मयंक ने माही के पास जाकर कहा, “हाय, मैं मयंक! दुल्हे का सबसे खास दोस्त! क्या आप यहाँ लड़की वालों की ओर से मेहमान हैं?”
माही ने उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, ” अरे वाह! बिल्कुल सही पहचाना आपने! जैसे आप दुल्हे के खास दोस्त, वैसे ही मैं दुल्हन की खास सहेली!
बस यहीं से मयंक और माही की कहानी शुरू होती है। मयंक, जो साधारण सी नौकरी करता था, अपने जीवन में खुश था। ऑफिस के बाद कुछ समय दोस्तों के साथ बिताता और फिर घर जाकर मां के हाथों बना भोजन कर तृप्ति अनुभव करता। कुछ समय मां से बातें करता, फिर थोड़ी देर टीवी देखकर चैन की नींद सो जाता।
लेकिन उस दिन से सब कुछ बदल गया जब मयंक अपने बचपन के दोस्त की शादी में गया। वहाँ उसकी नजरें माही पर पड़ीं। माही के सौंदर्य और उसकी अदाओं ने मयंक को मंत्रमुग्ध कर दिया। उसे माही की सुंदरता के सामने सब कुछ फीका लग रहा था। उन्हीं पलों में वह उसे दिल दे बैठा।
“मुझे उसे प्रपोज़ करना होगा। बस माही ही मेरी जीवनसंगिनी होगी।” मयंक ने मन में ठान लिया। वह अपने दोस्त और उसकी पत्नी की मदद से उसकी ओर नजदीकियां बढ़ाने लगा।
मयंक अब माही को खुश करने के लिए हर संभव प्रयास करने लगा और यहीं से उसने दिखावे की जिंदगी में पदार्पण किया।
वह अपनी लुक्स पर ज्यादा ध्यान देने लगा। खुद भी सूटेड-बुटेड रहने लगा और माही को भी महंगे उपहार, ब्रांडेड सौंदर्य प्रसाधन और आधुनिक वस्त्र भेंट करने लगा। अपना सारा वेतन व्यय कर उसे सिनेमा, होटल आदि में लेजाकर उस पर अच्छा इंप्रेशन बनाने में कामयाब हो गया। और फिर माही के जन्मदिन पर मयंक ने उसे प्रपोज भी कर ही दिया।
इस दिखावे की जिंदगी से प्रभावित होकर माही ने भी उससे शादी के लिए झट से हां कह दी। माही की कॉलेज की पढ़ाई बीच में छुड़वाकर उसके परिवार वाले उसकी शादी के लिए तैयार नहीं हुए। दूसरी ओर, लड़की वालों की सहमति के बिना मयंक की विधवा मां भी अपने इकलौते बेटे की शादी नहीं करना चाहती थी।
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तो मयंक कोर्ट मैरिज कर माही को अपने घर ले आया। मयंक की मां ने बेटे-बहू को अपनाने में ही अपनी भलाई समझी और रस्मों-रिवाज के साथ नववधू माही का गृह प्रवेश कराया।
पर अपनी बेटी माही की ऐसी हरकत से रूष्ट उसके मायके वालों ने उससे नाता तोड़ दिया।
शादी के बाद मयंक के प्यार में बावरी हुई माही को सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था। घर में सब सुविधाएं मौजूद थीं। ऊपर से हनीमून, दोस्तों के साथ पार्टियां, घूमना-फिरना करते हुए माही को अपनी किस्मत पर रश्क होता था।
वह अक्सर खुश होकर मयंक से कहती, “ओह, मयंक! तुम कितने अच्छे हो!”
मयंक भी पलटकर कह देता, “मेरी माही, तुम मेरी जिंदगी हो और तुम्हारी खुशी ही मेरी प्राथमिकता है।”
इसी तरह दो महीने बीत गए। अब एक दिन माही को अपनी सहेली की शादी में जाना था तो उसने फंक्शन में पहनने के लिए अपनी सास सुधा जी से अपने गहने मांगे।
सुधा जी को तो माही अथवा मयंक ने गहने सौंपे ही नहीं थे। इसलिए सुधा जी जब उसे बताती हैं, “माही बेटा, मेरे पास गहने नहीं हैं।’ तो माही उन्हें भला-बुरा कहने लगी मानों सुधा जी जान-बूझकर माही को गहने न दे रही हों।
माही सुधा जी से कहती है, “मयंक ने मेरे गहने आपको संभाल कर रखने के लिए दिए थे। लेकिन आप मुझे नहीं देना चाहती क्योंकि आप मुझे बहू नहीं बनाना चाहती थीं। इसलिए आप झूठ बोल रही हैं। आपको मेरा मयंक के साथ घूमना फिरना भी पसंद नहीं है। मैंने कल सुन लिया था जब आप मयंक से कह रही थी कि बहुत घूम-फ़िर लिया, अब काम पर जाना शुरू कर।”
सुधा जी को माही के मुंह से ये सब सुनकर बहुत बुरा लगा। वे सोचने लगीं, “पति तो चार साल पहले ही साथ छोड़कर चले गए। अब बेटा-बहू ही तो मेरे सब कुछ हैं। मैं भला इनकी खुशी क्यों नहीं चाहूंगी?”
