अम्मा रात के 11:00 बज गए बाबूजी अभी तक काम से नहीं लौटे
तब अम्मा बताने लगी कारखाने में फोन कर के पूछ लिया तुम्हारे बाबूजी सुबह कारखाने पहुंचे ही नहीं तुम लोग घर पर ही रहो मैं थाने जाकर रिपोर्ट लिखवा कर आती हूं इतना कहकर अम्मा घर से बाहर निकल गई
बड़ा भाई बताने लगा आज तो बाबूजी का सैलरी का दिन था और मुझे नई बाइक दिलाने का वादा भी किया था मेरी बाइक का क्या होगा
बहन अलमारी का दरवाजा खोलते हुए बोली — तुम्हें अपनी बाइक की पड़ी हुई है मैंने अपने लिए बाबूजी से स्कूटी मांगी थी मेरी स्कूटी अगर नहीं आई तो मुझे बस पकड़ कर ही जॉब करने जाना पड़ेगा
तुम दोनों भाई स्कूल छोड़ने के बाद 2 सालों से घर में खाली बैठे हो
बाबूजी कितनी बार कहते थे कोई छोटा-मोटा काम सीख लो आगे चलकर काम आ जाएगा दो पैसे कमाना सीख जाओगे मगर तुम्हें तो सुबह 10:00 बजे सोकर उठना है दिन भर बाहर मोहल्ले में घूमना है और शाम को आकर खाना खाना है और टेलीविजन देखना है इसके अलावा तो कभी तुमने कुछ सोचा ही नहीं
और नेकराम को ना पढ़ाई से मतलब ना बाबूजी के काम से मतलब
बस रोज खर्चे के लिए पैसे मांगता रहता है उन पैसों का क्या करता है किसी को नहीं बताता बाबूजी लापता हो गए मगर तुम्हारी आंखों में एक भी आंसू नहीं
अम्मा बेचारी अकेली ही थाने में गई है रिपोर्ट लिखवाने
थोड़ी देर बाद अम्मा घर वापस लौट आई और बताने लगी
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पुलिस वाले कह रहे हैं तीन दिन इंतजार कर लीजिए अगर नहीं मिले तो हम खोजबीन शुरू कर देंगे ।
भूख जोरों की लग रही थी इसलिए हम भाई बहनों ने अम्मा से कहा
अम्मा तुम चिंता मत करो बाबूजी जल्दी ही वापस आ जाएंगे
रात काफी हो चुकी है चूल्हे में अभी तक एक रोटी भी नहीं पकी
तब अम्मा बताने लगी आज बाबूजी की सैलरी किराने की दुकान वाले को देनी थी तभी तो वह हमें नया राशन देगा मेरी जेब में तो एक फूटी कोड़ी भी नहीं है मैं राशन कहां से लाऊं आज रात तुम्हें खाली पेट ही सोना पड़ेगा
रात के 3:00 बज चुके थे मैं रसोई घर में जाकर बर्तनों को टटोलना शुरू किया शायद कुछ खाने को मिल जाए ,,आटे का कनस्तर खाली था
टोकरी में कोई कच्ची सब्जी नहीं थी बड़ा भाई और बड़ी बहन भी रसोई घर में आ गए बर्तनों की खटपट सुनकर
क्यों रे ,,, नेकराम ,,, रसोई घर में क्या कर रहा है बड़ी बहन ने पूछा
बहन को देखकर मैं पेट पकड़ कर बोला दीदी ,, भूख लगी है
तो भाई बताने लगा अम्मा ने बताया था खाने के लिए कुछ नहीं है
तो तू फिर रसोई घर में क्यों घुसा ,, चल सो जा सुबह कुछ इंतजाम करेंगे अम्मा भी तो भूखी है,,
मगर मुझे भूख के मारे नींद नहीं आ रही थी ,, हम तीनों बहन भाई उस रात जागते रहे,, और जागते जागते ही सवेरा हो गया
किसी ने दरवाजा खटखटाया तो मैंने दरवाजा खोल दिया अखबार वाला सामने खड़ा हुआ था कहने लगा ,, महीना पूरा हो गया,, पैसे दे दीजिए अखबार के,,
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अखबार वाले की बात सुनकर अम्मा दौड़कर गेट पर आई और कहने लगी, अखबार के रूपए अगले महीने चुका देंगे और आप अब हमारे घर अखबार मत लाया करो
अखबार वाले ने अम्मा से पूछा आप ऐसा क्यों कह रही हैं
तब बहन ने बता दिया ,, बाबूजी की सैलरी अभी तक नहीं मिली
