सरस्वती की जब शादी पक्की हुई तो वो अपने दहेज की चादरों पर कडाई बुनाई का काम करने में लग गई क्योंकि वो कृष्ण की भक्त थी इसलिए चादरों तकियों के कबर पर यहां तक कि तौलिये के कपड़े पर भी उसने बहुत ही खूबसूरत फूल पत्तियों के साथ साथ राधा कृष्ण की तसबीरें धागों से उकेरी थीं जो देखने मे बहुत ही अलग और खूबसूरत थीं। पूरे गांव में उसकी कडाई की प्रशंसा हो रही थी। कहानी हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव अम्ब की है।
शादी के बाद जब वो ससुराल में आई तो ससुराल में भी उस बहुत प्यार मिला।उसके पति सरकारी नौकरी करते थे घर परिवार बहुत अच्छा और संपन्न था किसी चीज की कोई कमी नही थी। उसकी सास हमेशा उसे कहती कि अब जल्दी से पोते का मुहँ दिखादे ऐसा न हो कि पोते का मुहँ देखे बिना ही मैं चली जाऊं। दरअसल उसकी सास को पोता चाहिए था और सरस्वती और उसके पति की भी यही इच्छा थी कि उसके पहले लड़का हो।
शादी के चार पांच महीने बाद ही उसके पांव भारी हो गए। घर मे खुशी का माहौल था। ये खबर सुनकर सरस्वती के पति उसके लिए झुमके खरीदकर लाते हैं जिनकी लटकन में राधा कृष्ण की छोटी छोटी मूर्तियां लटक रही थी। झुमके देखकर सरस्वती की खुशी चार गुना हो जाती है उसके पति अपने हाथों से झुमके उसके कानों में पहनते हैं। अब हर कोई बस एक एक दिन गिनकर लड़का होने का इंतज़ार का रहा था। मगर ऐसा हुआ नही सरस्वती को लड़की हुई थी जिससे पूरे घर मे मानो मातम छा गया था हर कोई परेशान था।सरस्वती भी बहुत उदास हो गई थी। मगर अब करते भी तो क्या।
एक रात की बात है सरस्वती और और उनका पति आपस मे सलाह करते हैं कि इस लड़की से कैसे छुटकारा पाया जाए पहले तो वो उसे मारने की योजना बनाते हैं मगर पकड़े जाने के डर से वो ऐसा नही करते। वो दोनों सलाह बनाते हैं कि अगले महीने जन्माष्टमी का मेला है हम मेले के बहाने जाएंगे और इसे कहीं दूर छोड़ आएंगे गांव में आकर कह देंगे कि बच्ची को भीड़ में कोई चोर छीनकर भाग गया।
दोनों अगले दिन तैयार होकर निकलते हैं और अम्ब रेलवे स्टेशन पर जाकर कोलकता जाने वाली ट्रेन में बैठ जाते हैं। पहला स्टेशन था तो ट्रेन ज्यादातर खाली ही थी गिनी चुनी सवारियां ही थीं। वो एक खाली डिब्बे में चढ़ जाते हैं जिसमे दो चार लोग ही आगे पीछे बैठे थे। क्योंकि उन्हें अगले ही स्टेशन पर उतर जाना था
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इसलिए सरस्वती बच्ची को सुलाने की कोशिश कर रही होती है वो उसे अपने कंधे पर रखकर झुलाने लगती है। बच्ची का हाथ उसके गालों पे लगता है और अचानक से उसका झुमका बच्ची के हाथ मे आ जाता है सरस्वती इस सबसे अनजान थी जैसे ही अगला स्टेशन आया बच्ची नींद में थी और वे दोनों उसे सीट पर लेटाकर ट्रेन से उतर जाते हैं कुछ ही देर में ट्रेन निकल जाती है।अब वो चैन की सांस लेते हैं क्योंकि उन्हें पता था कि अगला स्टेशन चंडीगढ़ अब कई सौ किलोमीटर दूर है बहां न तो कोई बच्ची को पहचान पाएगा न वो कभी बापिस आएगी।
