पाप या पुण्य… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

धम्म से गिरने की आवाज सुनते ही… प्रभा उठकर लपकी तो अम्मा बीच में आ गई…” नहीं तुझे नहीं जाना… लता जाएगी… लता देख तो…!”

 “जी अम्मा…!”

” नहीं मां… भास्कर मेरी राह देख रहा होगा…!”

” बोला ना नहीं… सिर्फ भास्कर ही नहीं यह चार दिन की नन्ही जान भी तेरी राह देख रहा है… उसे लता संभाल लेगी…!”

 पर प्रभा का मन पिंजरे में बंद पंछी की तरह कुलबुला रहा था… जैसे ही अम्मा की नजर हटी.… वह भाग कर भास्कर के पास पहुंच गई… पूरे एक हफ्ते से उसे भास्कर से अलग रहना पड़ रहा था… 

दस साल का भास्कर जिसका शरीर बिल्कुल ही पराश्रित था… अपने काम कर पाना तो दूर… बोलना भी नहीं शुरू किया था उस अविकसित बच्चे ने… उसके जीवन का आदि भी प्रभा थी और अंत भी… प्रभा के लिए भी वह कलेजे के टुकड़े का यथार्थ स्वरूप था…

पर यह कलेजे का टुकड़ा… घर के बाकी लोगों के लिए गले की फांस बन गया था…

 अभिनव और प्रभा के वैवाहिक जीवन का पहला पुष्प था भास्कर… जिसका जन्म एक अविकसित बच्चे के रूप में हुआ था… उसके जन्म के बाद से अभिनव और उसकी मां मंजू देवी उसे बस कोसने के सिवा कुछ नहीं कर सके थे…

पर प्रभा उसे सच्चे दिल से प्यार करती थी… उसका भास्कर उसकी जान था… और उस मूक बच्चे की जान भी केवल उसकी मां थी… उसके कारण प्रभा ने सारी दुनिया से रिश्ता तोड़ लिया था…

 अभिनव ने भास्कर की देखरेख के लिए अलग से केयरटेकर रख दिया था… पर उसका इस घर में कोई काम नहीं था…

” प्रभा इस बार तो तुम्हें जाना ही पड़ेगा… भैया के बच्चे का मुंडन है… पिछले महीने चाचा जी की बेटी के ब्याह में भी नहीं गई थी…!”

 कितने ही काम जन्म,मरण, शादी, विवाह, मायके ससुराल कहीं भी प्रभा नहीं जाती थी… इस बार अभिनव ने जिद कर कहा…” भास्कर को लता रखेगी…!”

” नहीं अभिनव… भास्कर को छोड़ मैं कहीं नहीं जाऊंगी…!”

” पर ऐसा कैसे चलेगा बहु… पिछले कई सालों से तूने घर से बाहर कदम नहीं रखा… सारे रिश्ते नाते टूटते जा रहे हैं तेरी जिद के कारण… उस करमजले को देखने के लिए जब आया है तो… तू क्यों अपनी और हमारी जिंदगी तबाह किए है…!” 

“नहीं अम्मा… आप लोग चाहे जो कहें… पर मैं भास्कर को ना आया के भरोसे छोड़ सकती हूं और ना दूसरों की दया भरी दृष्टि का सामना करने ले जाना चाहती हूं… मुझे सबकी नजर में दया का पात्र नहीं बनना… मैं जैसी हूं अपने घर में अपने बेटे के साथ बहुत खुश हूं…!”

 इसी तरह 9 साल प्रभा ने जिद में गुजार दिए… पर अब मंजू की जिद पर हार गई थी… ” मुझे एक दूसरा बच्चा चाहिए… एक बार और देखो…!”

 अभिनव और मंजू जी की जिद का परिणाम था कि… शुभम प्रभा की जिंदगी में दूसरे बेटे के रूप में आया… एक स्वस्थ बच्चा… जिसे देखकर और पाकर सब ने राहत की सांस ली थी… पर अब भी प्रभा का भास्कर को समय देना मंजू जी के लिए असह्य होता जा रहा था…

वह तरह-तरह से प्रभा को भास्कर से दूर करने की कोशिश करती… वे चाहती थीं कि प्रभा अपना सारा प्यार और समय शुभम को दे… पर पहला बच्चा आखिर पहला ही होता है…

 भास्कर भी शायद जान गया था की मां अब उसके पास कम आती है… इसलिए वह बार-बार घिसकने की कोशिश करता और बिस्तर से गिर जाता… उसके गिरने का अनुपात पहले से कई गुना बढ़ गया था…

 पहले तो प्रभा हर वक्त उसके ऊपर आंखें गड़ाए रखती थी… पर एक तो छोटा बच्चा… ऊपर से मां की सख्ती के कारण… वह भास्कर को समय दे ही नहीं पा रही थी… भास्कर रोज दसों बार बिस्तर से पलट कर धम्म से गिरता और प्रभा अपने सारे काम छोड़ भागती…

