…सुबह चित्रकूट के राम घाट पर सतरंगी नावों की दुनिया… बंदरों की उछल कूद…
ऊंची सीढ़ियों के ऊपर चढ़कर बैठे… सीताराम, लक्ष्मण और हनुमान के दर्शन कर नीला… बड़े से हनुमान की प्रतिमा को बड़ी देर तक निहारती रही…
शायद प्रतिमा कुछ कह रही थी… नीला ने सुना…
शायद वह कह रही थी… ” एक ही प्रतिमा पर कितने बार फूल जल चढ़ाओगी… अभी तो भीतर चढ़ा कर आई थी…!” नीला भी हंस पड़ी…
थोड़ी दूर पर तुलसीदास बैठे चंदन घिस रहे थे… नीला कुछ देर उनके सानिध्य में भी बैठी…
फिर रंग बिरंगी मालों की दुनिया… यह है तुलसी माला… यह चंदन माला… यह रुद्राक्ष माला… सभी मालाओं पर हाथ फिराते हुए नीला ने सभी मालाएं एक-एक कर खरीद… अपने गले में डाल ली…
गहने तो सारे उसने घर में ही उतार दिए थे… कई दिनों से यूं ही घूम रही थी…
वहां से निकलते ही कुबेर साथ हो लिया…
” क्यों रे… यहां तेरी नाव कौन चलाएगा…?”
” रहने दो मेमसाब… वैसे भी कौन सवारी मिलती है… आज तो आपको चित्रकूट घुमाना है…!”
दिन भर नीला कुबेर के साथ घूमती रही… कितना अपनापन था लड़के में… कुबेर एक ही दिन में उसके साथ बहुत घुल मिल गया…
रात को कुबेर खुद आया… कर्वी स्टेशन… नीला को ट्रेन पर बिठाने…
उसे ट्रेन पर बिठाकर ट्रेन के निकल जाने तक खड़ा रहा…
दिन में 2:00 बजे के करीब नीला हरिद्वार पहुंची… वहां भी रात होटल में बिता… सुबह नहा कर सीधे दिल्ली निकलने की सोच… वह होटल के कमरे में निढाल होकर सो गई…
सुबह हरिद्वार में… घाट पर नहाने के बाद… पता नहीं उसे क्या सूझी… मन में आया कि इतना घूम चुकी… अभी तक एक भी तस्वीर नहीं लिया…
कहीं मन में विचार आते ही… उसने पर्स में रखा अपना मोबाइल निकाला…
चारों तरफ की भीड़ के बीच से निकलती… एक ऊंची सीढ़ी पर खड़े होकर… इधर उधर की तस्वीर निकालने लगी…
अचानक संतुलन बिगड़ा… मोबाइल हाथ से छूट नीचे गिर गया…
जब तक नीचे उतर उसे उठाती… तब तक आती जाती भीड़ में उसका फोन गुम हो गया…
घंटे भर यहां वहां ढूंढते… पूछते निकल गए… मगर फोन का कुछ पता नहीं चला…
अंत में बेचारी मायूस हो गई… तभी उसने थक हार कर अर्जुन से बात करने की सोची…
बच्चों के और अर्जुन का नंबर तो उसने याद करके रखा था… इसलिए बात करने में कोई खास परेशानी नहीं हुई…
होटल वापस आने के बाद… वहीं के फोन का इस्तेमाल कर… उसने घर में फोन कर सारी बात बताई…
कहा कि मैं कल परसों तक आ रही हूं…
उसके बाद से उसका कोई पता नहीं… कहां गई… क्या हुआ…
***
अभिनव दत्ता नई उम्र का जोशीला नवयुवक था… उसके पिता डिटेक्टिव एजेंसी चलाते थे… यूं कहें की यह उसका खानदानी पेशा था…
पिता सौमिल दत्ता… एक जाना माना नाम था शहर में…
इसलिए उन्हीं के नाम पर… अभिनव को भी बिना मांगे शोहरत मिल रही थी…
लेकिन इसका मतलब यह नहीं था… कि उसके अंदर प्रतिभा नहीं थी…
वह एक मेहनती लड़का था… जो पूरे लगन से इस काम को कर रहा था…
उसे पसंद था… लोगों की मुश्किलें हल करना… यह वह पूरे दिल से करता था…
***
नागार्जुन जी से बातें करने के बाद… वह सीधा बनारस के लिए निकल गया…
वहां से सभी जानकारी का मिलान करता हुआ… प्रयागराज…
फिर चित्रकूट पहुंच… चित्रकूट में छानबीन के दौरान उसकी मुलाकात कुबेर से भी हुई…
उससे सभी बातें जानने के बाद… अभिनव दत्ता सीधे हरिद्वार पहुंच गया…
यहां पर उसने जिस होटल से नीलांजना ने आखिरी बार कॉल किया था… उस होटल के लैंडलाइन से और कितने कॉल नीलांजना ने किया… वह वहां से कब निकली… यह सारी बातें पता लगाया…
हरिद्वार से तो वह उसी दिन निकल गई थी… लेकिन फोन उसने सिर्फ नागार्जुन जी को ही नहीं किया था…
इसके अलावे भी उसने कई कॉल किए थे… सारे कॉल्स की डिटेल निकाल कर… अभिनव दत्ता ने वापस नागार्जुन जी को फोन किया…
” राय साहब… आपने अपनी बेटियों को यह बात बताई है क्या…?”
“जी नहीं… मैंने कई बार सोचा… फिर मुझे लगा… उनकी पढ़ाई को नुकसान होगा… नीला वापस आ जाएगी…!”
” आपने नहीं बताया… वह तो ठीक है… पर क्या बेटियों को मां से बात नहीं होती थी… वह नहीं पूछ रहीं मां के बारे में…!”
” नहीं… मैंने उनसे कह दिया है… “मां का फोन गुम हो गया है… और उसे कुछ जरूरी काम है… वह कुछ दिन और बाहर ही रहेगी… फिर आएगी… मैंने उन्हें अभी घर आने से भी मना कर दिया था…!”
नागार्जुन जी से बातें करने के बाद… अभिनव दत्ता का शक और गहरा हो गया…
क्योंकि जिन नंबरों पर नीला ने बातचीत किया था…
वह उसकी बेटियों के… वहां के हॉस्टल के… वार्डन के… वहीं के थे…
दत्ता बेंगलुरु के लिए निकल गया……
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नीलांजना ( भाग-5 ) – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
रश्मि झा मिश्रा