ओपन जेल – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

सात-आठ साल पहले का किस्सा है जब समिधा अपने कॉलेज के अंतिम वर्ष में थी। NCC कैडेट के तौर पर उसे पर्वतारोहण प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने का अवसर मिला। शिविर का आयोजन केरल राज्य के तिरूवनंतपुरम जिले के अंतर्गत आने वाले नेय्यार डैम क्षेत्र में किया गया था।

प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक दिन शैक्षिक भ्रमण के लिए रखा गया था, जिसके तहत समिधा और उसके साथियों को इसी क्षेत्र की ओपन जेल, नेट्टूकलथेरी जेल में ले जाया गया। यह भारत की पहली ओपन जेल है, जो 1962 में स्थापित की गई थी।

इस अनूठी जेल में कैदी जेल की चारदीवारी में स्वयं खाना बना रहे थे, बरतन और कपड़े आदि धो रहे थे। इस सुधार प्रणाली को देखकर समिधा को बहुत अच्छा लगा।

थोड़ा आगे चलकर वे जेल के खुले क्षेत्र में पहुंचे, जहां कैदी स्वयं सब्जियां उगाते हैं। लगभग 30 कैदियों की कार्यशाला चल रही थी। 22-23 साल का एक लड़का उन्हें सब्जियां उगाने का सही तरीका, विभिन्न सब्जियों के लिए मिट्टी को कैसे तैयार करें, कौन सी सब्जी को कैसे उर्वरक चाहिए, आदि सब चीज़ों के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दे रहा था।

समिधा के आश्चर्य की सीमा न रही जब उसे पता चला कि आकर्षक व्यक्तित्व का वह लड़का भी जेल का एक कैदी ही है। उसने अपनी एस्कॉर्ट इंचार्ज से पूछा, “क्या उससे बात की जा सकती है?”

“क्यों नहीं! इनसे जानिए, समझिए! इसीलिए तो तुम्हे यहां लाया गया है,” इंचार्ज ने कहा।

कार्यशाला के बाद समिधा ने पूछ डाला, “आपका नाम क्या है? आप अपराधी तो नहीं लगते! आप किस अपराध के जुर्म में यहां आए हैं?”

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वह अपनी कहानी सुनाने लगा, “मेरा नाम राकेश है। मैं अपने माता-पिता का अपराधी हूं। मैंने उनका दिल दुखाया है। जो अपने माता-पिता का दिल दुखाते हैं, भगवान उन्हें जरूर सजा देते हैं।”

“बचपन में मैं एक अच्छा विद्यार्थी था। मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं पढ़-लिखकर उनका नाम रोशन करूं। इसलिए विद्यालय की शिक्षा के बाद उन्होंने मुझे कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजा। मेरे पिता एक दुकान पर मुनीम हैं। उनकी आय सीमित है। फिर भी किसी तरह प्रबंध कर उन्होंने मुझे हर सुविधा दी।”

“स्कूल में अनुशासन में रहा था, तो कॉलेज में जाकर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं जेल से छूटा हूं। यहीं से मेरे बिगड़ने की शुरुआत हुई। मैं कुसंगति में पड़ गया। मेरी मां ने एक दो बार मेरी कमीज की जेब से सिगरेट पकड़ ली। मुझे बहुत समझाया पर मेरे कान पर जूं न रेंगी।”

“पुस्तकें, जेब खर्च, फीस आदि के नाम पर मैं कभी मां तो कभी पापा से पैसे मांगता रहा। मां के द्वारा घर खर्च के पैसों से बचाकर जोड़ी गई पाई-पाई, मां मुझे देती रही। बेचारी सोचती रही कि एक दिन मैं पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा। पर मैं उस पैसे से गुलछर्रे उड़ाने लगा।”

“धीरे-धीरे मेरी एक गर्लफ्रेंड बन गई। अब मैं उसे घुमाने-फिराने और खिलाने में भी पैसे उड़ाने लगा। पापा की सारी सेविंग्स पढ़ाई के नाम पर मैंने खत्म करवा दी। मेरी मति बुरी तरह भ्रष्ट हो चुकी थी।”

“मैं अपनी गर्लफ्रेंड के आकर्षण में डूबता गया और उसकी नाजायज मांगें बढ़ती गई। वह मुझसे आईफोन मांगने लगी। उसके लिए मैंने अपने कम नंबर आने का कारण, लैपटॉप की कमी बताकर अपने पापा को कर्ज लेने पर मजबूर किया। इस तरह मैं अपनी गर्लफ्रेंड की हर मांग को पूरा करता गया।”

