अंकिता और शांभवी दोनों बहने हॉस्टल में थीं…
बीस साल की अंकिता इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी… बेंगलुरु में… और शांभवी 15 साल की अभी 11वीं की छात्रा थी…
घर में एक बूढी दादी थी… उन्हें दीन दुनिया से कोई मतलब नहीं था… केवल खाना खाया… दवाई ली… और अपने कमरे में रिमोट हाथ में लिए… सारे धाम के दर्शन करती रहती… सुबह से शाम तक… लेकिन बस टीवी स्क्रीन तक… उससे आगे उन्हें किसी बात की नहीं पड़ी थी…
इस घर में नीलांजना को आए 24 साल गुजर गए थे…
दिल्ली से बनारस जाने वाली ट्रेन के तृतीय श्रेणी एसी कोच में… लोअर बर्थ पर चादर ढके मुंह उल्टा कर नीलांजना… खिड़की के बाहर व्यर्थ देखने की कोशिश में… अतीत में झांक रही थी…
देखने में साधारण… मध्यम कद काठी की नीलांजना राय… चेहरे पर उभर आए कुछ वय चिन्हों को अगर अनदेखा कर दें… तो आज भी वैसी ही लगती थी बिल्कुल जैसी 24 साल पहले… ब्याह के समय थी…
25 साल की उम्र में… नागार्जुन के साथ उनका विवाह हुआ था…उस समय लड़कियों में कम ही कुछ करने की इच्छा होती थी… नहीं तो लड़कियां पढ़ लिखकर… बढ़िया पति पाने का सपना ही देखती थी…
घर संभालना… परिवार चलाना… नीला ने भी यही सब सोचा था… कैसे संभालेगी… क्या सब करेगी… सबको खुश रखेगी… पर शादी की शुरुआत ही अजीब ढंग से हुई…
दरअसल नागार्जुन के घर वालों को… नीला की चचेरी बहन… जो उस समय केवल 18 साल की थी… पसंद आ गई थी…
उन लोगों ने जब शादी की बात आगे बढ़कर चलाई… तो नीलांजना के घर में बवाल हो गया…
बड़ी बहन 25 की हो गई… उसका अभी तक ब्याह नहीं हुआ… छोटी का कैसे होगा…
अर्जुन के घर वालों को पता चला… तो उन्होंने घर की एकता और संस्कार का मान रखा… छोटी की जगह बड़ी को बहू बनना स्वीकार कर… चले गए…
मगर यह नीलांजना की नजर में… उसका पहला पाप था…
अपनी बहन की खुशियों पर हावी होना वह नहीं चाहती थी…
वह चाहती थी… कोई उसे पसंद करता… उसके लिए ही रिश्ता आता…
यह पाप धीरे-धीरे अपनी शक्ल बदलने लगा… सुंदर, प्यारी, चंचल, नमिता… अपनी ही बहन की आंखों का कांटा बनती जा रही थी…
नागार्जुन से ब्याह के बाद… नीला बहुत अधिक आशंकित रहने लगी थी…
एक पाप जो घर के बड़ों ने किया… उसका प्रभाव नीला के मन पर इस कदर पड़ गया था… कि नमिता अगर अपने जीजा के पास… 2 मिनट भी खड़ी हो जाए… तो नीला का कलेजा कांप उठता था…
अर्जुन को यह बात समझ आ रही थी… पर नमिता… उसका मन तो अभी उतना प्रौढ नहीं था…
अर्जुन ने नीला को कई तरह से समझाने की कोशिश भी की… उसने कहा कि नमिता को मैंने पसंद नहीं किया था… मैंने वही किया जो मेरे घर वालों ने तय किया…
पर एक मानसिक पाप नीला के चरित्र पर हावी हो चुका था…
एक दिन तो नीला ने अपने घर में घोषणा कर दी… पहले नमिता का ब्याह करो… फिर मैं मायके आऊंगी…
वह बेचारी हतप्रभ… अपनी प्यारी दी का मुंह ताकती रह गई…
वह सोच भी नहीं पाई… कि उसका कसूर क्या है…
शांत वातावरण में वेग के साथ भागते ट्रेन… और साथ ही विचारों को… अचानक विराम लगा…
ट्रेन में कोई सोया बच्चा रो पड़ा… शायद चलती ट्रेन में मां के पास सोया बच्चा… नीचे गिर गया था… बच्चे का रोना… साथ में मां की थपकी… दोनों की आवाज ने… नीला को जगा दिया…
सुबह होने ही वाली थी… नीला ने फोन उठाकर समय देखा… आधे घंटे बचे थे बनारस पहुंचने में…
नीला ने उठकर अपना सामान समेटा… ज्यादा कुछ था ही नहीं… वह तो केवल एक हैंडबैग और एक छोटा सा लगेज बैग लेकर निकाली थी…
सभी इकट्ठा करके अभी बैठी थी… कि बगल की सीट पर बैठी एक बुजुर्ग महिला ने सवाल किया… “अकेली आई हैं क्या आप…?”
” हां अम्मा अकेली ही हूं…!”
” क्या बनारस घूमने आई हैं… या अपना घर है यहीं…!”
“अम्मा घूमने ही आई हूं…!”
अम्मा चुप हो गई…
पर नीला के मन में… कई कचोटें फिर उभर आईं… वह क्या अकेली बनारस आना चाहती थी……
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नीलांजना ( भाग-3 ) – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
रश्मि झा मिश्रा