चंडीगढ़ स्टेशन पर गाड़ी रुकती है वहां नई सवारियां चढ़ती है बच्ची जोर जोर से चिल्ला रही होती है लोग बच्ची की आवाज सुनकर उधर जाते हैं तो देखते हैं कि बच्ची एक तौलिए में लिपटी हुई है उसे उठाकर डिब्बे में सबसे पूछते हैं पर कोई उसका जानने वाला नही मिलता। ट्रेन चल पड़ती है और वो परिवार जो कलकत्ता जा रहा था उस बच्ची को अपने साथ ले जाता है बहां जाकर रेलवे पुलिस को बच्ची सौंप देते हैं। कोलकाता में पुलिस ने काफी जांच पड़ताल की मगर बच्ची के माता पिता का कोई पता नही चला अब उस जमाने मे न कैमरे थे
न कोई आधुनिक साधन जिससे उसके मां बाप को ढूंढा जा सके कुछ दिन तक वो लोग बच्ची की देखवाल करते हैं मगर जब हफ्ते तक किसी पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट नही आती तो वो बच्ची को पास के एक अनाथालय में छोड़ देते हैं और बच्ची के पास से मिले कपड़े और झुमका भी उनके पास जमा करवा देते हैं। बच्ची के पास से मिले झुमके पर राधा कृष्ण की तसबीर और जिस तौलिये में वो लिपटी थी उसपर भी राधा कृष्ण की तस्वीर बनी हुई थी क्योंकि ये बो ही तौलिया था जो सरस्वती ने अपने दहेज के लिए कडाई करके बनाया था। इसलिए बच्ची का नाम भी अनाथालय में राधा ही रख दिया जाता है।
कई साल गुजर गए राधा अब अनाथालय में ही रहकर बड़ी हुई वो अब दूसरे अनाथ बच्चों की देखवाल करती थी और अनाथालय में बने कमरे में ही रहती थी। उधर सरस्वती के लड़का हुआ था जिसे बहुत ही लाड़ प्यार से पाला था।
लड़के की शादी हो जाती है कुछ दिन तक सबकुछ ठीक चलता है मगर अब सरस्वती और उसका पति बूढ़ा हो गए हैं। बहु बड़े घर की आई है दाज दहेज इतना लाई है कि पूरा गांव देखता रह गया। मगर वो गांव में नही रहना चाहती। शादी के कुछ ही दिन बाद वो पति को गांव छोड़कर शहर में घर लेने के लिए जोर डालने लगती है। बेटा अपनी मां सरस्वती से सारी बात कहता है और मां से बिनती करता है कि पापा को मना लो हम सब मजे से शहर में रहेंगे। बहु की जिद्द और बेटे के घर बचाने के चक्कर मे सरस्वती अपने पति को मनाकर अपना घर जमीन बेचने को तैयार कर लेती है।
घर जमीन सबकुछ बेचकर वे लोग कोलकाता आ जाते हैं क्योंकि उस समय कलकत्ता उद्योंगो के लिए सर्वश्रेष्ठ जगह थी बेटा भी चाहता था कि कोलकाता में जाकर कोई छोटा मोटा ब्यापार करूँगा। शहर में आने के बाद बहु और बेटे का स्वभाव एकदम बदल जाता है अब उन्हें बूढ़ा बूढ़ी दोनों ही बोझ लगने लगते हैं। पूरा दिन घर मे बैठे रहने के कारण बात बात पर अपमानित करने लगते हैं। आखिर एक दिन ऐसा आता है जब बहु अपने ससुर पर बदनीयती का इल्जाम लगा देती है ये सुनकर बेटा तो जैसे इंतज़ार ही कर रहा था मौके का और उन दोनों को धक्के मारकर घर से निकाल देता है।
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पुरानी जमीन घर बिक चुके थे नए घर मे उनका कुछ था नही एक पोटली में कुछ पुरानी यादें समेटकर दोनों अनजान सफर पर निकल पड़ते हैं।कहीं कोई भीख दे दिया करता तो कोई खाना मगर कुछ ही दिनों में उनकी हालत वद से बद्तर होती गई। बिना नहाए फ़टे कपड़ो में वो पागलों की तरह नजर आने लगे। कोई सज्जन आदमी उन दोनों को अनाथाश्रम छोड़ आता है। बहां भगवान की इच्छा ही थी कि वो ही राधा नाम की लड़की उनकी देखभाल का जिम्मा लेती है जिसे वो दोनों ट्रेन में छोड़ गए थे।