बाबूजी कहीं खो गए हैं पुलिस उन्हें तलाश रही है
तब अखबार वाले ने कहा,, अगर आपके बाबूजी नहीं मिलेंगे तो क्या मेरे अखबार के रुपए नहीं आप लोग दोगे, मुझे भी रुपया आगे देना होता हैं मैं कुछ नहीं जानता 2 दिन की मोहलत दे रहा हूं मेरे अखबार के रुपए मुझे दे देना उसके बाद मैं आपके घर कभी नहीं आऊंगा
अखबार वाला हमें धमका कर चला गया,, और जाते-जाते अम्मा से कहा गया
तुम्हारे इतने बड़े हट्टे-कट्टे दो लड़के हैं क्या यह नौकरी करके घर नहीं चला सकते जो बाबूजी का इंतजार कर रहे हैं,, बाबूजी भी आ जाएंगे मगर इन बच्चों को भी तो काम करना चाहिए अपने बाबूजी का हाथ बंटाना चाहिए —
मेरी नजर बार-बार चूल्हे पर जा रही थी,, मैंने अम्मा को बताया
आस पड़ोस से कुछ कर्जा मांग लो ,, कम से कम आज का दिन तो
बीत ही जाए कल शाम से कुछ नहीं खाया
तब बहन चिल्लाते हुए बोली,, बाबूजी खो गए और तुझे रोटी की पड़ी है
तभी एक महंगी साड़ी पहने हुए एक सुंदर सी महिला गेट पर खड़ी होकर बोली,, 2 महीने से इस कमरे का किराया नहीं दिया अब तीसरा महीना मैं नहीं लगने दूंगी ,, और यह मत कहना कि तुम्हारे बाबूजी खो गए ,, यह सब नाटक बहुत पुराने हो गए हैं ,,
आज शाम को 3 महीने का किराया न दिया ,, तो शाम को अपना घर खाली करवा लूंगी अभी जाती हूं ,, और वह पाजेब की छम छम करती हुई सीढ़ियों से नीचे चली गई
बड़ा भाई बोला अम्मा,, मेरे पास गाड़ी का लाइसेंस है 6 महीने पहले मुझे ड्राइवर की नौकरी मिल रही थी एक सेठ के पास मगर मैंने नौकरी के लिए मना कर दिया था , उनका कार्ड भी मेरे पास है शायद वहां नौकरी लग जाए
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बड़े भाई ने तुरंत अलमारी से कार्ड निकाला और नंबर मिलाया
कॉल लग गई ,, नमस्ते मेरा नाम नवीन है 6 महीने पहले आपने मुझे कार्ड दिया था ड्राइवर की नौकरी के लिए मुझे नौकरी की आज सख्त जरूरत है आप सैलरी बता दीजिए
उधर से आवाज आई ,, सैलरी तुम्हें मिल जाएगी आप अभी ड्यूटी पर आ जाइए
भैया ने , अम्मा की आंख से आंसू पोछते हुए कहा
सेठ जी से नौकरी की बात हो गई है मैं कुछ एडवांस भी मांग लेता हूं शायद दे दे
सेठ जी से एडवांस की बात करने पर सेठ जी मान गए
भैया खुश होते हुए बोले अम्मा मैं अभी आधे घंटे में एडवांस लेकर आता हूं फिर तुम किराने की दुकान से राशन ले आना
भैया घर से बाहर तुरंत निकल गए
बहन मेरी तरफ देखने लगी और कहने लगी ,, अभी तक तो मैं जॉब करके सारे रुपए अपने ऊपर खर्च करती थी और हमेशा बाबूजी के पीछे पड़ी रहती थी कि बाबूजी मुझे स्कूटी दिलाओ ,,
चोरी छिपे मैंने कुछ रुपए जमा किए थे उन रूपयों में से एक महीने का किराया आराम से चुकाया जा सकता है मकान मालकिन से और मोहलत मांग लेंगे धीरे-धीरे उनका किराए का रूपया भी चुका देंगे
बड़ी बहन ने अलमारी से रुपए निकाल कर अम्मा के हाथ में पकड़ा दिए और कहा लो मकान मालकिन को एक महीने का किराया पहुंचा दो
अम्मा रुपया लेकर मकान मालकिन को देने चली गई
मैंने बहन को बताया मोहल्ले में एक नया साड़ी का शोरूम खुला है
शायद मुझे भी वहां नौकरी मिल जाए मैं अभी शोरूम के मालिक से बात करके आता हूं
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घर से बाहर निकलने पर कुछ दूरी पर वह शोरूम मिल गया
