…लगभग एक हफ्ते हो गए थे… अभिनव को उस घर में… अब वह पहले से बहुत ठीक था…
इस बीच नीलांजना जी और उनकी बेटियों ने अभिनव को कभी किसी कमी का एहसास नहीं होने दिया…
शांभवी तो पूरी तरह घुल मिल गई थी भैया से…
उसकी पढ़ाई में भी बहुत मदद मिल रही थी…
पर अभिनव का काम यहां पूरी तरह से ठप हो गया था… कभी-कभी फोन से बात भर हो जा रही थी…
यहां नेटवर्क की बहुत परेशानी थी…
इतने दिनों में अभी तक एक बार भी उसका अंकिता से आमना सामना नहीं हुआ था…
वह भी बात करना चाहता था… उसकी बनाई खानों की तारीफ करना चाहता था… उसकी कुछ हेल्प करना चाहता था… पर बिना मिले यह संभव नहीं था…
एक दिन शाम का समय था…
नीलांजना कुछ राशन पानी की व्यवस्था में घर से बाहर गई थी…
शांभवी एक कमरे में बैठी अपनी किताबों में उलझी पड़ी थी…
अभिनव अपने फोन का नेटवर्क चेक करते-करते कमरे से बाहर निकल आया…
एक जिज्ञासा अंकिता से मिलने की भी थी…
फोन लेकर धीरे-धीरे टहलते दत्ता किचन तक आ गया.…
यहां कोई नहीं था… घर के पिछले हिस्से में तो पूरा जंगल ही था… इसलिए उधर तो नेटवर्क की कोई गुंजाइश ही नहीं थी…
” हां अगर किसी तरह छत पर पहुंच जाऊं तो शायद नेटवर्क मिल जाए…!”
अभिनव एक हाथ से दीवार का सहारा लेते छत की तरफ जाने लगा…
सचमुच इधर नेटवर्क की हालत कुछ सुधरी… फोन में फटाफट कई चैट फ्लैश होने लगे…
अचानक अभिनव ठिठका…
छत से आवाज आ रही थी… कोई बात कर रहा था…
शायद अंकिता ही थी… दबी हुई आवाज में झुंझला रही थी…
शब्द कुछ स्पष्ट नहीं हो रहे थे… अभिनव आवाज की ओर बढ़ चला… हाथ में फोन देखने का बहाना लिए…
धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ते अचानक उसका सामना अंकिता से हो गया…
किसी के कदमों की आहट से उसने बोलना बंद कर दिया था…
एक ही बार में अभिनव की नजर अंकिता पर जम गई…
अंकिता तेज कदमों से नीचे उतर गई… मगर उतनी ही देर में दत्ता की खोजी नजरों ने उसकी पूरी तस्वीर खींच ली… मध्यम कद… कमर तक लंबे बाल… गोल चेहरा… खूबसूरत आंखों वाली प्यारी लड़की…
दत्ता ने एक लंबी सांस ली… और दोबारा फोन पर नजर डाल… अभी देख ही रहा था कि शांभवी भागते हुए आई…
” क्या भैया… आपको क्या सूझी छत पर जाने की… ठीक होना है या नहीं.… फिर अगर कहीं गिर पड़ गए तो…
वह तो दीदी ने मुझे भेज दिया… वरना आप तो…
अभिनव थोड़ा हंसा…” कुछ नहीं होगा… नेटवर्क यहां बढ़िया है… मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा… जाओ तुम…
इस तरह बैठकर मेरा काम थोड़े ही चलेगा…!”
शांभवी चली गई…
उस वक्त तो वह वापस आ गया…मगर अब यूं ही खाली बैठना उसे रास नहीं आ रहा था…
वह आगे क्या किया जाए सोचता… फोन लेकर रात को फिर छत की तरफ चला गया…
वह ऊपर पहुंचने ही वाला था… कि अंकिता जो की पहले से ऊपर थी… नीचे की तरफ उतर कर आ गई…
पर इस बार नज़रें चुराकर भागी नहीं…
सीधा आमने-सामने खड़ी हो गई…
” क्यों मिस्टर दत्ता… आपकी जासूसी का कीड़ा कुछ दिन के लिए छुट्टी नहीं ले सकता क्या…!”
इस अचानक आए सवाल के लिए दत्ता तैयार नहीं था…
” क्या मतलब…!”