वे समझ जाती हैं कि मयंक ने ही कुछ गड़बड़ की है। वे सख्ती से अपने बेटे मयंक से पूछताछ करती हैं। माही के सामने अपनी निर्दोष मां को झूठा साबित होने से बचाने के लिए वह सच्चाई बयां करता है, “वे सोने केगहने तो मैं अपने ज्वेलर दोस्त प्रेम से शादी के वक्त माही को इंप्रेस करने के लिए खरीद लाया था। फिर कुछ दिन बाद “मां संभाल कर रख लेंगी”, माही को ऐसा कहकर उससे लेकर वापस अपने दोस्त प्रेम को बेच आया था।”
“ऐसा क्यों किया तूने? अरे माही को ऐसे अंधेरे में रखते शर्म नहीं आई तुझे? मेरे संस्कारों की ऐसी धज्जियां उड़ाई तूने? अब सच-सच बता और क्या-क्या छिपा रहा है तू?” सुधा जी ने कड़ककर कहा।
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तब मां और माही के सामने मयंक ने ये भी कबूल किया,”मेरे पास जितने पैसे थे वो खत्म हो गए थे। और दो महीने से काम पर न जाने की वजह से मुझे वेतन भी नहीं मिला। माही और दोस्तों के साथ पार्टियां मैं अपने एक अन्य दोस्त प्रवीण के किसी जानकार के होटल में उधार पर कर रहा था। जिससे मुझ पर काफी कर्ज चढ़ गया था। होटल मालिक अपने पैसे मांगने लगा था और अब मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं बची थी। इसलिए मुझे गहने बेचकर उससे उधार की भरपाई करनी पड़ी। लेकिन मुझ पर अभी कई और कर्ज बाकी हैं।”
सुधा जी को ये सब जानकर बहुत ठेस पहुंची। उन्होनें उसे सैर सपाटे को नियंत्रित करने और फ़िर से काम पर जाने का निर्देश दिया।
अब धीरे-धीरे दिखावे की जिंदगी की सारी असलियत माही के सामने आने लगी। उसे पता लग गया कि मयंक ने उससे झूठ बोला था कि वह एक बड़ी फैक्ट्री में मैनेजर है, जबकि वह एक साधारण सी नौकरी करता है।
उसे आत्मग्लानि होने लगी कि वह धोखे का शिकार हो चुकी है। उसे दर्द था कि उसका मायका भी उससे छूट चुका है। शादी के बाद दो महीने तक मयंक काम पर ही नहीं गया तो उसे वेतन कहां से मिलता। अब तो पैसों की कमी और उसके प्रति मयंक की दिन-प्रतिदिन बढ़ती बेरुखी की वजह से उसके रोज-रोज मयंक से झगड़े होने लगे।
माही डिप्रेशन की तरफ जाने लगी क्योंकि मयंक के साथ भागकर शादी करने के लिए उसने अपनी पढ़ाई भी बीच में ही छोड़ दी थी। माही को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे।
ऐसी परिस्थितियों में उसकी सास सुधा जी ने उसे प्यार और अपनेपन से संभाला। उसे दिखावे की जिंदगी से बाहर निकलकर अपनी छूटी हुई पढ़ाई पूरी कर अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। उसे समझाया कि आत्मनिर्भर बन कर वह भौतिक वस्तुओं की जरूरत के लिए मयंक पर निर्भर नहीं रहेगी।
सुधा जी ने उसे अपने संघर्ष के बारे में बता कर उसका हौसला बढ़ाया, “मेरे पति यानी तुम्हारे दिवंगत ससुर जी की अच्छी नौकरी थी। उसी से उन्होंने यह घर बनवाया था और जो सुख सुविधाएं आज हमारे पास हैं, ये उन्होंने ही जुटाई थी। लेकिन उनकी ठाठ-बाट से रहने की आदत की वजह से बचत नहीं हो पाती थी। उनके होते किसी चीज की कमी नहीं थी पर उनकी असमय मृत्यु से हमें रोजमर्रा के खर्चों की तंगी होने लगी। ज्यादा पढ़ी-लिखी तो मैं हूं नहीं पर सिलाई करना जानती हूं तो कपड़े सिलाई कर ही घर खर्च चलाने लगी।”