राधा ने उन्हें अच्छे से नहलाकर कपड़े आदि दिलाकर अपने कमरे में ले गई। राधा दिन रात दोनों की सेवा अपने माँ बाप की तरह करती है। उसे ऐसा लगता है जैसे आने माँ बाप मिल गए हों एक अजीब सा रिश्ता महसूस होता था उसे। वो अब बहुत खुश थी दोनों को पाकर और यही कहती कि बचपन मे तो माँ बाप का प्यार नही मिला पर चलो भगवान ने अब मुझे मां बाप दे दिए। न जाने मेरे मां बाप जिंदा होंगे या नही या क्या पता किस मजबूरी में मुझे वो छोड़ गए होंगे। ऐसे ही महीना भर निकल गया
एक दिन जब वो सूटकेस से पैसे निकालने लगती है तो अचानक सरस्वती की नजर उस सन्दूक में पड़े झुमके पर पड़ती है वो हैरानी से झुमके की तरफ देखती है और राधा से पूछती है कि ये झुमका किसका है। राधा बताती है कि मुझे नही पता मगर मुझे कोई बचपन मे ही ट्रेन में छोड़कर चला गया था मेरे पास जो समान मिला था उसमें ये झुमका भी था। जब मैने होश संभाला तो मुझे यही बताया गया की जब मैं रो रही थी तो ये झुमका मेरे हाथ मे था।
सरस्वती उत्सुकता से ब्याकुल होकर पूछती है कि क्या वो तौलिया भी तुम्हारे पास है जिसपर राधा कृष्ण की कडाई की हुई तस्बीर थी? राधा ने सरस्वती की तरफ देखा और पूछी आपको कैसे पता? राधा वो तौलिया सूटकेस से निकालती है जिसे गले से लगाकर सरस्वती जोर जोर से रोने लगती है। और कहती है कि बेटी आज मुझे समझ आया हम दोनों ने जो पाप किया था उसकी सजा हमे इसी जन्म में मिल गई। जिस तरह तुम अपने परिवार के लिए तड़पी बैसे ही हमे भी तड़पना पड़ा। जिस तरह तुम भूख प्यास से ब्याकुल हुई
बैसे ही हम भी हुए। ये हमारे कर्मो का फल था जिसने तुम्हे घर से बेघर कर दिया बैसे ही भगवान ने हमे बेघर कर दिया। वो रोते रोते अपनी कपड़ो की पोटली खोलती है और ठीक बैसा ही दूसरा झुमका निकालती है और कहती है कि तेरे पिता ने बड़े प्यार से मेरे लिए खरीदे थे एक गुम हो गया था मगर दूसरा मैंने हमेशा संभालकर रखा था। हम ही वो पापी हैं जिन्होंने तुझे ट्रेन में छोड़ा था। जिस बेटे के लालच में हमने तुझे छोड़ा आज उसी बेटे ने हमे इस हालत तक पहुंचा दिया।
अब वो हाथ जोड़कर बैठ जाती है और कहती है कि हम तेरे गुनहगार है बेटा भगवान ने हमे खूब सजा दे दी मगर तेरे साथ जो जुल्म हमने किया उसके मुकाबले ये सजा बहुत कम है। ये सुनकर राधा की आंखे भी भर आती हैं दोनों मां बेटी गले लगकर जी भरके रोती हैं उनके रोने की आवाज सुनकर बाहर धूप में बैठे उसके पिता भी अंदर आ जाते हैं और जब सच्चाई उन्हें पता चलती है तो वो भी बदहवास से होकर बेटी से लिपट जाते हैं।
कहानी का मकसद सिर्फ इतना था कि हमारे पाप हम समाज से कितने भी छुपा लें भगवान से नही छुपा सकते।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश