निस्वार्थ प्रेम – शुभांगी

बड़ा भाई पिता तुल्य

आज मंजुल बहुत खुश था उसके भाई का विवाह था, अंशुल उससे 15 साल छोटा था,  गीता अपने देवर की बार बार बलैया ले रही थी,

विवाह बहुत अच्छे से सम्पन्न हुआ और रूपाली बहु बनकर उनके घर चली आयी ।

लेकीन सिर्फ 5 दिन बाद ही अंशुल रूपाली को लेकर मुंबई चला गया, अब घर काटने को आ रहा था,

सारे घर मे मंजुल को ढूंढ़ते हुए गीता छत पर बने कमरे में गयी जहाँ मंजुल अक्सर अपने उमड़ते जज्बातों को छुपाने जाता था।

गीता ने मंजुल के सिर पर हाथ रखा तो मंजुल अचकचा गया, गीता ने कहा “मुझे पता था आप यहां ही होंगे”

मंजुल गीता से लिपट कर जैसे सिसक उठा, गीता उसको सहलाती रही और मंजुल 28 साल पहले की दुनिया मे खो गया जब वो 14 बरस का लड़का था पापा ने आकर उसको घुमा दिया और प्यार बरसाते हुए कहा घर मे एक छुटकू आने वाला है मंजुल पापा को देखने लगा और मुस्करा दिया अब घर के ज्यादातर काम करने लगा अपनी माँ को आराम देने लगा, उसको अपने 15वें जन्मदिन की बहुत प्रतीक्षा थी पर पापा ने आकार मना कर दिया उसके 5 दिन बाद छुटकू दुनिया मे आया उसका नाम अंशुल रखा गया बहुत प्यार करतार था बहुत देखभाल करता था, माँ पापा पार्टी मे जाते उसको अंशुल के पास छोड़ जाते ऐसे ही एक बार वो दोनों एक शादी से वापस आ रहे थे और एक साइकिल वाले को बचाने के प्रयास में संतुलन खो बैठे और गाड़ी पोल से टकरा कर पलट गयी, उनको किसी ने हॉस्पिटल मे एडमिट करवाया और पर्स से नंबर ढूंढ़ कर मिलाया जो कि घर का नंबर था फोन मंजुल ने उठाया और अंशुल को लेकर हॉस्पिटल भागा , जहाँ माँ पापा दोनों ने ही अंशुल की जिम्मेदारी मंजुल को देकर अंतिम साँस ले ली।



मंजुल ने अपनी पढ़ाई अंशुल का लालन-पालन सब सही से किया और एक अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी मे नौकरी करने लगा उसने अंशुल को हॉस्टल कभी नहीं भेजा,  फिर एक दिन अपनी ही ऑफिस कर्मी गीता से परिचय हुआ जल्दी ही अच्छी जान पहचान हो गयी, जब मंजुल को पता चला गीता एक अनाथ है तो मन्दिर मे जाकर दोनों विवाह बंधन मे बँध गए,

गीता सही मायनों मे अर्धांगिनी साबित हुई उसने मंजुल की काफी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, अंशुल अब 15 साल का हो गया उसके खर्चे बढ़ गए पर मंजुल ने कमी नहीं आने दी, यहां तक कि वो पिकनिक जाता दोस्तों मे मस्ती करता,

जब अंशुल का 10th का रिजल्ट आया तब मंजुल ने अपने पड़ोसियों तक को मिठाई दी थी,

12th के बाद वो कोचिंग करने लगा और अपने पहले ही प्रयास मे ही सफल हो गया, अब वो ट्रेनिंग के लिए जा रहा था मंजुल की आंखे भारी थी तो वो ऊपर चला गया अगले ही पल अंशुल भागते हुए आया और मंजुल के गले लगता हुआ बोला दादा आप भी साथ चलोगे मुझे आपके बिना रहना नहीं आता, मंजुल भरी पलकों से मुस्कराते हुए उसको छोड़ने गया ,फोन से बात होती रहती फिर उसका सिलेक्शन हो गया और अब वो क्लास 1 ऑफिसर था,

मंजुल से गीता ने कहा कि अंशुल का अब विवाह कर देना चाहिए, मंजुल ने इस बारे मे अंशुल से बात की अंशुल ने हाँ बोलकर लड़की देखने का काम भाभी और दादा पर छोड़ दिया,

2 साल की अथक मेहनत के बाद आखिरकार रूपाली उन्हें पसंद आ गयी,,जो अब अंशुल की सहचरी थी।


अंशुल को गए 4 महीने हो गए यदा कदा बात करता था गीता से मंजुल की हालत नहीं देखी जाती थी पर वो कर भी क्या सकती थी पड़ोसियों ने बाते बनानी शुरू कर दी जिन्हें चुप करा करा के मंजुल ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया।

मुंबई जाने के 8 महीने बाद अंशुल और रूपाली वापस आए और मंजुल की हालत देखकर रो पड़े,

मंजुल बस देखे जा रहा था तकलीफदेह मुस्कान के साथ, अचानक उसकी आंखे छलछला उठी जब अंशुल ने कहा “दादा चलिए आपको लेने आए हैं वहां आपका घर बनाने मे समय लग गया,  गीता और मंजुल मना करने लगे तो अंशुल ने कहा “दादा मैंने पापा को नहीं देखा पर आप उनसे कैसे भी कम नहीं हो तो इस नाते आप हमारे साथ अपने घर में रहोगे एक पिता अपने बेटे के साथ नहीं रहेगा तो कहां रहेगा। ।

अंशुल की बातों ने गीता और मंजुल को भावुक कर दिया और अपनी सन्तान ना होने का दुख जो कभी भी दोनों का दिल दुखा जाता था आज जैसे मरहम लग गया।

अंशुल के सिर पर हाथ रखकर उसके साथ चलने को उठ खड़े हुए।

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