ननद – विनीता महक गोण्डवी : Moral Stories in Hindi

सविता शहर की एक पढ़ी-लिखी लड़की थी और एक संयुक्त परिवार की बेटी थी।उसके पिताजी उसके लिए लड़का देख रहे थे। सविता के पिताजी जब भी कोई इकलौता लड़का देखते तो सविता कहती….. नहीं पापा परिवार में ननद हो ,देवर हो, जेठ हो, तो कितना अच्छा लगता है

भरा-पूरा  परिवार हो सब एक साथ खाना खाएं सुख-दुख में सब साथ हो। सविता के पिताजी के एक दोस्त ने एक रिश्ता बताया …उन्होंने कहा ….लड़का तो अच्छा है लेकिन यूपीएससी की तैयारी कर रहा है. उसके पिताजी दीनानाथ जी भी अध्यापक है एक भाई बहन है। बहन की शादी हो गई है सविता भी शिक्षिका थी ।सविता की शादी राजेश से तय हो गई और कुछ दिन बाद सविता के पिताजी ने राजेश से शादी कर दी ।

 सविता एक पढ़ी-लिखी सुंदर सुशील नौकरी वाली बहू थी। इसकी चर्चा पूरे गांव में थी।उसकी शादी ग्रामीण क्षेत्र के एक माध्यम वर्गी परिवार में हुई थी। सविता जब शादी में आई तो गांव की महिलाएं और रिश्तेदार खुसूरफुसूर  कर रहे थे। अरे…… दीनानाथ नौकरी वाली बहु लाए हैं ।रोटी तो नसीब नहीं होगी। लड़का तो अभी पढ़ाई कर रहा है देखो क्या होता है ….? शादी में सविता की सास ननद ने बहुत खातिरदारी की और चौथे दिन चौथी में सविता मायके आ गई। सविता का पति राजेश दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहा था।राजेऊ पढ़ने में बहुत अच्छा था।

   सविता ने उसी गांव के स्कूल में ट्रांसफर ले लिया कुछ समय बाद। सविता ससुराल से ही आना-जाना करती। सविता की बड़ी ननद की शादी बहुत पहले हो गई थी। ननद रानी की ससुराल बहुत धनाढ्य थी। ननद रानी का मायके और ससुराल में बहुत दबदबा था। सभी उनकी बात मानते थे। ननद हर सप्ताह मायके आ जाती ।वो सकता को काम बताती रहती और फिर काम में नुक्स निकाल कर ऊट-पटांग कहती रहती। सविता सब बर्दाश्त करती।

    कभी-कभी अपने मां को भी भाभी के प्रति भटकती मां (सासु)…..सविता भाभी को थोड़ा शक्ति से रखो नौकरी वाली है सिर पर चढ़ जाएगी।

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   कभी-कभी रात में सविता को उठाकर ननद कहती…… सविता जाओ तेल लेकर आओ मेरी और मां की मालिश करो। सविता को कुछ समझ नहीं आता। वो शांत रहती।

     सविता सुबह से सारा काम करके विद्यालय जाती है और शाम को आकर पूरा काम करती ।कोई भी उसका सहयोग नहीं करता। उसको समझ नहीं आ रहा था। यह क्या हो रहा है। कभी-कभी तो ननद खाने की थाली उठाकर के फेंक देती। कितना खराब खाना बनाया है। कुछ सीख करके नहीं आई अपने मायके से।

 सविता संस्कारित परिवार की थी। वो अपना कर्तव्य समझ कर सेवा करती उसके मन में कोई द्वेष नहीं था। ननद अपने बच्चों को लेकर आती है और सविता से कहती …..ये सविता मेरे बच्चों को सौ- सौ रुपए से कम मत देना समझी। सविता हां मैं सिर हिला देती ।

 एक दिन तो हद ही हो गई।ननद ने चाय मांगी.. ये सविता  जरा गर्म गर्म चाय लेके आना । सविता चाय बना कर लाई और ननद ने वो  गर्म चाय सविता के ऊपर फेंक दी और कहां….  देख ये गर्म चाय है। सविता तिलमिला गयी गर्म चाय  के पड़ने से।

वो राजेश को ये बातें नहीं बताती थी क्योंकि राजेश तैयारी कर रहा था।वो सोचती थी एक न एक दिन सब समझ जाएंगे और सब ठीक हो जायेगा।ननद ससुर साहब के सामने बहुत अच्छी बनी रहती है।

     सविता की जो भी चीज अच्छी लगती। ननद बिना बताए ले जाती। सविता जब पूछती तो वो गाली-गलौज पर उतर आती और कहती हमें चोर समझा है। ये हमारा घर है हम सब ले जा सकते है ।  सविता चुप हो जाती । सासु मां भी कुछ नहीं कहती ननद से।

 समय पंख लगा कर उड़ रहा था। इसी तरह से 10 वर्ष बीत गये राजेश का भी चयन हो गया था। उसकी पास के जिले में पोस्टिंग हो गई थी। राजेश सप्ताह में एक या दो दिन के लिए घर आता था।

सविता के दो बच्चे हो गए थे। ननद के दो लड़कों की शादी हो गई थी। उनकी अपनी बहू से नहीं पटती थी। अब सविता को उनकी बातें सुनने की आदत पड़ गई थी।

   कुछ समय बाद एक दिन ननद को फालिश का अटैक पड़ गया। ननद की बहूओ ने उनकी देखभाल करने से मना कर दिया। उनके व्यवहार के कारण।

 सविता ने छुट्टी लेकर ननद की रात दिन सेवा की और अपने घर ले आयी। धीरे-धीरे ननद स्वस्थ हो रही थी और कुछ महीने में वो पूर्ण स्वस्थ हो गई  अब वो चल फिर पा रही थी ,बोल लेती थी। ये सब सविता की सेवा का कमाल था।

अब ननद को अपने व्यवहार पर बहुत अफसोस था तब उन्होंने सविता से माफी मांगी….. मुझे माफ कर दो सविता। मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया ।सविता मुस्कुरा दी…. कोई बात नहीं दीदी यह तो हमारा कर्तव्य था।

     स्वरचित एवं मौलिक 

विनीता महक गोण्डवी

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