नया अवतार – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

शोभना रसोई में सुबह से व्यस्त थी।आज बेटे राघव का जन्मदिन जो था।अब बड़ा हो गया है राघव।पहले की तरह पाव -भाजी या चाट समोसे की पार्टी अब नहीं दे सकता दोस्तों को।कल रात ही कह दिया था उसने”मम्मी,इस बार दोस्तों को होटल में ही पार्टी देने की सोच रहा हूं।

“झरोखा”रेस्टोरेंट में मंचूरियन और चिली पनीर बहुत अच्छा मिलता है।मेरे अधिकतर दोस्तों ने वहीं दी थी पार्टी अपने जन्मदिन में।मैं भी वहीं दे दूंगा।पापा से पैसों की बात कर लीजिएगा आप।”शोभना को अंदेशा तो था कि इस बार कुछ नया कारनामा करेगा राघव,पर इतनी मंहगी पार्टी!!!! उफ्फ़ आज कल के बड़े होते हुए बच्चे।पैसों की कोई कद्र ही नहीं।मुंह में केक मल-मलकर बर्थ डे मनाने की यह पश्चिमी सभ्यता बिगाड़ कर रख देगी हमारे बच्चों को।

रात सोने के समय पति नरेश से अपने मन की बात कहने लगी शोभना”देखिए जी,मैं कहे देती हूं राघव को साफ मना कर दीजिएगा बाहर पार्टी के लिए।अरे,बैठे बिठाए पैसे बर्बाद हो जाएंगे।मैं हूं ना।पहले भी तो पूरे मोहल्ले को बुलाती थी जन्मदिन पर।भरपेट खाना खिलाती थी,अपने दम पर।अब ये “झरोखा”कौन सा तीर मार देगा।”

नरेश ने हंसते हुए कहा”मैडम,अब आपकी उम्र हो रही है।हमारी तो मजबूरी है ,जो हम तारीफ करते हुए खा लेतें हैं।तुम्हारा बेटा अब जवान हो रहा है।दोस्त भी आजकल घर आने में शर्माते हैं।देने दो ना उसे बाहर ही पार्टी।तुम्हें भी आराम मिल जाएगा।”

“क्या कहा आपने?आप मजबूरी में मेरे हाथ का बना खाना खातें हैं।वाह!!!!!क्या ईनाम दिया है मेरी लगन का।अरे जब से शादी करके आई हूं,तब से रसोई संभालती आई हूं।पापा -मां,आप और बच्चों के लिए अलग-अलग मनपसंद खाना बनाती रही हूं।जिसको जो पसंद है,वही बनाती हूं।सारा दिन रसोई में मेरे कुकर और मिक्सी चालू रहता है।

आपको पता है शाहिद भाभी तो उस दिन बोल भी दीं मुझसे कि उनका बेटा रात को कुकर की सीटी सुनकर पूछा था कि क्या शोभना आंटी लोग भी रोज़ा रखते हैं?मेरे आराम की कब से चिंता होने लगी आपको?कभी हांथ बंटाया है मेरा रसोई में।अब बड़ी दया दिखा रहे हैं।मैं क्या बूढ़ी हो गई हूं?खुलकर कह दीजिए ना।एक खाना बनाने वाली का इंतजाम कर लीजिए।अब नहीं घुसूंगी रसोई में।”शोभना रोते हुए बोले जा रही थी।

नरेश जी भी सकपका गए।ये तो सिर मुंडाते ही ओले पड़ गए। जैसे-तैसे सॉरी बोलकर बात संभाली उन्होंने इस वादे के साथ कि राघव की बाहर की पार्टी निरस्त की जाएगी।

शोभना विजय पा चुकी रणबांकुरी बन तसल्ली से सो गई थी।

सुबह राघव के उठते ही नरेश जी को खंखार कर इशारा किया,वे समझ कर बोले बेटे से”राघव तुम्हारी मम्मी बता रही थी कि तुम इस बार बाहर पार्टी देने वाले हो।”बीच में ही बात काटते हुए शोभना जी बोलीं”अरे बेटे को जन्म दिवस का आशीर्वाद तो दे दीजिए पहले।हैप्पी बर्थडे बेटा।”नरेश जी अपनी पत्नी की त्वरित कार्रवाई देखकर दंग रह गए।अपनी ग़लती सुधारते हुए राघव के सर पर हांथ रख कर आशीर्वाद दिया उन्होंने।