सुधा जी ने माही को ये भी बताया कि मयंक का पढ़ाई में मन तो लगता नहीं था तो हर बार एक दो विषयों में रह जाता था। 5 साल में भी BA पूरी नहीं कर पाया तो मयंक के मामा ने उसे अपने एक दोस्त की फैक्ट्री में 20000 रुपए महीने की नौकरी लगवा दी। साल भर हो गया पर इसने घर खर्च में कभी एक रुपया नहीं दिया। सबसे पहले इसने किस्तों पर मोटरसाइकिल ले लिया। मुझसे भी पैसे मांग रहा था मोटरसाइकिल के लिए। पर मैंने साफ़ इंकार कर दिया कि मैं महंगे शौक के लिए पैसे नहीं दूंगी।
सुधा जी ने माही का मनोबल बढ़ाते हुए कहा, “माही बेटा, अगर तुम पढ़ाई करोगी तो मैं वादा करती हूं कि तुम्हें कभी पढ़ाई के खर्च की तंगी नहीं आने दूंगी। बस तुम मन लगाकर पढ़ाई करना। किचन और अन्य घरलू कार्यों में मेरी थोड़ी सी मदद कर दिया करना जिससे मै अपना सिलाई का काम थोड़ा और बढ़ा सकूं।
माही अपनी सास सुधा जी से इतना संबल पाकर भावुक हो गई और एक बच्ची की तरह उनके गले लग रोने लगी, “मां आप कितनी अच्छी हैं! लेकिन मैंने आपको कितना गलत समझा था!”
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अब वह दिन रात जी-जान से मेहनत कर पढ़ने लगी। घर के कार्यों में भी वह सुधा जी को पूरा सहयोग देती।
दूसरी ओर सुधा जी ने अपने बेटे मयंक को भी सख्ती और प्रेम दोनों तरीके अपनाकर उसे जिम्मेदारी का अहसास कराया। उन्होंने साफ कर दिया कि मयंक को आडंबर से बाहर निकलकर ठोस धरातल पर जीना होगा। नौकरी में मेहनत कर अपना कर्ज स्वयं उतारना होगा।
इसके बाद घर और पत्नी की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेनी होगी। वृद्धावस्था की ओर अग्रसर वे अधिक समय तक घर खर्च नहीं उठा पाएंगी।
मयंक को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मेहनत करने का फैसला किया।
सुधा जी की प्रेरणा और सहयोग से माही ने पहले अपना B A पूरा किया। फिर बीएड किया । सीटीईटी क्वालीफाई किया और एक प्रतिष्ठित विद्यालय में ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर नियुक्त हो गई।
फ़िर वह दिन आया जब माही को अपनी पहली सैलरी मिली, जिसे वह विनम्रता से सुधा जी को ये कहते हुए सौंप रही थी, “अब बहुत हुआ मम्मी जी। अब आप काम नहीं करेंगी। मै सब संभालूंगी। मुझे इस काबिल बनाने का संपूर्ण श्रेय आपको जाता है।”
मयंक ने भी देखा कि माही कितनी बदल गई है। उसने सुधा जी और माही की मेहनत को समझा, और अपने अंदर एक नए जीवन के लिए प्रेरणा ली।
मयंक ने हाथ जोड़े,“मम्मी, मुझे माफ करना। मैंने आपको और माही को धोखा दिया। अब मैं कमर कसकर मेहनत करूँगा और अपनी जिम्मेदारियाँ सही से निभाऊँगा।”
इसके बाद, मयंक और माही ने अपनी-अपनी नौकरी में पूरी मेहनत लगाई। उन्होनें अपने उपभोक्तावाद को त्याग कर जीवन के असली सुख को पाया—सच्चे प्यार और एक-दूसरे के लिए सम्मान के साथ।
सुधा जी के आशीर्वाद से अपने जीवन को एक नई दिशा देकर मयंक और माही ने सबके समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया कि दिखावे की जिंदगी से ज्यादा सुखदायक है सच्चाई, संघर्ष और परिश्रम से परिपूर्ण जिंदगी।
– सीमा गुप्ता मौलिक व स्वरचित
साप्ताहिक विषय: #दिखावे की जिंदगी