नौकरी वाली बहू – कविता झा’अविका’ : Moral Stories in Hindi

घर की छोटी बहू कायरा सबकी लाडली बन गई। ससुराल में आते ही उसने सबको महंगे उपहार देकर घर में सबका मन जीत लिया। वो शादी से पहले नौकरी करती थी और शादी के समय यही शर्त रखी कि वो अपनी नौकरी कभी नहीं छोड़ेगी। वैसे भी सरकारी नौकरी मिलना इतना आसान तो है नहीं जो वो अपनी घर गृहस्थी को संभालने के लिए नौकरी छोड़ देती।

साल भर बाद जब उसका बेटा हुआ तो उसने अपने काम करने और बच्चे संभालने के लिए नौकरानी रख ली। अब कोई उसे यह तो नहीं कह सकता कि काम का बोझ बढ़ गया है तो तुम अपने बच्चे को संभालने के लिए घर पर बैठो और नौकरी छोड़ दो। 

अब कायरा को धीरे धीरे खुद पर और अपने हर महीने वेतन से आए पैसों पर गुरुर हो जाता है। घर की नौकरानी के साथ साथ वो घर में सभी को नौकरानी ही समझने लगती है क्योंकि नौकरी जो करती है।

वो अपनी जेठानियों और सांस पर भी रोब जमाती है।

“मैं क्यों बर्तन मांजूं… मेरे नेल्स गन्दे हो जाएंगे। फिर काम वाली को पैसा तो काम के लिए ही देते हैं ना और आप लोग सारा दिन घर में रहकर क्या करती हैं। मैं ऑफिस में भी काम करूं और घर पर भी काम करूं। यह मुझसे नहीं होगा।”

“यह तुम कैसे बात कर रही हो… अपने कुछ काम खुद भी करने चाहिए। तुम ऑफिस जाने से पहले थोड़ा बहुत तो रसोईघर में हमारी मदद करवा दिया करो। तुम्हारा और देवरजी का नाश्ता खाना सब हम बना ही देते हैं। तुम जाने से पहले कम से कम बच्चे को तो खिला दिया करो।”

“दीदी मुझे पता है मुझे क्या करना है और क्या नहीं। आप मुझे कोई नसीहत मत दिया कीजिए। आप लोग क्या जाने ऑफिस जाना और पैसे कमाना। मैं ऑफिस में भी काम करूं और घर पर भी काम करूं मुझसे नहीं होगा। काम वाली रिंकी से करवा लिया कीजिए।”

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“वो तो हफ्ते में चार दिन छुट्टी पर ही रहती है। कभी देर से आएगी और कभी जल्दी ही चली जाएगी।”

“ये सब मैं नहीं जानती। मैं तो उसे हर महीने पूरे पैसे देती हूं।”

“अच्छा हम कोई दूसरी काम वाली देखते हैं जो हमेशा घर में रहे ।”

“आपकी जैसी मर्जी… जितना पैसा मांगेगी बता दीजियेगा। आप लोगों की तो औकात नहीं थी नौकरानी रखने की वो तो मेरी बदौलत ही इस घर में नौकरानी के आप लोगों के सपने पूरे हुए… हां पर मुझसे घर के कामों में कोई उम्मीद मत रखना।”

छोटी बहू सासू मां की सबसे लाडली बहू थी। इसका मुख्य कारण उसकी सरकारी नौकरी का होना ही था। 

वो रोज नए महंगे महंगे कपड़े पहनती और खूब मेकअप करती।

“बिल्कुल गुड़िया सी लगती है छोटी बहू तो।”

ऐसी गुड़िया जो पैसे कमाती है। भले वो अपनी सास के हाथ में कभी एक पैसा नहीं देती फिर भी एक उम्मीद थी कमला जी की आंखों में। जब जरूरत पड़ेगी तो यह जरूर पैसे निकालेगी घर के खर्च के लिए।

एक दिन कमला जी सीढ़ियों से गिर गई और उनका पैर मुड़ गया। कायरा की जेठानी ने उसे फोन लगाया और बताया कि …

“मां को डॉक्टर के पास ले जाना है।”

“तो ले जाईए ना मुझसे क्यों बोल रहीं हैं।”

“आपके जेठजी शहर से बाहर गए हैं और मुझे तो स्कूटी भी चलानी नहीं आती। आप आधा घंटे की छुट्टी लेकर आ जाईए अपनी कार से या देवरजी को भेज दीजिए।”

“हम दोनों नहीं आ सकते। ऑफिस में जरूरी मीटिंग है। गाड़ी भेज देते हैं। मां जी को डॉक्टर के पास ले जाईए।”

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“छोटी बहू को पैसों का कितना घमंड है। मां जी की ऐसी हालत है और खुद ना आकर ड्राइवर को भेज दी है।”

कमला जी जो छोटी बहू के गुणगान गाते ना थकतीं थी… ” घर संभालती है, बच्चा संभालती है फिर ऑफिस जाती है और मेरी खूब सेवा करती है। उनको भी यह बहुत बुरा लगा कि उसकी छोटी बहू उसे देखने हॉस्पिटल में एक बार भी नहीं आई। वैसे तो मां जी मां जी करते ना थकतीं थी और आज मुझे देखने भी ना आई।”

कुछ महीनों बाद कायरा पर रिश्वत लेने का आरोप लगा और उसे नौकरी से निकाल दिया गया। 

जिस नौकरी और पैसों का उसे घमंड था वो चूर चूर हो गया। 

कविता झा’अविका’

रांची, झारखंड

#पैसों का गुरुर

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