अरे!! मोहनदास जी आप हमे तो बस रोटी बेटी चाहिए।। हमारे पास भगवान का दिया सबकुछ है,बस कमी है तो सिर्फ एक बहू के रूप में बेटी की।।
और मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारी बेटी रिया को कभी भी किसी तरह की कोई परेशानी नही होगी…गर वो शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहतीं है,या नोकरी करके अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है,तो हमे इसमे कोई आपत्ति नही है। हम आपकीं बेटी को अपनी बेटी की तरह रखेंगे।।
प्रीतमलाल जी ने कहा।।
प्रीतमलाल जी की बातों से प्रभावित होकर रिया के पिता चरणदास जी ने रिश्ते के लिए हाँ कर दी। क्योंकि बेटी रिया ने अपने पिता से पहले ही कह दिया था कि-“गर रिश्ता ढूंढो तो ऐसा ढूंढना जिसमे उसकी पढ़ाई की कद्र हो सके,किसी भी तरह की कोई रोक टोक न हो। रिया के कहे अनुसार चरणदास जी ने वैसा ही रिश्ता ढूंढा जैसा रिया चाहती थी।
दोनो ही घरों में शादी की तैयारी शुरू होने लगी।। रिया और मोहित की शादी बड़ी ही धूमधाम से हुई।। जब रिया विदा होने लगी तो,उसके कान में कुछ शब्द पड़े…”
देखो जी हमने तो एक रुपया भी दहेज का नही लिया है,और मैं तो दहेज लेने औऱ देने के खिलाफ हूँ।। बस रोटी बेटी चाहिए थी जो मिल गई।। प्रीतमदास जी के मुँह से यह शब्द सुनकर वाह उपस्थित लोग उनकी तारीफ करने लगे,और कहने लगे काश समाज मे आप जैसे लोग हो तो…समाज की नींव मजबूत हो जाये।।
यह सब सुनकर रिया के मन मे भी अपने ससुर प्रीतमदास के लिए सम्मान ओर बढ़ गया था…!! रिया विदा होकर अपने ससुराल आ गई।।
ससुराल में रिया कुछ दिनों तक तो शादी की रस्मों को निभाने में व्यस्त रही।।
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मेहमान जाने लगे..जाते जाते बुआजी ने रिया की सास से कहा-” भाभी बहू को ज्यादा लाड़ प्यार में बिगाड़ मत देना…और पढाई लिखाई गई भाड़ में,घर में ही रखना वरना एक बार पैर बाहर निकले तो फिर घर मे टिक पाना मुश्किल होगा…बुआ जी ने कहा।
अरे!! बहनजी आप ये कैसी बात कर रही हो,ये बहू है हमारी। इसकी इच्छाओं का ध्यान रखना हमारा फर्ज है…!! आप अपनी बहू को संभालो…मैं तो मेरी बहू को हाथों में रखूँगी…। सास सुभद्रा ने बुआ जी को जवाब दिया।
यह सुनकर रिया के मन मे अपनी सास के प्रति और भी इज्जत बढ़ गई।। वो सोचने लगी सच मे आज भी इस दुनिया मे अच्छे लोग है जो चेहरे से नही दिल से खूबसूरत है..!! धीरे धीरे समय बीतता गया।।
कुछ दिन के बाद जब वो घर के कामो से फ्री होने के बाद किताब लेकर अपने रूम में पढ़ रही थी तब सास उसके कमरे में आई और बोली-“अरे !! बहू ये किताब किस चीज की पढ़ रही है..?
“माँ जी अगले महीने मेरे बी.एड के एग्जाम है तो बस उसी की तैयारी कर रही हूँ…शादी की वजह से काफी दिनो से पढ़ नही पाई इसलिए आज थोड़ा पढ़ने बैठ गई।। रिया ने जवाब दिया।।
अरे!! ब्याह बाद कौन पढ़ने देता है..!! गर तू पढाई लिखाई में ही लगी रहेगी तो घर का कामकाज कौन देखेगा…?
कौनसा तुझे कलेक्टर बनना है..? एक तो दहेज में कुछ भी लेकर नही आई औऱ अब यहाँ पढाई के नाम पर हमारे पैसे बर्बाद कराने पर तुली है..!! सास ने आखिर दहेज का ताना मार ही दिया।।
यह कहकर सास (सुभद्रा) कमरे में से चली गई।
लेकिन रिया अपनी सास की बातों से कुछ परेशान सी थी।। ओर सोचने लगी उसदिन बुआजी से तो कह रही थी कि ये हमारी बहू है,हाथों ही हाथों में रखूँगी। औऱ
जब रिश्ते होने के बाद मां जी मुझसे मिलने आई तब तो बड़े प्यार से बोल रही थी कि,मुझे तो बहू नही बेटी चाहिए…और मैं जानती हूँ कि बहू को बेटी बनाकर कैसे रखते है।। मैं तेरा सभी कामो में पूरा सपोर्ट करूँगी। मतलब माँ जी ने उसदिन रिश्ते तय हो जाये इसलिए अपने चेहरे पर ममता का झूठा नकाब लगा रखा था।
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रिया बातो को सोचकर परेशान हो रही थी,उसको परेशान देखकर ऑफिस से लौटे पति मोहित ने पूछा-” क्या हुआ क्यो परेशान हो..?