” मतलब यह कि जब आपको मां ने सब बता दिया है… तो फिर मेरे पीछे क्यों पड़े हैं…
मैं कोई सुसाइड नहीं कर रही…
वह तो उस समय मेरा माथा बिल्कुल ही काम करना बंद कर चुका था… लग रहा था अब कभी भी इन सब से छुटकारा नहीं मिल पाएगा… इसलिए…
वह सब सोचती हूं तो शरीर कांप जाता है… आत्मा सिहर उठती है…
कैसे किया मैंने यह सब…
मरना मुझे जीने से अधिक आसान लग रहा था…!”
“फिर कभी ऐसा ही हो जाए तो… तो फिर कर लोगी सुसाइड… अटेंप्ट……!”
” जिसे देखो उसे मुझे ही समझा रहा है… हां जानती हूं गलती हो गई… नहीं गुनाह हो गया…
पर अब निकलने की कोशिश कर रही हूं ना…!”
” लेकिन अंकिता इस तरह तो तुम अपने साथ-साथ अपने पूरे परिवार को उलझन में डाले हो…!”
” मुझे कुछ नहीं पता… प्लीज मुझे अकेला छोड़ दीजिए.…!”
“अच्छा ठीक है… कुछ अपने बारे में भी तो बताओ… तुम्हें पसंद क्या है…
वैसे खाना तुम बहुत अच्छा बनाती हो… मैं तो फैन हो गया हूं तुम्हारी कुकिंग का…!”
“वाह यह तो बहुत अच्छी बात है… लेकिन यह बात मेरे पापा से मत करना…
क्योंकि यह तो कोई भी कर लेगा… ये कोई खास बात थोड़े ही है…!”
“लेकिन सब ऐसा नहीं सोचते अंकिता… आजकल कोई भी हुनर जो तुम्हारे अंदर है… वह तुम्हारी जिंदगी बदल सकता है…!”
“छोड़िए मुझे नहीं बदलनी जिंदगी… मैं खुश हूं यहां…कोई रोक-टोक नहीं… मोटी-मोटी किताबें नहीं… परीक्षा नहीं…रिजल्ट नहीं…
बस… अब मुझे कहीं वापस नहीं जाना…!”
” मगर तुम इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हो… यह भी तो सोचो… तुम्हारे कारण शांभवी की पढ़ाई का कितना नुकसान हो रहा है…!”
अंकिता चुप हो गई… वह इस बार कुछ नहीं बोली… अभिनव को लगा कि तीर निशाने पर लगा है…
” यहां शांभवी की पढ़ाई का नुकसान… उधर तुम्हारे पापा…!”
” नहीं… उनको कोई परेशानी नहीं हो सकती… खासकर मेरे लिए तो कभी नहीं…!”
बोलते हुए अंकिता धरधराती सीढ़ियां उतर गई…
अभिनव छत पर चला गया… आसमान बिल्कुल साफ था…
इतना साफ… की उसे देखकर दत्ता के दिमाग पर पड़ा धुंध भी कुछ-कुछ साफ हो गया…
फोन में नेटवर्क भी बढ़िया आ रहा था…
पूरा गांव बिल्कुल काले चादर में लिपट गया था…
नीलांजना जी ने बिस्तर पर जाने से पहले एक आवाज लगाई…
” अभिनव तुम ठीक तो हो…!”
” हां मैम कोई परेशानी नहीं… मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा…!”
नीला भी अपने कमरे में चली गई…
अभिनव ने आराम से कुछ सोच कर नागार्जुन जी को फोन लगाया…
वह तो जैसे इंतजार में ही थे…
” हां सर…!”
” सर नहीं… अभिनव ही बोलिए राय साहब.…!”
” ठीक है… अभिनव दत्ता… कुछ पता चला…
आप तो फोन भी नहीं उठा रहे… इंस्पेक्टर सुधीर से पता चला…!”
” क्या पता चला…!”
” यही कि आप कोलकाता गए हैं…!”
” मैं पूछ सकता हूं क्यों…?”
” ओह… तो इंस्पेक्टर सुधीर जासूस की जासूसी कर रहे हैं… उन्हें आपने मेरा पता लगाने रखा है क्या…
खैर… जी हां मैं कोलकाता में ही हूं…
यहीं मैंने कहा था ना… एक छोटी दुर्घटना का शिकार हो गया हूं …!”
“अब कैसे हैं आप…!”
“जी ठीक हूं… आप बताइए… क्या आप अपने परिवार को जिंदा देखना चाहते हैं…!”
” यह कैसा सवाल है… तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या…
लगता है तुम्हारे सर में चोट लगी है…!”
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नीलांजना ( भाग-11 ) – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
रश्मि झा मिश्रा