तालीस नियम हैं उनके।”सुदर्शना ने मां को रोकते हुए कहा”मम्मी,तुम्हारी

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बेटी जो आज आत्मनिर्भर है ना,उसमें दोनों मांओ का समान योगदान है।नौकरी करती हूं मैं,पर मेरी सास मेरी तनख्वाह कभी नहीं पूछती।मेरे बच्चों का जितना ख्याल मांजी और बाबूजी रखतें हैं,उतना शायद मैं भी नहीं रख पाती।मेरे देवर-देवरानी भी बच्चों की अपनी औलाद समझते हैं। संयुक्त परिवार में कुछ नियम बनाने पड़ते हैं बड़ों को ,ताकि परिवार ना टूटे।रोक -टोक भी जरूरी है हमारी भलाई के लिए। अनावश्यक आजादी ही कष्ट का कारण होती है।तुम्हारी मांजी के साथ

कोई प्रतियोगिता नहीं है मम्मी।तुमने मुझे इस लायक बनाया कि मैं संयुक्त परिवार में अपनी जगह बना सकूं।कल को तुम भी सास बनोगी।अपनी बेटी को तो सभी प्यार करतें हैं,पर बहू को दिल से अपनाना और प्यार करना बहुत बड़े दिल वाली सास का होता है।रोक -टोक तो होती है ऐसे संयुक्त परिवार में,

पर एक सुरक्षा और परवाह का सुख भी होता है।मेरी सास जो सारा समय तुम्हारे संस्कार और परवरिश की तारीफ करते नहीं थकती,प्लीज़ तुम मेरे परिवार की बुराई करके अपने आप को छोटा मत किया करो।”

हांफती हुई जैसे ही सुदर्शना पलटी,पीछे सासू मां चाय लेकर खड़ी थी। सुदर्शना झेंप गई,तो सासू मां ने फोन पर बात आगे बढ़ाते हुए कहा”बहन जी,अब पीहू बिल्कुल ठीक है।आप जब समय मिले आकर मिल जाइयेगा अपनी नवासी से।”सुदर्शना के कंधे पर हांथ रखकर मांजी ने मुस्कुरा कर उसे ढांढ़स बंधाया। सुदर्शना उनकी छाती से लग गई,और रोने लगी। उन्होंने कहा”मेरे परिवार को तुम ही जोड़कर रखी हो बहू,और यह तुम्हारी मां की सीख है।”

सुदर्शना अभिभूत थी सास की बातें सुनकर।

शुभ्रा बैनर्जी

संयुक्त परिवार में रोक टोक जरूर है,पर एक सुरक्षा और परवाह भी है

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