नीलांजना ( भाग-11 ) – रश्मि झा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

…”चोट सचमुच मेरे सर में लगी है… पर आपका सर तो ठीक है ना…

अगर कोई सफल न हो… तो क्या उसे जीने का हक नहीं होता…!”

” देखो अभिनव दत्ता… पहेलियां मत बुझाओ…!”

उसके बाद… अभिनव ने बिना नीलांजना जी का पता बताए…

उनके हरिद्वार से निकलने के बाद क्या हुआ…

कैसे हुआ… सब अक्षरसः…

जितना उसे पता था…

नागार्जुन जी को बता दिया…

अभिनव बोलता रहा… उधर से एक भी आवाज नहीं आई…

सब बोल लेने के बाद… अभिनव ने आवाज दी… “राय साहब… राय साहब……!”

” तो क्या… मेरी बेटी और मेरा परिवार… मेरे कारण घर से दूर है…

इतना बता दिया तो यह भी बता दो… कि वह है कहां…!”

” यह मैं नहीं बता सकता…!”

” बता दो दत्ता…!”

अचानक नागार्जुन जी की आवाज बदल गई…

” ब…ता…ओ…… द…त्त……ॎ…!”

बोलते बोलते धड़ाम की आवाज के साथ…

फोन कट गया…

अभिनव कुछ अनहोनी की आशंका से कांप उठा…

उसके बाद… उसने कई बार फोन लगाया…

लेकिन नागार्जुन जी का फोन स्विच ऑफ आ रहा था…

वह नीचे आ गया…

अब उसे अपनी बातों पर पछतावा भी हो रहा था…

लेकिन उसका तो काम ही यही था…

इसी के लिए तो वह यहां आया था…

उसने अपने आप को समझाया… और कमरे में आ गया…

यह रात बहुत भारी होने वाली थी…

करीब 1 घंटे बाद… घर के दरवाजे पर जोर-जोर की खटखटाहट शुरू हो गई…

सभी कमरों से बाहर आ गए…

शांभवी ने लाइट ऑन किया…

नीलांजना जी ने जोर से पूछा…” कौन है…?”

बाहर से सुभद्रा की आवाज आई…” नीला दरवाजा खोल…!”

नीला ने लपक कर दरवाजा खोल दिया…” अम्मा का फोन आया था… दिल्ली से… तुम्हें जल्दी बुलाया है…

जीजा जी अस्पताल में हैं…!”

नीला के कदम डगमगा गए…

” हे भगवान… यह क्या हो गया… क्या हुआ…?”

” यह लो… फोन लो… लगाओ अम्मा को… फोन लगाओ…

जल्दी बात करो…!”

नीला की आवाज सुनते ही अम्मा फफक पड़ी… “जल्दी आ जाओ बेटा… मुझसे नहीं होगा यह सब…!”

अम्मा और कुछ नहीं बोल पाई…

नीला ने आंसू भरे आंखों से अंकिता की तरफ देखा…

अंकिता दौड़कर मां से लिपट गई…

” चलो मां… वापस चलो…

पापा जो बोलेंगे… मैं सुन लूंगी… घर चलो…!”

नीलांजना ने बेटी का माथा चूम लिया…

अभिनव अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था… फिर भी उसने साथ जाने की इच्छा जाहिर की… तो नीलांजना जी मना नहीं कर पाईं…

रात को ही सारे इंतजाम कर…

घर को वापस बंद कर…

नीलांजना अपनी बेटियों और अभिनव दत्ता के साथ  दिल्ली के लिए निकल गई…

नागार्जुन जी अस्पताल में ही थे… इसलिए वे भी सीधे वहीं पहुंचे…

अम्मा का रो-रोकर बुरा हाल था…

पापा को आईसीयू में देख बेटियां भी बिलख पड़ीं…

पर नीलांजना जैसे पत्थर बन गई…

उसकी आंखों में अब आंसू नहीं थे…

पिछली रात से जो आंसू लगातार बहते ही जा रहे थे…

वह यहां अपने घर… परिवार… पति… बच्चे… और अम्मा की हालत देख… अचानक सूख गए…

उसने अम्मा को संभाला…

फिर चुपचाप बैठ गई…

सब थोड़ी देर वहीं बैठे रहे… फिर जैसे नीला को कुछ याद आ गया…

अभिनव की तरफ देखकर अचानक थोड़ा सख्त होकर बोली…

” अभिनव दत्ता… आपका काम खत्म हो गया…

अब आप घर जाइए… बढ़िया इलाज करवाइए…

आपके जो भी पैसे बनते हैं…

वह मैं ट्रांसफर कर दूंगी…!”

इतने दिनों से… जिन लोगों के साथ रहता अभिनव उन्हें अपना परिवार मानने लगा था…

अचानक यों रूखापन उसे चुभ गया…

” ऐसा मत बोलिए मैम…

आपने जितना प्यार और अपनापन मुझे दिया… वह किसी पैसे से बढ़कर है…

प्लीज मैम… मुझे शर्मिंदा मत करिए… और इतना बेगाना…!

” कोई बात नहीं दत्ता…

तुम्हारी जगह कोई दूसरा भी होता… तो मैं उसकी वैसी ही देख-रेख करती…!”