शोभना  जाते-जाते नरेश जी को इशारा कर चुकी थीं, वार्तालाप करते रहने के लिए।नरेश के घूरने पर राघव ने कहा”पापा,अब शहर में कितने रेस्टोरेंट खुल गएं हैं।एक से बढ़कर एक व्यवस्था है वहां।जो खाने का मन हो,बस ऑर्डर दे दो।झंझट खत्म। बहुत ज्यादा पैसे भी नहीं लगते पापा।”

नरेश जी बेटे की बात से सहमत तो थे पर पत्नी का कोप भी याद था उन्हें।सो पूछा”कितने लोग आएंगे कुछ सोचा है?क्या -क्या मैनू डिसाइड किया है?तुम्हारी मम्मी भी वैसे कम अच्छा खाना नहीं बनातीं क्यों?”राघव पापा की मनःस्थिति भांप चुका था।बोला”पापा,वाकई में मम्मी अच्छा खाना बनातीं हैं।पर स्टार्टर वगैरह तो रेस्टोरेंट में ही अच्छा मिलता है ना।अब मम्मी पिज्जा,पास्ता, मंचूरियन, गार्लिक ब्रेड, फ्रेंच फ्राई कहां बना पाएंगी इतने लोगों के लिए।उनकी तो सिग्नेचर डिश एक दो ही हैं-पाव भाजी, कटलेट और खीर।आजकल कोई खाता है क्या ये सब?

शोभना इतनी भी दूर नहीं थी कि उन्हें बैठक में बैठे लोगों की बातें ना सुनाई दें।फोन उठाकर यूट्यूब खोला।चल दी पास्ता बनाने।राघव‌ और नरेश जी को चेतावनी दे दी गई थी कि,खाकर फिर तय किया जाए बाहर सैलीब्रेशन होगा कि नहीं।

नरेश जी आज पत्नी का नया रूप देखकर अवाक थे।राघव भी मम्मी को ऐप्रिन पहने,कभी केक तो कभी पास्ता बनाते देख रहा था। मंचूरियन की तैयारी करती मम्मी के नए अवतरण से आश्चर्य चकित था राघव।शाम की पार्टी खाना चखकर खाने के बाद  के लिए स्थगित कर दी गई थी। खटर-पटर करती हुई‌ पसीने से लथपथ शोभना थोड़ी देर के लिए बैठक में आकर बैठी तो  लगा कि मास्टर शैफ का विजेता बनने के एक कगार पीछे है वह।

तभी पड़ोस की दुर्गा आ पहुंची सूंघते-सूंघते।दुर्गा को देखकर उतावली होकर पूछी”क्या पका रहीं हैं भाभी?आज तो जन्मदिन स्पेशल होगा ना।मेरा बेटा सागर तो हमेशा कहता रहता है कि खाना बनाना राघव की मम्मी से सीखिए आप।फास्ट और स्मार्ट बनना कोई उनसे सीखे।मैंने भी मान‌ लिया है यह सच्चाई।अच्छा भाभी मुझे एक -आध रेसिपी सिखा दीजिए ना।जाने कब पति और बच्चे खाने की जिद कर दें।क्या और कितना डालना है पास्ता में बताइये ना भाभी।

“उनकी बात खत्म होने से पहले ही राघव बोल पड़ा”आंटी मम्मी से क्या रैसिपी सीखेंगी आप?उनकी तो आदत ही है विदेशी खानों को देसी बना देना। पावभाजी में उबली हुई‌ लौकी भला कोई डालता है कहीं? इन्होंने हर बार नया एक्सपैरिमैंट किया है,आज भी करेंगी।पापा ने भी बाहर की पार्टी रद्द कर दी।आप प्लीज ऐसा मत करिएगा।

