सुबह सुबह लगभग 4:00 या 5:00 बजे होंगे मेरी बगल के कमरे से आते हुए खटपट से मेरी नींद खुली, सोचा शायद पानी भरने के लिए लाइन लग रही होगी लेकिन नहीं यह तो ठीक बगल से आवाज आ रही थी। मेरे ठीक बगल में राहुल रहता था राहुल मेरे ही गांव का लड़का था जो यहां मेरे साथ फैक्ट्री में काम करता था उठ करके गया देखा राहुल जल्दी-जल्दी अपना सामान बांध रहा था मैंने पूछा कहां जा रहे हो क्या हो गया बोला दउआ (ताऊ) नहीं रहे। अरे! कब से क्या हुआ कैसे ?
बोला मुझे भी नहीं मालूम सुबह मां का फोन आया था और जल्दी आने को बोला, जा रहा हूं मालिक से थोड़े से पैसे मांग लूं उसने फैक्ट्री जाके, मालिक से पैसे के लिए बोला मालिक पैसे देते हुए बोले जाओ जल्दी आ जाना ज्यादा समय मत लगाना वरना तुम्हारी जगह किसी और को अलग किया जाएगा । मैंने बोला मैं भी चलूंगा तुम पैसे लेकर आओ तब तक मैं यहाँ सब सम्हाल लेता हूँ
फैक्ट्रियों में अक्सर ऐसा ही होता है अगर कोई वर्कर सप्ताह 15 दिन से ज्यादा रुक जाता है तो उसकी नौकरी चली गई समझो , राहुल ने पैसे लिए और हम दोनों बस में बैठ गये राहुल को बैठते ही उसे नींद आ गई रात भर सो नहीं पाया था शायद इस कारण ।
इधर विनोद सोच रहा था क्या हुआ होगा अचानक से ? उनके साथ कहीं उन्होंने भी तो नहीं! नहीं मन में खटका था कि कहीं उन्होंने भी तो और किसानों की तरह आत्महत्या तो नहीं कर ली।
राहुल अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था , उसकी दो बहने थी, बचपन में ही राहुल के पिता काली खांसी से चल बसे थे, गांव देहात में इलाज होना कितना मुश्किल होता है ।
राहुल जाति से अहीर है तो इसलिए उस के घर में दूध का कारोबार होता था,
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जब तक बाबा और पिता जिंदा थे तब तक उनका कारोबार ठीक ठाक चलता था पर अब गाय भैंस का चारा बहुत महंगा हो गया था 3000 से लेकर साढे तीन हजार कुंटल तक भूसा मिलता है और जिन दिनो रहा चारा नहीं मिलता था उन दिनों से भूसे से काम चलाना पड़ता है ।
उसका घर थोडा बहुत सम्पन्न माना जाता था गांव के हिसाब से, जिस किसान के घर में दो वक्त की रोटी मिल जाए समझ लीजिए वह बहुत संपन्न है।
राहुल के पिता ने एक बेटी की शादी कर दी थी जोड़-तोड़ कर पर दूसरी बहन अभी राहुल को ब्याहनी है।
मैं जब दिल्ली आया था तब रिक्शा चलाता था और जब पहली बार वापस गया तो राहुल ने मुझसे बोला था “यार मुझे भी कोई नौकरी फैक्ट्री में दिला दो” तब मैंने उसे बताया कि मैंने यहां किसी को बता नहीं रखा है मैं यहाँ में रिक्शा चलाता हूं।
पर बाबा से बात कर रखी है (गाँव के जमींदार जो यहाँ शहर में अफ्सर है) उन्होंने बोला है वह कहीं काम पर लगा देंगे जैसे ही मुझे कहीं काम मिलता है मैं तुम्हें जरूर बुला लूंगा, राहुल चिंता मत करो ।
कुछ ही समय बाद मुझे बाबा ने एक फैक्ट्री में लगवा दिया, मैं अपने घर में बड़ा था मेरे दो भाई और एक बहन थी साथ में मां थी। मेरे पिता भी नशे की लत के कारण कम उम्र में चल बसे थे तब से सारा भार मेरे ऊपर ही था अपनी नौकरी के लगने के बाद मैंने राहुल को भी लगवा लिया।
हम दोनों का ब्याह छोटी उम्र में हो गया था जैसा कि गांव में हुआ करता है , मैं चिंतित था कि क्या हुआ होगा कहीं राहुल के दादा ने भी और किसानों की तरह आत्महत्या तो नहीं करती नहीं नहीं ! ये तो मालुम था कि कुछ समय पहले अन्जानी बीमारी से उनकी भैंस मर गयी थी और राहुल के ताऊ ने कर्ज से दूसरी भैंस खरीदी थी। तो क्या उसके कर्ज का भार? नहीं!
