नीलांजना ( भाग-5 ) – रश्मि झा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

…एक पूरे दिन सफर करने के बाद वह बेंगलुरु पहुंचा…

हॉस्टल के नंबर से… हॉस्टल का पता लगाता हुआ… पहले शाम्भवी के हॉस्टल में पहुंचा…

उसका मोबाइल नोट रीचेबल आ रहा था…

हॉस्टल वार्डन से पता चला कि 10 दिन पहले वह कमरा खाली कर चुकी है…

कहां गई इसका कोई रिकॉर्ड वहां नहीं था…

तो क्या नागार्जुन झूठ बोल रहे थे…

उन्हें उनकी बेटी से बात होती है…?

उसकी दोस्तों से भी उसके बारे में कुछ खास पता नहीं चल पाया…

बस एक बात पता चली…

वह यह थी कि उसके नंबर पर कभी कभी मैसेज से बात होगी… वह जब देखती है तब रिप्लाई करती है…

इसका मतलब यह तो पक्का था… कि वह सुरक्षित है…

दत्ता वहां से बड़ी बहन अंकिता के कॉलेज का पता लेकर वहां पहुंचा…

यहां तो कॉलेज की क्लासेस ही 15 दिनों से सस्पेंड थे…

इक्का दुक्का बच्चों को छोड़ कोई दिखा ही नहीं.…

गर्ल्स हॉस्टल तो पूरा बंद ही था…

पता चला सभी बच्चे चले गए… इसलिए अभी हॉस्टल बंद है…

कॉलेज खुलने के बाद धीरे-धीरे सब आ जाएंगे…

उसका फोन तो पूरा बंद ही था…

यह क्या बात थी… तो क्या नीलांजना ही नहीं उनकी दोनों बेटियां भी गुम थीं…

दत्ता ने नागार्जुन जी को फोन लगाया… और एक सीधा सवाल दागा…

“आपने आखरी बार अंकिता से कब बात किया था…!”

कुछ देर तक कोई आवाज नहीं आई.…

” हेलो…! राय साहब… आपने आखिरी बार अपनी बेटियों से कब बात की थी…!”

“जी माफ कीजिए… मेरा मेरी बेटियों से.… पिछले दो सालों से कोई सीधा संपर्क नहीं रहा है… मुझे जो कहना होता है… मैं उन्हें व्हाट्सएप कर देता हूं…

बस हमारे बीच का माध्यम नीला ही है… !”

इससे आगे अभी कुछ भी बात करना या कहना अभिनव को जरूरी नहीं लगा…

उसने “ओके…!” बोलकर फोन कट कर दिया…

तो इसलिए बेटियां… इतनी आसानी से मां का ना होना स्वीकार कर गईं… क्योंकि वह तो खुद लापता हैं…

अभिनव को कुछ समझ में नहीं आ रहा था… आखिर यह तीनों लोग गए कहां…

अभिनव दत्ता के लिए अब एक ही उम्मीद की कड़ी थी… निधि… शांभवी की दोस्त…

जिसने बताया था.… कि शांभवी मैसेज में बात करती है…

वह सीधा उससे मिलने हॉस्टल पहुंचा…

निधि और कुछ भी बताने को तैयार नहीं थी…

” नहीं सर… प्लीज मुझसे कुछ मत पूछिए…

मुझे कुछ नहीं पता… हमारे बीच सिर्फ पढ़ाई के सिलसिले में ही बातें होती हैं…

क्या हुआ क्लास में… कौन सा टेस्ट है… कब से पेपर है… यही सब… और कुछ भी नहीं… मुझे कुछ नहीं पता…!”

” ठीक है निधि… पर तुम नहीं चाहती… कि तुम्हारी दोस्त फिर से यहां आ जाए… या तुमसे बातें करे…

मैं बस उससे मिलना चाहता हूं… तुम्हें पता है वे लोग परेशानी में हैं… मैं उनकी मदद करना चाहता हूं…!”

