नीयत खोटी तो इज़्जत कैसी! – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

   ” खाना रखा है…ठूँस लो…।” टेबल पर थाली पटकती हुई शारदा बोली तो उसके जेठ धीरे-से बोले,” शारदा..मैं तुम्हारे पति का बड़ा भाई हूँ..इतना तो लिहाज़ करो…।”

   ” जानती हूँ लेकिन लिहाज़ करने वाला कर्म किये होते तो ज़रूर आपको सिर पर बिठाती मगर आप तो…।” आँखें तरेरती हुई शारदा ने बिस्तर पर पड़े बासठ वर्षीय शिवनन्दन बाबू को हिकारत-से देखा और मुँह फेरकर कमरे से बाहर निकल गई।

           किसी ज़माने में शिवनन्दन बाबू का बहुत सम्मान होता था।किशोरावस्था में ही माता-पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद उन्होंने पिता के खेती-कार्य को संभाला।तब उनका छोटा भाई सिद्धांत पढ़ाई कर रहा था।उनकी पत्नी जानकी भी एक सुघड़ गृहिणी थी।इतना सबकुछ देने के बाद भगवान के उन्हें संतान-सुख से वंचित कर दिया।पत्नी ने उन्हें दूसरा विवाह करने की बात कही लेकिन वो न माने।

    सिद्धांत ने शहर जाकर ग्रेजुएशन की डिग्री ली और वापस गाँव आकर अपने भाई के साथ खेती का काम संभालने लगा।जानकी ने अपने एक परिचित की एक सुशील कन्या शारदा के साथ उसका विवाह करा दिया। साल भर बाद शारदा ने एक बेटे को जनम दिया।जानकी ही बच्चे का देखभाल करती थी…

उसे नहलाती- धुलाती और उसके साथ खेलती।कुछ समय बाद जानकी एक असाध्य बीमारी की चपेट में आ गई जिसके कारण चार महीनों के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गई।पत्नी के शव से लिपटकर शिवनन्दन बाबू बहुत रोये थे।पत्नी का दुख भुलाने के लिये अब वो अधिकांश समय खेत पर ही बिताने लगे थे।

    एक दिन खेत पर काम करने वाली सुगना शारदा के पास आई और रोते हुए बोली,” मालकिन..बड़े बाबू…।”

” क्या बड़े बाबू..।”

 ” वो हम मज़दूरिन के साथ…..।”

 ” छिः..उन पर ऐसा घटिया इल्ज़ाम लगाते हुए शर्म नहीं आती…उनकी उम्र का तो लिहाज़ करती..जाओ..अपना काम करो।” शारदा ने उसे डाँट दिया।कुछ दिनों बाद चंदा और जमुनिया ने भी ऐसी ही शिकायत दी लेकिन उसने कान नहीं दिया।

        एक दिन काम से फुरसत पाकर शारदा खेत पर चली गई।उसे शिवननन्दन बाबू दिखाई नहीं दिये।उसने सोचा, शायद कमरे में आराम कर रहे होंगे।उसने कमरे का दरवाजा खटखटाया,” बड़े भैया तबीयत तो ठीक है..।” तभी दरवाज़ा खुला और एक मज़दूरिन कपड़े ठीक करती हुई बाहर निकली तो शारदा क्रोधित हो उठी।उसे देखकर शिवनन्दन बाबू हड़बड़ा गये।शारदा चीखी,” आपको शर्म आनी चाहिए..मेरे पति के भाई न होते तो मैं..।”

  ” शारदा..इस तरह मेरी इज़्जत तो न उछालो..।”

 ”  नीयत खोटी तो इज़्जत कैसी! छिः आप मेरी #आँखों से गिर गये हैं।” वह पैर पटकती हुई घर आ गई।उसी दिन से उसने अपने जेठ को खेत पर जाने की मनाही कर दी और उन्हें घर के बाहरी कमरे में शिफ़्ट कर दिया।घर के नौकर से ही खाना-पानी भिजवा देती थी।आज नौकर बीमार था तो उसे ही थाली लेकर आना पड़ा।

    एक दिन सिद्धांत खेत पर जा रहा था तो शिवननन्दन ने विनती की,” छोटे..मुझे भी ले चल…।” सिद्धांत कुछ नहीं बोला।शिवननन्दन बाबू को खेत पर देखकर कामगारों ने घृणा-से मुँह मोड़ लिया।उन्हें समझ आ गया कि एक बार आँख से गिर जाने पर फिर कभी नहीं उठ सकते।अब वो अकेले अपने कमरे में पड़े रहते हैं।

                                        विभा गुप्ता

# आँख से गिरना                स्वरचित, बैंगलुरु

# आँखों से गिरना

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