” क्या हुआ मैम… मुझसे कोई गलती……!”

” नहीं गलती कैसी… तुमने तो अपना काम किया…

गलती तो मुझसे हुई… और बहुत बड़ी हुई…

एक बच्चे को बचाने के चक्कर में… मैंने अपने पूरे संसार को ही मुसीबत में डाल दिया…

खैर… अब सब फिर संभालना भी तो मुझे ही है…

तुम जाओ…!”

अभिनव दत्ता का अब सच में क्या काम था…

वह चला गया…

नीलांजना ने शांभवी को भी समझा बुझा कर…अगले दिन वापस भेजने की सारी व्यवस्था कर दी…

नागार्जुन जी की स्थिति यथावत थी…

अम्मा ने नीला को बताया था… कि रात को फोन पर बात करते-करते नागार्जुन की ऐसी हालत हो गई…

नीला को अनुमान हो गया कि यह काम दत्ता का ही है…

नागार्जुन जी पक्षाघात के शिकार हो गए थे…

उनके शरीर का एक हिस्सा… बिल्कुल ही काम नहीं कर रहा था…

अंकिता तो पापा की हालत देखकर बस रोए ही जा रही थी…

पंद्रह दिनों बाद… नागार्जुन जी की हालत कुछ स्थिर हुई…

इस बीच अभिनव दत्ता… दिन में एक या दो बार अस्पताल का चक्कर लगा ही ले रहा था…

नागार्जुन जी ने आंखें खोली…

तो उनके सामने नीलांजना सर झुकाए बैठी थी…

अंकिता बगल में खड़ी… खिड़की से बाहर निहार रही थी…

दोनों को सामने देख… नागार्जुन जी अपने बारे में भूल… उठने की नाकाम कोशिश करने लगे…

उन्हें हिलता देख दोनों का ध्यान उधर गया…

तो नागार्जुन की आंखों की कोर गीली थी…

नीला ने हाथ बढ़ाकर उन्हें पोंछ दिया… और प्यार से सर पर हाथ रख कर बोली…

” यदि जानती… की इस तरह जाने का परिणाम यह होगा…

तो कभी नहीं जाती…

मुझे माफ कर दीजिए…

जल्दी ठीक हो जाइए… और जी भर कर मुझे डांट लीजिए…!”

” पापा… मुझे भी जितना डांटना है… डांट लीजिए…

लेकिन आप ठीक हो जाइए…!”

नागार्जुन जी ने दोबारा आंखें बंद कर ली…

कोई दो महीनों की… अनवरत दवा और सेवा ने… उन्हें वापस बहुत हद तक ठीक कर दिया था…

आज वह घर जा रहे थे…

नीला और अंकिता उन्हें सहारा दिए थी…

घर पहुंच कर अर्जुन ने… अपनी बेटी के सर पर हाथ रख दिया… और कांपती आवाज़ में बस इतना ही कहा…

” मुझे माफ करना बच्ची… मैं तेरी जिंदगी बनाना चाहता था… मिटाना नहीं…

दुश्मन नहीं हूं मैं…!”

आगे कुछ बोलता…  इससे पहले अंकिता ने उनके चरण पकड़ लिए…” नहीं पापा… गलती मेरी भी है…

मैंने ऐसा कदम उठाकर मां को मजबूर कर दिया…!”

सारे गिले शिकवे आंसुओं में धुल गए थे…

अभिनव दत्ता शाम को अर्जुन जी से मिलने आया…

आज उन्हें देखकर… उसकी आंखें भी चमक गई…

” वाह राय साहब… अब तो लगता है… कुछ ही दिनों में आप क्रिकेट खेलने लगेंगे…!”

नागार्जुन जी हंस पड़े…

तभी नीला चाय लेकर आ गई…

” मैम… आज तो फिर से अपनी स्पेशल कुक का… कुछ स्पेशल ही खिला दीजिए…

अब तो मुझे… कहीं भी खाने में स्वाद ही नहीं आता…!”

नागार्जुन जी ने नीला की तरफ सवालिया नजरों से देखा… तो नीला मुस्कुरा कर बोली…

” जासूस को जासूसी करते-करते… खाने का चस्का लग गया है…

अंकिता के हाथों का…

अब तो गई इसकी नौकरी…!”

” ठीक कहा आपने मैम…

अब तो आप लोगों से मिले बगैर… मेरा मन ही नहीं लगता…!”

” तो क्या करूं… सौमिल दत्ता से बात चलाऊं क्या…!”

दो महीने अस्पताल में रहते…

अभिनव और अंकिता की बढ़ती दोस्ती…

नीलांजना की आंखों से छिपी नहीं थी…

अभिनव को आया देख… अंकिता उससे मिलने आ ही रही थी… की मां की बातें सुन भाग गई…

अर्जुन जी की आंखें चमक उठीं…

” क्या सच में…?”

अभिनव दत्ता झेंप गया…

” जी मैम कभी कुछ गलत कर ही नहीं सकतीं…!”

नीलांजना ने हंसते हुए अभिनव के माथे पर चपत लगाई… और कुछ निश्चय कर… फोन लेकर निकल गई…

रश्मि झा मिश्रा

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