अरे सुनती हो,अपनी सुमन का रिश्ता दिल्ली वालों ने स्वीकार कर लिया है।बिटिया की शादी धूमधाम से करेंगे।तुम तैयारी शुरू कर दो।
वाह, ये तो बहुत अच्छा हुआ,हमारी सुमन के हाथ पीले हो जायेगे।पर एक बात तो बताओ लड़के वालों की मांग कितनी है?
भागवान, वो इतने अच्छे है कि उन्होंने दहेज में कुछ भी नही मांगा है।पढ़ी लिखी बहू मिल रही है,ये क्या कम है, ये ही दहेज है,ऐसा बोल रहे थे।
अपनी सुमन वास्तव में भाग्यशाली है जी।भगवान उनका भला करे।
वो तो ठीक है सुमन की माँ, उन्होंने कुछ नही मांगा, पर हमारा भी तो कुछ फर्ज बनता है,फिर अपने यहां भी तो बिरादरी के,रिश्तेदार, जान पहचान के लोग आयेंगे, मैं भी अपने हाथों पहली शादी कर रहा हूँ,तो शादी तो शान शौकत से ही करनी पड़ेगी।
और नही तो क्या,खूब साज सजावट करेंगे,बढ़िया देशी घी में खाना बनवाएंगे।हलवाई के लिये तो मैं सुमन के मामा से कह दूंगी,वो तय कर देंगे,बहुत नामी हलवाई है।
अरे बावली ये सब तो हो ही जायेगा,असली बजट तो देखना है, बिटिया को कार देनी है,और करीब 1200 लोगो का खाना होना है।
देखो,एक बात मेरी मान लेना, जब वो बेचारे दहेज नही मांग रहे तो हम क्यो भारी दिखावे में पड़े? 200-250 लोगो को आमंत्रण दे देंगे और सुमन की गृहस्थी में काम आने वाली चीजें उसे देंगे।इतना सब हमने उसके लिये जोड़ भी रखा है।अधिक भला कहाँ से करेंगे?
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सुमन की माँ सब हो जायेगा, कार पर बैंक से लोन ले लेंगे,सात साल की किश्त बंध जायेगी।कुछ किराने वाले का और कुछ विवाह मंडप वाले को बाद में दे देंगे।बस हो गया काम,बिटिया की शादी में पूरे अरमान निकालने हैं।देखना, सब देखते रह जायेंगे, ऐसी ठाठ की शादी होगी।
सुमन की माँ रमेश बाबू को सब ऊंच नीच समझाती रही पर रमेश बाबू के कान पर कोई जूं रेंग ही नही रही थी।वो तो बस इस शादी में अपनी मान प्रतिष्ठा ही देख रहे थे।सुमन की माँ ने कहा भी देखो पिताजी के गुजरने पर भी आपने ब्रह्मभोज के नाम पर 500 लोगो का खाना रखा था,जिसकी उधारी डेढ वर्ष में जाकर पूरी हुई।किराना वाला ही तकादे के समय कैसे व्यंग्य में कह गया था,रमेश बाबू आरिष्टि में इतना खर्च बिना मीजान के करने की क्या तुक थी?
रमेश बाबू की आंखों के सामने तो बस शादी के आडंबर में अपना ओहदा बढ़ता प्रतीत हो रहा था।दूसरे कमरे में बैठी सुमन यह सब वार्तालाप सुन अपने को अपराधी मान रही थी।वो जानती थी पापा नही मानेगे।करे तो क्या करे,यही प्रश्न सुमन के मन मस्तिष्क में घूम रहा था।
तीन दिन बाद ही रमेश जी के घर के सामने एक कार आकर रुकी और उसमें से उतर कर एक नवयुवक रमेश जी के घर की बेल बजाता है।दरवाजा रमेश जी ने ही खोला।आगंतुक को देख रमेश जी आश्चर्यमिश्रित मुस्कान के साथ उसका स्वागत करते हुए बोले अरे बेटा अवनीश-तुम,आओ आओ बेटा आओ।अवनीश ने आगे बढ़ रमेश जी के पैर छुए।रमेश जी ने अवनीश को गले लगाया और उसे ड्राइंग रूम में ले आये।वही से सुमन की माँ को भी आवाज दे बुला लिया।होने वाले दामाद को अचानक सामने अकेले ही देखकर कौतूहल तो दोनों को था,साथ ही मन मे संशय भी पैदा हो गया था कि होने वाले दामाद ऐसे ही क्यूँ आ गये?
चाय नाश्ते के बाद अवनीश स्वयं जी बोला, पापा शादी से पहले मैं आपसे कुछ मांगने आया हूँ।सुनकर रमेश जी का मन एकदम बुझ सा गया, पता नही दामाद क्या फरमाइश रख दे,वो उसे पूरा कर भी पायेंगे या नही,सोचकर रमेश जी से कुछ बोल ही नही पाये।अवनीश बोला पापा मैं चाहता हूं कि मेरी और सुमन की शादी अत्यंत सादगी से हो,हमारी ओर से बारात में केवल 11 बाराती आयेंगे। किसी धर्मशाला में आराम से शादी हो सकती है, किसी होटल या मंडप को बुक कराने की आवश्यकता नही है।पापा मैं ये भी चाहता हूँ कि हमारी शादी के लिये आपने जो जुटाया हुआ हो उसमे से बाकी राशि अनाथालय में आप सुमन के हाथों दान करा दे।
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मुँह बाय फटी आंखों से रमेश जी अपने होने वाले दामाद को देख रहे थे।ऐसी अनहोनी की कल्पना तो सपने में भी नही की जा सकती थी।सारी चिंताये एक लड़की के बाप की उसके होने वाले दामाद ने एक झटके में मिटा दी थी।एक नयी राह दामाद ने दिखायी थी कि उस दिखावे से क्या लाभ जो उसने सोचा था,वह तो क्षणिक था,मृगमरीचिका थी।जबकि अनाथालय में दी राशि से अनाथ बच्चों का विकास होना था।
रमेश जी की आँखों मे अपने होने वाले दामाद के लिये स्नेह भी था,आभार भी था,उसके प्रति गर्व का भाव भी था।उधर दूसरे कमरे में बैठी सुमन को भी अपने होने वाले पति पर गर्व था जिसने उसके द्वारा किये फोन पर सारी स्थिति समझकर उसके पापा को जीवन मे आने वाले झंझावातों से बचा लिया था।
#दिखावा
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
स्वरचित एवं अप्रकाशित।