“माँ जी ने कहा है कि पढ़ाई लिखाई की कोई जरूरत नही है। घर के कामो में ध्यान दो। तुम्हे कौनसा कलेक्टर बनना है…।
तुम्हे तो पता है ना मोहित की अगले महीने मेरे एग्जाम है,और मुझे अपने पैरों पर खड़े होना है।। अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूँ।। रिया ने कहा।।
जो माँ कहे,वो करो।। जब माँ ने मना कर दिया तो छोड़ दो पढाई। घर मे रहकर घर के काम करो।। मेरे माँ की सेवा करो। मोहित के मुँह से यह शब्द सुनकर रिया अचंभित रह गई।।
मतलब पति मोहित भी नही चाहता था कि रिया अपनी पढ़ाई पूरी करें।
रिया बड़े ही असमंजस में थी कि क्या करे क्या नही।। रिया ने न पति की सुनी ओर न सास की उसे विश्वास थाकि ससुर जी ने रिश्ता तय करते वक्त पढाई की बात की है,उन्हें तो कोई एतराज नही है यह सोचकर रिया ने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
धीरे धीरे परीक्षा के दिन भी नजदीक आ गए थे।।
एकदिन रात्रि के भोजन के समय जब सभी भोजन करने बैठे तब रिया ने कल होने वाले पेपर के बारे में अपने पति मोहित से कहा-“मोहित कल सुबह मेरा पेपर है,पेपर का समय 12.00 बजे से तो हमे जल्दी निकलना होगा क्योंकि ट्रैफिक भी ज्यादा रहता है। रिया अपनी बात कह ही रही थी कि…इतने में ससुर जी प्रीतमदास जी बोल पड़े।।
“तुम्हे जरूरत क्या है पढाई लिखाई करने की। तुम्हारी सास ने तुम्हे मना किया है ना पढ़ने के लिए….गर तुम्हे शादी के बाद पढाई लिखाई ही करनी थी तो तुमने शादी ही क्यो की।। एक तो मैने तेरे मायके वालों से दहेज का एक रुपया भी नही लिया…इसलिए कि कोई ना धीरे धीरे घर के कामो में पढ़ाई का भूत सिर से उतर जाएगा और घर के कामो को संभाल लेगी।। लेकिन इसे तो पढाई करके न जाने ऐसी कोनसी नोकरी करनी है…ससुर प्रीतमदास के सुर बदलते हुए नजर आए।। रिया का विश्वास कांच के जैसे टूट गया।
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अब प्रीतमदास जी का असली चेहरा रिया के सामने आ गया था।। मतलब जब वो अपने बेटे का रिश्ता लेकर गए तब तो बड़ी बड़ी बाते कर रहे थे,लेकिन सच यही था कि उन्हें बहू नही घर के लिए नोकरानी चाहिए थी,जो बिन दहेज के दवाब में अपनी इच्छाओं को दमन कर दे,और समाज मे प्रीतमदास जैसे लोगो की इज्ज़त बनी रहे।।
अपने ससुर की बात सुनकर रिया का पारा चढ़ गया रिया ने तुरंत जवाब दिया-“पापाजी रिश्ता लेकर आप मेरे घर आये थे हम नही।। रिश्ता तय करते वक्त आपने ही कहा था कि बेटी बनाकर रखूंगा…और गर शादी के बाद पढाई पूरी करके नोकरी करना चाहे तो हमे कोई आपत्ति नही होगी।।रिश्ता तय करते वक्त आपने ही बड़ी बड़ी बाते की थी,लेकिन अब क्या हुआ उन बातों का,वादों का जो आपने किये थे।। मतलब आप लोगो भी रिश्ता तय करते वक्त शराफत का नकाब पहनकर गए थे।ताकि समाज मे आपकीं वाहवाही हो…प्रसंशा हो।।
सही कहा है किसी ने चमकने वाली हर चीज सोना नही होती…!!
रिया के सामने सभी असली चेहरे आ गए थे,वो रोते रोते सोचने लगी और प्रश्न करने लगी।
आख़िर क्यो लोग रिश्ता तय करते वक्त झूठ बोलते है…?
क्यो बहू को आगे बढ़ने से रोका जाता है..?
आखिर कब तक लोग ऐसे ही शराफत का नकाब लगाकर घूमते रहेंगे ऒर दोहरे चरित्र निभाते रहेंगे..?
आजतक इन प्रश्नों का जवाब किसी के पास नही है।
#दोहरे_चेहरे
धन्यवाद
मौलिक व अप्रकाशित
ममता गुप्ता