गीतांजली की नियति में क्या लिखा है? पता नहीं। बिल्कुल मासूम, प्यारी छोटी सी बच्ची। दो साल की थी,और माँ किसी बिमारी में चल बसी। दादी वृद्ध थी, पर उसे बहुत प्यार से पालती थी। बुआ प्यार करती थी,तो उनकी शादी हो गई। सबने बहुत समझाया मगर राजन दूसरी शादी के लिए तैयार नहीं था।
दादी कब तक साथ देती? गीतांजली जब ५ साल की हुई तो वे भी उसे छोड़कर चली गई। राजन के पिताजी ने कहा ‘बेटा मैं भी बूढ़ा हो गया हूँ, तू घर और बाहर के कार्य अकेले कैसे सम्हालेगा।
मेरी बात मान ले बेटा, गीतांजली भी अभी बहुत छोटी है। रेवती के परिवार को मैं जानता हूँ, अच्छा परिवार है, रेवती भी अच्छी लड़की है तू उससे शादी करले। विवश होकर राजन ने रेवती से इस शर्त पर शादी की, कि वह गीतांजली को अपने बच्चों की तरह पालेगी।
उसने वचन दिया, तीन साल तक तो उसने गीतांजली का बहुत ध्यान रखा,कारण यह था कि स्वयं के बच्चे नहीं हुए थे, दूसरा ससुर जी की पैनी नजर रहती थी, कि वह गीतांजली का ध्यान रख रही है या नहीं। ससुर जी भी शांत हो गए और रेवती को एक बहुत ही खूबसूरत प्यारी सी बच्ची हुई,
उसका नाम उन्होंने माधवी रखा। गीतांजली की खुशी का ठिकाना नहीं था, वह अपनी छोटी बहिन को बहुत प्यार से रखती थी।अब रेवती का सारा ध्यान माधवी पर रहता। हालाकि उसने गीतांजली को भी कोई तकलीफ नहीं दी, पर उसका पूरा झुकाव माधवी की तरफ हो गया,
वह हमेशा अपनी बेटी की सुख सुविधा के बारे में सोचती, राजन के सामने तो वह ऐसा व्यवहार करती जैसे उसे गीतांजली की बहुत चिंता है, मगर मन ही मन में वह उसे बोझ समझने लगी थी,और जल्दी से जल्दी उसकी शादी करके उसे घर से बिदा करना चाहती थी।
उसकी बेटी माधवी भी हर बात में गीतांजली का खार करती थी। एक बार वह अपनी माँ के साथ नानाजी के यहाँ गई,तो वहाँ उसकी नानी ने उसके मन में और जहर भर दिया, कहा कि ‘तेरे पापा तो बस गीतांजली को चाहते हैं, तू सम्हल कर रहना, उसके बहकावे में मत आना।’ गीतांजली उसके साथ अच्छा व्यवहार करती,
तो भी उसे हमेशा गलत लगता और हमेशा उससे लड़ने के लिए तैयार रहती, रेवती भी माधवी को कुछ नहीं कहती। राजन तो नौकरी पर सुबह नौ बजे से निकलता तो रात की दस बजे घर आता, उसे कुछ पता ही नहीं चलता।
गीतांजली धीर गंभीर लड़की थी उसे बेकार के विवाद पसंद नहीं आते थे, वह शांतिप्रिय थी। अपने पिता से कभी किसी की शिकायत नहीं करती। पिता घर की वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ थे। गीतांजली दिखने में साधारण थी, रंग भी सांवला था।
उसने बारहवीं की परीक्षा पास कर ली थी। रेवती ने गाँव में रहने वाले सुरेश से जिसका खेती बाड़ी का काम था, गीतांजली के रिश्ते की बात चलाई और सब तय होने के बाद राजन से बात की। उसके और उसके परिवार की बहुत प्रशंसा की।
राजन को लगता था कि रेवती दोनों बच्चियों को बराबरी से प्यार करती है, उसकी वास्तविक मन्शा वह नहीं समझ पाया। उसने रिश्ते को स्वीकृति दे दी। गीतांजली और पढ़ना चाहती थी, मगर उसने माता- पिता की इच्छा के अनुसार शादी कर ली और ससुराल चली गई।
घर की माली हालत कमजोर थी,गीतांजली को कई जगह मन को मारना पढ़ता था। रेवती खुश थी, वह चाहती थी कि माधवी अच्छी पढ़ाई करे, सुन्दर तो वह बहुत है, बस किसी तरह सुन्दर से राजकुमार जो धनाड्य हो, से उसका विवाह हो जाए और वह राजरानी की तरह जिन्दगी बसर करे। माधवी कॉलेज में आ गई थी।
उसके कॉलेज में पढ़ने वाले रूपेश का दिल उसकी सुन्दरता पर आ गया, किस्मत से वह उनकी बिरादरी का ही था,और रईस खानदान का इकलौता वारिस था। दिखने में बेहद खूबसूरत था। उसने अपने माता – पिता को अपनी इच्छा बताई तो वे अपने बेटे के का रिश्ता लेकर, राजन के घर आए। रेवती की खुशी का ठिकाना नहीं था।
वह यह सोचकर खुश हो रही थी कि उसकी बेटी माधवी को सारे सुख मिलेंगे और गीतांजली का जीवन अभावों से भरा होगा। यह उसके मन का पाप था। मगर ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था।दोनों की नियति तो कुछ और ही थी।
सुरेश और गीतांजलि ने बहुत मेहनत से खेती की,परिवार में माता पिता के साथ अपने ताऊ- ताई की भी दिल से सेवा की उनकी कोई औलाद नहीं थी, उन्होंने अपनी सारी जायदाद सुरेश के नाम कर दी और संसार छोड़कर चले गए। मरते समय दोनों को बहुत आशीर्वाद देकर गए।
अब सुरेश की गिनती गाँव के रईसों मे होने लगी। दोनों पति -पत्नी ईमानदारी से काम करते। दूसरी तरफ रूपेश ने माधवी के रंग रूप पर रीझ कर शादी की थी, वास्तविक प्रेम था ही नहीं, वह लोभी भंवरा किसी दूसरी कली पर आकृष्ट हो गया, बात-बात पर माधवी से झगड़ा करने लगा, माता-पिता भी बेटे का पक्ष लेते।
उसकी दौलत वह अपने ऐश आराम में खर्च करता, और घरपर काम करने वाले नौकर चाकर को उसने बंद कर दिया, माधवी की हालत एक नौकरानी की तरह हो गई और गीतांजली का कारोबार इतना बढ़ गया कि उसके घर नौकर चाकर काम करने लगे। यह है नियति का खेल। नियति कब, किसे कौनसा रंग दिखाएगी, हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित
#नियति