निशा – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 आज बहुत लंबे अंतराल के बाद निशा अपनी छोटी बहन नंदिनी के घर आई थी हालांकि उनके घर के बीच में केवल 1 घंटे का रास्ता था। न जाने कब से नंदिनी उसे अपने यहां बुला रही थी “दीदी आ जाओ परिवार सहित, आप हमेशा अपने घर बुलाती रहती हो, आप भी तो कभी हमारे यहां आया करो।” 

 दरअसल निशा की एक अमीर खानदान में शादी हुई थी और नंदिनी की मध्यम वर्गीय परिवार में,निशा को अपने पैसे पर बहुत गुरूर था।उसे नंदिनी का तीन कमरों वाला फ्लैट बहुत छोटा और घुटन भरा लगता था हर तरफ ऐसा लगता था कि सामान ही सामान है यह पांच लोग इसमें ना जाने कैसे रहते हैं और कई बार तो वह बातों बातों में नंदिनी से का भी देती थी पर नंदिनी कभी बुरा नहीं मानती थी। 

 उसे फ्लैट में नंदिनी की सास, नंदिनी और उसका पति नकुल और दो जवान होते हुए बच्चे प्रिया और अमन रहते थे। 

 आज भी तो उसने यही कहा था नंदिनी से, ” नंदिनी अपने पति नकुल से कहती क्यों नहीं हो तुम बड़ा घर लेने के लिए, पता नहीं कैसे यहां रहते हो तुम लोग, मुझे तो बड़ी घुटन होती है। हमारी कोठी को देखो कितनी बड़ी है। सबका अलग-अलग कमरा वह भी इतना बड़ा-बड़ा। क्या कुछ नहीं दिया हमने अपने बच्चों को। ” 

 नंदिनी-” अरे दीदी छोड़ो ना इन बातों को, छोटे घर में इंसान प्यार से पास पास रहते हैं और फिर पहले बच्चों की पढ़ाई जरूरी है बाद घर तो बाद में भी ले सकते हैं। आओ बैठो मेरे पास, मैंने आपकी पसंद की आलू की टिक्की और धनिया पुदीने की हरी चटनी बनाई है। ” 

 निशा-” अरे नंदिनी कम से कम एक कुक तो रख ले। कब तक रसोई में घुसी रहेगी, भाई हमारे यहां तो दो-दो कुक हैं। ” 

 नंदिनी -” दीदी मुझे परिवार के लिए खाना बनाना अच्छा लगता है। ” 

 निशा-” अच्छा यह ले बच्चों के लिए लाई हूं। ” 

 नंदिनी-” अरे दीदी आपने क्यों इतना खर्चा किया इतनी तकलीफ की? ” 

 निशा-” अरे भई! थोड़े से ड्राई फ्रूट्स है बस, मुझे लगा कि पता नहीं नकुल की तनख्वाह में से तुम लोग ड्राई फ्रूट्स खरीद भी पाते हो या नहीं। ” 

 अब नंदिनी को यह बात बहुत बुरी लगी और वह कुछ कहने ही जा रही थी कि तभी उसकी बेटी प्रिया हाथ में चिलगोजे और काजू का डब्बा लिए अंदर आई शायद उसने अपनी मासी की बात सुन ली थी। उसने निशा से कहा-” नमस्ते मासी जी आप कैसे हो, आदि और रिया कैसे हैं। लीजिए मासी जी आप भी खाइये चिलगोजे, मासी मैंने सुना है कि यह बहुत महंगे होते हैं, पापा बहुत ड्राई फ्रूट्स लाते हैं। ” 

 निशा का मुंह उतर गया था। 

 अब वह देख रही थी कि प्रिया कैसे खाना लगाने में अपनी मां की मदद कर रही है और उससे भी घुल मिलकर बातें कर रही थी। और जब नंदिनी ने अपने बेटे अमन से कहा कि रात होने पर मासी को स्कूटी पर घर छोड़ आना तो वह तुरंत मान गया था और इसकी जगह अगर उसका बेटा आदि होता तो सौ बहाने बनाकर टाल देता। और बेटी रिया वह तो बस अपनी फ्रेंड्स के साथ घूमती रहती है और किसी से कोई मतलब नहीं। दावतें करना और घूमना दोनों बच्चों की यही जिंदगी है। मम्मी पापा कैसे हैं ठीक है या बीमार है, घर पर कोई रिश्तेदार आया है या किसी के घर फंक्शन है, किसी बात से कोई मतलब नहीं। 

 नंदिनी के परिवार का प्यार देखकर निशा को मन ही मन ईर्ष्या  होने लगी थी। 

 रात होने वाली थी तभी नकुल भी आ गया और वह भी बड़े सम्मान से निशा से मिला और उसे रात को वहीं रुकने के लिए कहने लगा। 

