नई राह – निभा राजीव निर्वी : Moral Stories in Hindi

नंदिनी ने अपार स्नेह और आह्लाद से भरकर अपने अठारह वर्षीय भाई नमन का टीका किया, जो भाई दूज के पावन अवसर पर उससे टीका कराने आया था। भावातिरेक दोनों भाई बहन की आंखें नम हो गई। नंदिनी ने नमन से कहा, “- चल तू बैठ, मैं तेरा खाना लगाती हूं।” नमन ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और नंदिनी उत्साह से रसोई की ओर चल पड़ी। वैसे भी आज काफी कुछ बना था घर में… सासू मां के भी भाई आए थे। 

उसने गरम-गरम पकौड़े तलने के लिए कड़ाही चढ़ाई ही थी की तभी अचानक सासू मां रसोई में आ गईं, और कड़ाही चढ़ी देखते ही बिफर पड़ी… “क्या कर रही है तू ये?”

“-माँजी, नमन के लिए थोड़े पकौड़े तल रही हूं। उसे भी खाना दे दूं.. उसे जल्दी जाना भी है वापस.. ” नंदिनी ने विनम्रता से कहा।

 इतना सुनते ही सासू मां ने तीखे स्वर में कहा,”- कहां का लाट साहब है तेरा भाई जो उसके लिए अब पकोड़े तलने बैठ गई.. मुफ्त में नहीं आती है यह सब चीजें… और ना तेरे बाप भाई ने कोई अंबार लगाया हुआ है। भाई दूज के नेग में भी सौ रुपल्ली पकड़ा दी।अरे सौ रुपल्ली में होता क्या है !

जाने कैसे कंगलों के घर से रिश्ता जुड़ गया है। तेरे बाप ने बाइक दिलाने का वचन दिया था, वह भी भूल-भालकर ठाठ से बैठा हुआ है। और यहां बेटी पकौड़े तल तल भाई को खिलाने के लिए तैयार है। छप्पन भोग बनाए जा रहे हैं।”

             नंदिनी ने छलछलाई आंखों से कहा, “-माँजी मेरे बाबूजी की आय इतनी अधिक नहीं है परंतु वह धीरे-धीरे दे देंगे। वो अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे हैं।”

          “तू ज्यादा हिमायती मत बन उसकी! हमें सब पता हैं तुम लोगों के प्रपंच! हमारे साथ तो धोखा हो गया।… और कान खोल कर सुन ले… कोई पकौड़े वकौड़े नहीं बनेंगे। दाल चावल और एक सब्जी लेकर खाना खिला दे अपने भाई को.. चाहे तो एक अचार भी रख देना। और सुन.. खाना देने से पहले दाल में थोड़ा पानी मिलाना मत भूलना।”

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आंँखों पर चर्बी चढ़ना – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

             नंदिनी एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की…जिसे बचपन से संस्कारों में घुट्टी की तरह यही पिलाया गया कि पति का घर ही असली घर होता है और वहां चाहे जो भी हो अपना निर्वाह करना ही पड़ता है। बेटी डोली में ससुराल जाती है और अर्थी में ही वहां से निकलती है। नंदिनी की सोच भी इससे कुछ अलग नहीं हो पाई इसीलिए अपने ससुराल वालों की ज्यादातियों का विरोध करने का साहस उसके अंदर कभी उत्पन्न नहीं हो पाया। वह और उसका परिवार सदैव रूढ़िवादी सोच से ही बंधे रह गए। 

          बरामदे पर बैठे उसके भाई नमन को सब कुछ स्पष्ट सुनाई दे रहा था। अपमान विष की भाँति उसके अंतर को दग्ध कर रहा था।

परंतु बहन के मान के लिए वह चुपचाप बैठा रहा।

               नंदिनी ने भारी मन से भाई की थाली परोसी और लाकर उसके सामने रखी। और बलपूर्वक मुस्कुराने का प्रयत्न करते हुए कहा,”- आज सादा खाना ही बना पाई हूं भाई..दो-तीन दिन से बाजार नहीं जा पाई तो घर में कुछ इतना नहीं था.. अभी तू यही खा ले..”

          नमन ने सिर उठाकर नंदिनी को देखा.. उसकी आंखें बहुत लाल हो रही थी शायद उसने बलपूर्वक अपने आंसुओं को पोंछकर सुखाने का प्रयत्न किया था। उन आंखों में कितनी लाचारी, भाई के समक्ष प्रतिष्ठा को बचाने का भाव, सहनशक्ति की लालिमा और स्नेह का असीम सागर हिलोरें ले रहा था। उसकी मन:स्थिति का मान रखते हुए नमन ने मुस्कुराते हुए बड़े प्यार से एक कौर उठकर मुंह में रखा और प्रशंसा करते हुए बोल उठा, “-वाह दीदी क्या सब्जी बनाई है.. बहुत ही स्वादिष्ट है।” नंदिनी के चेहरे पर भी फीकी मुस्कान दौड़ गई। शीघ्र ही खाना खाकर नमन चला गया।

            किंतु उस दिन के पश्चात नमन ने कभी पलट कर नंदिनी के ससुराल का मुंह नहीं देखा। हर भाई दूज में नंदिनी नमन की प्रतीक्षा करती रहती परंतु वह कभी नहीं आया। नंदिनी के पिता ने धीरे-धीरे वचन के अनुसार नंदिनी के पति को बाइक भी दे दी और अन्य वस्तुएं भी। परंतु उनके रवैया में कोई अंतर नहीं आया था। उनकी कुछ न कुछ मांग सदैव बनी रहती थी। इस बीच नंदिनी भी एक बिटिया की मां बन चुकी थी। और इस बात के लिए भी उस पर तानों की बरसात गाहे बगाहे होती ही रहती थी। मायके जाने का भी उसे बहुत कम अवसर मिलता। इसी प्रकार कितने साल बीत गए।

                आज फिर भाई दूज था। नमन ने तो नंदिनी के ससुराल आना छोड़ दिया था परंतु नंदिनी का हृदय था जो आज भी भाई की राह ताकता ही रहता था। उसकी दृष्टि बार-बार दरवाजे की ओर उठती देखकर नंदिनी की सास ने कटाक्ष करते हुए कहा, ” नहीं आएगा तेरा टुच्चा भाई! सोचता होगा बहन के द्वार पर जाऊंगा तो कहीं कुछ खर्च ना हो जाए… राह देखना बंद कर दे उन कंगालों की..”