सब मिलता है बाहर।”राघव‌की बात सुनकर खून तो खौल गया शोभना का।पास्ता प्लेट में देकर बोली”जल्दी से टेस्ट कर लो फिर बताना।”राघव‌ और नरेश जी ने जैसे ही पहला निवाला डाला,चीख ही पड़े”वाह!!! अद्भुत, अद्वितीय बना है पास्ता।तुम पास हो गई आज।बाहर की पार्टी कैंसिल।”बस इतना ही तो सुनना था मां को।

शादी के बाद सास-ससुर की मनपसंद का खाना नहीं बना कभी तो उनकी बातें सुनी।पतिदेव जी ने भी जवानी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी नाक में दम करने में।हर बार अपनी मां के हाथों के स्वाद का जादू जताते रहे।अब तीसरा पहर आया है उम्र का।बेटे की पसंद का नहीं बन पाया तो हार तो अपनी ही होगी ना।सभी एक सुर अलापेंगे साथ में।

शाम को राघव के दोस्त आ चुके थे।बाहर से केक मंगवा कर पहले ही रख लिया था शोभना ने।मास्टर शैफ वाला कोट निकालकर पहना था आज,जो कई सालों पहले रेडीमेड खरीदी थी। मंचूरियन,नूडल्स ,पास्ता, चाइनीज फ्राइड राइस,चिली पॉटेटो से लेकर  गार्लिक नान तक था टेबल पर।टेबिल कुर्सी नहीं लगाई थी।सेल्फ सर्विस का इंतजाम था।राघव के सारे दोस्त उंगलियां चाट-चाटकर का रहे थे,और  राघव यह देख गर्वित हो रहा था।

नरेश जी ने एक कोने में ले जाकर मुस्कुराते हुए पूछा”ये नया अवतार तो कमाल है तुम्हारा।सच में आज झूठी तारीफ नहीं कर रहा।तुमने कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी शोभू।ये कौन सा जादू है?”

शोभना ने मुस्कुराते हुए कहा”उस दिन आपकी बात ने मेरा दिमाग सही कर दिया।अभी तक तो प्रतियोगिता आपके पिता-मां और आपकी थी।आधे से ज्यादा उम्र निकल ही गई खाना पकाते,खिलाते।अब मेरी प्रतियोगिता बेटे के साथ है।यदि मेरे बनाए खाने में वो भी नुक्स निकालेगा,तो बहू आकर भी वही करेगी।जोमेटो क्या मां से तेज सर्विस दे सकता है?

ये चाइनीज़ आइटम कौन से तोप हैं,जब हमने घेवर घर पर बनाया है।पत्ता गोभी के पकोड़े ही तो हैं,नए तरीके से बनाओ तो मंचूरियन बन गए।बेटे के सामने भी अगर हार गई तो,क्या फायदा मेरी जिंदगी भर की मेहनत का।आज मज़ाक़ -मज़ाक में हंसेंगें,कल को तो रिजेक्ट ही कर देंगे।

जब तक मेरे बह में है,घर में ही मना लेती हूं उसका जन्मदिन,फिर जब सचमुच बूढ़ी हो जाऊंगी,तो तुम्हारे साथ ही मैं भी ले लूंगी रसोई से रिटायरमेंट।जब सोशल मीडिया में ज्ञान की बातें उपलब्ध हैं,तो क्यों ना हम अपना भी मेकओवर कर लें।”

बेटी,बहन,बहू,पत्नी ,भाभी,मामी,चाची,बुआ और मौसी -ताई बनकर जब इतनी जिम्मेदारियां निभा सकतीं हैं हम,तो समय पर नया अवतार लेने में क्या बुराई है?समय से पहले खुद को अनुपयोगी क्यों मान लेना भला?

“आंटी,थैंक यू फॉर द बेस्ट डिनर टुनाइट।”राघव के दोस्त शोभना की तरफ देखकर प्यार से बोले,तो एक मां पूर्ण संतुष्ट हो गई आज।

शुभ्रा बैनर्जी

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