” आप झूठ बोल रहे हैं… कोई परेशानी नहीं है…

उसे सिर्फ एक ही परेशानी है… कि उसे कॉलेज आना है… पढ़ाई उसके समझ में नहीं आ रही… पर आ नहीं पा रही…!”

दत्ता की आंखें चमक गईं…

निशाना सही जगह लगा था…

“अच्छा ठीक है… तुम कुछ मत बताओ… पर तुम मेरी तरफ से एक मैसेज कर सकती हो क्या उन्हें…

अगर तुम्हारा मन करे…!”

“क्या… कौन सा मैसेज…!”

” यही… कि मैं तुम्हारा भैया हूं… और अगर वह चाहे तो मैं उसे पढ़ा सकता हूं…!”

” लेकिन मैं झूठ क्यों बोलूं…!”

” देखो निधि… तुम मेरा भरोसा करो…

मैं उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा…

दरअसल सिर्फ शांभवी ही नहीं… उसकी मां नीलांजना राय और बहन अंकिता सभी गुम हैं… किसी का कोई पता नहीं चल रहा… तुम मदद करोगी तो ठीक है… नहीं तो मुझे उसकी मोबाइल जब खुलेगी… तब उसका लोकेशन मिल ही जाएगा…!”

” ठीक है भैया… मैं करूंगी मदद…

पर किसी का कुछ बुरा नहीं होना चाहिए… मुझे भी मत फसाना बीच में…!”

” भरोसा रखो…!”

” अच्छा बताइए… क्या मैसेज करना है…!”

” निधी… तुम शांभवी को मैसेज करो… कि तुम्हारे भैया यानी कि मैं… उसे पढ़ाने आऊंगा… इससे मेरी भी प्रैक्टिस हो जाएगी… अगर वह पढ़ना चाहे तो…!”

” ठीक है भैया…!”

अभिनव दत्ता ने निधि से वादा किया… कि वह उन लोगों के साथ कुछ गलत नहीं होने देगा…

उसने अपना फोन नंबर निधि को दिया… और उससे कहा कि…

“कोई भी रिप्लाई आए तो मुझे इन्फॉर्म करना…!”

वहां से निकल कर दत्ता… वहीं पास में एक होटल में कमरा लेकर रुक गया…

कमरे में घुसते ही नागार्जुन जी का फोन आया.…

” क्यों सर… कुछ पता चला…

आज आपसे बात करने के बाद… मैंने अपनी बेटियों से बात करने की कई बार कोशिश की…

पर उनका फोन बंद आ रहा है… मुझे बहुत चिंता हो रही है… मैं आ रहा हूं बेंगलुरु…!”

” नहीं नहीं… राय साहब… आपको आने की जरूरत नहीं…

मुझे जैसे ही कुछ पता चलता है… मैं बताता हूं…

आप चिंता मत करिए… आप मुझ पर भरोसा रखिए…!”

अभिनव दत्ता ने बोल तो दिया कि भरोसा रखिए… पर एक अजीब सी दुविधा में पड़ गया…

किसी का तो भरोसा टूटने वाला था…

अचानक उसने खुद को आस्वस्त किया…

” नहीं पिछले केस की तरह इस केस में कोई गलती नहीं होनी चाहिए…

बिना पूरी बात पता किए… मैं नागार्जुन राय को कुछ नहीं बताऊंगा…

मुझे पहले नीलांजना जी से… सारी बात पता करनी है…

उसके बाद ही मैं… आगे कुछ करुंगा…

पिछली बार इस जासूसी के चक्कर में… एक निर्दोष की जान चली गई थी…

लड़की का पता… उसके पति को बताने से पहले… अगर मैं उसके घर से भागने का कारण जान लेता… तो शायद वह जिंदा होती…

यह मैं दोबारा नहीं होने दूंगा…

जब तक नीलांजना जी के गायब होने का पूरा सच… मुझे पता नहीं चलता… मैं उनके पति को… उनके बारे में कुछ भी नहीं बता सकता…

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नीलांजना ( भाग-6 ) – रश्मि झा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

रश्मि झा मिश्रा

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