  आज प्रभा शुभम को दूध पिला रही थी और उसे बीच में ही नीचे रख… भास्कर के लिए भागी… शुभम की कलेजा चीरने वाली चीख सुनकर मंजू जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया… आश्चर्य वह कुछ ना बोलीं… प्रभा ने तो सोचा था की आज बहुत डांट पड़ेगी… शुभम को दोबारा उठा कर पुचकारा और थोड़ी मान मनोव्वल के बाद दूध पिलाने लगी…

 बहुत देर हो गई भास्कर की कोई आवाज नहीं आई… जब शाम से रात हो गई तो प्रभा चुपके से भास्कर के कमरे में गई… लता बगल में दूसरे बिस्तर पर सो रही थी… भास्कर को लाड़ करने को मां ने सर पर हाथ रखा तो सर ठंडा पड़ा था… वह चीख उठी… “भास्करऽऽ……!”

 भास्कर जा चुका था… उसे उसके शापित देह से मुक्ति मिल गई थी… पर अचानक कैसे…?

 उसका जाना अभिनव और मंजू देवी साथ ही घर के बाकी लोगों के लिए मुक्ति का विषय था…” चलो मुक्ति मिली…!” ” पाप कटा…!”

 कितने ही टूटे रिश्ते फिर जुड़ गए… प्रभा के आंसू भी यह सोचकर सूख गए कि… शायद अब उसके पुत्र की यातना खत्म हुई…

 चार साल हो गए… प्रभा तीसरी बार मां बनी… इस बार पुनः पुत्र ने जन्म लिया… उसे देखते ही प्रभा के मुख से एकबारगी ही निकल पड़ा…” मेरे भास्कर…!” बिल्कुल वही आकृति… वही मुख… वही नैन नक्श… पर इस बार अविकसित नहीं विकसित… पूर्ण बच्चा…

 मंजू देवी को तो जाने कौन सा रोग लग गया था… जब से भास्कर ने दोबारा जन्म लिया… प्रभा की खुशी का ठिकाना नहीं था…” मेरा भास्कर मेरे पास वापस आ गया…!” और दादी की हालत उसी अनुपात में बिगड़ रही थी…

इधर भास्कर बड़ा हो रहा था और उसकी बढ़ती आकृति में भास्कर की छवि देख-देख कर मंजू जी और अधिक बीमार होती जाती थीं…

 वही माघ का महीना था… जिस महीने में भास्कर की मौत हुई थी… मंजू देवी अपनी आखिरी सांसें गिन रही थीं… अब तक भास्कर चार साल का हो गया था… मंजू जी की सांस कंठ में अटकी हुई थी… ना निकलती थी ना टिकती थी…

 दबे स्वर में कई दिनों बाद आज उन्होंने प्रभा को आवाज लगाया…” शुभम बेटा… मां को बुला ला…!”

 शुभम प्रभा को बुला लाया…” हां अम्मा…!”

” प्रभा मेरे प्राण… मेरे पाप पुण्य में फंस कर रह गए हैं… लगता है तुझे बताए बिना नहीं निकलेंगे… !”

“क्या अम्मा… क्या हो गया…?”

” मेरी बच्ची… तेरे भास्कर को पहली बार क्या हुआ था जानती है… उस दिन तूने शुभम को रोता छोड़ा… यह मुझसे देखा ना गया… इसलिए जब तू भास्कर के कमरे से वापस आई… तो मैं वहीं खड़े होकर उसके दोबारा गिरने का इंतजार कर रही थी…

थोड़ी ही देर बाद भास्कर फिर पलटने को… पास में रखे तकिए के ढेर को धकेलता गिरने लगा… मैंने उसे कस कर दबा दिया… उसका सर नीचे था… अपने गुस्से में बेकाबू मैंने यह भी नहीं सोचा कि उसका दम घुट रहा है…

वह मूक बच्चा बिना आवाज किए इस दुनिया से चला गया… इस सच का बोझ मेरे सीने पर पहाड़ से भी भारी हो गया…भास्कर के दोबारा जन्म लेने के बाद तो और भी… मैं यह नहीं जानती यह क्या हुआ… और क्यों हुआ… पर मेरी बच्ची यह पाप मैंने किया था… और उसका प्रायश्चित अब मैं अपनी जान देकर कर रही हूं… मुझे माफ करना… प्रभा… भास्कर को एक बार मुझे दे… मुझे उसके चरण छूने दे…!”

 अम्मा ने भास्कर के पैरों पर सर रखकर अपने प्राण त्याग दिए… प्रभा सारी बातें सुन अब तक खड़ी ही थी… अम्मा चली गई… प्रभा ने लपक कर भास्कर को सीने से लगा लिया… शुभम भी पीछे से लटक गया… प्रभा की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे…

वह अपनी मृत सास के चेहरे को देख रही थी… आज कितनी शांति थी उस चेहरे में… इतने सालों से इस पाप पुण्य के बोझ को उठाकर जीने वाली अम्मा को… आज मुक्ति मिल गई थी… और प्रभा इस सोच में थी की अम्मा ने पाप किया या पुण्य…

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा

#टूटते रिश्ते

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