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फैसला – मंगला श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

               तभी द्वार पर बड़ी सी कार आकर रुकी। कार से नमन को उतरते देख कर नंदिनी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह दौड़ती हुई जाकर नमन से लिपट गई। 

                नंदिनी के सास, ससुर और पति के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। नंदिनी के पति ने पूछ ही लिया, “- यह किसकी गाड़ी है नमन??”

               “-जी बताता हूं.. पहले दीदी से टीका तो करा लूं..” नमन ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। 

        टीका करवाने के बाद नमन ने निश्चिंततापूर्वक सांस लेते हुए नंदिनी की सासू मां से कहां, “- मां जी आप चिंता मत कीजिए.. मैं आपके यहां से भोजन करके नहीं जाऊंगा.. 

हां तो अब आपके साथ प्रश्न का उत्तर जीजा जी..” वह नंदिनी के पति की तरफ मुड़ा।

सब की प्रश्नवाचक दृष्टि नमन के चेहरे पर जा टिकी…

“- यह गाड़ी मेरी है। माँजी शायद आपको याद होगा कि दीदी के विवाह के पश्चात जब पहली बार में दीदी से टीका करने यहां आया था तो आपको मेरा आना अच्छा नहीं लगा था और आपने दीदी को और मेरे पूरे परिवार को जी भरकर कोसा था और हमारा जी भर कर अपमान किया था। किंतु मां जी आपके द्वारा किए गए उस अपमान के लिए मैं आपको बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं..क्योंकि वही अपमान मेरे लिए वरदान बन गया। उसी दिन मैंने निश्चय कर लिया था कि अब बिना कुछ बने मैं आपके द्वार पर कभी नहीं आऊंगा।

आपकी बददुआओं ने दुआओं का काम किया और मेरा चयन प्रशासनिक सेवा में हो गया और मैं एक प्रशासनिक अधिकारी बन चुका हूं। और आप जैसे दहेज लोभियों का असली स्थान कहां है यह तो आप सब भी भलीभांति जानते होंगे.. ” नमन के चेहरे पर गंभीर, दृढ़ और प्रभावशाली भाव थे।

सबका मुंह खुला का खुला रह गया। नंदिनी के पति ने हकलाते हुए कहा, “न..न..नंदिनी, नमन को कुछ खिलाओ तो सही..या ऐसे ही….”

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विलुप्त होते रिश्ते – शिप्पी नारंग : Moral stories in hindi

उसकी बात बीच में काटते हुए नमन बोल पड़ा,”- जी नहीं, मुझे इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। और एक बात तुमसे कहना चाहता हूं दीदी… अगर चल सको तो आज चलो अपने भाई के साथ… तुम्हें सिलाई बुनाई का काम बहुत अच्छी तरह से आता है.. शीघ्र ही तुम्हारा अपना बुटीक खुल जाएगा… इस विषय में निर्णय लेने का अधिकार मैं तुम पर छोड़ता हूं और इन लोगों का क्या करना है इसका निर्णय भी तुम ही लोगी।”

           नंदिनी जो इतनी देर से हतप्रभ और चित्रलिखित सी खड़ी थी, अचानक दृढ़ स्वर में बोल पड़ी, “-मैं तुम्हारे साथ चलूंगी भाई! पुरातन मानसिकताओं के कारण ये साहस में पहले कभी नहीं जुटा पाई। न ही कभी मेरे माता-पिता समाज के विरुद्ध जाने का साहस कर पाए। किंतु अब और नहीं.. तुम्हारी दृढ़ता ने मेरा भी मार्गदर्शन किया है.. और रही बात इन लोगों की.. तो अपनी करनी का फल तो सबको भुगतना ही पड़ता है…”

नंदिनी के ससुर बोल उठे, “- यह क्या कह रही हो बेटी…??”

नंदिनी ठठा कर हंस पड़ी, “-अच्छा बाबूजी आज मैं बेटी हो गई… इतने दिनों से यह स्नेह कहां था..मुझे जली कटी सुनाने में कोई कसर नहीं रखी आपलोगों ने। धमकियां दे दे कर मेरे बाबूजी सी अपनी मांगे पूरी करवाते रहे।अब आप लोग अपने घड़ियाली आंसू अपने पास रखिए और अपनी करनी का फल भुगतने को तैयार रहिए…”

            नंदिनी ने अपने बच्चे को गोद में उठाया और नमन का हाथ पकड़ कर उसकी गाड़ी की और चल पड़ी जीवन की नई राह पर। शीघ्र ही नमन की गाड़ी हवा से बातें कर रही थी… नंदिनी के ससुराल वालों के मुंह पर गर्द उड़ाते हुए..।

निभा राजीव निर्वी 

सिंदरी धनबाद झारखंड 

स्वरचित और मौलिक रचना

#अपमान_बना_वरदान

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