कविता की शादी पर उसकी सबसे खास और प्यारी सहेली माला को काफी उपेक्षापूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ा था। उसके गहरे रंग को लेकर कविता के सभी ससुराल वालों ने उस पर खूब फब्तियां कसी थी और आज कविता की असमय हुई मौत के बाद जब उसके दो छोटे बच्चों और पति की जिम्मेदारी का भार उन लोगों पर पड़ा तो कविता की जेठानी, ननद और यहां तक कि कविता की सास को भी अपने बेटे और पोता पोती से ज्यादा अपनी महिला मंडल की गोष्ठियां ज्यादा महत्वपूर्ण लगती और ननद, जेठानी ने तो कविता के देहांत के बाद दस पन्द्रह दिन बच्चों को संभाल कर मानो अपनी ज़िम्मेदारी निभा दी थी।
ऐसे में एक दिन कविता की सास को उनकी पड़ोसन ने नवीन की दूसरी शादी करवाने की सलाह दी और साथ ही यह भी समझाना नहीं भूली की कोई ऐसी लड़की लाना जो जरा दब कर रहने वाली हो ना कि कोई हूर परी ले आओ जो दिन भर लाली पाउडर लगाती रहे और बच्चों और पति पर कोई ध्यान ही ना दे।
कविता की ननद रश्मि ये सुन कर बोली,“ मम्मी, आपको याद है कविता भाभी की वो खास सहेली माला जो दिखने में मामूली सूरत की है और रंग भी तो कितना दबा हुआ है उसका, मम्मी, सुना है उसकी अभी तक शादी नहीं हुई है, ना हो तो उसके घरवालों से बात करके देखो ना”।
सब कुछ जान समझ कर ऐसे हालतों में कविता की सास को माला उम्मीद की किरण समान दिखाई दी और माला के माता-पिता ने भी दान-दहेज मुक्त इस सौदे को सहर्षपूर्ण सहमति दे दी पर माला एक सुघड़, पढ़ी-लिखी, आज की युवा लड़की थी, जो अपनी जिंदगी के लिए सही निर्णय लेने में सक्षम थी।
“पर मम्मी, कविता की शादी में उन लोगों का व्यवहार मेरे प्रति हीनता से भरा हुआ था, जयमाला, जूता चुराई, फेरे और यहां तक की विदाई के वक्त भी वे लोग टिका टिप्पणी से बाज़ नहीं आ रहे थे, मैं तो सिर्फ़ कविता की वजह से ख़ामोश रही वरना तो जयमाला के तुरंत बाद ही मैं वापिस आ जाना चाहती थी. थोथा चना बाजे घना मम्मी, वे लोग सिर्फ दिखावा कर रहें हैं कि आज उन्हें अपने घर के लिए बहु चाहिए, नहीं मम्मी उन लोगों को बच्चें संभालने वाली आया की ज़रूरत है तो वे इतना गिर चुके हैं कि जिसका मज़ाक उड़ाते नहीं थक रहे थे उसी के घर आकर उसी के माता पिता से उसका हाथ मांग रहे हैं, क्या अब मेरा गहरा रंग उनकी आंखों में नहीं खटक रहा ”
“बेटा, हो सकता है समय के साथ उनके विचार बदल चुके हों, देख ना अब तो वे लोग तुझे सिर्फ एक जोड़े में विदा करवाने को बैठे हैं,” माला की मम्मी ने उसे समझाने की गरज से कहा।
“यही तो मैं आपको समझाना चाह रही हूं मम्मी कि अब उन लोगों को मेरी प्रति उनकी चाह नहीं बल्कि उनकी ज़रूरत हमारे घर तक खींच लाई है, खैर मैं यह शादी नहीं कर सकती और साथ ही मैं आपको यह भी बता दूं कि मैं विजय को पसंद करती हूं और विजय एक ऐसा इंसान है जिसे मेरे स्याह रंग से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है बल्कि उसने तो मेरे स्वभाव को,मेरे विचारों को भी जाना है, समझा है और उन्हें इज्ज़त दी है और आज विजय के साथ ने ही मुझमें यह आत्मविश्वास जगाया है कि मैं दृणता के साथ इस ‘सौदे’ को नकार सकूं”।
और माला का यही वो निर्णय था, जो माला को उसके उज्जवल भविष्य की राह दिखा रहा था।
जया अमित टंडन