बोर्ड अभी भी लगा हुआ था ,, यहां हेल्पर की जरूरत है ,,
दुकान मालिक को मैंने बताया मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है जैसा भी काम हो मैं कर लूंगा ,,
कहां रहते हो तुम ,, और तुम्हारा नाम क्या है ,, शोरूम के मालिक ने पूछा
जी मेरा नाम नेकराम है इसी मोहल्ले में रहता हूं
मेरी बात सुनकर उसने फिर कहा ,,
इस दुकान में महिलाएं आती हैं उन्हें साड़ियां दिखानी होती है
सुबह दुकान 10:00 बजे खुलती है दुकान खुलते ही तुम्हें झाड़ू लगाना है और फिर उसके बाद ग्राहकों को साड़ियां बेचनी है ,,
अगर तुम ज्यादा से ज्यादा साड़ियां बेचोगे तो तुम्हें अलग से कमीशन भी मिलेगा तुम चाहो तो अभी से काम शुरू कर सकते हो
बाबूजी खो गए यह बात मैंने शोरूम के मालिक को नहीं बताई
कहीं वह कहने लगे की नौकरी पाने के लिए तुम झूठी मनगढ़ंत कहानी सुना रहे हो,, यही सोच कर मैंने बाबूजी का परिचय नहीं दिया
और यह कह दिया अब मैं बड़ा हो गया हूं घर के खर्च काफी बढ़ चुके हैं
हमारे बाबूजी अब बूढ़े होते जा रहे हैं ,, एक न एक दिन हमें ही उनका सहारा बनना है
शोरूम का मालिक मेरी बातें सुनकर खुश हुआ और कहने लगा
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मैं शोरूम में केवल उन्हीं लड़कों को रखता हूं जिनका मैं घर देख लेता हूं और उनके परिवार वालों से मिल लेता हूं अभी मेरे पास समय नहीं है 2 दिन बाद आऊंगा तुम्हारे बाबूजी से मिलने के लिए
मैं चुपचाप काम पर लग गया दोपहर होने पर दुकान के मालिक ने मुझे
दो समोसे और चाय पिलाई खाली पेट में कुछ जाने से मुझे कुछ आराम मिला धीरे-धीरे शाम बीत गई तब शोरूम के मालिक ने कहा
नेकराम इधर आओ आज तुम्हारा पहला दिन है ,, यह लो ₹100
क्या पता तुम कल ना आओ इसलिए आज की पेमेंट मैंने कर दी है
अगर तुम कल आओगे तो तुम्हें और रुपए मिलेंगे
मैं जरूर आऊंगा ,, इतना कह कर रुपए लेकर मैं घर की तरफ चला आया
घर में घुसते ही खाने की खुशबू आ रही थी
अम्मा ,, चूल्हे में कढ़ी पकोड़ा ,, बना रही थी और गरमा गरम रोटियां पकाकर पहले से ही एक टोकरी में रखी हुई थी
मैं समझ गया था भैया को एडवांस मिल गया इसलिए अम्मा खाना पका रही है और मकान मालकिन भी नहीं आई क्योंकि बहन ने एक महीने का किराया दे दिया ,,था
अम्मा पकाती गई और हम भाई बहन खाते गए
मगर अम्मा ने एक रोटी का निवाला भी नहीं खाया
घर के भीतर की कुंडी लगाकर हम बिस्तर बिछाने की तैयारी करने लगे
मगर मेरा एक चादर कम था मैंने अम्मा को बताया अम्मा इस घर में तो
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6 चादर है मगर मैं बार-बार गिनती कर रहा हूं चादर की संख्या केवल पांच है एक चादर कहां गया
शायद पलंग के नीचे होगा
मैं पलंग के नीचे झांकने लगा तो अम्मा ने मुझे रोका,,
नेकराम तू पलंग के नीचे मत झांक ,, वहां बहुत से पुराने और टूटे हुए बर्तन पड़े हुए हैं कल सुबह चादर ढूंढ लेंगे
पलंग के नीचे झांककर मुझे ऐसे लगा जैसे बर्तनों के बीच में कोई बड़ी सी पोटली पड़ी हुई है पहले तो यह पोटली नहीं थी
पोटली को गौर से देखने पर मुझे लगा पोटली हिल भी रही है
मैं चिल्लाया मम्मी पलंग के नीचे जरूर कोई चोर छिपा हुआ है