“मैं मम्मी-पापा का भरोसा तोड़ता गया। उन्हें कर्ज में फंसाकर, खुद फर्स्ट ईयर में फेल हो गया तो बेचारे बहुत रोए। मैंने उनसे वादा किया कि अब सुधर जाऊंगा और गर्लफ्रेंड पर व्यर्थ व्यय बंद कर दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि मेरी गर्लफ्रेंड मुझे छोड़कर किसी और के साथ लग गई। ये सब मुझे स्वाभिमान पर चोट जैसा लगा। उसके साथ खूब लड़ाई की। अपने होश-हवाश खोकर उस दिन मैंने खूब पी ली।”

“कॉलेज के आवारा लड़कों ने मेरी स्थिति का फायदा उठा कर मुझे और पिला दी। जब मेरे होश गुम हो गए तो उन्होंने मेरी जेब से मेरा मोबाइल निकालकर मेरी गर्लफ्रेंड की फोटो एडिट कर मेरे सोशल मीडिया प्रोफाइल से अपलोड कर दी। फोन मेरी जेब में फिर से ठूस कर भाग गए। कुछ ही समय में वह अश्लील फोटो वायरल हो गई।”

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“अभी तो मुझे होश भी नहीं आया था कि पुलिस वालों की आवाजें मेरे कानों में आ रही थीं, “चल, तेरा नशा तो हम पुलिस स्टेशन में ही उतारेंगे।” मेरे खिलाफ साइबर बुलिंग और गोपनीयता का उल्लंघन के मामले तो दर्ज हुए ही, मानसिक रूप से चोटिल हुई मेरी गर्लफ्रेंड ने मुझ पर अनेक संगीन आरोप लगा दिए।”

“मुझ पर अनेक धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। ये सब अपराध तो मैंने किए ही नहीं थे, पर सारे सबूत मेरे खिलाफ थे। दुनिया की नजरों में मैं इन सब अपराधों का दंड भुगत रहा हूं, जो मैंने किए ही नहीं।”

“पर मां-पापा का दिल दुखाने का जो अपराध मैंने किया है, हमारे देश की अदालतें क्योंकि उसकी सजा तय नहीं कर सकतीं, तो भगवान ने मुझे इन सब झूठे आरोपों के माध्यम से सजा दी है। भगवान की अदालत से कोई नहीं बच सकता।”

“जब कोई मुझे बलात्कारी, नीच, अधम आदि कह कर हेय दृष्टि से देखता है, तो मेरी नजरें नहीं झुकतीं। पर जब मेरे माता-पिता मुझसे मिलने आते हैं, तो मैं नजरें नहीं उठा पाता। जिन माता-पिता ने अपना पेट काटकर मुझ पर सब अर्पण कर दिया, उनका दिल दुखाने की ये जो सजा ईश्वर ने मुझे दी है, ये बहुत कम है।”

“जानते हो क्यों? क्योंकि मेरे माता-पिता अपना घर गिरवी रखकर कर्ज लेकर वकीलों के माध्यम से भगवान से भिड़ पड़े। अपने कुपुत्र के लिए भगवान को भी मेरे माता-पिता ने मजबूर कर दिया और मुझे मुख्य जेल की बजाय तीन साल के लिए इस ओपन जेल में रखा गया।”

“यहां मुझे अढ़ाई साल हो गए हैं। इस सुधार गृह में मैंने बहुत कुछ सीख लिया है। मैं आत्मनिर्भर हो गया हूं। 6 महीने में मेरी सजा समाप्त हो जाएगी और मैं समाज की मुख्यधारा में आम इंसान की तरह समायोजित हो जाऊंगा। मां-पापा का कर्ज भी उतार दूंगा और उनके प्रति अपने कर्तव्य भी निभाने लगूंगा।”

“पर एक काम मैं कभी नहीं कर पाऊंगा। वह है अपराधबोध से मुक्ति। ताउम्र अपराधबोध में जीने से बड़ी कोई सजा नहीं होती। इसलिए आप सब से कह रहा हूं कि कभी मां-पापा का दिल मत दुखाना। इससे बड़ा कोई अपराध नहीं!” इतना कह कर राकेश ने अपनी वाणी को विराम दे दिया।

समिधा और उसके साथियों की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने राकेश को आगे की जिंदगी के लिए शुभकामनाएं दीं। उन सब ने कभी मां-पापा का दिल न दुखाने का प्रण लिया।

शिविर से वापस आकर समिधा ने राकेश की कहानी अपने भाई-बहनों को सुनाई, कॉलेज में अपने सहपाठियों को सुनाई, पड़ोस के बच्चों को सुनाई। चार साल पहले वह शिक्षिका बन गई। तब से अपने विद्यार्थियों को सुना रही है। अगर एक व्यक्ति भी समझकर मां-पापा का दिल दुखाना छोड़ देगा तो समिधा का उद्देश्य सफल हो जाएगा।

-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

प्रतियोगिता वाक्य: #जो अपने मां-बाप का दिल दुखाते हैं, भगवान उन्हें जरूर सजा देते हैं।

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