 लेकिन निशा ने रुकने के लिए मना कर दिया और उसने अमन के साथ स्कूटी पर जाने से भी मना कर दिया और कैब बुक करके अपने घर चली गई। 

 घर जाकर वह इसी सोच में डूबी हुई थी कि मेरे बच्चों और नंदिनी के बच्चों में कितना अंतर है। वह बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी। उसका पति सोम अक्सर टूर पर रहता था और बच्चों को तो उससे बात करने की फुर्सत ही नहीं थी। उसे महसूस होने लगा था कि पैसों और हर तरह की सुविधाओं ने बच्चों को बिगाड़ दिया है। 

 सोच में डूबे डूबे उसका सिर दर्द रहने लगा था और आज तो उसका मूड इतना खराब था कि कोई मुझे कुछ ना पूछे ना कुछ कहे इसीलिए उसने घर के हर एक नौकर को,मेड को, कुक और ड्राइवर को सबको छुट्टी दे दी थी। 

 उसने सोचा कि आज मैं अपने हाथों से मसाला खिचड़ी बनाकर खाऊंगी। जैसे की मां बनाती थी बिलकुल वैसी। 

 निशा रसोई में गई और खिचड़ी भिगोकर रख दी। ड्राइंग रूम में आने पर उसे हल्का सा सीने में दर्द महसूस हुआ। उसने अपने बेटे आदि को फोन किया, हमेशा की तरह उसने फोन नहीं उठाया। फिर उसने रिया को फोन लगाया। रिया ने फोन उठाया। निशा की बात सुनने से पहले ही उसने कहा, ” मम्मी आपको कितनी बार कहा है कि फोन करके डिस्टर्ब मत किया करो, मैं पार्टी में हूं घर आकर बात करूंगी और अब बार-बार फोन मत करना। ” ऐसा कहकर उसने फोन रख दिया। 

 निशा का दर्द बढ़ता जा रहा था अब उसने अमन को फोन लगाया, और अमन से कुछ कहने से पहले ही बेहोश होकर गिर गई। उधर दूसरी तरफ अमन मासी मासी कहता रहा पर कोई जवाब न पाकर समझ गया कि कुछ तो गड़बड़ है। 

 अमन तुरंत अपने मम्मी पापा को साथ लेकर अपनी मासी के घर आया। मेन गेट पर अंदर से ताला लगा था। वह गेट पर से कूद कर अंदर गया और की स्टैंड से चाबी ढूंढ कर मैं गेट का ताला खोला। उसके मम्मी पापा भी अंदर आ गए और उन्होंने देखा की ड्राइंग रूम में निशा फर्श पर गिरी हुई है। निशा बेहोश थी। 

 उन्होंने तुरंत डॉक्टर साहब को फोन करके बुलाया। डॉक्टर साहब ने जांच करने के बाद निशा को इंजेक्शन लगाया और बताया कि निशा को एक हल्का सा हार्ट अटैक आया है। अब उनके खानपान का बहुत ज्यादा ध्यान रखना होगा और साथ ही दवाइयों  का भी। और उन्होंने निशा से कहा कि आप तनाव बिल्कुल मत लीजिए, खुश रहिए। 

 निशा बहुत शर्मिंदा थी। उसने नंदिनी से कहा-” मुझे माफ कर दो नंदिनी, मैं अपने पैसों के गुरुर में हर बार तुम्हें कुछ ना कुछ सुनाती रहती थी, और इन्हीं पैसों के कारण आज मैं अकेली हूं। मुश्किल घड़ी में तुम्हारा परिवार मेरे काम आया, मेरे अपने बच्चे नहीं। परिवार का साथ ही सब कुछ होता है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं अपने बच्चों को सही राह पर कैसे लाऊं? ” 

 नंदिनी ने कहा-” पहले जीजा जी को समझ कर, उन्हें अपना साथ देने के लिए कहो और फिर बच्चों को सही हिसाब से जेब खर्च दो, उनसे कहो कि अपनी पढ़ाई पूरी करके जॉब ढूंढे। उनसे कहो कि हम तुम्हारी ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं शौक नहीं, अपने महंगे शौक अपनी कमाई से पूरे करो। दीदी, थोड़ी सख्ती करने पर ही बच्चे सुधरेंगे। मेहनत करके पैसे कमाने पर ही उन्हें पैसे की वैल्यू पता लगेगी और पैसों का गुरुर टूटेगा। लेकिन यह सब होने में समय लगेगा। एकदम से बच्चे सुधर नहीं जाएंगे। आपको धैर्य रखना होगा और अपना ध्यान भी। जब तक जीजाजी तौर से आ नहीं जाते तब तक मैं आपके पास ही रहूंगी। हम सब मिलकर उनसे बात करेंगे। ” 

 निशा का पैसे का गुरुर टूट चुका था और अब उसे अपने बच्चों के सुधारने का इंतजार था। उसे लग रहा था कि धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। 

 स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

#पैसे का गुरुर

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