हमारे गांव में दो बड़ी बीमारियां थी, एक तो जुआ खेलना और दूसरा घरों में शराब बनाना। कच्ची शराब को वह कैसे बनाते हैं यह शायद शहर में लोगों को पता न होगा। तो क्या शराब से नहीं नहीं मन में हजारों सवाल उमड़ घुमड़ रहे थे। राहुल के बाबा की कोई दो बीघा जमीन थी जो उन्होंने दोनों बेटों में बांट दी थी अब एक बीघा में क्या होता है इतना भारी परिवार कैसे पलेगा।
जिस समय गन्ना हो रहा होता है उसके रस में ही कोई दवा डालते हैं जिसे वो मसाला बोलते है डाल कर शराब बनाते हैं।
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हमारे गांव में गन्ने की खेती बहुत होती है इसके लिए सरकार ने नियम तो अच्छे बना दिए हैं, पर्ची सिस्टम हो गया है पर्ची के हिसाब से गन्ना डालते हैं जिसके लिए जगह-जगह सेंटर बने हुए हैं और फिर वहां से गन्ना फैक्ट्रियों में चला जाता है और अकाउंट में पैसा आ जाता है। लेकिन परेशानियां वहां पर भी कम नहीं है छह छह महीने बाद पैसा आता है जिसके कारण किसान एक बार फिर से कर्जा लेने को मजबूर हो जाता है
क्योंकि उस बीच में उसको और भी फसल उगानी होती हैं जिसके लिए खाद, बीज और पानी चाहिए। दिवाली से पहले ही धान काट के गेहूं बोने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और तब तक गन्ने का पैसा वापस नहीं आ पाता कहने को तो खाद, बीज के लिए सरकार सब्सिडी देती है, सही है! देती है लेकिन वह भी समय से वापस नहीं आ पाती है और इस तरह धीरे-धीरे किसान कर्ज में डूबता चला जाता है
फिर हमारी बस पहुंची और हम जल्दी-जल्दी तांगा करके घर पहुंचे वहां ताऊ का शरीर पड़ा था पर सिर्फ़ उनका नहीं वरन् पूरे परिवार का, हे भगवान!
सुनने में आया कर्ज बहुत हो गया था और जिसकी वजह से ताऊ ने सपरिवार आत्महत्या कर ली उनके परिवार में उन की पत्नी दो बेटियां अनव्याही एक बेटा था बेटे की पत्नी कुछ समय पहले बच्चे के जन्म के समय मर गई राहुल के ताऊ ने सभी को खाने में जहर मिलाकर पहले मार दिया
अब खुद को बंदूक मार के खत्म कर लिया 50 लोगों के 50 मुंह और 50 बातें यह हर जगह का उसूल है फिर राहुल से पूछा तो उसने बताया किताबों ने मुझसे पैसे मांगे थे 20,000 मैं कहां से ला कर देता तू तो जानता ही है ना कितनी आमदनी है उसमें अपना परिवार चलाना ही मुश्किल होता है बहन की शादी का बोझ अभी भी है जिसके लिए मैं कैसे-कैसे पैसे जोड़ रहा हूं और वह बहुत रोने लगा ।
काश! मैं कुछ तो मदद कर पाता हूं कि सब का अंतिम संस्कार कर हम वापस अपने काम पर आ गए।
मन में एक सवाल था क्या मैं फिर से पढ़ाई शुरू करूं? कुछ ऐसी पढ़ाई शुरू करूँ जिससे मैं गांव में ही रह सकूं खेती में अच्छे साधन के लिए अच्छी खेती के लिए लोगों को शिक्षा दे सकूँ सोचते सोचते सो गया और सुबह एक नये प्रण के साथ मैं खुद को और साथ में राहुल को भी इस लायक बनाऊंगा कि गांव में रहकर गांव वालों का भला कर सकूँ, ताकि हमारा गांव संपन्न गांव बन सके सरकार के लिए द्वारा दी जा रही सारी सुविधाओं का फायदा उठवा सकूं।
पशुपालन में रत है उनको उसके द्वारा लाभ उठाना सिखाऊंगा जो खेती बाड़ी में करते हैं उनको उसके द्वारा जमीन को उपजाऊ कैसे बना सकें खेती कब और कैसे कर सकते हैं ।बीज और पानी का इंतजाम कैसे कर सके सरकार द्वारा चलाए गए अभियान जिसमें कि सोलर पैनल लगाने जैसी नीतियां भी शामिल है इनके बारे में भी और बस और बस नई राह के लिए मैंने खुद से दृढ़ निश्चय लिया.
अगर गांव में रहने वाला हर युवा विनोद की तरह सोचने लगे तो किसान सरकारी मोहरा ना बन पाए और देश की हालत और बेहतर हो पाए
लेखिका : हेम लता