भैया और बहन जल्दी से डंडा उठा लाए,,
तभी अम्मा चिल्लाई अरे रुक जाओ ,, डंडा मत मार देना
वह चोर नहीं तुम्हारे बाबूजी है
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हमें समझ आ चुकी थी बाबूजी ने हमारे साथ एक नाटक किया है
शायद वह हमें यह समझाना चाहते थे इस दुनिया में जब मैं ना रहूं तो तुम लोग अपना जीवन कैसे व्यतीत करोगे
तब बाबूजी बोले तुम लोग सही सोच रहे हो
एक पिता की अपनी निकम्मी औलादों से यही चिंता रहती है मेरे मरने के बाद मेरे बच्चे अपनी देखभाल और अपने परिवार की देखभाल कैसे करेंगे
इस नाटक के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था ,,
हम तीनों भाई-बहन बाबूजी से लिपट गए और रोते हुए बोले ,,
बाबूजी हमारी आंखें खुल चुकी है आज से आप घर पर बैठोगे और हम काम पर जाएंगे
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हम दोनों भाइयों की बातें सुनकर बाबूजी ने कहा मुझे तीन दिन का नाटक करना था मैं देखना चाहता था मेरे ना रहने पर मेरे दोनों जवान बेटे और मेरी बेटी ,, अम्मा की देखभाल कर पाएंगे या नहीं
लेकिन तुमने साबित कर दिया ,,
और तुम्हारी अम्मा ने बहुत अच्छी एक्टिंग की ,, तुम्हारी अम्मा थाने नहीं गई थी 1 घंटे बाहर पार्क में बैठकर वापस लौट आई और तुमसे झूठ कहने लगी कि मैं थाने गई थी यह सब मेरी लिखी हुई कहानी थी जिस पर तुम्हारी अम्मा अमल कर रही थी
हम दोनों भाइयों ने एक साथ कहा ,, अम्मा की एक्टिंग और बाबूजी का नाटक हमें पसंद आया इस बहाने हमारे अंदर का डर निकल गया अब हम भी नौकरी करके घर की जिम्मेदारी उठाएंगे फिर कोई नहीं हमें निकम्मी औलाद कहेगा
हमारी बात सुनकर बाबूजी कहने लगे तुम्हारी अम्मा ने शहर में एक जमीन खरीदी है इस जमीन की किस्त चुकाने में मुझे पूरे 10 वर्ष लग गए
तब हम दोनों भाइयों ने कहा ,, बाबूजी आप चिंता मत कीजिए अब हम भी तुम्हारे साथ हैं जल्दी ही वहां पर मकान बना लेंगे
तब अम्मा बताने लगी एकता में बड़ी ताकत होती है अगर परिवार के सभी सदस्य रुपया कमाए और घर के बड़े बुजुर्गों को जमा करने के लिए दें तो गरीबी से निजात पा सकते हैं
3 साल की कड़ी मेहनत के बाद शहर में अब हमारा भी अपना मकान था
बाबूजी की जमीन पर हम दोनों भाइयों ने मिलकर तीन मंजिला मकान बनवा दिया
बहन की शादी धूमधाम से हो गई और उसे हमने एक नई स्कूटी भी दे दी अब बहन स्कूटी से ही ससुराल से,, मायके में आना-जाना करती है
बाबूजी के साथ मिलकर हमने 3 बर्ष और कड़ी मेहनत की
रुपया जमा होने के बाद बाबूजी ने हम दोनों भाइयों की भी एक-एक करके शादी कर दी
बाबूजी ग्राउंड फ्लोर में अम्मा के साथ अपना हंसी खुशी जीवन बिता रहे हैं ,, हम दोनों भाइयों को मजबूत बनाने में हमारे बाबूजी का बहुत बड़ा हाथ था इसलिए हमारे बाबूजी जिंदाबाद
हमारी अम्मा ने फिजूल खर्ची नहीं होने दी और सब काम सही समय पर किया इसलिए अम्मा हमारी जिंदाबाद
हमें भी गर्व है सही समय पर हमारी आंखें खुल गई और हमने अपनी जिम्मेदारियों को निभाया
और हमें यह बात भी समझ में आ गई पिता के बूढ़े होने से पहले ,, जवान बच्चों को अपने पैरों पर खड़े हो जाना चाहिए
फिर मिलते हैं एक और नई कहानी के साथ
लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना